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भाई की मौत की कामना के बाद भटकैया के कांटे से जीभ दागती हैं बहनें, फिर लंबी उम्र की मांगती हैं दुआएं - etv bihar hindi news

भाई दूज ( Bhai Dooj 2021 ) भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है. देशभर के साथ ही बिहार में भी इस त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है. यह त्योहार गोवर्धन पूजा के अगले दिन आता है. इस बार 6 नवंबर 2021, शनिवार के दिन भाई दूज का त्योहार है. पढ़ें पूरी खबर..

bhai dooj 2021 Puja Vidhi
bhai dooj 2021 Puja Vidhi
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Published : Nov 5, 2021, 5:23 PM IST

पटना: भाई बहन के बीच अटूट रिश्ते का पर्व भाई दूज ( Bhai Dooj 2021 In Bihar ) दिवाली के 2 दिन बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक ( Tilak Timing ) लगाकर उनकी लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करती हैं. मान्यता है कि इस दिन मृत्यु के देवता यम अपनी बहन यमुना के बुलावे पर उनके घर भोजन के लिए आये थे.

यह भी पढ़ें- आज है गोवर्धन पूजा, यहां जानिए पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

कैसे करें पूजा: भाई दूज पूजा के लिए एक थाली में पूजा की सभी सामग्री रखी जाती हैं. थाली में रखी गई सामग्रियों में रोली, फल, फूल, सुपारी, चंदन, चना और मिठाई मुख्य होते हैं. भाई दूज के दिन बिहार में बहनें अपनी भाईयों को पारंपरिक तरीके से बजरी खिलाती है. बजरी को खिलाने के पीछे माना जाता है कि भाई खूब मजबूत बनता है. बहनें अपने भाईयों को पहले खूब कोसती हैं फिर अपनी जीभ पर कांटा चुभाती हैं और अपनी गलती के लिए भगवान से माफी मांगती हैं. पूजा के बाद बहनें अपने भाईयों को रोली का टीका लगाकर प्रसाद और मिठाई खिलाती हैं. इसके बाद भाई अपनी बहन को आशर्वाद देते हैं. इसके पीछे यह मान्यता है कि यम द्वितीया के दिन भाइयों को गालियां व श्राप देने से उन्हें यम (मृत्यु) का भय नहीं रहता है.

यह भी पढ़ें- Diwali 2021: शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी माता की पूजा करने से होगा दोगुना लाभ

यह भी पढ़ें- सिंगापुर में भी गूंज रहे छठी मईया के गीत, सात समंदर पार आकर भी नहीं भूले अपनी संस्कृति

पौराणिक मान्यताएं हैं कि इस मौके पर भाई-बहन को सुबह स्नान कर लेना चाहिए. उसके बाद बहनों को अपनी भाईयों के लिए ईष्ट देवता की पूजा करनी चाहिए. जो चावल के आटे से चौक तैयार किया जाता है. इसपर भाई को बिठाया जाता है. इसके बाद भाई की हथेलियों पर चावल का घोल लगाया जाता है. फिर भाई के ऊपर कद्दु का फूल, सुपारी, द्रव्य आदि लेकर धीरे-धीरे हाथों से पानी छोड़ा जाता है.

शुभ मुहूर्त में करें पूजा: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन भाई को तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से दोपहर 3 बजकर 21 मिनट तक है. शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 2 घंटे 11 मिनट की बताई जा रही है.

गोधन कूटने की परंपरा: इस दिन गोधन कूटने की प्रथा भी है. गोबर की मानव मूर्ति बना कर छाती पर ईंट रखकर बहनें उसे मूसलों से तोड़ती हैं. फिर भाई दूज की कथा सुनी जाती है. भाईयों को जी भरकर कोसा जाता है. उनकों मरने का श्राप दिया जाता है. उसके बाद बहनें अपनी जीभ पर भटकैया के कांटे से दागती भी हैं. इस दौरान बहनें कहती हैं कि जिस जीभ से भाई को कोसा, गालियां दीं, मरने की कामना की, उसी जीभ को कांटे से दाग रही हूं.मान्यता के मुताबिक ऐसा करने से भाईयों की आयु लंबी होती है. इसके पीछे एक प्राचीन कहानी है. राजा पृथु के पुत्र की शादी थी. उसने अपनी विवाहिता पुत्री को भी बुलाया. दोनों भाई बहन में खूब स्नेह था. जब बहन भाई की शादी में शामिल होने आ रही थी, तो रास्ते में उसने एक कुम्हार दंपति को बातें सुना. वे कह रहे थे कि राजा कि बेटी ने अपने भाई को कभी गाली नहीं दी है. वह बारात के दिन मर जाएगा. यह सुनते ही बहन अपने भाई को कोसते हुए घर गई.

