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क्या MP की राह अपनाएंगे बिहार के कांग्रेसी, आलाकमान की है पैनी नजर

बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में सभी पार्टियां अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गई है. इस चुनाव में कांग्रेस अपनी स्थिति कितनी मजबूत कर पाती है इस पर सबकी नजर रहेगी.

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Published : Mar 14, 2020, 10:07 AM IST

Updated : Mar 14, 2020, 10:47 AM IST

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पटना: पूरा विश्व खौफनाक बीमारी कोरोना की गिरफ्त से निकलने के लिए डगर-डगर भटक रहा है. लेकिन उसे कोई रास्ता मिलता नहीं दिख रहा है. कोरोना सियासत का मुद्दा नहीं है, लेकिन देश की सियासत में कांग्रेस जिस राजनीतिक वजूद को बनाने की कोशिश कर रही है, उसमें वह एक कदम आगे बढ़ती है तो उसे दो कदम पीछे जाना पड़ रहा है.

नरेंद्र मोदी से लड़ रही कांग्रेस
2012 में देश की राजनीति जिस डगर पर थी, अगर उन पन्नों को पलटा जाय तो पूरी कांग्रेस उस समय बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता नरेन्द्र मोदी से लड़ रही थी और अपनी ही नीतियों में फंस जाती थी. आज बीजेपी के लिए नीति बन चुके नरेन्द्र मोदी की नीतियों को समझने में ही पूरी कांग्रेस लड़ रही है.

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पीएम मोदी से कांग्रेस का सामना

जब राहुल गांधी ने संभाली थी कमान
बीजेपी की नीति और मोदी के भाषण में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा भले 2014 में खूब रहा हो, लेकिन अपने विरासती रसूख के बदौलत कांग्रेस अपनी जमीन और जनाधार मजबूत करती रही. राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान मिली तो इस बात का भरोसा जगा कि यूवा नेतृत्व में कांग्रेस मोदी को मुकम्मल जवाब देगी और 2018 में उस तरह का परिणाम मिला भी जब मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में गद्दी पर काबिज भाजपा को हटाकर कांग्रेस ने कब्जा किया और राहुल के नेतृत्व कांग्रेस ने अपने भीतर ही लोहा मान लिया.

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राहुल गांधी (फाइल फोटो)

हालांकि राजस्थान में सीएम पद के लिए सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच एक हफ्ते चली लड़ाई से एक बात साफ हो चली थी कि कांग्रेस अपनी पार्टी के भीतर अपनो से जुड़ नहीं पा रही है.

MP की हकीकत सबके सामने
सियासत थोड़ी आगे बढ़ी और मध्यप्रदेश की राजनीति में भी अपनो के भीतर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं होने की बात होने लगी. बीजेपी ने मध्यप्रदेश से कांग्रेस सरकार को मुक्त करने की मजबूत रणनीति को अमली जामा पहना दिया. यही से उस विषय को भी बड़ी चुनौती मिल गयी जो राहुल के उस सपनों में थी. जिसमें राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश चुनाव के बाद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथों में हाथ डालकर यह कहे थे कि कांग्रेस का ही हाथ सबके साथ है और मोदी को तीन राज्यों में यह देख लेना चाहिए.

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ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल

हालांकि, राहुल गांधी को इस बात की इल्म नहीं था कि जिन हाथों को वो आपस में जोड़ रहे हैं उनके दिल काफी दूर हैं और मध्य प्रदेश की वह हकीकत अब सबके सामने है.

बिहार की सियासत पर कांग्रेस की नजर
बिहार में सियासत पर कांग्रेस की नजर इस लिए अब मजबूती से टिकी है कि 2015 में 26 सीटों को जीत कर जिस तरह से कांग्रेस ने बिहार की सियासत में वापसी की थी उसके बदले राजनतिक हालात में अपने उस वजूद को बचा ले जाय. हालांकि 2015 वाली राजनीति बिहार में है नहीं इसलिए कांग्रेस की उलझन भी बढ़ी हुई है.

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राहुल गांधी और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव

कांग्रेस के बस के बाहर की बात
1990 के बाद से बिहार की राजनीति में कांग्रेस आरजेडी के साथ सत्ता में तो जरूर है लेकिन बैठती पिछली सीट पर ही है. 2015 में जिस समीकरण को साधा गया है उसका मजमून अब पूरी तरह बिखर चुका है. 2015 में अशोक चौधरी बिहार कांग्रेस के अघ्यक्ष थे और जातिय गोलबंदी के साथ ही नीतीश का हाथ पंजे के साथ था.

