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सामान के बदले सामान के लेनदेन से जिंदगी आसान, लेकिन कॉरपोरेट में बार्टर सिस्टम बना टैक्स चोरी और काला धन का साधन!

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Published : Sep 23, 2021, 11:12 PM IST

बार्टर सिस्टम (Barter system) आज भी सुदूरवर्ती ग्रामीण जीवनशैली का हिस्सा है. संकटकाल में यह कई बार काफी मददगार साबित होते हैं, लेकिन आज की परिस्थितियों में बार्टर सिस्टम अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती भी बन गए हैं, क्योंकि इससे जहां एक ओर टैक्स की चोरी की संभावना बढ़ जाती है, वहीं दूसरी तरफ काले धन को भी बढ़ावा मिलता है.

सामान के बदले
सामान के बदले

पटना: बार्टर सिस्टम (Barter system) प्राचीन काल से सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा रहा है. जब करेंसी का ईजाद नहीं हुआ था, तब लोगों के बीच सामानों के लेनदेन में यह चलन में था. पुराने जमाने में लोग किसी वस्तु को खरीदने के लिए पैसे देने के बजाय बदले में दूसरी वस्तु देते थे. अभी भी कई ग्रामीण इलाकों में दुकानों में सामान के बदले अनाज दिया जाता है. हालांकि अब यह पुरानी बात हो गई है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि कॉरपोरेट सेक्टर में अभी भी यह दूसरे तरीके से जारी है. जिसमें कमोडिटी का लेनदेन किया जाता है. इससे न केवल टैक्स चोरी (Tax Evasion) की संभावना बढ़ जाती है, बल्कि काले धन (Black Money) को भी बढ़ावा मिलता है.

ये भी पढ़ें: एथेनॉल उत्पादन के मामले में बिहार में अपार संभावनाएं, लाखों लोगों को मिल सकते हैं रोजगार

माना जाता है कि अर्थव्यवस्था और तकनीक में प्रगति के साथ ही कॉरपोरेट में शामिल लोगों की ओर से कर (Tax) की चोरी के लिए वस्तु विनिमय प्रणाली का दुरुपयोग किया जा रहा है. आर्थिक विशेषज्ञ भी मानते हैं कि बार्टर सिस्टम अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है. इस पर रोक लगाना बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे सरकार को भी राजस्व का भारी नुकसान होता है.

देखें रिपोर्ट

अर्थशास्त्री विद्यार्थी विकास कहते हैं कि बार्टर सिस्टम बेहद पुरानी परंपरा है. आज भी यह असम और बिहार के कई गांवों में चलन में है. वे कहते हैं कि कॉरपोरेट लेवल पर अगर फेयर डीलिंग नहीं होती है तो वैसी स्थिति में टैक्स चोरी की संभावना बन सकती है, यह अध्ययन का विषय है.

हालांकि, बीआईए के प्रेसिडेंट रामलाल खेतान का मानना है कि आज की तारीख में बार्टर सिस्टम प्रचलन में नहीं है. वे कहते हैं कि आपस में सामानों की अदला-बदली का मतलब यह नहीं है कि उसे बार्टर सिस्टम मान लिया जाए. हालांकि वे मानते हैं कि अगर कॉरपोरेट लेवल पर अंडर हैंड डीलिंग होती है तो निश्चित तौर पर वह टैक्स चोरी है. साथ ही वे कहते हैं कि आज के समय में किसी भी सामान को बेचने पर जीएसटी (GST) लगाना अनिवार्य होता है.

वहीं, चार्टर्ड अकाउंटेंट बीएन राय कहते हैं कि बार्टर सिस्टम में कमोडिटी का लेनदेन होता है, इसमें लैक ऑफ मनी रहता है. वे इसे और आसान शब्दों में समझाते हुए कहते हैं कि मान लिया जाए कि 25 लाख का कोई सामान किसी दूसरे को दिया जाता है और उसके बदले में 25 लाख का कोई अन्य सामान लिया जाता है. इसमें जीएसटी और इनकम टैक्स भी लगता है. लेकिन इसमें दिक्कत तब होती है जब 5 लाख के माल को 50 लाख का दिखाया जाता है, तभी यह 45 लाख का घपला है.

ये भी पढ़ें: आरोपों में घिरे तारकिशोर का तेजस्वी पर पलटवार, 'पहले अपनी छवि को स्वच्छ बनाएं, फिर बताएं'

बीएन राय ये भी कहते हैं कि अगर कहीं बार्टर सिस्टम के तहत लेनदेन हो रहा है तब इसमें कालेधन को बढ़ावा मिलने की गुंजाइश बढ़ जाती है. इसके जरिए टैक्स की चोरी कर सरकार के राजस्व को चूना लगाया जा रहा है. लिहाजा इस मामले में बारीकी से अध्ययन की जरूरत है ताकि तस्वीर साफ हो जाए.

