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बिहार विधानसभा घोटाला: मंत्रियों और अधिकारियों के बच्चे बने अफसर! - sadanand singh

सदानंद सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष होने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने के लिए प्रयास नहीं किया. चयन समिति में ऐसे सदस्यों को लिया, जिनके बच्चे या रिश्तेदार परीक्षा में उम्मीदवार थे.

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Published : Aug 26, 2019, 8:07 PM IST

पटना: बिहार विधानसभा नियुक्ति घोटाले में जांच एजेंसी की चार्जशीट में बड़ा खुलासा हुआ है. तकरीबन डेढ़ दशक बाद जांच एजेंसी ने चार्जशीट दायर की है. विजिलेंस की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि सदानंद सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष होने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए रखने का प्रयास नहीं किया.

बता दें 2001 -2002 में बिहार विधानसभा की ओर से 90 क्लर्क की नौकरी के लिए वैकेंसी निकाली गई थी. नियुक्ति में बड़े पैमाने पर अनियमितता की बात सामने आई थी. उस समय बिहार विधानसभा के अध्यक्ष कांग्रेस नेता सदानंद सिंह हुआ करते थे, और उन्हीं की देखरेख में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की गई थी.

पटना से संवाददाता रंजीत कुमार की रिपोर्ट

सदानंद सिंह ने नहीं बरती पारदर्शिता
विजिलेंस की चार्जशीट में सदानंद सिंह संवैधानिक पद पर होने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए रखने में सफल नहीं थे और नौकरी पाने वाले मंत्री और अधिकारियों के परिवार के या रिश्तेदार थे. चार्जशीट में इस बात का भी खुलासा हुआ कि 30 अभ्यर्थियों के नंबर बढ़ाए गए थे. इंटरव्यू में फेल होने वालों के लिए राउंड भी बदला गया, और यह सबकुछ अध्यक्ष ने खुद किया था.

चार्जशीट में नंबर बढ़ाने का खुलासा
चार्जशीट में बताया गया है कि राजकिशोर रावत चयन समिति के सदस्य थे. उनके बेटे संजय कुमार रावत को दूसरी चयन समिति के सदस्य रामेश्वर प्रसाद चौधरी ने 64 नंबर दिए. जबकि उसका नंबर 62 नंबर ही मिले थे. वहीं संजय कुमार को 51 अंक प्राप्त हुए थे, लेकिन दोबारा जांच में 59 अंक उन्हें दे दिया गया. बादमें नंबर में एक जोड़कर सेट किया गया.

बिहार विधानसभा

ऐसे हुई थी गड़बड़ी
इसके अलावा प्रेरणा कुमारी को 70 नंबर मिले थे. इसे बढ़ाकर 72 किया गया. वहीं, अनिल कुमार वर्मा को 64 नंबर मिले थे. पहले इसमें चार अंक बढ़ाए गए फिर दोबारा जांच के बहाने इसे 70 तक पहुंचा दिया गया जबकि कॉपी पर कुल प्राप्तांक 66 ही होता है. संजीव कुमार को 24 अंक मिले. बाद में यह 70 तक पहुंचाया गया. इंटरव्यू में संजीव को 13 अंक मिले थे. कुल मिलाकर 30 अभ्यर्थियों के नंबर में उलटफेर किया गया था.

सदानंद सिंह ने दी सफाई
वहीं इस बारे में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद सिंह ने कहा है कि मामला चौकी कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए इस पर मैं कुछ नहीं बोलूंगा, लेकिन उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक अगर विधानसभा अध्यक्ष एक बार निगरानी के प्रस्ताव को लौटा देता है. तो वैसी स्थिति में चार्जशीट दायर नहीं किया जा सकता.

राजनीतिक निहितार्थ है चार्जशीट
सदानंद ने कहा कि मुझ पर लगे सारे आरोप गलत और बेबुनियाद हैं. विधानसभा अध्यक्ष के होने के नाते मैंने अपनी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाई है. विधानसभा अध्यक्ष ने मेरे मामले में तीन बार चार्जशीट को लौटा दिया है. अंतिम प्रपत्र सौंपने के समय को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. उन्होंने कहा है कि मेरे खिलाफ अभी चार्जशीट दायर करने के राजनीतिक निहितार्थ हैं.

