पटना: देशभर में स्वच्छ शहरों की रैंकिंग को लेकर स्वच्छता मतदान (swachata Voting in patna) चल रहा है और राजधानी पटना देश के 49 बड़े शहरों में शामिल है, जिसकी आबादी 10 लाख से अधिक है. स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 में पटना को बेहतर रैंकिंग मिले, इसके लिए नगर निगम की ओर से कई प्रयास किए जा रहे हैं. लोगों से अधिक भागीदारी निभाने की अपील की जा रही है. लेकिन बावजूद इसके लोगों का उत्साहजनक रिस्पांस देखने को नहीं मिला है.
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स्वच्छता सर्वेक्षण फीडबैक: 1 मार्च से स्वच्छता सर्वेक्षण का फीडबैक शुरू हुआ और पटना नगर निगम की ओर से सभी वार्ड पार्षद, मेयर और तमाम अधिकारियों ने लोगों से अधिक से अधिक इसमें भागीदारी देकर पटना को बेहतर रैंकिंग दिलाने की अपील की. लेकिन बावजूद इसके अब तक करीब 36000 लोगों ने ही अपना फीडबैक दिया है. हालांकि प्रदेश में पटना शहर में ही सर्वाधिक लोगों ने स्वच्छता सर्वेक्षण में अपना फीडबैक दिया है. लेकिन शहर की आबादी के अनुसार फीडबैक देने वाले लोगों की संख्या को गौर करें तो यह संख्या काफी कम है.
स्वच्छता सर्वेक्षण की बढ़ाई गई तिथि: यह स्वच्छता सर्वेक्षण 1 अप्रैल से शुरू हुआ और 15 अप्रैल तक चलना था. लेकिन स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए 15 दिन की तिथि आगे और बढ़ गई है और अब यह सर्वेक्षण 30 अप्रैल तक चलेगा. इसके साथ ही सर्वेक्षण समाप्त होने के बाद केंद्रीय टीम पटना पहुंचेगी और लोगों से मिलकर प्रत्यक्ष रूप से स्वच्छता के बारे में फीडबैक लेगी. ऐसे में पटना की मेयर सीता साहू, नगर आयुक्त अनिमेष पाराशर और सभी वार्ड पार्षद लोगों से अपील कर रहे हैं कि स्वच्छता सर्वेक्षण में अपना फीडबैक जरूर दें ताकि पटना को बेहतर स्थान मिल सके.
स्वच्छता सर्वेक्षण में अधिक भागीदारी की अपील: वहीं एक तरफ नगर निगम के अधिकारियों की ओर से स्वच्छता सर्वेक्षण में अधिक भागीदारी की अपील की जा रही है. वार्ड पार्षद भी अपील कर रहे हैं. लेकिन लोग रिस्पांस अधिक नहीं दे रहे हैं. इसके कई कारण हैं. वार्ड नंबर 46 की पार्षद पूनम शर्मा ने बताया कि एक तरफ नगर निगम लोगों से अपील कर रहा है कि स्वच्छता सर्वेक्षण में पटना को बेहतर रैंकिंग दें. लेकिन शहर को स्वच्छ बनाने की बात आए तो फंड की कमी हो जाती है.
"मेरा क्षेत्र काफी बड़ा है और काफी जगह नाले टूटे हुए हैं, नाले के ढक्कन और मैनहोल कई जगह पर गायब हैं. लोग प्लाई बोर्ड या लकड़ी रखकर उसको कवर किए हुए हैं. इस पर ढक्कन लगवाने की मांग करते हैं. लेकिन फंड की कमी पड़ जाती है. नाले खुले रहेंगे तो यह कैसे संभव है कि आसपास के लोग स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर को अच्छी रैंकिंग देंगे. क्योंकि यहां के लोग बदबू से परेशान रहते हैं. फिर भी मेरे स्तर से जो कुछ भी बन पाता है वह करती हूं."- पूनम शर्मा, पार्षद
लोगों के उदासीन होने की वजह: वार्ड पार्षद पूनम शर्मा ने बताया कि उनकी क्षेत्र में योगीपुर नाला बहता है जो लगभग 15 फीट चौड़ा है. यह पूरी तरह खुला हुआ है. इसे ढकने के लिए वह कई बार निगम की बैठकों में आवाज उठा चुकी हैं. मांग की गयी कि इसे ढक कर इस पर वेंडिंग जोन बनाया जाए या फिर इस जगह को और तरीके से यूटिलाइज किया जाए. ताकि आसपास साफ-सफाई भी बेहतर रहे और लोगों को दुर्गंध से भी राहत मिले. लेकिन हुआ कुछ नहीं है.
कई नालों के ढक्कन नहीं:अधिकारी पार्षद की बातों पर गौर नहीं करते. बरसात के मौसम में कई बार इस खुले नाले में मवेशी गिर जाते हैं. रात के समय कई बार बाइक और कार सवार भी गाड़ी लेकर नाले में चले जाते हैं और कई बार यहां बड़ी घटनाएं हुई हैं. नाला सड़क के लेवल में था इस वजह से पहले अधिक दुर्घटना होती थी. जिसके बाद दो करोड़ की लागत से उन्होंने पूरे क्षेत्र में नाले के दोनों तरफ 3 फीट ऊंचा दीवार खड़ा किया.
स्वच्छता सर्वेक्षण में भाग लेने की अपील: वहीं लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के मसले पर उन्होंने कहा कि नल जल योजना के तहत भी काम हो रहे हैं और उसमें कई तकनीकी दिक्कतें सामने आ रही है. ऐसे में जो पहले से सप्लाई वाटर की व्यवस्था है उसका एक्सटेंशन करा रही हैं. उनके वार्ड क्षेत्र में 2013 से 1000000 लीटर क्षमता का पानी टंकी तैयार हो रहा है जो बीते कई वर्षों से कार्य बंद है. अभी की स्थिति ऐसी है कि निगम को इस योजना के बारे में अधिक जानकारी भी नहीं है. उन्होंने कहा कि स्वच्छता सर्वेक्षण में लोगों का रिस्पांस और अधिकतम बढ़ेगा जब सही रूप में सभी काम हो और जितने भी नाले के ढक्कन खुले हुए हैं उन्हें ढका जाए. इसके लिए पैसे की कमी एक बाधा बन रही है.
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