पटना: भारत का तेरहवां सबसे बड़ा राज्य, संस्कृति परंपरा और इतिहास में अपना दबदबा रखने वाला बिहार आज कई समस्याओं से घिरा है. इतिहास के हर काल में अलग-अलग पहलुओं को जीने वाला बिहार वर्तमान समय में परेशानियों के टीले पर खड़ा है. प्राकृतिक, मानरचित और राजनीतिक मुश्किलों के दलदल में फंसा बिहार इस वक्त की तीन सबसे बड़ी समस्याओं को झेल रहा है.
'50 % आबादी होगी कोरोना की चपेट में'
बिहार में इस वक्त कोरोना लाखों के आंकड़े को पार कर गया है. जिस तेजी से वायरस फैल रहा है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले कुछ समय में यह कितनी बड़ी तादात को संक्रमित कर देगा. कुछ मेडिकल रिपोर्ट्स के मुताबिक नवंबर तक भारत की 50 प्रतिशत आबादी कोरोना की चपेट में होगी. इससे स्वत: ज्ञात हो सकता है कि बिहार का क्या हाल होगा? जब कोई देश या पूरी दुनिया इस तरह के हालात से गुजरती है तो सवाल उठते हैं. कभी-कभी सरकारें दौर से उभरने के बाद सबक लेती हैं. इसलिए इस स्थिति में कुछ सवाल हैं जो लाजिम हैं-
- देश में कोरोना के दाखिले के बाद बिहार सरकार ने क्या किया?
- कोरोना से पहली मौत के बाद सरकार ने इसे कितनी गंभीरता से लिया?
- कोरोना जांच पर सवाल क्यों उठते रहे?
- बिहार सरकार ने अस्पतालों में क्या व्यवस्था की?
- कितनी तेजी से क्वारंटाइन सेंटर और आइसोलेशन वार्ड का निर्माण करवाया?
- अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों की सुविधा के लिए क्या कदम उठाए गए?
- प्रतिदिन राज्य भर में कितने सैंपल लिए गए?
- लोगों में जागरूकता कितने प्रभावशाली तरीके से फैलाई गई?
- महामारी से लोगों की सुरक्षा के लिए क्या उपाय किए गए?
- अंत में सबसे अहम कि ऐन मौके पर स्वास्थ्य विभाग के सचिव बदल दिए गए जिससे नया सेनापति आने से परेशानी और भी बढ़ीं.
चीख रहा था वुहान, भारत में धरने पर थे डॉक्टर
वो मामला शायद आपमें से कइयों को याद हो जब बिहार के मुंगेर में दुबई से लौटे एक शख्स की आंत के इंफेक्शन से मौत हो गई थी. दरअसल वो कोरोना पॉजिटिव था. 21 मार्च को यह कोरोना से भारत में होने वाली छठी मौत थी. लेकिन इसका पता लगाने में काफी देर हो गई. जब वुहान से निकली चीखें भारत तक खतरे का संदेश पहुंचा रही थीं और फरवरी में पहला कोरोना का केस भारत में दाखिल भी हो चुका था, तब बिहार के स्वास्थ्य तंत्र में गंभीरता की कमी थी और डॉक्टर पीपीई किट की लड़ाई लड़ रहे थे.
भगवान भरोसे जीवन!
अगर नीतीश सरकार ने पहले ही तत्परता दिखाई होती तो शायद इस हालात को खत्म तो नहीं मगर थामा जरूर जा सकता था. हालांकि इन सबके बावजूद अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो बिहार में कोरोना से मरने वालों की संख्या अन्य समतुल्य राज्यों की अपेक्षा कमतर है और रिकवरी रेट बेहतर.
