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.. तो इसलिए चिराग दे रहे मध्यावधि चुनाव के संकेत- '2004 में ऐसे ही सोनिया गांधीं आईं थीं पैदल'

चिराग पासवान (LJPR President Chirag Paswan) बिहार में लगातार मध्यावधि चुनाव के दावे क्यों कर रहे हैं? आरजेडी की इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार के शिरकत करने को उन्होंने 2004 में सोनिया गांधी के रामविलास पासवान से मुलाकात करने से जोड़ा है. कहा- 'उस समय देश की राजनीति में हुआ था वो अब बिहार की राजनीति में भी हो सकता है.' पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Mid Term Elections in Bihar
Mid Term Elections in Bihar
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Published : May 14, 2022, 7:35 PM IST

पटना: राजनीति में दावों और वादों का दौर खूब चलता है. न इनमें कोई कमी आती है और न ही कोई वक्त का इंतजार करता है. बस मौके की तलाश रहती है और उस मौके पर लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से बयानों के दरवाजे खोल देते हैं. सूबे में जारी सियासी नूरा कुश्ती के बीच लोजपा चिराग गुट के अध्यक्ष और जमुई सांसद चिराग पासवान ने बिहार में मध्यावधि चुनाव (Mid Term Elections in Bihar) होने की बात कह कर सियासी हलके में और गर्मी ला दी है.

पढ़ें- ऐसे मिले थे नीतीश और तेजस्वी, चिराग का दावा- 'बिहार में मध्यावधि चुनाव तय'

चिराग ने किया था दावा: चिराग के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं और अगर ज्यादा पीछे मुड़कर नहीं देखा जाए तो चिराग का बयान बहुत हद तक सूबे में हो रहे राजनीतिक घटनाक्रम में उठापटक का इशारा भी कर रहे हैं. ज्ञात हो कि कुछ दिन पहले चिराग पासवान ने यह दावा किया था कि बिहार में मध्यावधि चुनाव होंगे. उन्होंने यहां तक कहा था कि यह तय है. उनका दावा था कि सीएम नीतीश कुमार जिस तरीके से नेता प्रतिपक्ष की इफ्तार पार्टी में पैदल चलकर गए. वह इस बात के संकेत है.

'जब सोनिया गांधी आईं थीं पैदल': उन्होंने यह भी कहा था कि साल 2004 में इसी तरीके से सोनिया गांधी मेरे पिता रामविलास पासवान के आवास पर पैदल चल कर आईं थीं. उस समय इंडिया शाइनिंग अभियान चल रहा था. हम लोगों ने देखा था कि आखिर कैसे यूपीए सरकार बनी. उन्होंने यहां तक कहा कि 2017 से लेकर 2022 तक उन्होंने कभी भी इस तरीके से सीएम को इफ्तार में शामिल होते हुए नहीं देखा था.

रामविलास को मनाने पहुंचीं थीं सोनिया: सीएम नीतीश का तेजस्वी की इफ्तार में पैदल जाने को चिराग बार बार सोनिया गांधी और उनके पिता की मुलाकात से जोड़ रहे हैं. दरअसल 2002 में गोधरा कांड के बाद पासवान की लोजपा ने एनडीए से किनारा कर लिया था. 2004 के आम चुनावों में एलजेपी के खाते में 4 लोकसभा सीटें आई थीं. जब 2004 के चुनाव के परिणाम घोषित हुए तो एनडीए सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी. तब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने सरकार बनाई. सरकार के गठन से पहले सोनिया गांधी ने रामविलास पासवान की लोजपा को भी अपने साथ मिला लिया था. राम विलास पासवान को यूपीए सरकार में मंत्री भी बनाया गया था. इसके लिए सोनिया गांधी खुद पासवान से मिलने पहुंच गईं थीं.

