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दोस्ती की मिसाल पेश करती है, 'इलियास और छोटन' की यह कहानी

छोटन यादव फरीदाबाद में किसी कंपनी में काम करते थे. किसी से झगड़ा हुआ तो भयवश वहां से भाग निकले. 90 दिन पैदल चलकर पश्चिम बंगाल पहुंच गए. भूख प्यास से विक्षिप्त का रूप ले चुके छोटन को स्थानीय निवासी इलियास ने अपने पास रखा. खाना खिलाया, कपड़ा दिया और उन्हें उनके घर बिहार के बाढ़ तक छोड़ा.

इलियास और छोटन यादव
इलियास और छोटन यादव
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Published : Dec 19, 2020, 10:37 PM IST

पटना (बाढ़): पश्चिम बंगाल के रहनेवाले इलियास को बिहार के बाढ़ निवासी एक व्यक्ति छोटन यादव विक्षिप्त हालत में मिले. भूख-प्यास से हालत इतनीय दयनीय हो गई थी कि वे कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे. वे बस बाढ़ ही बोल पाए. इलियास ने उनकी हालत को देख सबसे पहले उन्हें नहलाकर खाना खिलाया. छोटन को अपने पास एक सप्ताह तक रखा. उसके बाद बाढ़ थाना प्रभारी से बात की. थाना प्रभारी की मदद से छोटन को उनके घर छोड़ा. बता दें कि छोटन यादव बाढ़ थानाक्षेत्र के काजीचक मोहल्ले के रहनेवाले हैं.

इलियास को विक्षिप्त मिले थे यादवजी

यादवजी जब इलियास को मिले तो वे विक्षिप्त थे. इलियास ने उनसे उनके घर के बारे में पूछा. मकान के बारे में पूछा. यादवजी भूख के मारे कुछ कह ना पा रहे थे. कुछ स्पष्ट जवाब नहीं मिलने के केराण इलियास ने उनको अपने पास ही रखा. सप्ताह भर तक उनका ख्याल रखा. खाना खिलाया. कपड़े पहनने को दिए. अपने गांव में खेत-खलिहान तक घुमाया. चंद ही दिनों में जब दोस्ती निखरी तो उन्होंने एक वीडियो कंटेट एप में कई वीडियो साथ में बनाए. जब वे थोड़ा ठीक हो गए तो यादव जी को उनके घर बाढ़ थानाक्षेत्र के काजीचक मोहल्ले छोड़ आए.

90 दिन पैदल चलकर छोटन यादव पहुंचा था पश्चिम बंगाल

छोटन यादव की कहानी भी किसी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. बाढ़ निवासी छोटन यादव काम करने के लिए फरीदाबाद गए हुए थे. जहां कंपनी में उसका किसी के साथ झगड़ा हो गया था. भयवश छोटन वहां से भाग निकले. लगभग 90 दिन पैदल चलकर, नदी-नाले को पार करते हुए छोटन पश्चिम बंगाल पहुंचे. कोलकाता से लगभग 135 किलोमीटर आगे बंगाल बॉर्डर के पास छोटन किसी गांव से गुजर रहे थे. उस गांव के लोगों ने उसे रोका, और उनसे पूछताछ की.

जबान से सिर्फ एक शब्द बोल पाए थे छोटन

पूछताछ के दरमियान छोटन काफी मशक्कत से सिर्फ एक शब्द 'बाढ़' ही बोल सके. भूख-प्यास, थकावट और शरीर पर लगे चोटों के कारण वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे. थके-मांदे उनका रूप पागल जैसा हो गया था. उसी वक्त इलियास से उनरकी पहली मुलाकात हुई. इलियास ने उन्हें पहले तो नहलाया. खाने को भोजन दिया. फिर अपने साथ भाई की तरह रखने लगा. इलियास खेत-खलियान से लेकर स्टेशन-बाजार यहां तक की भोज-भंडार में भी छोटन को साथ लेकर जाने लगा. इसी बीच इलियास ने नेट के जरिए बाढ़ स्टेशन को ढूंढ़ निकाला. बाढ़ थाना प्रभारी से संपर्क किया. थाना प्रभारी संजीत कुमार ने भी अपनी आखरी ताकत झोंक दी.

थाना प्रभारी ने छोटन यादव के घर को ढूंढा

बाढ़ के थाना प्रभारी ने पता लगाकर इलियास को बताया कि छोटन बाढ़ के काजीचक मोहल्ले के रहने वाले हैं. छोटन के घर में सिर्फ एक बूढ़ी मां है. इस कारण कोई वहां से उसे लाने वाला भी नहीं था. तब इलियास ने अपने खर्च से उसका और अपना टिकट बना कर उसे बाढ़ थाना पहुंचा दिया. जहां बाढ़ थाना अध्यक्ष संजीत कुमार ने भी इलियास को धन्यवाद देते हुए कहा 'आज भी धरती पर इंसान और इंसानियत' दोनों जिंदा हैं'.