- 30 अप्रैल तक कुल 22,672 सैम्पल की हुई जांच
- कुल 84 मरीज ठीक हुए
- 409 केस पॉजिटिव
- 31 मई तक कुल 75,737 सैम्पल की जांच
- कुल 1520 मरीज हुए ठीक
- 3692 केस पॉजिटिव
- 30 जून तक कुल 2,20,890 सैम्पल की जांच
- कुल 7544 मरीज हुए ठीक
- एक्टिव मरीजों की संख्या 2132
- कोरोना मरीजों का रिकवरी प्रतिशत 77
- 31 जुलाई कुल 22742 सैम्पल की जांच
- कुल 33650 मरीज स्वस्थ
- एक्टिव मरीजों की संख्या 17038
- रिकवरी प्रतिशत 66.00
- 28 अगस्त 1,04,473 सैम्पल की जांच
- कुल 1,09,696 मरीज हुए ठीक
- एक्टिव केस 18,491
- रिकवरी रेट 85.13
- 10 सितंबर 1,22,121 सैम्पल की जांच
- कुल 1,35,791 मरीज हुए ठीक
- एक्टिव केस 15,625
- रिकवरी प्रतिशत 89.22
एक नजर प्रवासियों पर
अब चलते हैं प्रवासियों की तरफ. ऐसा नहीं है कि राज्य में काम का संकट केवल लॉकडाउन औरप्रवासियों के आने के बाद से ही शुरु हुआ है. यह पहले से है. इनकी खबरें खूब छपीं जिसके बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने खुद संज्ञान लेते हुए कहा कि सभी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन किया जाए और आज से 15 दिनों के अंदर सभी को उनके घर भेजा जाए. उनका डेटा इकट्ठा किया जाए, जो गांव और ब्लाक स्तर पर हो. साथ ही उनके स्किल की मैपिंग रोजगार दिया जाए.
70 लाख प्रवासियों कैसे आंचल में छांव देगा बिहार?
बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 21 लाख से अधिक लोगों को नई दिल्ली के बिहार भवन स्थित कंट्रोल रूम से मदद की गई है. लगभग 22 लाख लोग श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आए हैं. इनमें अन्य साधनों को जोड़ दें तो लगभग 70 लाख प्रवासी लौटे हैं और लौटना अभी भी बदस्तूर जारी है, जिनका आंकड़ा खुद सरकार के पास भी नहीं है.
विपक्ष का लगातार हमला
विपक्षी नेता तेजस्वी ने कहा है कि बिहार में बेरोजगारी दर सबसे अधिक है जो 46.6% है. इतनी अधिक बेरोजगारी दर का अर्थ है कि बिहार का लगभग हर दूसरा युवा बेरोजगार है. बयान में तेजस्वी ने कहा कि 18 से 35 वर्ष की आयु सीमा में बेरोजगारी दर इससे भी अधिक है.
लीपापोती में लगे सरकारी मंत्री
श्रम मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि स्किल सर्वे कर तक पांच लाख से अधिक लोगों को काम मिल भी चुका है. 50 लाख श्रमिकों को रोजगार देने की कार्य योजना है. इनमें से 30 लाख प्रवासियों के लिए विशेष प्लान है. मनरेगा, जल-जीवन-हरियाली और कृषि आधारित काम दिया जा रहा है.
ये है मनरेगा की सच्चाई-
लेकिन हम मनरेगा पर गौर करें तो दयनीय स्थिति उजागर होगी. पिछले वित्तीय वर्ष में बिहार के केवल 20 हजार मजदूरों को ही 100 दिन काम मिल पाया है. इस बार केंद्र सरकार की तरफ से मनरेगा का बजट कहने के लिए 40 हजार करोड़ रुपए बढ़ा दिया गया है, जो कि पहले 61 हजार पांच सौ करोड़ रुपए था. कुल एक लाख एक हजार पांच सौ करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. अगर इस राशि को प्रतिदिन की मजदूरी की दर जो कि 202 रुपए है से बांट दें तो केंद्र सरकार के बजट के हिसाब से 502 करोड़ दिन काम होगा.
17 दिनों का काम, कैसे हो जलपान?