क्या एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं?: हाल ही में जब पीएम ने कानून मंत्रालय की तरफ से भोज दिया था, तब उसमें प्रधानमंत्री की धुर विरोधी माने जाने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शामिल हुईं लेकिन उसी दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किसी दूसरे प्रोग्राम में जाने का हवाला दिया और वह उस भोज में शामिल नहीं हुए. वहीं राजद से अलग होने के करीब 7 साल बाद यह पहला मौका था, जब नीतीश कुमार केवल एक बुलावे पर तेजस्वी से मिलने पैदल चले गए. इसी प्रकार तेजस्वी यादव ने जातीय जनगणना के बहाने जो 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया और पदयात्रा की बात कही. दरअसल वह मिलने का एक बहाना था और इन मुलाकातों में जिन चीजों पर चर्चा हुई या हो रही है उससे ले देकर यह सामने आ रहा है कि नीतीश कुमार फिलहाल एनडीए में खुद को सहज महसूस नहीं कर रहे हैं.

आरसीपी सिंह को लेकर नीतीश को संशय: नीतीश कुमार के साथ सबसे बड़ी दिक्कत है कि उनके साथ महज 45 विधायक हैं. अगर राजद ने सरकार बनाने का मन बना लिया और नीतीश कुमार राज्यसभा में आरसीपी सिंह को दोबारा मौका नहीं देते हैं तो आरसीपी के संपर्क वाले विधायक संभवत टूटकर बीजेपी के साथ जा सकते हैं. जानकारी के अनुसार हाल ही में आरसीपी सिंह ने अपने आवास पर ईद मिलन कार्यक्रम का भी आयोजन किया था जिसमें, उनके संपर्क के 15 से 17 विधायकों के वहां पहुंचने की खबर मिली थी. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो आरसीपी की नजदीकी आज की तारीख में बीजेपी के साथ है. एक तरफ आरसीपी पार्टी में एक अपना अलग ध्रुव बनाना चाहते हैं. वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार, ललन सिंह को आगे करके उस पर पूर्णविराम लगाना चाहते हैं.

"बिहार की राजनीति में इन दिनों सब कुछ सही नहीं चल रहा है. एक तरफ एनडीए है तो दूसरी तरफ यूपीए जिसे महागठबंधन कहा जाता है. सरकार बनाने का जो मार्जिन है उसमें आरजेडी के नेतृत्व वाला जो महागठबंधन है वह सिर्फ 12 से 15 सीटों के पीछे छूट गया और यहीं पर तीसरे नंबर की पार्टी बनने के बाद भी नीतीश कुमार ने बाजी मार ली. नीतीश के साथ बीजेपी का सपोर्ट था. हाल के दिनों में बीजेपी जदयू दोनों दलों में खटास हो चुकी है."- ओमप्रकाश अश्क, वरिष्ठ पत्रकार



ये भी पढ़ें: बोले सांसद चिराग पासवान- 'सीएम नीतीश के इशारे पर मुकेश सहनी को बनाया गया बलि का बकरा'


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पटना: राजनीति में दावों और वादों का दौर खूब चलता है. न इनमें कोई कमी आती है और न ही कोई वक्त का इंतजार करता है. बस मौके की तलाश रहती है और उस मौके पर लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से बयानों के दरवाजे खोल देते हैं. सूबे में जारी सियासी नूरा कुश्ती के बीच लोजपा चिराग गुट के अध्यक्ष और जमुई सांसद चिराग पासवान ने बिहार में मध्यावधि चुनाव (Mid Term Elections in Bihar) होने की बात कह कर सियासी हलके में और गर्मी ला दी है.

पढ़ें- ऐसे मिले थे नीतीश और तेजस्वी, चिराग का दावा- 'बिहार में मध्यावधि चुनाव तय'

चिराग ने किया था दावा: चिराग के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं और अगर ज्यादा पीछे मुड़कर नहीं देखा जाए तो चिराग का बयान बहुत हद तक सूबे में हो रहे राजनीतिक घटनाक्रम में उठापटक का इशारा भी कर रहे हैं. ज्ञात हो कि कुछ दिन पहले चिराग पासवान ने यह दावा किया था कि बिहार में मध्यावधि चुनाव होंगे. उन्होंने यहां तक कहा था कि यह तय है. उनका दावा था कि सीएम नीतीश कुमार जिस तरीके से नेता प्रतिपक्ष की इफ्तार पार्टी में पैदल चलकर गए. वह इस बात के संकेत है.

'जब सोनिया गांधी आईं थीं पैदल': उन्होंने यह भी कहा था कि साल 2004 में इसी तरीके से सोनिया गांधी मेरे पिता रामविलास पासवान के आवास पर पैदल चल कर आईं थीं. उस समय इंडिया शाइनिंग अभियान चल रहा था. हम लोगों ने देखा था कि आखिर कैसे यूपीए सरकार बनी. उन्होंने यहां तक कहा कि 2017 से लेकर 2022 तक उन्होंने कभी भी इस तरीके से सीएम को इफ्तार में शामिल होते हुए नहीं देखा था.

रामविलास को मनाने पहुंचीं थीं सोनिया: सीएम नीतीश का तेजस्वी की इफ्तार में पैदल जाने को चिराग बार बार सोनिया गांधी और उनके पिता की मुलाकात से जोड़ रहे हैं. दरअसल 2002 में गोधरा कांड के बाद पासवान की लोजपा ने एनडीए से किनारा कर लिया था. 2004 के आम चुनावों में एलजेपी के खाते में 4 लोकसभा सीटें आई थीं. जब 2004 के चुनाव के परिणाम घोषित हुए तो एनडीए सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी. तब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने सरकार बनाई. सरकार के गठन से पहले सोनिया गांधी ने रामविलास पासवान की लोजपा को भी अपने साथ मिला लिया था. राम विलास पासवान को यूपीए सरकार में मंत्री भी बनाया गया था. इसके लिए सोनिया गांधी खुद पासवान से मिलने पहुंच गईं थीं.

क्या एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं?: हाल ही में जब पीएम ने कानून मंत्रालय की तरफ से भोज दिया था, तब उसमें प्रधानमंत्री की धुर विरोधी माने जाने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शामिल हुईं लेकिन उसी दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किसी दूसरे प्रोग्राम में जाने का हवाला दिया और वह उस भोज में शामिल नहीं हुए. वहीं राजद से अलग होने के करीब 7 साल बाद यह पहला मौका था, जब नीतीश कुमार केवल एक बुलावे पर तेजस्वी से मिलने पैदल चले गए. इसी प्रकार तेजस्वी यादव ने जातीय जनगणना के बहाने जो 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया और पदयात्रा की बात कही. दरअसल वह मिलने का एक बहाना था और इन मुलाकातों में जिन चीजों पर चर्चा हुई या हो रही है उससे ले देकर यह सामने आ रहा है कि नीतीश कुमार फिलहाल एनडीए में खुद को सहज महसूस नहीं कर रहे हैं.

आरसीपी सिंह को लेकर नीतीश को संशय: नीतीश कुमार के साथ सबसे बड़ी दिक्कत है कि उनके साथ महज 45 विधायक हैं. अगर राजद ने सरकार बनाने का मन बना लिया और नीतीश कुमार राज्यसभा में आरसीपी सिंह को दोबारा मौका नहीं देते हैं तो आरसीपी के संपर्क वाले विधायक संभवत टूटकर बीजेपी के साथ जा सकते हैं. जानकारी के अनुसार हाल ही में आरसीपी सिंह ने अपने आवास पर ईद मिलन कार्यक्रम का भी आयोजन किया था जिसमें, उनके संपर्क के 15 से 17 विधायकों के वहां पहुंचने की खबर मिली थी. राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो आरसीपी की नजदीकी आज की तारीख में बीजेपी के साथ है. एक तरफ आरसीपी पार्टी में एक अपना अलग ध्रुव बनाना चाहते हैं. वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार, ललन सिंह को आगे करके उस पर पूर्णविराम लगाना चाहते हैं.

"बिहार की राजनीति में इन दिनों सब कुछ सही नहीं चल रहा है. एक तरफ एनडीए है तो दूसरी तरफ यूपीए जिसे महागठबंधन कहा जाता है. सरकार बनाने का जो मार्जिन है उसमें आरजेडी के नेतृत्व वाला जो महागठबंधन है वह सिर्फ 12 से 15 सीटों के पीछे छूट गया और यहीं पर तीसरे नंबर की पार्टी बनने के बाद भी नीतीश कुमार ने बाजी मार ली. नीतीश के साथ बीजेपी का सपोर्ट था. हाल के दिनों में बीजेपी जदयू दोनों दलों में खटास हो चुकी है."- ओमप्रकाश अश्क, वरिष्ठ पत्रकार



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