पटना: बिहार सरकार विश्व बैंक से लेकर जापान की जाइका और हुडको सहित विभिन्न बैंकों से अपनी योजनाओं के लिए कर्ज ले रही है. आरबीआई एजी और राज्य सरकार के स्त्रोतों की मानें तो बिहार देश के सबसे अधिक कर्ज लेने वाले राज्यों में शामिल हो (Bihar is most loan taking states) गया है. बिहार का कर्ज हर साल बढ़ रहा है. 2021-22 में 2 लाख 59 हजार करोड़ बिहार पर कर्ज था जो 2022-23 में बढ़कर 2 लाख 85 हजार करोड़ होने का अनुमान लगाया जा रहा है.
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"वृहत योजनाओं के लिए विश्व बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों से कर्ज लिया जाता है. क्योंकि बिहार को जिस प्रकार से केंद्र से मदद मिलनी चाहिए वह अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है और इसलिए बिहार कुछ ज्यादा ही कर्ज लेने के लिए मजबूर हैं. हम लोग तो इसीलिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग करते रहे हैं"- जयंत राज, मंत्री
कर्ज में कितना बढ़ोतरीः बिहार के कुल कर्ज में हर साल 10% के आसपास बढ़ोतरी हो रही है, जबकि राजस्व की बात करें तो 5% के आसपास इजाफा हो रहा है. बिहार के जीडीपी का कुल कर्ज 38.6% तक पहुंच गया है. बढ़ते कर्ज के कारण हर साल बिहार को सूद के रूप में बड़ी राशि चुकानी पड़ रही है. 3 साल पहले तक बिहार के प्रत्येक व्यक्ति पर कर्ज 12 से 13 हजार था लेकिन अब यह बढ़कर 15 हजार से 16 हजार के करीब पहुंच गया है. 2022- 23 के बजट में कर्ज का सूद चुकाने के लिए 16305 करोड़ का प्रावधान करना पड़ा यानी हर दिन कर्ज का सूद 45 करोड़ का वहन सरकार कर रही है.
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किन योजनाओं पर हो रहा कामः कर्ज लेने के लिये केंद्र की ओर से तय की गई की राशि वित्तीय वर्ष में 27670 करोड़ है. हालांकि बिहार सरकार की ओर से केंद्र से कर्ज लेने की सीमा बढ़ाने की मांग भी हो रही है. बिहार सरकार कई योजनाओं के लिए विभिन्न बैंकों एजेंसियों और विश्व बैंक से भी कर्ज ले रही है. पटना मेट्रो के लिए बिहार सरकार जापान इंटरनेशनल कॉरपोरेशन एजेंसी (जाइका) से 5400 करोड़ कर्ज ले रही है. पटना के गंगा किनारे बन रहे गंगा एक्सप्रेसवे के लिए हाउसिंग एंड अर्बन डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड( हुडको) से दो हजार करोड़ कर्ज ले रही है. गंगा पर ताजपुर से बख्तियारपुर तक बन रहे पुल के लिए भी बैंक से कर्ज ले रही है.
कर्ज लेना मजबूरीः विश्व बैंक से बिहार सरकार पंचायत सरकार भवन, जीविका, मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना, कोसी बेसिन विकास परियोजना, शिक्षक प्रशिक्षण सहित कई योजनाओं के लिए कर्ज ले रही है. वहीं केंद्र सरकार की योजनाओं को पूरा करने के लिए भी बिहार सरकार को कर्ज लेना मजबूरी हो गया है. इसी वित्तीय वर्ष की बात करें तो बिहार के बजट का केंद्रीय करों से सिर्फ 3।% हिस्सा बिहार को मिलेगा 45% राजस्व बिहार सरकार जुटाएगी. शेष जो राशि बजट का बच जाएगा वह कर्ज के रूप में प्राप्त करेगी.
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बिहार का कर्ज कितनाः बिहार का जीडीपी 2006-7 में एक लाख करोड़ था जो 2010-11 में दो लाख करोड़ और 2014-15 में 4 लाख करोड़ तक पहुंच गया. 2019-20 में 5.73 करोड़ और 2020-21 में 6.86 लाख करोड़ तक पहुंच गया है. वहीं 2021-22 में 7.57 लाख करोड़ है. बढ़ते जीडीपी के अनुपात में कर्ज भी लगातार बढ़ रहा है, लेकिन राजस्व में बढ़ोतरी उस ढंग से नहीं हो रही है. देश के सर्वाधिक कर्ज लेने वाले राज्यों में बिहार 10 वें स्थान पर शामिल हो गया है. कुल जीडीपी का बिहार का कर्ज 38. 6% तक पहुंच गया है.
