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Bihar Crime: जंगलराज का सफाया करने वाली बिहार पुलिस मूल मंत्र से क्यों भटक रही.. कैसे आएगा सुशासन? - Crime increasing in Bihar

बिहार पुलिस भले पुलिस सप्ताह मना रही है लेकिन आपराधिक घटनाओं की वजह से सरकार और पुलिस दोनों की किरकिरी हो रही है. विपक्ष बिहार में जंगलराज की दस्तक बता रही है, तो सत्ता पक्ष ऐसी घटनाओं को सामान्य अपराध कहकर सरकार का बचाव कर रही है. पुलिस सप्ताह के दौरान बिहार के डीजीपी तरह तरह के कार्यों का हवाला देकर बिहार पुलिस को ऊंचाई पर ले जाने का हवाला दे रहे हैं, लेकिन वर्ष 2015 के बाद बिहार के लगभग सभी डीजीपी ने कानून का राज स्थापित करने वाला मूल मंत्र से तौबा कर लिया.

बिहार में अपराध
बिहार में अपराध
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Published : Feb 23, 2023, 6:07 PM IST

पटना : बिहार में लालू प्रसाद यादव के गद्दी छिन जाने के बाद बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सामने अपराध और त्वरित न्याय एक बड़ी चुनौती थी. अपराधी अपराध करते थे लेकिन पकड़े जाने के बाद भी उन्हें सजा नहीं हो पाती थी. ऐसे में समाज में अपराध का बोलबाला था और इसी को मिटाने की चुनौती लेकर नीतीश कुमार बिहार की गद्दी सम्भाले थे. विषय गंभीर होने की वजह से बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उस समय के तत्कालीन डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा को एक योजना बनाने का निर्देश दिया. एआर सिन्हा और उस समय के तत्कालीन एडीजी कृष्णा चौधरी ने करीब तीस पेज की रिपोर्ट के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष उपस्थित हुए. इस खाका में काम कम और संसाधन की मांग ज्यादा थी.

ये भी पढ़ें- Patna Violence : 'सरकार बदलेगी..फाइल खुलेगी' जेठूली गांव में 3 लोगों की हत्या पर आगबबूला हुए विजय सिन्हा

'अभयानंद मॉडल' से होगी 'अपराधबंदी' : मुख्यमंत्री ने पूरी बात सुनने के बाद उस समय के तत्कालीन एडीजी अभयानंद से फोन पर बात की. उस समय अभयानंद दिल्ली में थे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बुलावा पर सीधा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने मुख्यमंत्री आवास पहुँच गये. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभयानंद से एक ही सवाल किया 'किसी भी कीमत पर बिहार में कानून का राज स्थापित करने के लिए आप क्या कर सकते हैं' यदि कानून में बदलाव या संसाधन बढ़ाने की जरूरत भी है, तो सरकार तैयार है. इस पर अभयानंद के सधे हुए लहजे में जवाब दिया. न तो कानून बनाने की जरूरत है और न ही संसाधन बढ़ाने की. बस सरकार कानून का सही इस्तेमाल कर दें तो अपराध पर लगाम लग जाएगा.

नीतीश के निर्देश पर अभयानंद ने दिया मूल मंत्र: कानून का राज स्थापित करने की दिशा में दिसम्बर 2005 में पहली बार स्पीडी ट्रायल शब्द से बिहार पुलिस को पाला पड़ा और जनवरी 2006 में यह शब्द कानून का राज स्थापित करने वाला पुलिस का सबसे बड़ा हथकंडा बन गया. अभायानंद बिहार पुलिस में एडीजी मुख्यालय बने और बिहार पुलिस ने एक सूत्रीय अभियान चलाकर न केवल अपराधियों को गिरफ्तार करने लगी बल्कि उसका सही समय पर ट्रायल कराकर उन्हें सजा दिलाने लगी. आम तौर पर आपराधिक मामलों में 90 दिनों के भीतर चार्जशीट फाइल कर पुलिस का कोरम करने का प्रावधान है. लेकिन जैसे ही स्पीडी ट्रायल अभियान का दौर आया पुलिस अधिकारी दो से चार दिन में चार्जशीट फाइल करने लगे. इसका फायदा यह हुआ कि हर महीने काफी संख्या में अपराधियों को सजा होने लगी.

