पटना: बिहार की राजनीति (Bihar politics) में चिराग पासवान (Chirag Paswan) बीजेपी की नीतियों के हनुमान बने. 2020 के चुनाव में मोदी नीति के ध्वजवाहक भी बने. दिल्ली में राजतिलक भी करवाया. बिहार में बयान दिया कि 'तेजस्वी अभी नहीं, नीतीश कभी नहीं'. इसी मूल मंत्र को लेकर 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के सामने ताल ठोक दी.
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इस हनुमान के पास जो भी पल था, वह उस राम का था जो इस हनुमान के स्मरण करने पर किस रूप में दर्शन देते थे, यह तो नहीं कहा जा सकता है. लेकिन, बिहार को जो दिखता था उसमें यह माना जाता था कि इस हनुमान ने सिर्फ राम का नाम ही नहीं लिया, बल्कि खड़ाऊ भी उठा लिए हैं. ऐसे में कई दिग्गज जो सियासत में भरत बनने की कोशिश कर रहे थे, उनकी मिट्टी भी पलीत हो गई थी.
2020 के चुनाव के बाद चिराग पासवान पर नीतीश कुमार का खुला आरोप था कि जदयू का जो घाटा हुआ है, उसके पीछे चिराग पासवान हैं. चिराग पासवान के पीछे जो खड़े हैं, वह नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) या बीजेपी के कद्दावर नेता (BJP Leaders) हैं. हालांकि, बिहार में चुनाव के खत्म होने के 8 महीने बाद ही दिल्ली की सल्तनत में सत्ता परिवर्तन की जो कहानी लिखी उसमें सब कुछ विश्वास की मर्यादा के बाद भी धराशाई हो गया.
लोजपा में टूट के बाद चिराग पासवान यह लगातार कहते थे कि अगर उनके चाचा पशुपति पारस (Pashupati Paras) को केंद्रीय मंत्रिमंडल (Central Cabinet) में शामिल किया गया, तो इसका विरोध करेंगे. वह लगातार नरेंद्र मोदी से फरियाद करते रहे अपने तंज में यहां तक कह दिए कि हनुमान के साथ जो हो रहा है, राम उसे देख रहे हैं. अब उस हनुमान के साथ अगर चाचा पारस मंत्रिमंडल में जाते तो वह हनुमान के साथ अन्याय होता और हो भी गया.
चिराग पासवान के लाख कहने के बाद भी पशुपति कुमार पारस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया. हालांकि, नाम का ऐलान होते ही चिराग पासवान कोर्ट की शरण में चले गए और एक याचिका भी दायर कर दी और आरोप लगा दिया कि पशुपति पारस मंत्रिमंडल में गलत तरीके से शामिल किए गए हैं.
चाचा पासवान के मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद सियासत में इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर कौन किस के काबिल नहीं था. हनुमान राम के काबिल नहीं थे या राम हनुमान को चाहते नहीं थे. चर्चा इसलिए भी शुरू हुई अगर राम हनुमान पर इतना भरोसा करते थे, तो फिर हनुमान की बात पर भरोसा किए क्यों नहीं. जिस भरोसे की बात हो रही है सचमुच वह किसी कमरे में था या महज कहने के लिए बाजार में फैलाया गया था.
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लेकिन, जिस तरीके की बातें सामने आई हैं उससे एक बात तो साफ है कि नाम का शगुफा लेकर जिस समुद्र को पार करने के लिए हनुमान चले थे. उसकी चौड़ाई इतनी ज्यादा थी और मन में भटकाव इतना विकट कि आधे रास्ते तो राम राम करते रहे, लेकिन जब राम से काम नहीं चला तो राम को ही कोर्ट लेकर चले गए. अब देखने वाली बात ये होगी कि जिस राम के मंत्रिमंडल में हनुमान के चाचा को गद्दी मिल गई है. वहां वो कितने दिन हैं या फिर आने वाले दिनों में कोर्ट के चक्कर लगाते हैं. अब यह सारी बातें तो ऊपर वाला राम ही जाने.