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LJP में टूट, कांग्रेस रह पाएगी एकजुट? 13 विधायकों को अपने पाले में लाकर और ताकतवर बनना चाहते हैं नीतीश

महागठबंधन की सरकार बनाने की कोशिश में जुटे विपक्ष की मुहिम को एलजेपी में टूट के बाद झटका लगा है. खासकर कांग्रेस के सामने अपने विधायकों को एकजुट रख पाना बड़ी चुनौती होगी. कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार की नजर कांग्रेस पर है. अगर कुछ प्लानिंग के हिसाब से चलता रहा तो कभी भी खेल हो सकता है.

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Published : Jun 15, 2021, 8:49 PM IST

पटना: बिहार की राजनीति में तेजी से बदलाव हो रहे हैं. एनडीए (NDA) में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे महागठबंधन को तब झटका लगा, जब एलजेपी में टूट हो गई. इससे जहां छोटे दल सहम गए हैं, वहीं, कांग्रेस (Congress) पर भी टूट का खतरा मंडरा रहा है. माना जा रहा है कि पार्टी के कई विधायक लगातार नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के संपर्क में हैं.

ये भी पढ़ें- दिल्ली में लालू, बिहार में खेला चालू! मांझी-सहनी को साथ लेकर तेजस्वी को 'ताज' पहनाने की तैयारी

मांझी-सहनी की 'प्रेशर पॉलिटिक्स'
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में चल रही एनडीए की सरकार के पास फिलहाल 127 का संख्या बल है. जिनमें जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के 4-4 विधायक हैं. जो हाल के दिनों में अपने बयानों से सरकार के सामने मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं.

देखें रिपोर्ट

कांग्रेस पर नीतीश की नजर
नीतीश कुमार हम और वीआईपी के समर्थन से चल रही अपनी सरकार के बहुमत को 127 से बढ़ाकर मांझी और सहनी के दबाव को कम करना चाहते हैं. ऐसे में उनकी नजर कांग्रेस पर है. कांग्रेस के फिलहाल 19 एमएलए हैं.

कांग्रेस को पहले भी दिया झटका
सीएम नीतीश कुमार ने कांग्रेस को पहले भी झटका दिया है. साल 2018 में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक चौधरी समेत कांग्रेस के चार विधान पार्षदों को अपने पाले में लाने में वे सफल रहे थे. अब एक बार फिर विधायकों पर डोरे डाले जा रहे हैं.

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13 विधायक करेंगे पाला बदल!
चर्चा है कि इस दिशा में नीतीश कुमार का 'ऑपरेशन कांग्रेस' शुरू भी हो गया है. कई विधायक लगातार उनके संपर्क में हैं. हालांकि उनकी कोशिश है कि 19 में से 13 विधायकों को एक साथ अपने पाले में लाया जाए ताकि दल-बदल कानून के तहत मान्यता को लेकर कोई अड़चन न आए.

क्या कहता है दल बदल कानून?
दल बदल कानून के मुताबिक अगर किसी राजनीतिक दल के दो तिहाई से अधिक लोकसभा या विधानसभा सदस्य पार्टी से बगावत करके अलग गुट बना लेते हैं तो उनकी सदस्यता रद्द नहीं होगी. अर्थात दो तिहाई से ज्यादा सांसद या विधायक पार्टी नेतृत्व से नाराज होकर जो भी निर्णय लेते हैं वो माना जायेगा और उन्हें ही पार्टी का औपचारिक मुखिया माना जाएगा.

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'कांग्रेस में टूट से आश्चर्य नहीं'
बीजेपी प्रवक्ता अखिलेश सिंह ने दावा किया है कि परिवार वादी दलों में बिखराव शुरू हो गया है. कांग्रेस पार्टी के अंदर भी उनके विधायक घुटन महसूस कर रहे हैं. वे लंबे समय तक वहां रहने वाले नहीं हैं. उनकी मानें तो अगर कांग्रेस में टूट हो जाती है तो यह अचरज की बात नहीं होगी.

