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राजनीतिक दलों को सबक सिखा गया बिहार उपचुनाव

बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का 'सेमीफाइनल' माने जाने वाले उपचुनाव के नतीजे ने न केवल परिवारवाद को काफी हद तक नकार दिया.

सीएम नीतीश कुमार
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Published : Oct 28, 2019, 8:35 AM IST

पटना: बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का 'सेमीफाइनल' माने जाने वाले उपचुनाव के नतीजे ने न केवल परिवारवाद को काफी हद तक नकार दिया, बल्कि सत्ताधारी गठबंधन, विपक्षी दल के महागठबंधन और सभी राजनीतिक दलों को भी कई सबक दे गया.

परिवारवाद के खिलाफ स्पष्ट संदेश
राज्य के पांच विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में मतदाताओं ने पिछले लोकसभा चुनाव में संसद पहुंचने वाले तीन सांसदों के परिवारों को पूरी तरह नकार कर परिवारवाद के खिलाफ स्पष्ट संदेश सुना दिया. दीगर बात है कि साथ में समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में सहानुभूति की लहर पर सवार दिवंगत सांसद रामचंद्र पासवान के पुत्र प्रिंस राज संसद पहुंचने में कामयाब हो सके.

किशनगंज में कांग्रेस को जनता ने नकारा

किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने अपने लोकसभा सदस्य मोहम्मद जावेद की मां सईदा बानो को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन मतदाताओं ने उन्हें पूरी तरह नकार दिया और उन्हें तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा. यह सीट जावेद के सांसद बनने के बाद ही रिक्त हुई थी.

JDU की सीट पर RJD की जीत

पिछले लोकसभा चुनाव में बांका लोकसभा सीट से विजयी जद (यू) के नेता गिरधारी यादव के सांसद बन जाने के बाद रिक्त हुई बेलहर विधानसभा सीट से जद (यू) ने इस उपचुनाव में उनके भाई लालधारी यादव पर दांव लगाया. लेकिन परिवारवाद की खिलाफत करने वाले जद (यू) के लिए यहां परिवारवाद का दांव खुद के लिए उलटा पड़ा गया. लालधारी को यहां हार का मुंह देखना पड़ा. जद (यू) की कब्जे वाली इस सीट पर राजद के प्रत्याशी रामदेव यादव विजयी हुए.

सीवान में भी JDU की हार

सीवान की दरौंदा विधानसभा सीट पर कविता सिंह के पति और जद (यू) के नेता अजय सिंह को भी हार का मुंह देखना पड़ा. दरौंदा की विधायक कविता सिंह के सांसद बनने के बाद दरौंदा सीट पर हुए उपचुनाव में जद(यू) के नेता अजय सिंह को निर्दलीय प्रत्याशी करमवीर सिंह उर्फ व्यास सिंह ने हरा दिया.

NDA को पड़ा भारी

इस उपचुनाव के परिणाम ने जहां परिवारवाद को नकार दिया, वहीं दोनों गठबंधनों को भी कई संकेत दे गया. दरौंदा सीट पर भाजपा के सीवान जिला उपाध्यक्ष रहे करमवीर सिंह को टिकट नहीं देकर सांसद के पति अजय सिंह को टिकट देना राजग के लिए नुकसानदेह साबित हुआ.

चुनाव से तीन दिन पहले भाजपा ने करमवीर को निलंबित भी कर दिया, लेकिन मतदाताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी को पसंद कर यह स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की कि काम करने वाले नेताओं को पार्टी जब दरकिनार करेगी, तब मतदाता उसे सबक भी सिखा सकते हैं.

किशनगंज में बदला जनता का मत

किशनगंज विधानसभा उपचुनाव में भी यही कुछ देखने को मिला. यहां भी एक कांग्रेसी नेता बगावत कर चुनावी मैदान में उतरे और कांग्रेस की हार का कारण बने. नाथनगर में राजद प्रत्याशी को करीब पांच हजार वोटों से मिली हार से यह भी साफ हो गया कि राजद अपने सहयोगी दलों को दरकिनार कर सफल होने का मंसूबा नहीं पाले. अगर यहां महागठबंधन मिलकर चुनाव लड़ी होती और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा साथ होती तो दोनों के मतों के साथ मिलने के बाद परिणाम कुछ और होता.