पटना (बाढ़): पश्चिम बंगाल के रहनेवाले इलियास को बिहार के बाढ़ निवासी एक व्यक्ति छोटन यादव विक्षिप्त हालत में मिले. भूख-प्यास से हालत इतनीय दयनीय हो गई थी कि वे कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे. वे बस बाढ़ ही बोल पाए. इलियास ने उनकी हालत को देख सबसे पहले उन्हें नहलाकर खाना खिलाया. छोटन को अपने पास एक सप्ताह तक रखा. उसके बाद बाढ़ थाना प्रभारी से बात की. थाना प्रभारी की मदद से छोटन को उनके घर छोड़ा. बता दें कि छोटन यादव बाढ़ थानाक्षेत्र के काजीचक मोहल्ले के रहनेवाले हैं.

इलियास को विक्षिप्त मिले थे यादवजी

यादवजी जब इलियास को मिले तो वे विक्षिप्त थे. इलियास ने उनसे उनके घर के बारे में पूछा. मकान के बारे में पूछा. यादवजी भूख के मारे कुछ कह ना पा रहे थे. कुछ स्पष्ट जवाब नहीं मिलने के केराण इलियास ने उनको अपने पास ही रखा. सप्ताह भर तक उनका ख्याल रखा. खाना खिलाया. कपड़े पहनने को दिए. अपने गांव में खेत-खलिहान तक घुमाया. चंद ही दिनों में जब दोस्ती निखरी तो उन्होंने एक वीडियो कंटेट एप में कई वीडियो साथ में बनाए. जब वे थोड़ा ठीक हो गए तो यादव जी को उनके घर बाढ़ थानाक्षेत्र के काजीचक मोहल्ले छोड़ आए.

90 दिन पैदल चलकर छोटन यादव पहुंचा था पश्चिम बंगाल

छोटन यादव की कहानी भी किसी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. बाढ़ निवासी छोटन यादव काम करने के लिए फरीदाबाद गए हुए थे. जहां कंपनी में उसका किसी के साथ झगड़ा हो गया था. भयवश छोटन वहां से भाग निकले. लगभग 90 दिन पैदल चलकर, नदी-नाले को पार करते हुए छोटन पश्चिम बंगाल पहुंचे. कोलकाता से लगभग 135 किलोमीटर आगे बंगाल बॉर्डर के पास छोटन किसी गांव से गुजर रहे थे. उस गांव के लोगों ने उसे रोका, और उनसे पूछताछ की.

जबान से सिर्फ एक शब्द बोल पाए थे छोटन

पूछताछ के दरमियान छोटन काफी मशक्कत से सिर्फ एक शब्द 'बाढ़' ही बोल सके. भूख-प्यास, थकावट और शरीर पर लगे चोटों के कारण वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे. थके-मांदे उनका रूप पागल जैसा हो गया था. उसी वक्त इलियास से उनरकी पहली मुलाकात हुई. इलियास ने उन्हें पहले तो नहलाया. खाने को भोजन दिया. फिर अपने साथ भाई की तरह रखने लगा. इलियास खेत-खलियान से लेकर स्टेशन-बाजार यहां तक की भोज-भंडार में भी छोटन को साथ लेकर जाने लगा. इसी बीच इलियास ने नेट के जरिए बाढ़ स्टेशन को ढूंढ़ निकाला. बाढ़ थाना प्रभारी से संपर्क किया. थाना प्रभारी संजीत कुमार ने भी अपनी आखरी ताकत झोंक दी.

थाना प्रभारी ने छोटन यादव के घर को ढूंढा

बाढ़ के थाना प्रभारी ने पता लगाकर इलियास को बताया कि छोटन बाढ़ के काजीचक मोहल्ले के रहने वाले हैं. छोटन के घर में सिर्फ एक बूढ़ी मां है. इस कारण कोई वहां से उसे लाने वाला भी नहीं था. तब इलियास ने अपने खर्च से उसका और अपना टिकट बना कर उसे बाढ़ थाना पहुंचा दिया. जहां बाढ़ थाना अध्यक्ष संजीत कुमार ने भी इलियास को धन्यवाद देते हुए कहा 'आज भी धरती पर इंसान और इंसानियत' दोनों जिंदा हैं'.

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