मनरेगा के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि भारत में मजदूरों की कुल संख्या 48 करोड़ है. इसमें 10 फीसदी ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में काम करते हैं और 10 फीसदी अन-ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में नियमित वेतन पर काम करने वाले हैं. बाकी बचे 38 करोड़ में आठ फीसदी लोग स्वरोजगार के क्षेत्र में हैं. आदर्श रूप में देखें तो मनरेगा जैसी योजना अंतिम में बच गए 30 करोड़ मजदूरों के लिए ही बनी है. और इन 30 करोड़ मजदूरों के लिए सरकार ने 502 करोड़ दिन काम करने के लिए पैसा आवंटित किया है. एक मजदूर के लिए लगभग 17 दिनों का काम है.
वैकेंसी तो है मगर भर्ती नहीं
यह सोचने वाली बात है कि 202 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 17 दिन काम करके किसी मजदूर का गुजारा हो सकता है? मनरेगा के आंकड़ों से ही स्पष्ट हो जाता है कि मजदूरों के लिए काम का संकट कितना अधिक है. वहीं, सरकारी नौकरियों का हाल तो और भी बदतर है. बीपीएससी, सीएसबीसी, स्टेट हेल्थ सोसायटी (एएनएम), रेलवे और टीचर ऐसी न जाने कितने ही विभाग हैं जहां वैकेंसी तो है मगर भर्ती नहीं.
एक नजर बाढ़ पर
अब रुख करते हैं बाढ़ की तरफ. बिहार बाढ़ की विभीषिका आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से झेल रहा है. अब ये सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं मानव रचित आफत बन चुकी है. इसे रोकने के लिए सरकार ने क्या क्या कदम उठाए इस पर सवाल उठाना भी लाजिम है.
नेपाल की बाढ़ भारत में बनी काल
वैसे तो बिहार में बाढ़ आने के कई कारण हैं, लेकिन मुख्य कारण बिहार की भौगोलिक परिस्थितियों को माना जाता है. बिहार के उत्तर में नेपाल का पहाड़ी क्षेत्र है, जहां वर्षा होने पर पानी नारायणी, बागमती और कोसी जैसी नदियों में जाता है. ये नदियां बिहार से होकर गुजरती हैं. नेपाल की बाढ़ भारत में भी बाढ़ का कारण बनती है. लेकिन सरकारी स्तर पर इसे कैसे टाला जा सकता है यह मायने रखता है.
75 लाख से अधिक आबादी प्रभावित
इस बार की बाढ़ में 24 लोगों की मौत की खबर सामने आई. 16 जिले के 75 लाख दो हजार, 621 लोग प्रभावित हुए हैं. आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार 62,000 से ज्यादा लोगों के प्रभावित क्षेत्रों में पानी घुस गया, जिससे पीड़ितों की संख्या 75 लाख से अधिक हो गई. सीतामढ़ी, शिवहर, सुपौल, किशनगंज, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, पूर्वी चम्पारण बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. इसके अलावा पश्चिम चंपारण, खगड़िया, सारण, समस्तीपुर, सिवान, मधुबनी, मधेपुरा और सहरसा जिले भी बाढ़ से प्रभावित हैं.
दरभंगा में सबसे अधिक तबाही
इन जिलों के 125 प्रखंडों की 1232 पंचायतों में 75 लाख से अधिक आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई है. बाढ़ के कारण विस्थापित हुए लोगों को भोजन कराने के लिए 1267 सामुदायिक रसोई की व्यवस्था की गई है. दरभंगा जिला में सबसे अधिक 15 प्रखंडों की 220 पंचायतों में 20 लाख से अधिक की आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई है. बिहार के बाढ़ प्रभावित इन जिलों में बचाव और राहत कार्य चलाए जाने के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की कुल 33 टीमों की तैनाती की गईं.
आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक, 66 जानवर भी बाढ़ के कारण अपनी जान गवां चुके हैं. जानकारी के मुताबिक, 12,479 लोगों को राहत शिविर में पहुंचाया गया है.
इन सभी मामलों पर आम से लेकर बुद्धीजीवियों तक का मानना है कि सरकार का ढुलमुल रवैया भी इन त्रासदियों के लिए जिम्मेदार है.