बहरहाल, इस उपचुनाव को भले ही अगले वर्ष होने वाले चुनाव का सेमीफाइनल मानने में कुछ लोग हिचकते हों, लेकिन यह तो सच है कि यह उपचुनाव दोनों गठबंधनों को सबक दे गया.

पटना: बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का 'सेमीफाइनल' माने जाने वाले उपचुनाव के नतीजे ने न केवल परिवारवाद को काफी हद तक नकार दिया, बल्कि सत्ताधारी गठबंधन, विपक्षी दल के महागठबंधन और सभी राजनीतिक दलों को भी कई सबक दे गया.

परिवारवाद के खिलाफ स्पष्ट संदेश
राज्य के पांच विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में मतदाताओं ने पिछले लोकसभा चुनाव में संसद पहुंचने वाले तीन सांसदों के परिवारों को पूरी तरह नकार कर परिवारवाद के खिलाफ स्पष्ट संदेश सुना दिया. दीगर बात है कि साथ में समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में सहानुभूति की लहर पर सवार दिवंगत सांसद रामचंद्र पासवान के पुत्र प्रिंस राज संसद पहुंचने में कामयाब हो सके.

किशनगंज में कांग्रेस को जनता ने नकारा

किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने अपने लोकसभा सदस्य मोहम्मद जावेद की मां सईदा बानो को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन मतदाताओं ने उन्हें पूरी तरह नकार दिया और उन्हें तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा. यह सीट जावेद के सांसद बनने के बाद ही रिक्त हुई थी.

JDU की सीट पर RJD की जीत

पिछले लोकसभा चुनाव में बांका लोकसभा सीट से विजयी जद (यू) के नेता गिरधारी यादव के सांसद बन जाने के बाद रिक्त हुई बेलहर विधानसभा सीट से जद (यू) ने इस उपचुनाव में उनके भाई लालधारी यादव पर दांव लगाया. लेकिन परिवारवाद की खिलाफत करने वाले जद (यू) के लिए यहां परिवारवाद का दांव खुद के लिए उलटा पड़ा गया. लालधारी को यहां हार का मुंह देखना पड़ा. जद (यू) की कब्जे वाली इस सीट पर राजद के प्रत्याशी रामदेव यादव विजयी हुए.

सीवान में भी JDU की हार

सीवान की दरौंदा विधानसभा सीट पर कविता सिंह के पति और जद (यू) के नेता अजय सिंह को भी हार का मुंह देखना पड़ा. दरौंदा की विधायक कविता सिंह के सांसद बनने के बाद दरौंदा सीट पर हुए उपचुनाव में जद(यू) के नेता अजय सिंह को निर्दलीय प्रत्याशी करमवीर सिंह उर्फ व्यास सिंह ने हरा दिया.

NDA को पड़ा भारी

इस उपचुनाव के परिणाम ने जहां परिवारवाद को नकार दिया, वहीं दोनों गठबंधनों को भी कई संकेत दे गया. दरौंदा सीट पर भाजपा के सीवान जिला उपाध्यक्ष रहे करमवीर सिंह को टिकट नहीं देकर सांसद के पति अजय सिंह को टिकट देना राजग के लिए नुकसानदेह साबित हुआ.

चुनाव से तीन दिन पहले भाजपा ने करमवीर को निलंबित भी कर दिया, लेकिन मतदाताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी को पसंद कर यह स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की कि काम करने वाले नेताओं को पार्टी जब दरकिनार करेगी, तब मतदाता उसे सबक भी सिखा सकते हैं.

किशनगंज में बदला जनता का मत

किशनगंज विधानसभा उपचुनाव में भी यही कुछ देखने को मिला. यहां भी एक कांग्रेसी नेता बगावत कर चुनावी मैदान में उतरे और कांग्रेस की हार का कारण बने. नाथनगर में राजद प्रत्याशी को करीब पांच हजार वोटों से मिली हार से यह भी साफ हो गया कि राजद अपने सहयोगी दलों को दरकिनार कर सफल होने का मंसूबा नहीं पाले. अगर यहां महागठबंधन मिलकर चुनाव लड़ी होती और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा साथ होती तो दोनों के मतों के साथ मिलने के बाद परिणाम कुछ और होता.

बहरहाल, इस उपचुनाव को भले ही अगले वर्ष होने वाले चुनाव का सेमीफाइनल मानने में कुछ लोग हिचकते हों, लेकिन यह तो सच है कि यह उपचुनाव दोनों गठबंधनों को सबक दे गया.

