पटना: पिछले दिनों ग्लास्गो जलवायु सम्मेलन (Glasgow Climate Conference) में पीएम मोदी ने कहा था कि 2070 तक भारत शून्य कार्बन उत्सर्जन वाला देश बन जाएगा. 2030 तक भारत अपनी जरूरत का 50 फीसदी उर्जा रिन्यूएबल सोर्स से उत्पन्न करेगा. इस राह को अब बिहार भी फॉलो करने लगा है. बिहार अब देश को कार्बन उत्सर्जन कम करने की राह दिखाएगा. जी हां, राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार ने वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य (Reduce Carbon Emissions Till 2070) रखा है. वहीं बिहार ने वर्ष 2040 तक कार्बन न्यूट्रल स्टेट बनने की दिशा (Bihar Target To Become Carbon Neutral State Till 2040) में काम शुरू कर दिया है.
करीब एक साल पहले शुरू हुआ यह काम अब तेजी से हो रहा है. यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोगाम (UNEP) की सहायता से बिहार सरकार कार्बन उत्सर्जन कम करके जलवायु परिवर्तन की दिशा में बड़ा लक्ष्य हासिल करने की कोशिश में है.
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महज कुछ दिन पहले ही ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन COP26 में भारत ने वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन न्यूट्रल करने का अपना वादा दोहराया है. इस सम्मेलन में विश्व भर के 120 से अधिक नेताओं ने भाग लिया और सभी की एक ही चिंता थी कि किस तरह कार्बन उत्सर्जन को कम किया जाए? कैसे ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव कम हो और पृथ्वी के तापमान में कमी लाई जा सके? राष्ट्रीय लक्ष्य वर्ष 2070 तक कार्बन न्यूट्रल का है, जबकि बिहार ने अपना लक्ष्य वर्ष 2040 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने का रखा है.
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बीते एक साल पहले यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट एंड प्रोग्राम यूएनईपी के साथ बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने समझौता किया. जिसके तहत यूएनडीपी प्रदूषण की कारकों की पहचान करके प्रदूषण को कम करने के उपाय सुझाएगा. आगे बढ़ने से पहले यह जानना जरूरी है कि कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए आखिर क्यों पूरी दुनिया परेशान है.
दरअसल कार्बन उत्सर्जन का मतलब वाहनों से निकलने वाला धुआं, फैक्ट्रियों से होने वाला वायु प्रदूषण और कोयला, लकड़ी आदि जलाने से निकलने वाला धुआं और कई अन्य ऐसे ही उत्सर्जन हैं, जिन से भारी मात्रा में कार्बन निकलता है. यह सभी कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड आदि के रूप में होता है. अंततः यह सब वायुमंडल की गर्मी बढ़ाते हैं. ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते हैं और पूरे जलवायु चक्र को प्रभावित करते हैं. इसकी वजह से पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है और इसे नियंत्रित करने के लिए ही पूरी दुनिया कार्बन उत्सर्जन कम करने का लक्ष्य स्थापित कर रही है.
कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए कुछ चीजों को अपनाना बेहद जरूरी हो गया है. जिसमें हरित ऊर्जा को बढ़ावा देना, कार्बन उत्सर्जन के अन्य तरीकों पर नियंत्रण करना और वेटलैंड्स को डेवलप करना प्रमुख है. क्योंकि यह बड़े सिंक का काम करते हैं, यानी जितना कार्बन उत्सर्जन होता है उसे ये सोख लेते है. जिससे प्रदूषण से पृथ्वी को बचाते हैं.
किन उपायों से कम होगा उत्सर्जन-
जंगल की कटाई कम करना.
पौधारोपण को अधिक से अधिक बढ़ावा देना.
वेटलैंड्स को मेंटेन रखना.
ग्रीन एनर्जी का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना.
पेट्रोल और डीजल के उपयोग को कम करना.
थर्मल पावर की जगह सोलर पावर का उपयोग बढ़ाना आदि.
इसे लेकर एक महत्वपूर्ण बैठक चीफ सेक्रेटरी के नेतृत्व में हुई है. जिसमें यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंटल प्रोग्राम के अलावा बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट, रोड कंस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट, बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट और माइनिंग डिपार्टमेंट समेत कई संबंधित विभागों के आला अधिकारी शामिल हुए. बैठक में शामिल काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर के सीईओ डॉ अर्णब घोष ने कहा कि बिहार देश को राह दिखाने की दिशा में काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि चैलेंजेज बहुत ज्यादा हैं लेकिन हमने सभी संबंधित विभागों के साथ चर्चा की है कि किस तरह सभी अपनी जिम्मेदारी निभाएं. जिससे कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है. इसमें सभी की भूमिका है और इसके लिए बिहार में वृहद स्तर पर प्रयास के साथ-साथ बड़े इन्वेस्टमेंट की भी जरूरत है.
'वर्ष 2040 तक हमें कार्बन न्यूट्रल स्टेट बनना है और इसके लिए इंटरनेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इस दिशा में सभी लाइन डिपार्टमेंट को मिलकर काम करना होगा. हमने शुरुआत पहले की है और हम ही सबसे पहले कार्बन न्यूट्रल करके देश को राह दिखाएंगे.' -डॉक्टर अशोक घोष, अध्यक्ष, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
आपको बता दें कि बिहार में जल जीवन हरियाली योजना के तहत कई तरह के काम किए गए हैं. इस योजना के तहत बिहार राज्य में कई पौधों का रोपण और पानी के परम्परागत स्रोतों तलाब, पोखरों कुओ का निर्माण किया गया. पुरे तालाब, कुंओं की मरम्मत राज्य सरकार द्वारा कराई जा रही है. इस योजना के तहत बिहार के किसानो को तालाब, पोखरे बनाने और खेतों की सिंचाई के लिए सरकार 7,5500 रूपये की सब्सिडी आर्थिक सहायता के रूप में प्रदान की किया जाना है. जल जीवन हरियाली योजना 2021 के तहत चापा कल, कुआं, सरकारी भवनों में वर्षा के पानी को स्टोर करने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग की जाएगी.
जल जीवन हरियाली योजना के अंतर्गत होने वाले कार्य-
सार्वजनिक जल संचयन संरचनाओं को अतिक्रमण से मुक्त करना.
सिंचाई के साधनों जैसे पुराने तालाब, पोखर, आहरों का जीर्णोद्धार करना.
सार्वजनिक कुंओं को चिन्हित करना उनका जीर्णोद्धार करना.
सार्वजनिक चापाकलों , तालाब, पोखर, आहरों,नलकूपों के किनारे सोख्ता या जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करना.
नदी, नालों पर जल संचयन चैक डैम और अन्य जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करना.
नए जल स्रोतों का निर्माण तथा जिन नदियों में पानी अधिक है उनका पानी कम जल वाले क्षेत्रों तक पहुंचाना.
भवनों में वर्षा जल संचयन संरचना बनवाना.
पौधशाला एवं सघन वृक्षारोपण.
वैकल्पिक फसलों, टिपकन सिंचाई, जैविक खेती एवं अन्य तकनीकों का उपयोग.
सौर ऊर्जा उपयोग को बढ़ावा देना.
जल जीवन हरियाली जागरूकता अभियान.
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