पटना: बिहार विधानसभा नियुक्ति घोटाले में जांच एजेंसी की चार्जशीट में बड़ा खुलासा हुआ है. तकरीबन डेढ़ दशक बाद जांच एजेंसी ने चार्जशीट दायर की है. विजिलेंस की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि सदानंद सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष होने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए रखने का प्रयास नहीं किया.

बता दें 2001 -2002 में बिहार विधानसभा की ओर से 90 क्लर्क की नौकरी के लिए वैकेंसी निकाली गई थी. नियुक्ति में बड़े पैमाने पर अनियमितता की बात सामने आई थी. उस समय बिहार विधानसभा के अध्यक्ष कांग्रेस नेता सदानंद सिंह हुआ करते थे, और उन्हीं की देखरेख में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की गई थी.

पटना से संवाददाता रंजीत कुमार की रिपोर्ट

सदानंद सिंह ने नहीं बरती पारदर्शिता
विजिलेंस की चार्जशीट में सदानंद सिंह संवैधानिक पद पर होने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए रखने में सफल नहीं थे और नौकरी पाने वाले मंत्री और अधिकारियों के परिवार के या रिश्तेदार थे. चार्जशीट में इस बात का भी खुलासा हुआ कि 30 अभ्यर्थियों के नंबर बढ़ाए गए थे. इंटरव्यू में फेल होने वालों के लिए राउंड भी बदला गया, और यह सबकुछ अध्यक्ष ने खुद किया था.

चार्जशीट में नंबर बढ़ाने का खुलासा
चार्जशीट में बताया गया है कि राजकिशोर रावत चयन समिति के सदस्य थे. उनके बेटे संजय कुमार रावत को दूसरी चयन समिति के सदस्य रामेश्वर प्रसाद चौधरी ने 64 नंबर दिए. जबकि उसका नंबर 62 नंबर ही मिले थे. वहीं संजय कुमार को 51 अंक प्राप्त हुए थे, लेकिन दोबारा जांच में 59 अंक उन्हें दे दिया गया. बादमें नंबर में एक जोड़कर सेट किया गया.

बिहार विधानसभा

ऐसे हुई थी गड़बड़ी
इसके अलावा प्रेरणा कुमारी को 70 नंबर मिले थे. इसे बढ़ाकर 72 किया गया. वहीं, अनिल कुमार वर्मा को 64 नंबर मिले थे. पहले इसमें चार अंक बढ़ाए गए फिर दोबारा जांच के बहाने इसे 70 तक पहुंचा दिया गया जबकि कॉपी पर कुल प्राप्तांक 66 ही होता है. संजीव कुमार को 24 अंक मिले. बाद में यह 70 तक पहुंचाया गया. इंटरव्यू में संजीव को 13 अंक मिले थे. कुल मिलाकर 30 अभ्यर्थियों के नंबर में उलटफेर किया गया था.

सदानंद सिंह ने दी सफाई
वहीं इस बारे में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद सिंह ने कहा है कि मामला चौकी कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए इस पर मैं कुछ नहीं बोलूंगा, लेकिन उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक अगर विधानसभा अध्यक्ष एक बार निगरानी के प्रस्ताव को लौटा देता है. तो वैसी स्थिति में चार्जशीट दायर नहीं किया जा सकता.

राजनीतिक निहितार्थ है चार्जशीट
सदानंद ने कहा कि मुझ पर लगे सारे आरोप गलत और बेबुनियाद हैं. विधानसभा अध्यक्ष के होने के नाते मैंने अपनी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाई है. विधानसभा अध्यक्ष ने मेरे मामले में तीन बार चार्जशीट को लौटा दिया है. अंतिम प्रपत्र सौंपने के समय को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. उन्होंने कहा है कि मेरे खिलाफ अभी चार्जशीट दायर करने के राजनीतिक निहितार्थ हैं.