सॉफ्ट टारगेट है कांग्रेस
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि एनडीए सरकार को स्थायित्व देने के लिए नीतीश कुमार चाहेंगे कि विधानसभा में विधायकों की संख्या बहुमत से और ज्यादा हो. ऐसे में कांग्रेस पार्टी उनके लिए सॉफ्ट टारगेट है. वे कहते हैं कि नीतीश कुमार आने वाले दिनों में कांग्रेस के कुछ विधायकों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश जरूर करेंगे, ताकि छोटे दलों का दबाव कम हो. उनके लिए ये काम बहुत मुश्किल भी नहीं है, क्योंकि पहले भी वे इस कोशिश में कुछ हदतक कामयाब रहे हैं.

टूट की संभावना से इनकार
हालांकि कांग्रेस पार्टी ऐसी किसी टूट की संभावना से इंकार करती है. प्रवक्ता राजेश राठौर कहते हैं कि नीतीश कुमार अपने मंसूबे में कामयाब होने वाले नहीं हैं. उन्होंने कहा कि पहले भी कई बार ऐसी कोशिश की गई, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. अशोक चौधरी के साथ जरूर कुछ विधान पार्षद गए, लेकिन उसके बाद का प्रयास बेकार गया.

"लोजपा में टूट के बाद सत्ता पक्ष के नेताओं की नजर कांग्रेस पर जरूर है, लेकिन हमारे विधायक पूरी तरह एकजुट हैं. कांग्रेस पार्टी में उनकी आस्था है. जो लोग सपने देख रहे हैं, उन्हें निराशा हाथ लगेगी"- राजेश राठौर, प्रवक्ता, कांग्रेस

ये भी पढ़ें- पंजे पर लगेगा तीर: RJD ने जतायी JDU में टूट की आशंका तो कांग्रेस को साधने में जुटे नीतीश

क्या है विधानसभा में दलों का गणित

  • 243 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए के पास फिलहाल 127 का संख्या बल है. जिनमें बीजेपी के 74, जेडीयू के 44, हम पार्टी के 4, वीआईपी के 4 और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन है.
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  • वहीं, महागठबंधन के पास 110 का आंकड़ा है. जिनमें आरजेडी के 75, कांग्रेस के 19 और वाम दलों के पास 16 विधायक हैं.
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  • ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के 5 विधायक हैं. जबकि जेडीयू के मेवालाल चौधरी के निधन के बाद एक सीट खाली है.
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पटना: बिहार की राजनीति में तेजी से बदलाव हो रहे हैं. एनडीए (NDA) में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे महागठबंधन को तब झटका लगा, जब एलजेपी में टूट हो गई. इससे जहां छोटे दल सहम गए हैं, वहीं, कांग्रेस (Congress) पर भी टूट का खतरा मंडरा रहा है. माना जा रहा है कि पार्टी के कई विधायक लगातार नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के संपर्क में हैं.

ये भी पढ़ें- दिल्ली में लालू, बिहार में खेला चालू! मांझी-सहनी को साथ लेकर तेजस्वी को 'ताज' पहनाने की तैयारी

मांझी-सहनी की 'प्रेशर पॉलिटिक्स'
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में चल रही एनडीए की सरकार के पास फिलहाल 127 का संख्या बल है. जिनमें जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के 4-4 विधायक हैं. जो हाल के दिनों में अपने बयानों से सरकार के सामने मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं.

देखें रिपोर्ट

कांग्रेस पर नीतीश की नजर
नीतीश कुमार हम और वीआईपी के समर्थन से चल रही अपनी सरकार के बहुमत को 127 से बढ़ाकर मांझी और सहनी के दबाव को कम करना चाहते हैं. ऐसे में उनकी नजर कांग्रेस पर है. कांग्रेस के फिलहाल 19 एमएलए हैं.

कांग्रेस को पहले भी दिया झटका
सीएम नीतीश कुमार ने कांग्रेस को पहले भी झटका दिया है. साल 2018 में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक चौधरी समेत कांग्रेस के चार विधान पार्षदों को अपने पाले में लाने में वे सफल रहे थे. अब एक बार फिर विधायकों पर डोरे डाले जा रहे हैं.