2020 की सियासत की तैयारी कर रही कांग्रेस और उसके जीते हुए 26 नेताओं को इस बात की पूरी जानकारी है कि अब 15 वाली बात नहीं है. अशोक चौधारी पाला बदल कर जेडीयू के साथ हो लिए हैं और सरकार में मंत्री भी हैं. नीतीश सरकार में अशोक चौधरी का मंत्री होना जेडीयू की सियासत का वह पन्ना है जिस पर कुछ भी लिख पाना कांग्रेस के बूते के बाहर की बात है.

कांग्रेस आलाकमान की बिहार पर नजर
बिहार में मध्यप्रदेश जैसे सियासी हालात न हो इसके लिए कांग्रेस आलाकमान इस बात पर नजर बनाए हुए है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि बिहार में इसे कांग्रेस रोके कैसे. बिहार की सियासत में जो लोग हैं और साथ ही कांग्रेस कोटे के जो विधायक हैं उन्हें नितीश की सियासत और उनके विकास के मुद्दे से कोई गुरेज नहीं है क्योंकि उन्हें इस बात की जानकारी है कि 2015 में जो जीत उन्हें मिली वह नीतीश के विकास के आधार पर पूरा नहीं रही है, लेकिन जीत को पूरा करने में अहम हिस्सेदार रही है.

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बिहार के सीएम नीतीस कुमार

कांग्रेस को बनानी होगी नई रणनीति
कांग्रेस को इस बात का डर है कि अगर नीतीश के तरफ से इस बात का संकेत दे दिया गया कि जो विधायक कांग्रेस के है उन्हें वहां से टिकट मिल जाएगा तो कांग्रेस के मध्यप्रदेश जैसे हालात नहीं होगें इसपर प्रश्न खड़ा है. कांग्रेस से अशोक चौधारी की नाराजगी भी साफ हो चुकी है. उन्होंने ने कह दिया है कि कांग्रेस के कई विधायक उनके संपर्क में हैं. जेडीयू को विधायक तोड़ो कार्ड और कांग्रेस के विधायको को जेडीयू का टिकट मिलने का मामला अगर साफ होता है तो कांग्रेस को अपने लिए बिहार में नई रणनीति बनानी ही होगी.

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बिहार में कांग्रेस नेता विहीन

बिहार में कांग्रेस नेता विहीन
कांग्रेस बिहार में जीत के बाद भी हार जाती है. इसका बड़ा कारण है कि बिहार में कांग्रेस नेता विहीन है. जगन्नाथ मिश्र परिवार के बाद बिहार कांग्रेस जिस कदर बिखरी है उसे समेट पाने में हर कोई लगभग फेल ही रहा है. महबूब अली कैसर को कांग्रेस ने बिहार की कमान दी तो लगा बहुत कुछ बदल जाएगा लेकिन कैसर ने ही पाला बदल लिया. बाद में कमान अशोक चौधारी को मिली और नीतीश साथ आए तो लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस ने दहाई में जीत दर्ज की लेकिन फिर सबकुछ बदल गया है.

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बिहार में होना वाला है विधानसभा चुनाव

बिहार में होना है विधानसभा चुनाव
बिहार में होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर सभी नेता और सियासी दल रणनीति में जुट गए हैं. कांग्रेस का मजबूत पक्ष यही है कि अगर कोई हटना नहीं चाहेगा तो कांग्रेस उसे हटाएगी नहीं लेकिन बात नीति की है. जीत के लिए जिस पार्टी नीति को लेकर चलना है उसमें मध्यप्रदेश जैसे हालात ऐसे सियासी खाई बन गए हैं, जिसे पाट पाना कांग्रेस के लिए नामुमकिन जैसा है. कांग्रेस के लिए 2020 की सियासी नदी को पार करना आसान नहीं है, क्योंकि पूरे देश में जिस जनाधार के साथ बीजेपी खड़ी है, उसमें कांग्रेस एक जगह पुल बनाकर नदी पार करती है तो दूसरी जगह राजनीतिक विरोध की खाई इतनी गहरी हो जा रही है कि उसे पार करने में कांग्रेस का हर होनहार हार जा रहा है.अब बात बिहार की है तो नजर भले केन्द्रीय नेतृत्व ने रखा है, लेकिन बिहार में हर सियासी नदी को पार करना आसान भी नहीं है.

