पटना: बिहार में 2 सीटों पर उपचुनाव (By-Election) के लिए मतदान 30 अक्टूबर को होना है. सभी दल अपने उम्मीदवार को जिताने को लेकर लगातार प्रचार प्रसार कर रहे हैं. लोजपा रामविलास पार्टी (LJP Ramvilas Party) की ओर से चिराग पासवान (Chirag Paswan) वन मैन आर्मी बनकर लगातार मेहनत कर रहे हैं. करें भी क्यों ना, उनके संसदीय क्षेत्र की तारापुर विधानसभा सीट दांव पर लगी हुई है.
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दरअसल, चिराग पासवान के सभा में उमड़ रही भीड़ को लेकर लोजपा रामविलास पार्टी काफी उत्साहित है. यह भीड़ वोट में तब्दील होती है कि नहीं यह देखना अहम होगा. चिराग पासवान द्वारा चुनाव प्रचार प्रसार और उसके पहले आशीर्वाद यात्रा के दौरान उनकी सभाओं में उमड़ रही भीड़ से वह काफी खुश नजर आ रहे हैं.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट डॉक्टर संजय कुमार की माने तो चुनाव के दौरान सभाओं में भीड़ का हिस्सा बनना या सभा में आना एक बात है और उसका वोट में तब्दील होना दूसरी बात है. चिराग पासवान युवा नेता हैं, इनके जो समर्थक हैं वह जरूर इनके स्वभाव में उनको सुनने के लिए आ रहे होंगे, वो राजनीति तस्वीर को भी समझ रहे हैं. डॉ. संजय की मानें तो अब जनता मुखर होकर कुछ बोलती नहीं है और यह उपचुनाव की लड़ाई एनडीए वर्सेस आरजेडी की हो गई है. ऐसे में उम्मीद यही जताई जा रही है कि चिराग पासवान कोई तीसरा कोण बना कर वोट को अपनी ओर स्प्लिट करवा पाएंगे.
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''जब लोजपा में चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस एक थे, तब की स्थिति कुछ और थी. बिहार में 5% पासवान वोटर के वोट जिधर चाहते थे, उधर उनका वोट गिरता था. चाचा पशुपति पारस एनडीए का साथ दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर चिराग पासवान अलग-थलग पड़े हुए हैं. ऐसे में कहीं ना कहीं उपचुनाव में आरजेडी मजबूती के साथ लड़ रही है, ऐसे में कहा जा सकता है कि ट्रेडिशनल वोटर्स किधर जाएंगे यह का पाना मुश्किल है.''- डॉ.संजय कुमार, पॉलिटिकल एक्सपर्ट
हालांकि, उन्होंने कहा कि जिस कैंडिडेट को लोजपा ने उतारा है उसका भी अपने क्षेत्र में प्रभाव होता है. उसमें यह देख पाना ज्यादा अहम होगा कि चिराग पासवान की वजह से उनके वोटर्स कितने जुड़ पाते हैं. सभा में भीड़ और उसकी तालियां कभी भी वोट में तब्दील ना होती हैं और ना ही होगी. हालांकि, चिराग पासवान अपने स्तर से अपनी जमीन की तलाश कर रहे हैं और उपचुनाव कोई लिटमस टेस्ट है नहीं कि इससे यह अंदाजा लगा सकें कि चिराग पासवान को किनारे लगा दिया गया या वह स्थापित हो चुके हैं.
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हालांकि, चिराग पासवान की सभा में भीड़ दिख रही है, परंतु उनके संसदीय क्षेत्र के तारापुर विधानसभा को जितना भी कहीं ना कहीं चिराग पासवान के लिए उतना ही जरूरी है तभी वह आने वाले लोकसभा चुनाव में वहां से मजबूत हो पाएंगे.
बता दें कि बिहार विधानसभा की दो सीटों पर उपचुनाव होने वाला है. दोनों सीटें जदयू विधायकों के निधन से खाली हुई हैं. एक कुशेश्वरस्थान और दूसरी सीट तारापुर है. एक तरफ जहां सत्ताधारी दल जेडीयू ने अपनी दोनों सीटों को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. वहीं मुख्य विपक्षी दल आरजेडी की कोशिश उपचुनाव में जेडीयू कैंडिडेट को हरा कर उस पर कब्जा करने की है.
हालांकि, राजद की राह में कांग्रेस रोड़ा बन गई है. इन सबके बीच चिराग पासवान की चुनौती भी कम नहीं है. लिहाजा तारापुर सीट चिराग के लिए प्रतिष्ठा का विषय है. हालांकि ज्यादातर देखा जाता है कि उपचुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी की ही जीत होती है. या यूं कहें कि जिस दल के विधायक का निधन होता है उसी दल के एक कैंडिडेट की जीत होती है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या उपचुनाव में चिराग अपनी प्रतिष्ठा बचा पाएंगे या अपने ही संसदीय क्षेत्र में औंधे मुंह गिरेंगे.