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13 विधायक करेंगे पाला बदल!
चर्चा है कि इस दिशा में नीतीश कुमार का 'ऑपरेशन कांग्रेस' शुरू भी हो गया है. कई विधायक लगातार उनके संपर्क में हैं. हालांकि उनकी कोशिश है कि 19 में से 13 विधायकों को एक साथ अपने पाले में लाया जाए ताकि दल-बदल कानून के तहत मान्यता को लेकर कोई अड़चन न आए.

क्या कहता है दल बदल कानून?
दल बदल कानून के मुताबिक अगर किसी राजनीतिक दल के दो तिहाई से अधिक लोकसभा या विधानसभा सदस्य पार्टी से बगावत करके अलग गुट बना लेते हैं तो उनकी सदस्यता रद्द नहीं होगी. अर्थात दो तिहाई से ज्यादा सांसद या विधायक पार्टी नेतृत्व से नाराज होकर जो भी निर्णय लेते हैं वो माना जायेगा और उन्हें ही पार्टी का औपचारिक मुखिया माना जाएगा.

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'कांग्रेस में टूट से आश्चर्य नहीं'
बीजेपी प्रवक्ता अखिलेश सिंह ने दावा किया है कि परिवार वादी दलों में बिखराव शुरू हो गया है. कांग्रेस पार्टी के अंदर भी उनके विधायक घुटन महसूस कर रहे हैं. वे लंबे समय तक वहां रहने वाले नहीं हैं. उनकी मानें तो अगर कांग्रेस में टूट हो जाती है तो यह अचरज की बात नहीं होगी.

सॉफ्ट टारगेट है कांग्रेस
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि एनडीए सरकार को स्थायित्व देने के लिए नीतीश कुमार चाहेंगे कि विधानसभा में विधायकों की संख्या बहुमत से और ज्यादा हो. ऐसे में कांग्रेस पार्टी उनके लिए सॉफ्ट टारगेट है. वे कहते हैं कि नीतीश कुमार आने वाले दिनों में कांग्रेस के कुछ विधायकों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश जरूर करेंगे, ताकि छोटे दलों का दबाव कम हो. उनके लिए ये काम बहुत मुश्किल भी नहीं है, क्योंकि पहले भी वे इस कोशिश में कुछ हदतक कामयाब रहे हैं.

टूट की संभावना से इनकार
हालांकि कांग्रेस पार्टी ऐसी किसी टूट की संभावना से इंकार करती है. प्रवक्ता राजेश राठौर कहते हैं कि नीतीश कुमार अपने मंसूबे में कामयाब होने वाले नहीं हैं. उन्होंने कहा कि पहले भी कई बार ऐसी कोशिश की गई, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. अशोक चौधरी के साथ जरूर कुछ विधान पार्षद गए, लेकिन उसके बाद का प्रयास बेकार गया.

"लोजपा में टूट के बाद सत्ता पक्ष के नेताओं की नजर कांग्रेस पर जरूर है, लेकिन हमारे विधायक पूरी तरह एकजुट हैं. कांग्रेस पार्टी में उनकी आस्था है. जो लोग सपने देख रहे हैं, उन्हें निराशा हाथ लगेगी"- राजेश राठौर, प्रवक्ता, कांग्रेस

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क्या है विधानसभा में दलों का गणित

  • 243 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए के पास फिलहाल 127 का संख्या बल है. जिनमें बीजेपी के 74, जेडीयू के 44, हम पार्टी के 4, वीआईपी के 4 और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन है.
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  • वहीं, महागठबंधन के पास 110 का आंकड़ा है. जिनमें आरजेडी के 75, कांग्रेस के 19 और वाम दलों के पास 16 विधायक हैं.
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  • ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के 5 विधायक हैं. जबकि जेडीयू के मेवालाल चौधरी के निधन के बाद एक सीट खाली है.
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