पटना: पूरा विश्व खौफनाक बीमारी कोरोना की गिरफ्त से निकलने के लिए डगर-डगर भटक रहा है. लेकिन उसे कोई रास्ता मिलता नहीं दिख रहा है. कोरोना सियासत का मुद्दा नहीं है, लेकिन देश की सियासत में कांग्रेस जिस राजनीतिक वजूद को बनाने की कोशिश कर रही है, उसमें वह एक कदम आगे बढ़ती है तो उसे दो कदम पीछे जाना पड़ रहा है.

नरेंद्र मोदी से लड़ रही कांग्रेस
2012 में देश की राजनीति जिस डगर पर थी, अगर उन पन्नों को पलटा जाय तो पूरी कांग्रेस उस समय बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता नरेन्द्र मोदी से लड़ रही थी और अपनी ही नीतियों में फंस जाती थी. आज बीजेपी के लिए नीति बन चुके नरेन्द्र मोदी की नीतियों को समझने में ही पूरी कांग्रेस लड़ रही है.

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पीएम मोदी से कांग्रेस का सामना

जब राहुल गांधी ने संभाली थी कमान
बीजेपी की नीति और मोदी के भाषण में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा भले 2014 में खूब रहा हो, लेकिन अपने विरासती रसूख के बदौलत कांग्रेस अपनी जमीन और जनाधार मजबूत करती रही. राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान मिली तो इस बात का भरोसा जगा कि यूवा नेतृत्व में कांग्रेस मोदी को मुकम्मल जवाब देगी और 2018 में उस तरह का परिणाम मिला भी जब मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में गद्दी पर काबिज भाजपा को हटाकर कांग्रेस ने कब्जा किया और राहुल के नेतृत्व कांग्रेस ने अपने भीतर ही लोहा मान लिया.

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राहुल गांधी (फाइल फोटो)

हालांकि राजस्थान में सीएम पद के लिए सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच एक हफ्ते चली लड़ाई से एक बात साफ हो चली थी कि कांग्रेस अपनी पार्टी के भीतर अपनो से जुड़ नहीं पा रही है.

MP की हकीकत सबके सामने
सियासत थोड़ी आगे बढ़ी और मध्यप्रदेश की राजनीति में भी अपनो के भीतर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं होने की बात होने लगी. बीजेपी ने मध्यप्रदेश से कांग्रेस सरकार को मुक्त करने की मजबूत रणनीति को अमली जामा पहना दिया. यही से उस विषय को भी बड़ी चुनौती मिल गयी जो राहुल के उस सपनों में थी. जिसमें राहुल गांधी ने मध्यप्रदेश चुनाव के बाद कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथों में हाथ डालकर यह कहे थे कि कांग्रेस का ही हाथ सबके साथ है और मोदी को तीन राज्यों में यह देख लेना चाहिए.

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ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल

हालांकि, राहुल गांधी को इस बात की इल्म नहीं था कि जिन हाथों को वो आपस में जोड़ रहे हैं उनके दिल काफी दूर हैं और मध्य प्रदेश की वह हकीकत अब सबके सामने है.

बिहार की सियासत पर कांग्रेस की नजर
बिहार में सियासत पर कांग्रेस की नजर इस लिए अब मजबूती से टिकी है कि 2015 में 26 सीटों को जीत कर जिस तरह से कांग्रेस ने बिहार की सियासत में वापसी की थी उसके बदले राजनतिक हालात में अपने उस वजूद को बचा ले जाय. हालांकि 2015 वाली राजनीति बिहार में है नहीं इसलिए कांग्रेस की उलझन भी बढ़ी हुई है.

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राहुल गांधी और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव

कांग्रेस के बस के बाहर की बात
1990 के बाद से बिहार की राजनीति में कांग्रेस आरजेडी के साथ सत्ता में तो जरूर है लेकिन बैठती पिछली सीट पर ही है. 2015 में जिस समीकरण को साधा गया है उसका मजमून अब पूरी तरह बिखर चुका है. 2015 में अशोक चौधरी बिहार कांग्रेस के अघ्यक्ष थे और जातिय गोलबंदी के साथ ही नीतीश का हाथ पंजे के साथ था.

