पटना: पंचायत चुनाव ( Panchayat Election ) भले ही दलीय आधार पर नहीं हो रहा हो, लेकिन सभी दलों की इस पर नजर है. बिहार विधान परिषद ( Bihar Legislative Council ) के 24 सीट जुलाई में खाली हुए हैं. ऐसे तो चुनाव पहले हो जाना चाहिए था, लेकिन पंचायत चुनाव नहीं होने के कारण 24 सीट को भरा नहीं जा सका है क्योंकि पंचायत चुनाव से जीते हुए जनप्रतिनिधि ही स्थानीय प्राधिकार के 24 विधान परिषद सीटों के भाग का फैसला करते हैं और इसलिए पंचायत चुनाव होने जा रहा है सभी दलों की इस पर नजर है.
दरअसल, बिहार विधान परिषद ( MLC ) में अभी 75 की जगह केवल 50 सदस्य हैं क्योंकि 25 सीट खाली पड़े हैं. 24 सीट पर स्थानीय प्राधिकार से चुनकर उम्मीदवार आएंगे लेकिन पंचायत चुनाव नहीं होने के कारण इन सीटों पर भी चुनाव नहीं हुआ है और अब पंचायत चुनाव होने जा रहा है तो स्थानीय प्राधिकार से जीत कर आने वाले सीटों पर दलों की भी नजर है. अभी 24 सीटें जो खाली हुई है उसमें अधिकांश जदयू और बीजेपी के ही हैं. ऐसे में इन दोनों दलों के लिए पंचायत चुनाव में भी प्रतिष्ठा दांव पर लगा हुआ है क्योंकि इसी के रास्ते इनके उम्मीदवार विधान परिषद पहुंचेंगे.
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16 जुलाई को जिनका कार्यकाल समाप्त हुआ है उसमें रजनीश कुमार, सच्चिदानंद राय, रीना यादव, राधाचरण साह, टुन्ना जी पांडे, संतोष कुमार सिंह, मनोरमा देवी, राजन कुमार सिंह, बबलू गुप्ता, सलमान रागिब, सुबोध कुमार, दिनेश प्रसाद सिंह, हरिनारायण चौधरी, दिलीप जायसवाल, अशोक अग्रवाल, संजय प्रसाद, नूतन सिंह, सुमन कुमार, आदित्य नारायण पांडे और राजेश राम.
इन सीटों के खाली होने के कारण भाजपा के पहले 26 विधान पार्षद थे लेकिन अब घटकर केवल 15 रह गए हैं. वहीं जदयू के 29 विधान पार्षद थे जो घटकर 23 रह गए हैं. जदयू प्रवक्ता निखिल मंडल का कहना है कि हम लोग चाहते है कि अधिक से अधिक पार्टी के कार्यकर्ता पंचायत चुनाव में जीत कराएं. इससे पार्टी को मजबूती मिलेगी और आगे आने वाले एमएलसी के चुनाव में मदद मिलेगा.
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वहीं, बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल का कहना है कि दलीय आधार पर चुनाव भले ना हो लेकिन हम लोगों की ख्वाहिश है कि अधिक से अधिक पार्टी के कार्यकर्ता इसमें पार्टिसिपेट करें और अच्छे कार्यकर्ताओं को पार्टी सपोर्ट भी करेगी.
ऐसे तो आरजेडी की तरफ से भी पूरी कोशिश हो रही है कि पंचायत चुनाव में अधिक से अधिक उसके कार्यकर्ता जीत कर आएं, जिससे विधान परिषद में अपनी उपस्थिति मजबूत करा सकें.
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बता दें कि पंचायत चुनाव दिसंबर तक चलेगा और उसके बाद है स्थानीय प्राधिकार से चुने जाने वाले विधान पार्षदों के लिए चुनाव संभव हो पाएगा. जब भी चुनाव होगा, पंचायत जनप्रतिनिधियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. यही कारण है कि सभी दल अधिक से अधिक अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को त्रिस्तरीय चुनाव के माध्यम से पंचायत में भेजने की कोशिश कर रहे हैं.