सरकार क्यों लेती है कर्जः बिहार के अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी के अनुसार यदि कर्ज उन योजनाओं में लगाए जा रहा है, जिससे लाभ मिलेगा तब तो सही है. इसलिए राज्य सरकारें कर्ज लेती है और ब्याज भी चुकाती हैं. लेकिन, एक अनुपात के बाद यदि कर्ज बढ़ता है तो बजट पर वह बोझ बन जाता है. केंद्र और राज्य की बजट को देखें तो एक बड़ा हिस्सा सूद अदायगी में देना पड़ रहा है. नवल चौधरी का यह भी कहना है कि बिहार उसी स्थिति में आ गया है जहां अब कर्ज नहीं लेना चाहिए.
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"एक अनुपात के बाद यदि कर्ज बढ़ता है तो बजट पर वह बोझ बन जाता है. केंद्र और राज्य की बजट को देखें तो एक बड़ा हिस्सा सूद अदायगी में देना पड़ रहा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी श्रीलंका और पाकिस्तान की स्थिति को देखा जा सकता है जिनकी अर्थव्यवस्था कर्ज के कारण तबाह हो गयी"- नवल किशोर चौधरी, अर्थशास्त्री
"बिहार सहित देश के कई राज्यों पर कर्ज को लेकर स्ट्रेस है. बिहार सरकार को राजस्व उगाही पर ध्यान देना चाहिए और इसके लिए उन क्षेत्रों का चयन करना चाहिए जहां टैक्स अभी नहीं लिया जा रहा है. साथ ही स्माल इंडस्ट्रीज क्लस्टर बनाने पर भी जोर देना चाहिए जिससे निवेशक आकर्षित हो सके और बिहार को राजस्व प्राप्त हो सके"- डॉक्टर विद्यार्थी विकास, विशेषज्ञ, ए एन सिन्हा इंस्टीट्यूट
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राजस्व उगाही पर ध्यान देना चाहिए: अर्थशास्त्री यह भी कहते हैं कि कर्ज से बचने का सबसे अच्छा उपाय है बजट में राजस्व प्राप्ति और खर्च को लेकर तालमेल हो. बड़े पैमाने पर निवेशकों को आकर्षित किया जाए जिससे आर्थिक गतिविधियां बढ़ेगी और बिहार को राजस्व भी बढ़ेगा. साथ ही अनुपयोगी योजनाओं पर खर्च कम करने की जरूरत है. एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के विशेषज्ञ डॉक्टर विद्यार्थी विकास का कहना है बिहार सहित देश के कई राज्यों पर कर्ज को लेकर स्ट्रेस है. बिहार सरकार को राजस्व उगाही पर ध्यान देना चाहिए और इसके लिए उन क्षेत्रों का चयन करना चाहिए जहां टैक्स अभी नहीं लिया जा रहा है. साथ ही स्माल इंडस्ट्रीज क्लस्टर बनाने पर भी जोर देना चाहिए जिससे निवेशक आकर्षित हो सके और बिहार को राजस्व प्राप्त हो सके.
ये है चुनौतियांः बिहार सरकार के लिए कई बड़ी चुनौतियां हैं. सात निश्चय योजनाओं को जमीन पर उतारना है. कृषि रोड मैप को लागू करने में भी बड़ी राशि खर्च होगी. साथ ही सरकार ने 10 लाख नौकरी और 10 लाख रोजगार देने का वादा भी किया है. इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भी बड़ी योजनाओं पर राशि खर्च करनी है. इन सब के लिए राशि की व्यवस्था करनी होगी जो बिना कर्ज लिए संभव नहीं है.
शराबबंदी से राजस्व को नुकसानः बिहार के लिए बढ़ते कर्ज इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि बिहार में निवेश बहुत बड़े पैमाने पर नहीं हो रहा है. केंद्र सरकार की ओर से जो योजनाएं चल रही हैं उसमें राज्य की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है और उस राशि को जुटाना भी बिहार सरकार के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है. बिहार का राजस्व भी बहुत ज्यादा नहीं बढ़ रहा है और यह सबसे चिंताजनक स्थिति है. शराबबंदी के बाद बिहार को राजस्व का एक बड़ा नुकसान हुआ है, ऐसे में कर्ज आगे और बढ़ता गया. आर्थिक विशेषज्ञ साफ कह रहे हैं कि बिहार के लिए मुश्किलें बढ़ेगी.