पुलिस अधिकारियों को बढ़ाया गया हौसला: बतौर एडीजी मुख्यालय अभयानंद (तत्कालीन) बिहार के तमाम जिलों के एसपी ही नहीं डीएसपी और थानेदारों को सीधा मॉनीटरिंग करने लगे. जो पुलिस पदाधिकारी इस काम को जल्दी करता था, उसे मुख्यालय से रिवार्ड भी मिलने लगा. इसका परिणाम यह हुआ कि देश में बिहार इकलौता राज्य बना जहां 7 दिनों में रेप के एक आरोपी को फांसी की सजा सुनायी गयी. यह मामला कटिहार के बरारी थाने के था, जहाँ तीन साल की बच्ची की रेप कर हत्या हुई थी. सात दिन में सजा कराने का श्रेय उस समय के तत्कालीन एसपी को गया था. उन्हें मुख्यालय से सम्मानित भी किया गया था. इसके अलावा दर्जनों ऐसे मामले यादगार बने जिसमें घटना के दसवें से 40वें दिन सजा हो गयी.

कोर्ट में मॉनिटरिंग अधिकारी की तैनाती: थानेदार और अनुसंधान अधिकारी का काम आसान करने के लिए मुख्यालय की ओर से एक डीएसपी रैंक के अधिकारी को प्रत्येक कोर्ट में तैनात कर दिया गया. ये अधिकारी अनुसंधान अधिकारी और कोर्ट के बीच सेतु का काम करते थे. कब सुनवाई की तारीख है, कोई गवाह होस्टाइल न कर जाये और सरकारी वकील को क्या अपडेट करना है, इस बात को सुनिश्चित करने का काम यही अधिकारी करते थे.

2011-12 में जब फिर बढ़ने लगा अपराध : स्पीडी ट्रायल का काम युद्धस्तर पर चल रहा था. प्रतिमाह सजा का रेशियो 700 तक पहुँच गया। लग रहा था कि कानून का राज स्थापित है लेकिन इसी दौरान वर्ष 2011-12 में अपराध अचानक से बढ गये।वजह बना जिन अपराधियों को सजा हुई वो या तो बेल पर बाहर आ गये या अपनी सजा पूरी करने के बाद अपराध की दुनिया में दोबारा दस्तक देने लगे।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चिंता बढी और एक बार अभयानंद को बुलाया गया।

दूसरा मूल मंत्र बना स्पीडी अपील: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष अभयानंद ने जो दूसरा प्रस्ताव दिया वो था स्पीडी अपील. इसके लिए न्यायिक पदाधिकारियों और उच्च न्यायालय के साथ पुलिस का समन्वय स्थापित करने का प्रस्ताव था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हरी झंडी दी और बतौर डीजीपी अभयानंद खुद से न्यायालयों के साथ समन्वय स्थापित कर स्पीडी अपील को जोर दिया. कानून में अपील का प्रावधान है, उसी को स्पीडी किया गया और तमाम कोर्ट से बेल लेने वाले अपराधियों के खिलाफ स्पीडी अपील कर उनके मंसूबे पर पानी फेरा गया.

स्पीडी ट्रायल और अपील का प्रतीक था बिहार: जिस राज्य में सजा इक्के दुक्के को होती थी, वहां प्रतिमाह करीब 700 तक सजा होना चमत्कार से कम नहीं था. स्पीडी ट्रायल और अपील का इतना बोलबाला हो गया कि कई पडोसी राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा के साथ-साथ मध्यप्रदेश पुलिस पदाधिकारी गुर सीखने बिहार पहुंचने लगे. अभायनंद की माने तो बिहार पुलिस के लिए यह गर्व का विषय था.

क्या कहते हैं जानकार? : जाने माने वरिष्ठ पत्रकार अरुण अशेष भी मानते है कि ''स्पीडी ट्रायल और अपील से बिहार में कानून का राज्य स्थापित हुआ था.'' कई मामलों में सही समय पर अनुसंधान पूरी कर दस से बीस दिन में सजा दिलाने वाले आईपीएस अधिकारी रमाशंकर राय की मानें तो ''स्पीडी ट्रायल और अपील एक मिशन था और कम दिन में सजा दिलाने के बाद एक खास खुशी की अनुभूति होती थी. जब किसी दूसरे राज्यों के पुलिस अधिकारी बिहार आकर हम लोगों से केस के बारे में जानकारी लेते थे तो गर्व महसूस होता था.''

