पटना: कालरात्रि को मां दुर्गा का सबसे शक्तिशाली स्वरूप माना जाता है. शुंभ निशुंभ के साथ रक्तबीज का संहार करने के लिए मां कालरात्रि का अवतार हुआ था. इसलिए मां कालरात्रि के स्वरूप को भयंकर माना जाता है. भूत पिचाश सभी मां कालरात्रि से कांपते हैं. मान्यताओं के अनुसार मां कालरात्रि की पूजा से ग्रह बाधा से मुक्ति मिलती है. पानी और आग का भी डर समाप्त हो जाता है. मां कालरात्रि की पूजा के समय नियम और संयम का पालन करना आवश्यक होता है. नियम से मां की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस दिन तांत्रिक वर्ग खास तौर पर पूजा करता है.
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पूजा का शुभ मुहूर्त: किसी भी पूजा को शुभ समय में करना उत्तम और लाभकारी माना जाता है. मां के सातवें रूप की पूजा शुभ समय में करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. चैत्र शुक्ल को सप्तमी तिथि 27 मार्च शाम 5 बजकर 26 मिनट पर शुरू हो रही है और इसका समापन 28 मार्च रात्रि 7 बजकर 3 मिनट पर होगा.
ऐसे करें पूजा: मां कालरात्रि काल का विनाश करती है. मां की पूजा मध्यरात्रि में अच्छा माना जाता है और शुभफलदायी माना गया है. मां कालरात्रि को कुमकुम का टीका लगाना चाहिए. रात रानी, गुड़हल या लाल मौली मां को चढ़ाना चाहिए. मां को गुड़ का प्रसाद चढ़ाएं. गुड़ मां कालरात्रि को अति प्रिय होता है. मां के मंत्रों का जाप करें और आखिर मं कपूर की आरती करना चाहिए.
ऐसा है मां कालरात्रि का स्वरूप: मां कालरात्रि को दानवों का नाश करने वाला स्वरूप माना जाता है.रक्तबीज नाम के दानव का वध करने के लिए माता ने ये रूप धारण किया था. रक्तबीज का खून धरती पर गिरते ही असंख्य दानवों का अवतरण हो रहा था. इसके बाद मां कालरात्रि ने दानवों का रक्तपान शुरू किया और पूरी दुनिया को राक्षसों के भय और अत्याचार से मुक्ति दिलाई. इसलिए मां का स्वरूप भय में डालने वाला है. मां का रंग रात से भी ज्यादा काला, लंबे काले बिखरे बाल हैं. उनके चार हाथ हैं और तीन आंखें हैं, मां कालरात्रि गधे की सवारी करती हैं.