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बिहार में वोटकटवा ही रही है अपने राज्यों में सत्ता के शिखर तक पहुंचने वाली ये पार्टियां

बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम सहित एसपी, बीएसपी, एनसीपी व अन्य दलें इस साल के विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने वाली हैं. हालांकि अन्य राज्यों की पार्टियों का प्रदर्शन लगातार खराब होता रहा है. बिहारी वोटर दूसरे राज्य की पार्टी को लगातार नकारते रहे हैं.

BSP, SP and NCP are seeking mass base in Bihar
BSP, SP and NCP are seeking mass base in Bihar
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Published : Sep 18, 2020, 8:49 AM IST

Updated : Sep 18, 2020, 2:32 PM IST

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य में चुनावी सरगर्मी बढ़ी हुई है. इस बीच, दूसरे राज्यों की बड़ी पार्टियां भी यहां अपना जनाधार तलाशने में लगी रहती है. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा इन पार्टियों के नेता भी अपनी भागीदारी को महत्वपूर्ण मानते हैं. लेकिन इन दलों के नेता चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा पाते हैं. जिसके कारण इन्हें जनाधार नहीं मिल पाता और ये पार्टियां सिर्फ वोट काटने तक ही सीमित रह जाती है.

एसपी, BSP-NCP...बिहार में तलाशते रहे जगह
अगर बिहार की राजनीति में एनसीपी की भागीदारी की बात करें तो सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार का साथ देते हुए साल 1999 में तारिक अनवर ने कांग्रेस छोड़ दिया था. शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने मिलकर एनसीपी की नींव रखी थी. तारिक अनवर कटिहार से सांसद भी रहे. वहीं, 2018 में तारिक अनवर के एनसीपी छोड़ने के बाद बिहार में एनसीपी हाशिये पर चली गई. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी और बीएसपी का भी हाल कुछ खास नहीं है.

BSP, SP and NCP are seeking mass base in Bihar
पार्टी कार्यालय एनसीपी

2015 में इन पार्टियों को एक भी सीट नसीब नहीं
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी, ओवैसी की एआइएमआइएम, झारखंड की जेएमएम आदि पार्टियां ने चुनाव लड़ा था. लेकिन किसी भी पार्टी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई. जेएमएमए ने तो 32 सीटों पर और समाजवादी पार्टी ने 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल की छह सीटों पर अपनी दावेदारी रखी थी. इसके अलावा भी अन्य राज्यों की पार्टियों ने उम्मीदवार उतारे थे, जो 2015 के चुनाव में सफल नहीं हो सके.

यूपी की समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन
दूसरी तरफ, उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की बात करें तो 2005 से सपा का प्रदर्शन लगातार गिरता गया. साल 2005 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 142 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. इनमें चार सीटों पर पार्टी ने जीत हासिल की थी. लेकिन, 2010 और 2015 के चुनावों में सपा एक भी सीट जीत नहीं पायी.

जेएमएम ने किया निराश
बता करें पड़ोसी राज्य झारखंड की तो यहां जेएमएम को सिर्फ एक बार सफलता हाथ लगी. जेएमएम को 2010 के विधानसभा चुनाव में 41 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें पार्टी को एक सीट नसीब हुई थी. इसके बाद, 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने 32 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन किसी सीट पर भी सफलता नहीं मिली.

क्या ओवैसी डालेंगे असर?
एमआईएम के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिमों के फायर ब्रांड नेता के रूप में उभर रहे हैं. ओवैसी की नजर बिहार के मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र सीमांचल पर है. 2015 में महज 6 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली एआइएमआइएमने इस बार के चुनाव में अभी तक 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का मन बनाया है.

पेश है रिपोर्ट

बता दें कि बिहार में ओवीसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन पिछले साल उपचुनाव में खाता खोलने में कामयाब रही है. लोकसभा चुनाव के बाद बिहार के किशनगंज सीट पर हुए चुनाव में उनकी पार्टी के उम्मीदवार कमरुल होदा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जीत दर्ज की थी. एआइएमआइएम का बिहार के सीमांचल इलाके के मुस्लिम वोटरों के बीच राजनीतिक ग्राफ है. सीमांचल से बाहर न तो पार्टी को कोई जनाधार है और न ही पार्टी को संगठन नजर आता है.

चुनाव के बाद पार्टियों की सक्रियता कम
हालांकि इस बार भी दूसरे प्रदेश की पार्टियां बिहार के इस चुनावी दंगल में सभी सीटों पर अपनी प्रत्याशी उतारने की तैयारी में हैं. चुनाव में प्रत्याशी उतारने के समय ये पार्टियां बिहार का रूख करती है. लेकिन चुनाव के बाद राज्य में इनकी सक्रियता कम ही देखने को मिलती है.

टिकट बेचकर धन इकट्ठा करने की जुगत
दूसरे राज्यों से आने वाली पार्टिंयों को लेकर सता पक्ष के नेताओं का कहना है कि भले ही ये पार्टियां अपने प्रदेश में बड़ी पार्टी होगी. लेकिन बिहार में इसका कोई जानाधार नहीं है. वो लोग सिर्फ बरसाती मेंढ़क की तरह ही आते हैं और चुनाव बाद गायब हो जाते हैं.

विशेषज्ञों की राय सुनिए
वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो ये दल अपने राजनीतिक विस्तार के लिए दूसरे प्रदेशों के चुनाव में पैर पसारती है, लेकिन जनाधार कुछ नहीं होने की वजह से चुनाव में टिकट बेचकर धन इकट्ठा करने के जुगत में रहते हैं.

BSP, SP and NCP are seeking mass base in Bihar
डीएम दिवाकर, राजनीतिक विशेषज्ञ

2015 चुनाव में वोट कटवा पार्टी को कितने वोट?
बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में कई पार्टियां वोट कटवा पार्टी के रुप में रही. इन पार्टियों में एसपी को 13592 वोट मिले जो कि 1.7 फीसदी ही होता है. बीएसपी को 13588 वोट मिले जो कि 1.5 फीसदी होता है. इसी तरह से एनसीपी के उम्मीदवार को भी मात्र 2653 वोट मिले जो कि 0.3 फीसदी होते हैं. ये पार्टियां अपने प्रदेश के अलावे दूसरे प्रदेश में विस्तार तो चाहती है ताकि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिले लेकिन इन्हें वोट नहीं मिलता है.

बिहार चुनाव 2015: वोट कटवा पार्टी

पार्टी वोट वोट प्रतिशत
एसपी135921.7 फीसदी
बीएसपी135881.5 फीसदी
एआईएमआईएम60630.7 फीसदी
एनसीपी26530.3 फीसदी
एसकेएलपी22500.3 फीसदी
जेएमएम3381 0.4 फीसदी

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य में चुनावी सरगर्मी बढ़ी हुई है. इस बीच, दूसरे राज्यों की बड़ी पार्टियां भी यहां अपना जनाधार तलाशने में लगी रहती है. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा इन पार्टियों के नेता भी अपनी भागीदारी को महत्वपूर्ण मानते हैं. लेकिन इन दलों के नेता चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा पाते हैं. जिसके कारण इन्हें जनाधार नहीं मिल पाता और ये पार्टियां सिर्फ वोट काटने तक ही सीमित रह जाती है.

एसपी, BSP-NCP...बिहार में तलाशते रहे जगह
अगर बिहार की राजनीति में एनसीपी की भागीदारी की बात करें तो सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार का साथ देते हुए साल 1999 में तारिक अनवर ने कांग्रेस छोड़ दिया था. शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने मिलकर एनसीपी की नींव रखी थी. तारिक अनवर कटिहार से सांसद भी रहे. वहीं, 2018 में तारिक अनवर के एनसीपी छोड़ने के बाद बिहार में एनसीपी हाशिये पर चली गई. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी और बीएसपी का भी हाल कुछ खास नहीं है.

BSP, SP and NCP are seeking mass base in Bihar
पार्टी कार्यालय एनसीपी

2015 में इन पार्टियों को एक भी सीट नसीब नहीं
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी, ओवैसी की एआइएमआइएम, झारखंड की जेएमएम आदि पार्टियां ने चुनाव लड़ा था. लेकिन किसी भी पार्टी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई. जेएमएमए ने तो 32 सीटों पर और समाजवादी पार्टी ने 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल की छह सीटों पर अपनी दावेदारी रखी थी. इसके अलावा भी अन्य राज्यों की पार्टियों ने उम्मीदवार उतारे थे, जो 2015 के चुनाव में सफल नहीं हो सके.

यूपी की समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन
दूसरी तरफ, उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की बात करें तो 2005 से सपा का प्रदर्शन लगातार गिरता गया. साल 2005 के विधानसभा चुनाव में सपा ने 142 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. इनमें चार सीटों पर पार्टी ने जीत हासिल की थी. लेकिन, 2010 और 2015 के चुनावों में सपा एक भी सीट जीत नहीं पायी.

जेएमएम ने किया निराश
बता करें पड़ोसी राज्य झारखंड की तो यहां जेएमएम को सिर्फ एक बार सफलता हाथ लगी. जेएमएम को 2010 के विधानसभा चुनाव में 41 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें पार्टी को एक सीट नसीब हुई थी. इसके बाद, 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने 32 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन किसी सीट पर भी सफलता नहीं मिली.

क्या ओवैसी डालेंगे असर?
एमआईएम के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिमों के फायर ब्रांड नेता के रूप में उभर रहे हैं. ओवैसी की नजर बिहार के मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र सीमांचल पर है. 2015 में महज 6 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली एआइएमआइएमने इस बार के चुनाव में अभी तक 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का मन बनाया है.

पेश है रिपोर्ट

बता दें कि बिहार में ओवीसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन पिछले साल उपचुनाव में खाता खोलने में कामयाब रही है. लोकसभा चुनाव के बाद बिहार के किशनगंज सीट पर हुए चुनाव में उनकी पार्टी के उम्मीदवार कमरुल होदा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जीत दर्ज की थी. एआइएमआइएम का बिहार के सीमांचल इलाके के मुस्लिम वोटरों के बीच राजनीतिक ग्राफ है. सीमांचल से बाहर न तो पार्टी को कोई जनाधार है और न ही पार्टी को संगठन नजर आता है.

चुनाव के बाद पार्टियों की सक्रियता कम
हालांकि इस बार भी दूसरे प्रदेश की पार्टियां बिहार के इस चुनावी दंगल में सभी सीटों पर अपनी प्रत्याशी उतारने की तैयारी में हैं. चुनाव में प्रत्याशी उतारने के समय ये पार्टियां बिहार का रूख करती है. लेकिन चुनाव के बाद राज्य में इनकी सक्रियता कम ही देखने को मिलती है.

टिकट बेचकर धन इकट्ठा करने की जुगत
दूसरे राज्यों से आने वाली पार्टिंयों को लेकर सता पक्ष के नेताओं का कहना है कि भले ही ये पार्टियां अपने प्रदेश में बड़ी पार्टी होगी. लेकिन बिहार में इसका कोई जानाधार नहीं है. वो लोग सिर्फ बरसाती मेंढ़क की तरह ही आते हैं और चुनाव बाद गायब हो जाते हैं.

विशेषज्ञों की राय सुनिए
वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो ये दल अपने राजनीतिक विस्तार के लिए दूसरे प्रदेशों के चुनाव में पैर पसारती है, लेकिन जनाधार कुछ नहीं होने की वजह से चुनाव में टिकट बेचकर धन इकट्ठा करने के जुगत में रहते हैं.

BSP, SP and NCP are seeking mass base in Bihar
डीएम दिवाकर, राजनीतिक विशेषज्ञ

2015 चुनाव में वोट कटवा पार्टी को कितने वोट?
बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में कई पार्टियां वोट कटवा पार्टी के रुप में रही. इन पार्टियों में एसपी को 13592 वोट मिले जो कि 1.7 फीसदी ही होता है. बीएसपी को 13588 वोट मिले जो कि 1.5 फीसदी होता है. इसी तरह से एनसीपी के उम्मीदवार को भी मात्र 2653 वोट मिले जो कि 0.3 फीसदी होते हैं. ये पार्टियां अपने प्रदेश के अलावे दूसरे प्रदेश में विस्तार तो चाहती है ताकि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिले लेकिन इन्हें वोट नहीं मिलता है.

बिहार चुनाव 2015: वोट कटवा पार्टी

पार्टी वोट वोट प्रतिशत
एसपी135921.7 फीसदी
बीएसपी135881.5 फीसदी
एआईएमआईएम60630.7 फीसदी
एनसीपी26530.3 फीसदी
एसकेएलपी22500.3 फीसदी
जेएमएम3381 0.4 फीसदी
Last Updated : Sep 18, 2020, 2:32 PM IST
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