बारात निकलते वक्त रास्ते में सांप, बिच्छू जो भी बाधा आती उसे मारते हुए अपने आंचल में डालते गई. वह घर लौटी तो वहां यमराज पहुंच गए. भाई के प्रति बहन के स्नेह को देखकर यमराज प्रसन्न हुए और कहा कि यम द्वितीया के दिन बहन अपने भाई को गाली व श्राप दे, तो भाई को मृत्यु का भय नहीं रहेगा. कहते हैं इसी दिन से भाई दूज पर्व की शुरुआत हुई.

पटना: भाई बहन के बीच अटूट रिश्ते का पर्व भाई दूज ( Bhai Dooj 2021 In Bihar ) दिवाली के 2 दिन बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक ( Tilak Timing ) लगाकर उनकी लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करती हैं. मान्यता है कि इस दिन मृत्यु के देवता यम अपनी बहन यमुना के बुलावे पर उनके घर भोजन के लिए आये थे.

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कैसे करें पूजा: भाई दूज पूजा के लिए एक थाली में पूजा की सभी सामग्री रखी जाती हैं. थाली में रखी गई सामग्रियों में रोली, फल, फूल, सुपारी, चंदन, चना और मिठाई मुख्य होते हैं. भाई दूज के दिन बिहार में बहनें अपनी भाईयों को पारंपरिक तरीके से बजरी खिलाती है. बजरी को खिलाने के पीछे माना जाता है कि भाई खूब मजबूत बनता है. बहनें अपने भाईयों को पहले खूब कोसती हैं फिर अपनी जीभ पर कांटा चुभाती हैं और अपनी गलती के लिए भगवान से माफी मांगती हैं. पूजा के बाद बहनें अपने भाईयों को रोली का टीका लगाकर प्रसाद और मिठाई खिलाती हैं. इसके बाद भाई अपनी बहन को आशर्वाद देते हैं. इसके पीछे यह मान्यता है कि यम द्वितीया के दिन भाइयों को गालियां व श्राप देने से उन्हें यम (मृत्यु) का भय नहीं रहता है.

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पौराणिक मान्यताएं हैं कि इस मौके पर भाई-बहन को सुबह स्नान कर लेना चाहिए. उसके बाद बहनों को अपनी भाईयों के लिए ईष्ट देवता की पूजा करनी चाहिए. जो चावल के आटे से चौक तैयार किया जाता है. इसपर भाई को बिठाया जाता है. इसके बाद भाई की हथेलियों पर चावल का घोल लगाया जाता है. फिर भाई के ऊपर कद्दु का फूल, सुपारी, द्रव्य आदि लेकर धीरे-धीरे हाथों से पानी छोड़ा जाता है.

शुभ मुहूर्त में करें पूजा: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन भाई को तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 10 मिनट से दोपहर 3 बजकर 21 मिनट तक है. शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 2 घंटे 11 मिनट की बताई जा रही है.

गोधन कूटने की परंपरा: इस दिन गोधन कूटने की प्रथा भी है. गोबर की मानव मूर्ति बना कर छाती पर ईंट रखकर बहनें उसे मूसलों से तोड़ती हैं. फिर भाई दूज की कथा सुनी जाती है. भाईयों को जी भरकर कोसा जाता है. उनकों मरने का श्राप दिया जाता है. उसके बाद बहनें अपनी जीभ पर भटकैया के कांटे से दागती भी हैं. इस दौरान बहनें कहती हैं कि जिस जीभ से भाई को कोसा, गालियां दीं, मरने की कामना की, उसी जीभ को कांटे से दाग रही हूं.मान्यता के मुताबिक ऐसा करने से भाईयों की आयु लंबी होती है. इसके पीछे एक प्राचीन कहानी है. राजा पृथु के पुत्र की शादी थी. उसने अपनी विवाहिता पुत्री को भी बुलाया. दोनों भाई बहन में खूब स्नेह था. जब बहन भाई की शादी में शामिल होने आ रही थी, तो रास्ते में उसने एक कुम्हार दंपति को बातें सुना. वे कह रहे थे कि राजा कि बेटी ने अपने भाई को कभी गाली नहीं दी है. वह बारात के दिन मर जाएगा. यह सुनते ही बहन अपने भाई को कोसते हुए घर गई.

बारात निकलते वक्त रास्ते में सांप, बिच्छू जो भी बाधा आती उसे मारते हुए अपने आंचल में डालते गई. वह घर लौटी तो वहां यमराज पहुंच गए. भाई के प्रति बहन के स्नेह को देखकर यमराज प्रसन्न हुए और कहा कि यम द्वितीया के दिन बहन अपने भाई को गाली व श्राप दे, तो भाई को मृत्यु का भय नहीं रहेगा. कहते हैं इसी दिन से भाई दूज पर्व की शुरुआत हुई.

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