2020 की सियासत की तैयारी कर रही कांग्रेस और उसके जीते हुए 26 नेताओं को इस बात की पूरी जानकारी है कि अब 15 वाली बात नहीं है. अशोक चौधारी पाला बदल कर जेडीयू के साथ हो लिए हैं और सरकार में मंत्री भी हैं. नीतीश सरकार में अशोक चौधरी का मंत्री होना जेडीयू की सियासत का वह पन्ना है जिस पर कुछ भी लिख पाना कांग्रेस के बूते के बाहर की बात है.

कांग्रेस आलाकमान की बिहार पर नजर
बिहार में मध्यप्रदेश जैसे सियासी हालात न हो इसके लिए कांग्रेस आलाकमान इस बात पर नजर बनाए हुए है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि बिहार में इसे कांग्रेस रोके कैसे. बिहार की सियासत में जो लोग हैं और साथ ही कांग्रेस कोटे के जो विधायक हैं उन्हें नितीश की सियासत और उनके विकास के मुद्दे से कोई गुरेज नहीं है क्योंकि उन्हें इस बात की जानकारी है कि 2015 में जो जीत उन्हें मिली वह नीतीश के विकास के आधार पर पूरा नहीं रही है, लेकिन जीत को पूरा करने में अहम हिस्सेदार रही है.

congress
बिहार के सीएम नीतीस कुमार

कांग्रेस को बनानी होगी नई रणनीति
कांग्रेस को इस बात का डर है कि अगर नीतीश के तरफ से इस बात का संकेत दे दिया गया कि जो विधायक कांग्रेस के है उन्हें वहां से टिकट मिल जाएगा तो कांग्रेस के मध्यप्रदेश जैसे हालात नहीं होगें इसपर प्रश्न खड़ा है. कांग्रेस से अशोक चौधारी की नाराजगी भी साफ हो चुकी है. उन्होंने ने कह दिया है कि कांग्रेस के कई विधायक उनके संपर्क में हैं. जेडीयू को विधायक तोड़ो कार्ड और कांग्रेस के विधायको को जेडीयू का टिकट मिलने का मामला अगर साफ होता है तो कांग्रेस को अपने लिए बिहार में नई रणनीति बनानी ही होगी.

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बिहार में कांग्रेस नेता विहीन

बिहार में कांग्रेस नेता विहीन
कांग्रेस बिहार में जीत के बाद भी हार जाती है. इसका बड़ा कारण है कि बिहार में कांग्रेस नेता विहीन है. जगन्नाथ मिश्र परिवार के बाद बिहार कांग्रेस जिस कदर बिखरी है उसे समेट पाने में हर कोई लगभग फेल ही रहा है. महबूब अली कैसर को कांग्रेस ने बिहार की कमान दी तो लगा बहुत कुछ बदल जाएगा लेकिन कैसर ने ही पाला बदल लिया. बाद में कमान अशोक चौधारी को मिली और नीतीश साथ आए तो लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस ने दहाई में जीत दर्ज की लेकिन फिर सबकुछ बदल गया है.

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बिहार में होना वाला है विधानसभा चुनाव

बिहार में होना है विधानसभा चुनाव
बिहार में होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर सभी नेता और सियासी दल रणनीति में जुट गए हैं. कांग्रेस का मजबूत पक्ष यही है कि अगर कोई हटना नहीं चाहेगा तो कांग्रेस उसे हटाएगी नहीं लेकिन बात नीति की है. जीत के लिए जिस पार्टी नीति को लेकर चलना है उसमें मध्यप्रदेश जैसे हालात ऐसे सियासी खाई बन गए हैं, जिसे पाट पाना कांग्रेस के लिए नामुमकिन जैसा है. कांग्रेस के लिए 2020 की सियासी नदी को पार करना आसान नहीं है, क्योंकि पूरे देश में जिस जनाधार के साथ बीजेपी खड़ी है, उसमें कांग्रेस एक जगह पुल बनाकर नदी पार करती है तो दूसरी जगह राजनीतिक विरोध की खाई इतनी गहरी हो जा रही है कि उसे पार करने में कांग्रेस का हर होनहार हार जा रहा है.अब बात बिहार की है तो नजर भले केन्द्रीय नेतृत्व ने रखा है, लेकिन बिहार में हर सियासी नदी को पार करना आसान भी नहीं है.

Last Updated : Mar 14, 2020, 10:47 AM IST
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