मूल मंत्र को भूल गई बिहार पुलिस?: जिस बिहार ने कानून का राज स्थापित करने की दिशा में मिसाल पेश किया वहां वर्ष 2015 से सजा दिलाने की मुहिम को विराम क्यों लग लगा है? पुलिस मुख्यालय के पास प्रतिमाह ही नहीं, हर पल सजा पाए लोगों की अपडेटेड सूची होती थी और शान से सरकार इसको जनता के समक्ष रखती थी. अब हालात इतने क्यों बदल गये कि स्पीडी ट्रायल और अपील के बारे में जब एडीजी मुख्यालय जेएस गंगवार से ईटीवी भारत की टीम ने सवाल किया तो एडीजी साहब तत्काल कोई आंकड़ा न होने का हवाला देते हुए बाद में बताने की बात कही. आखिर कानून का राज स्थापित करने वाला इस मूल मंत्र को क्यों भूल गयी बिहार पुलिस?

पटना : बिहार में लालू प्रसाद यादव के गद्दी छिन जाने के बाद बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सामने अपराध और त्वरित न्याय एक बड़ी चुनौती थी. अपराधी अपराध करते थे लेकिन पकड़े जाने के बाद भी उन्हें सजा नहीं हो पाती थी. ऐसे में समाज में अपराध का बोलबाला था और इसी को मिटाने की चुनौती लेकर नीतीश कुमार बिहार की गद्दी सम्भाले थे. विषय गंभीर होने की वजह से बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उस समय के तत्कालीन डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा को एक योजना बनाने का निर्देश दिया. एआर सिन्हा और उस समय के तत्कालीन एडीजी कृष्णा चौधरी ने करीब तीस पेज की रिपोर्ट के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष उपस्थित हुए. इस खाका में काम कम और संसाधन की मांग ज्यादा थी.

ये भी पढ़ें- Patna Violence : 'सरकार बदलेगी..फाइल खुलेगी' जेठूली गांव में 3 लोगों की हत्या पर आगबबूला हुए विजय सिन्हा

'अभयानंद मॉडल' से होगी 'अपराधबंदी' : मुख्यमंत्री ने पूरी बात सुनने के बाद उस समय के तत्कालीन एडीजी अभयानंद से फोन पर बात की. उस समय अभयानंद दिल्ली में थे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बुलावा पर सीधा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने मुख्यमंत्री आवास पहुँच गये. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभयानंद से एक ही सवाल किया 'किसी भी कीमत पर बिहार में कानून का राज स्थापित करने के लिए आप क्या कर सकते हैं' यदि कानून में बदलाव या संसाधन बढ़ाने की जरूरत भी है, तो सरकार तैयार है. इस पर अभयानंद के सधे हुए लहजे में जवाब दिया. न तो कानून बनाने की जरूरत है और न ही संसाधन बढ़ाने की. बस सरकार कानून का सही इस्तेमाल कर दें तो अपराध पर लगाम लग जाएगा.

नीतीश के निर्देश पर अभयानंद ने दिया मूल मंत्र: कानून का राज स्थापित करने की दिशा में दिसम्बर 2005 में पहली बार स्पीडी ट्रायल शब्द से बिहार पुलिस को पाला पड़ा और जनवरी 2006 में यह शब्द कानून का राज स्थापित करने वाला पुलिस का सबसे बड़ा हथकंडा बन गया. अभायानंद बिहार पुलिस में एडीजी मुख्यालय बने और बिहार पुलिस ने एक सूत्रीय अभियान चलाकर न केवल अपराधियों को गिरफ्तार करने लगी बल्कि उसका सही समय पर ट्रायल कराकर उन्हें सजा दिलाने लगी. आम तौर पर आपराधिक मामलों में 90 दिनों के भीतर चार्जशीट फाइल कर पुलिस का कोरम करने का प्रावधान है. लेकिन जैसे ही स्पीडी ट्रायल अभियान का दौर आया पुलिस अधिकारी दो से चार दिन में चार्जशीट फाइल करने लगे. इसका फायदा यह हुआ कि हर महीने काफी संख्या में अपराधियों को सजा होने लगी.

पुलिस अधिकारियों को बढ़ाया गया हौसला: बतौर एडीजी मुख्यालय अभयानंद (तत्कालीन) बिहार के तमाम जिलों के एसपी ही नहीं डीएसपी और थानेदारों को सीधा मॉनीटरिंग करने लगे. जो पुलिस पदाधिकारी इस काम को जल्दी करता था, उसे मुख्यालय से रिवार्ड भी मिलने लगा. इसका परिणाम यह हुआ कि देश में बिहार इकलौता राज्य बना जहां 7 दिनों में रेप के एक आरोपी को फांसी की सजा सुनायी गयी. यह मामला कटिहार के बरारी थाने के था, जहाँ तीन साल की बच्ची की रेप कर हत्या हुई थी. सात दिन में सजा कराने का श्रेय उस समय के तत्कालीन एसपी को गया था. उन्हें मुख्यालय से सम्मानित भी किया गया था. इसके अलावा दर्जनों ऐसे मामले यादगार बने जिसमें घटना के दसवें से 40वें दिन सजा हो गयी.