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बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का 'सेमीफाइनल' माने जाने वाले उपचुनाव के नतीजे ने न केवल परिवारवाद को काफी हद तक नकार दिया.राजनीतिक दलों को सबक सिखा गया बिहार उपचुनाव



राजनीतिक दलों को सबक सिखा गया बिहार उपचुनाव



पटना: बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का 'सेमीफाइनल' माने जाने वाले उपचुनाव के नतीजे ने न केवल परिवारवाद को काफी हद तक नकार दिया, बल्कि सत्ताधारी गठबंधन, विपक्षी दल के महागठबंधन और सभी राजनीतिक दलों को भी कई सबक दे गया.



राज्य के पांच विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में मतदाताओं ने पिछले लोकसभा चुनाव में संसद पहुंचने वाले तीन सांसदों के परिवारों को पूरी तरह नकार कर परिवारवाद के खिलाफ स्पष्ट संदेश सुना दिया. दीगर बात है कि साथ में समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में सहानुभूति की लहर पर सवार दिवंगत सांसद रामचंद्र पासवान के पुत्र प्रिंस राज संसद पहुंचने में कामयाब हो सके.



किशनगंज विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने अपने लोकसभा सदस्य मोहम्मद जावेद की मां सईदा बानो को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा था, लेकिन मतदाताओं ने उन्हें पूरी तरह नकार दिया और उन्हें तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा. यह सीट जावेद के सांसद बनने के बाद ही रिक्त हुई थी.



पिछले लोकसभा चुनाव में बांका लोकसभा सीट से विजयी जद (यू) के नेता गिरधारी यादव के सांसद बन जाने के बाद रिक्त हुई बेलहर विधानसभा सीट से जद (यू) ने इस उपचुनाव में उनके भाई लालधारी यादव पर दांव लगाया. लेकिन परिवारवाद की खिलाफत करने वाले जद (यू) के लिए यहां परिवारवाद का दांव खुद के लिए उलटा पड़ा गया. लालधारी को यहां हार का मुंह देखना पड़ा. जद (यू) की कब्जे वाली इस सीट पर राजद के प्रत्याशी रामदेव यादव विजयी हुए.



सीवान की दरौंदा विधानसभा सीट पर कविता सिंह के पति और जद (यू) के नेता अजय सिंह को भी हार का मुंह देखना पड़ा. दरौंदा की विधायक कविता सिंह के सांसद बनने के बाद दरौंदा सीट पर हुए उपचुनाव में जद(यू) के नेता अजय सिंह को निर्दलीय प्रत्याशी करमवीर सिंह उर्फ व्यास सिंह ने हरा दिया.



इस उपचुनाव के परिणाम ने जहां परिवारवाद को नकार दिया, वहीं दोनों गठबंधनों को भी कई संकेत दे गया. दरौंदा सीट पर भाजपा के सीवान जिला उपाध्यक्ष रहे करमवीर सिंह को टिकट नहीं देकर सांसद के पति अजय सिंह को टिकट देना राजग के लिए नुकसानदेह साबित हुआ.



चुनाव से तीन दिन पहले भाजपा ने करमवीर को निलंबित भी कर दिया, लेकिन मतदाताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी को पसंद कर यह स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की कि काम करने वाले नेताओं को पार्टी जब दरकिनार करेगी, तब मतदाता उसे सबक भी सिखा सकते हैं.



किशनगंज विधानसभा उपचुनाव में भी यही कुछ देखने को मिला. यहां भी एक कांग्रेसी नेता बगावत कर चुनावी मैदान में उतरे और कांग्रेस की हार का कारण बने.



नाथनगर में राजद प्रत्याशी को करीब पांच हजार वोटों से मिली हार से यह भी साफ हो गया कि राजद अपने सहयोगी दलों को दरकिनार कर सफल होने का मंसूबा नहीं पाले. अगर यहां महागठबंधन मिलकर चुनाव लड़ी होती और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा साथ होती तो दोनों के मतों के साथ मिलने के बाद परिणाम कुछ और होता.



बहरहाल, इस उपचुनाव को भले ही अगले वर्ष होने वाले चुनाव का सेमीफाइनल मानने में कुछ लोग हिचकते हों, लेकिन यह तो सच है कि यह उपचुनाव दोनों गठबंधनों को सबक दे गया.


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