Intro:बिहार में जांच एजेंसियां किस रफ्तार से चलती है उसकी वांगी बिहार विधानसभा नियुक्ति घोटाले में देखने को मिली निगरानी को लगभग डेढ़ दशक जांच पूरी करने में लग गए निगरानी में अपनी जांच रिपोर्ट में कहा की सदानंद सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष होने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए रखने का प्रयास नहीं किया


Body:साल 2001 -2002 में बिहार विधानसभा की ओर से 90 क्लर्क की नौकरी के लिए वैकेंसी निकाली गई थी नियुक्ति में बड़े पैमाने पर अनियमितता के बाद सामने आई जब नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जा रही थी तब बिहार विधानसभा के अध्यक्ष कांग्रेस नेता सदानंद सिंह हुआ करते थे और उन्हीं के देखरेख में पूरी नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की गई विजिलेंस को नियुक्ति घोटाला मामले में चार्जशीट दायर करने में लगभग डेढ़ दशक का वक्त लग गया 4 सीट में विजिलेंस में चौका देने वाले खुलासे किए 4 सीट में लिखा गया है कि सदानंद सिंह ने संवैधानिक पद पर होने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए रखने की कोशिश नहीं की चयन समिति में मनमाना परिवर्तन कर उस पर कब्जा कर , ऐसे सदस्यों को इसमें लिए जिनके बच्चे रिश्तेदार परीक्षा में विद्वान थे और सब नौकरी पा गए ।


Conclusion:चार्जशीट में इस बात का खुलासा भी हुआ कि 30 अभ्यर्थियों के अंक तत्कालीन अध्यक्ष ने खुद बढ़ा दिए। राजकिशोर रावत चयन समिति के सदस्य थे उनके बेटे संजय कुमार रावत को दूसरी चयन समिति के सदस्य रामेश्वर प्रसाद चौधरी ने 64 नंबर दिए यह 62 में दो जोड़ कर दिया गया जबकि प्रश्न का प्राप्तांक शीर्षक था।
संजय कुमार को 51 अंक प्राप्त हुए थे लेकिन दोबारा जांच में 59 अंक उन्हें दे दिया गया फिर इसमें एक जोड़कर सेट किया गया प्रेरणा कुमारी को 70 नंबर मिले थे इसे बढ़ाकर 72 किया गया वहीं अनिल कुमार वर्मा को 64 नंबर मिले थे पहले इसमें चार अंक बढ़ाए गए फिर दोबारा जांच के बहाने इसे 70 तक पहुंचा दिया गया जबकि कॉपी पर कुल प्राप्तांक 66ही होता है ।
संजीव कुमार को 24 अंक मिले बाद में यह 70 तक पहुंचाया गया इंटरव्यू में संजीव को 13 अंक मिले थे कुल मिलाकर 30 अभ्यर्थियों के नंबर में उलटफेर किया गया था ।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद सिंह ने कहा कि मामला चौकी कोर्ट में विचाराधीन है इसलिए इस पर मैं कुछ नहीं बोलूंगा लेकिन उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन के मुताबिक अगर विधानसभा अध्यक्ष एक बार निगरानी के प्रस्ताव को लौटा देता है तो वैसी स्थिति में चार्जशीट दायर नहीं किया जा सकता विधानसभा अध्यक्ष ने मेरे मामले में तीन बार चार्जशीट को लौट आया है ।
घोटाले में नेता अफसर के रिश्तेदार और विधानसभा में पदस्थापित अधिकारियों के परिजनों ने नौकरी पा लिया ।
अंतिम प्रपत्र सौंपने के समय को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं सदानंद सिंह ने कहा है कि मेरे खिलाफ अभी 4 सीट दायर करने के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं आपको बता दें कि कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी के नेतृत्व में कांग्रेसमें टूट की तैयारी थी लेकिन सदानंद सिंह के यू टर्न लेने के बाद कांग्रेसमें टूट टल गई थी
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