बार्टर सिस्टम यानी वस्तु विनिमय प्रणाली असल में विनिमय का एक तरीका है. मुद्रा का आविष्कार होने से बहुत पहले से इस प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है. आज भी दुनिया में कई स्थानों में अलग अलग रूप में बार्टर सिस्टम का उपयोग होता है. इस प्रणाली में लोग सेवाओं और वस्तुओं के लिए सेवाओं और वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं. हालांकि अब यह प्रचलन में नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि कोरोना काल में कई जगहों पर इसके मामलों में तेजी आई है.

पटना: बार्टर सिस्टम (Barter system) प्राचीन काल से सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा रहा है. जब करेंसी का ईजाद नहीं हुआ था, तब लोगों के बीच सामानों के लेनदेन में यह चलन में था. पुराने जमाने में लोग किसी वस्तु को खरीदने के लिए पैसे देने के बजाय बदले में दूसरी वस्तु देते थे. अभी भी कई ग्रामीण इलाकों में दुकानों में सामान के बदले अनाज दिया जाता है. हालांकि अब यह पुरानी बात हो गई है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि कॉरपोरेट सेक्टर में अभी भी यह दूसरे तरीके से जारी है. जिसमें कमोडिटी का लेनदेन किया जाता है. इससे न केवल टैक्स चोरी (Tax Evasion) की संभावना बढ़ जाती है, बल्कि काले धन (Black Money) को भी बढ़ावा मिलता है.

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माना जाता है कि अर्थव्यवस्था और तकनीक में प्रगति के साथ ही कॉरपोरेट में शामिल लोगों की ओर से कर (Tax) की चोरी के लिए वस्तु विनिमय प्रणाली का दुरुपयोग किया जा रहा है. आर्थिक विशेषज्ञ भी मानते हैं कि बार्टर सिस्टम अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है. इस पर रोक लगाना बेहद जरूरी है, क्योंकि इससे सरकार को भी राजस्व का भारी नुकसान होता है.

देखें रिपोर्ट

अर्थशास्त्री विद्यार्थी विकास कहते हैं कि बार्टर सिस्टम बेहद पुरानी परंपरा है. आज भी यह असम और बिहार के कई गांवों में चलन में है. वे कहते हैं कि कॉरपोरेट लेवल पर अगर फेयर डीलिंग नहीं होती है तो वैसी स्थिति में टैक्स चोरी की संभावना बन सकती है, यह अध्ययन का विषय है.

हालांकि, बीआईए के प्रेसिडेंट रामलाल खेतान का मानना है कि आज की तारीख में बार्टर सिस्टम प्रचलन में नहीं है. वे कहते हैं कि आपस में सामानों की अदला-बदली का मतलब यह नहीं है कि उसे बार्टर सिस्टम मान लिया जाए. हालांकि वे मानते हैं कि अगर कॉरपोरेट लेवल पर अंडर हैंड डीलिंग होती है तो निश्चित तौर पर वह टैक्स चोरी है. साथ ही वे कहते हैं कि आज के समय में किसी भी सामान को बेचने पर जीएसटी (GST) लगाना अनिवार्य होता है.

वहीं, चार्टर्ड अकाउंटेंट बीएन राय कहते हैं कि बार्टर सिस्टम में कमोडिटी का लेनदेन होता है, इसमें लैक ऑफ मनी रहता है. वे इसे और आसान शब्दों में समझाते हुए कहते हैं कि मान लिया जाए कि 25 लाख का कोई सामान किसी दूसरे को दिया जाता है और उसके बदले में 25 लाख का कोई अन्य सामान लिया जाता है. इसमें जीएसटी और इनकम टैक्स भी लगता है. लेकिन इसमें दिक्कत तब होती है जब 5 लाख के माल को 50 लाख का दिखाया जाता है, तभी यह 45 लाख का घपला है.

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बीएन राय ये भी कहते हैं कि अगर कहीं बार्टर सिस्टम के तहत लेनदेन हो रहा है तब इसमें कालेधन को बढ़ावा मिलने की गुंजाइश बढ़ जाती है. इसके जरिए टैक्स की चोरी कर सरकार के राजस्व को चूना लगाया जा रहा है. लिहाजा इस मामले में बारीकी से अध्ययन की जरूरत है ताकि तस्वीर साफ हो जाए.

बार्टर सिस्टम यानी वस्तु विनिमय प्रणाली असल में विनिमय का एक तरीका है. मुद्रा का आविष्कार होने से बहुत पहले से इस प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है. आज भी दुनिया में कई स्थानों में अलग अलग रूप में बार्टर सिस्टम का उपयोग होता है. इस प्रणाली में लोग सेवाओं और वस्तुओं के लिए सेवाओं और वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं. हालांकि अब यह प्रचलन में नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि कोरोना काल में कई जगहों पर इसके मामलों में तेजी आई है.

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