पटनाः एनडीए से अलग होकर बिहार में महागठबंधन बनाने के बाद से नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता का अभियान चला रहे हैं. इस मुहिम में अप्रैल में तेजी आई. नीतीश कुमार चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ विपक्ष का बीजेपी के खिलाफ मजबूत गठबंधन बने. लेकिन इसमें कई परेशानी है. सबसे अधिक परेशानी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को एक साथ लाना है.
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कभी थे साथ-साथः ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार लंबे समय तक बीजेपी के साथ गठबंधन में रहे हैं, लेकिन आज विपक्षी एकता में महत्वपूर्ण धूरी बने हुए हैं. ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने 2019 में बंगाल में 42 में से 22 सीट जीती थी. बीजेपी ने 18 सीट और कांग्रेस में 2 सीट पर जीत हासिल की थी. 2014 के मुकाबले टीएमसी का प्रदर्शन 2019 में घटा था. 2014 में टीएमसी ने 34 सीटों पर जीत हासिल की थी. उड़ीसा में बीजू जनता दल के नवीन पटनायक भी लंबे समय तक बीजेपी के साथ गठबंधन में रहे. 2014 में 21 में से 20 सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन 2019 में घटकर 12 हो गया.
जनता ने नकार दिया था गठबंधनः उत्तर प्रदेश की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 80 में से 62 सीट पर जीत मिली थी. यह तब हुआ जब बसपा और सपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था. बसपा को 10 और सपा को 5 सीटों पर जीत मिली थी. उस चुनाव में कांग्रेस 1 सीट ही जीत पाई थी. बसपा और सपा अब अलग हो चुकी है. बिहार में 2014 में नीतीश कुमार को केवल 2 सीट लोकसभा चुनाव में मिली थी. आरजेडी को 4 सीट पर जीत मिली थी. 2019 में नीतीश कुमार फिर से एनडीए में आ गए थे. उस वक्त 40 में से 39 सीट एनडीए को प्राप्त हुआ था, जिसमें नीतीश कुमार को 16 सीट मिली थी.
एकजुटता में क्या है समस्याः समस्या कांग्रेस को लेकर है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस को अधिक सीट देना नहीं चाहती है. नवीन पटनायक भी कांग्रेस के लिए बहुत अधिक सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं होंगे. नवीन पटनायक की रणनीति रही है राष्ट्रीय पार्टियों से समान दूरी बना कर रखने की. सपा के अखिलेश यादव भी कांग्रेस को अधिक सीट देने के लिए तैयार नहीं है. बीजेपी के खिलाफ राज्यों में जो गठबंधन हुए हैं उसमें 2015 में बिहार में महागठबंधन को विधानसभा में जबरदस्त जीत मिली थी. लेकिन बिहार के अलावे उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा जैसे राज्यों में गठबंधन सफल नहीं रहा है.
नरेंद्र मोदी के सामने विपक्षी एकजुटता सफल नहीं हो पाईः राजनीतिक विश्लेषक अरुण पांडे का कहना है कोशिश तो विपक्षी एकजुटता के लिए पहले भी बहुत हुआ है, लेकिन नरेंद्र मोदी के सामने विपक्षी एकजुटता सफल नहीं हो पाई है. नेताओं की महत्वाकांक्षा भी है. जब तक सभी अपना स्वार्थ नहीं छोड़ेंगे तब तक विपक्षी एकजुटता संभव नहीं है. वहीं जदयू प्रवक्ता डॉ सुनील सिंह का कहना है कि बिहार में जिस प्रकार से महागठबंधन बना है उसी तरह से देश में विपक्षी एकजुटता को नीतीश कुमार स्वरूप देने में लगे हैं. बीजेपी को हम लोग 100 सीटों पर समेटने की तैयारी में लगे हैं.
"हर लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकजुटता की कवायद होती है. 2019 में चंद्रबाबू नायडू इस मुहिम को चला रहे थे. मतदान तक उन्होंने विपक्षी एकजुटता के लिए मुहिम चलाया आज आंध्र प्रदेश में खुद उनकी जमीन खिसक गई है. विपक्षी एकजुटता कहने के लिए है. क्षेत्रीय दलों की अपनी सीमा है. फोटो सेशन के लिए विपक्षी एकजुटता की कवायद ठीक है"- संजय टाइगर, प्रवक्ता, बीजेपी
कर्नाटक चुनाव के बाद हो सकती बैठक: विपक्षी एकजुटता की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि नीतीश कुमार अब तक ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल और वामपंथी नेताओं से मिल चुके हैं. अब उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मिलने वाले हैं. इन सब को बीजेपी के खिलाफ एक मंच पर लाना बड़ी चुनौती है. उसमें भी कांग्रेस के साथ गठबंधन तैयार करना उससे भी बड़ी चुनौती. नीतीश कुमार कोऑर्डिनेटर की भूमिका में इस चुनौती को लेकर आगे बढ़ रहे हैं और कर्नाटक चुनाव के बाद बड़ी बैठक बिहार में करने वाले हैं. उसके बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी.