पटना: पटना के ग्रामीण इलाकों में इस बार स्वाद के साथ सेहत के गुणों की खान कहे जाने वाले काला धान की खेती (Black Rice Farming in Masaurhi) मसौढ़ी के केवड़ा समेत कई गांवों के सैकड़ों एकड़ जमीन में हो रही है. प्रगतिशील किसान नागेंद्र सिंह पिछले कई साल से कई बीघा जमीन में काले धान की खेती कर रहे हैं. वो जैविक खेती कर रहे हैं और लोगों को भी जैविक खेती के प्रति जागरूक कर रहे है. खेती में हमेशा नवीनतम प्रयोग करने वाले नागेंद्र सिंह काला धान की खेती करने वाले मसौढ़ी के पहले किसान हैं.
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बाजार में महंगा बिकता है काला धान: काला धान सामान्य धान की अपेक्षा कई गुना महंगा बिकता है. बाजार में इसकी कीमत 400 रुपये से लेकर 800 रुपये किलो बिकता है. वहीं विदेशों में भी इस चावल की काफी मांग है. हालांकि इसकी पैदावार सामान्य धान की तुलना में काफी कम होती है लेकिन इसका रेट अधिक होने के कारण किसानों को बेहतर लाभ होता है. हर साल सामान्य धान की कम कीमत देखते हुए नागेंद्र सिंह ने काला धान की फसल लगाने का फैसला किया.
एंटीऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर है काला धान: विशेषज्ञ कहते हैं कि काला चावल एंटीऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर माना जाता है. इसमें काफी ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है. एंटी ऑक्सीडेंट हमारे बॉडी को डिटॉक्स और क्लीन करने का काम करता है और आज के प्रदूषित वातावरण और जंग लड़ने के लिए हर इंसान को इसकी आवश्यक है. वहीं डायबिटीज रोगियों के लिए काला चावल कमाल की चीज है. इसके नियमित सेवन ना सिर्फ दवाइयों से छुटकारा दिला सकता है.
"यह हमेशा किसानों के बीच हम पारंपरिक खेती से हटकर कुछ अलग खेती करने की नसीहत देते आते हैं और यह प्रयोग हमने किया है अगर सफल रहा तो निश्चित तौर पर किसानों के लिए एक नजीर तो साबित होगा ही साथ में पूरे मसौढ़ी अनुमंडल में बदहाल किसानों की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी"- नागेंद्र सिंह, किसान
खेती कर किसान बदल रहे अपनी किस्मत: काला धान की खेती करने वाले तकरीबन दर्जनभर किसान मसौढ़ी में अपना जैविक शुरू कर दिया हैं. जहां समय-समय पर सभी को खेती से जुड़ी प्रशिक्षण भी दिया जाता है. काला धान की खेती करने वाले किसान नागेंद्र सिंह ने बताया कि 'इस साल 1 एकड़ में काला धान की खेती किये है. जिसमें लगभग 6 क्विंटल धान होने की उम्मीद है. सामान्य धान की अपेक्षा काला धान की खेती में बहुत ज्यादा फायदा हैं. काला धान की खेती में जिले में मार्केटिंग की थोड़ी समस्या है लेकिन धीरे-धीरे जब इसकी पकड़ नजदीकी बाजारों में होगी तो जिले भर में इसकी खेती की रफ्तार भी जोर पकड़ेगी. इसकी खेती की सारी प्रक्रियाएं लगभग आम धान की ही तरह होती हैं. काला धान में पानी की कम खपत होती है. वहीं इसमें यूरिया, उर्वरक के प्रयोग से पौधे और ज्यादा लंबे हो जाते है. इसलिए जैविक तरीके से काला धान की खेती बेहतर होती हैं'.
किसानों के लिए 'सोना' बना काला धान: काला धान का बाजार मूल्य 400 से 800 रूपये किलोग्राम के बीच होता है. इसकी खेती में खाद, कीटनाशक का उपयोग नहीं होता, जिस वजह से इसकी खेती में लागत कम आती है, इसके चावल में रसायनों का खतरा भी नहीं होता. यही कारण है कि कालाधान की पैदावार सामान्य धान की तुलना में कम होने के बावजूद भी किसानों को इससे अच्छा मुनाफा होता है. इसके अलावा काला धान की फसल में रोग और कीट पतंगों का प्रभाव नहीं होता हैं. काला धान किसानों के लिए सोना है.
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