कोर्ट में मॉनिटरिंग अधिकारी की तैनाती: थानेदार और अनुसंधान अधिकारी का काम आसान करने के लिए मुख्यालय की ओर से एक डीएसपी रैंक के अधिकारी को प्रत्येक कोर्ट में तैनात कर दिया गया. ये अधिकारी अनुसंधान अधिकारी और कोर्ट के बीच सेतु का काम करते थे. कब सुनवाई की तारीख है, कोई गवाह होस्टाइल न कर जाये और सरकारी वकील को क्या अपडेट करना है, इस बात को सुनिश्चित करने का काम यही अधिकारी करते थे.

2011-12 में जब फिर बढ़ने लगा अपराध : स्पीडी ट्रायल का काम युद्धस्तर पर चल रहा था. प्रतिमाह सजा का रेशियो 700 तक पहुँच गया। लग रहा था कि कानून का राज स्थापित है लेकिन इसी दौरान वर्ष 2011-12 में अपराध अचानक से बढ गये।वजह बना जिन अपराधियों को सजा हुई वो या तो बेल पर बाहर आ गये या अपनी सजा पूरी करने के बाद अपराध की दुनिया में दोबारा दस्तक देने लगे।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चिंता बढी और एक बार अभयानंद को बुलाया गया।

दूसरा मूल मंत्र बना स्पीडी अपील: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष अभयानंद ने जो दूसरा प्रस्ताव दिया वो था स्पीडी अपील. इसके लिए न्यायिक पदाधिकारियों और उच्च न्यायालय के साथ पुलिस का समन्वय स्थापित करने का प्रस्ताव था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हरी झंडी दी और बतौर डीजीपी अभयानंद खुद से न्यायालयों के साथ समन्वय स्थापित कर स्पीडी अपील को जोर दिया. कानून में अपील का प्रावधान है, उसी को स्पीडी किया गया और तमाम कोर्ट से बेल लेने वाले अपराधियों के खिलाफ स्पीडी अपील कर उनके मंसूबे पर पानी फेरा गया.

स्पीडी ट्रायल और अपील का प्रतीक था बिहार: जिस राज्य में सजा इक्के दुक्के को होती थी, वहां प्रतिमाह करीब 700 तक सजा होना चमत्कार से कम नहीं था. स्पीडी ट्रायल और अपील का इतना बोलबाला हो गया कि कई पडोसी राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा के साथ-साथ मध्यप्रदेश पुलिस पदाधिकारी गुर सीखने बिहार पहुंचने लगे. अभायनंद की माने तो बिहार पुलिस के लिए यह गर्व का विषय था.

क्या कहते हैं जानकार? : जाने माने वरिष्ठ पत्रकार अरुण अशेष भी मानते है कि ''स्पीडी ट्रायल और अपील से बिहार में कानून का राज्य स्थापित हुआ था.'' कई मामलों में सही समय पर अनुसंधान पूरी कर दस से बीस दिन में सजा दिलाने वाले आईपीएस अधिकारी रमाशंकर राय की मानें तो ''स्पीडी ट्रायल और अपील एक मिशन था और कम दिन में सजा दिलाने के बाद एक खास खुशी की अनुभूति होती थी. जब किसी दूसरे राज्यों के पुलिस अधिकारी बिहार आकर हम लोगों से केस के बारे में जानकारी लेते थे तो गर्व महसूस होता था.''

मूल मंत्र को भूल गई बिहार पुलिस?: जिस बिहार ने कानून का राज स्थापित करने की दिशा में मिसाल पेश किया वहां वर्ष 2015 से सजा दिलाने की मुहिम को विराम क्यों लग लगा है? पुलिस मुख्यालय के पास प्रतिमाह ही नहीं, हर पल सजा पाए लोगों की अपडेटेड सूची होती थी और शान से सरकार इसको जनता के समक्ष रखती थी. अब हालात इतने क्यों बदल गये कि स्पीडी ट्रायल और अपील के बारे में जब एडीजी मुख्यालय जेएस गंगवार से ईटीवी भारत की टीम ने सवाल किया तो एडीजी साहब तत्काल कोई आंकड़ा न होने का हवाला देते हुए बाद में बताने की बात कही. आखिर कानून का राज स्थापित करने वाला इस मूल मंत्र को क्यों भूल गयी बिहार पुलिस?

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