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बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था: घर से बोरा लाकर बैठते हैं बच्चे, सालों से खडंहर बना हुआ है स्कूल

बिहार के ग्रामीण इलाकों में प्रथामिक विद्यालयों का हाल बद से बदतर है. मसौढ़ी का बसौर चकिया प्राथमिक विद्यालय भी अपनी बदहाली की दास्तां सुना रहा है. जहां आज भी बच्चे बोरे पर अपना भविष्य संवार रहे हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट....

बदहाल शिक्षा व्यवस्था
बदहाल शिक्षा व्यवस्था
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Published : Sep 14, 2021, 5:25 PM IST

Updated : Sep 14, 2021, 6:16 PM IST

पटनाः राजधानी के ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था (government school education system) किसी से छुपी हुई नहीं है. सरकार हमेशा शिक्षा में सुधार के दावे करती नजर आती है. लेकिन इन दावों को आइना दिखा रहा है मसौढ़ी के बसौर चकिया प्राथमिक विद्यालय (Basaur Chakia Primary School) जो कई सालों से खंडहर में तब्दील हो चुका है. स्कूल में बच्चे आज भी घर से बोरा लेकर आते हैं और उस पर बैठकर पढ़ाई करते हैं.

ये भी पढ़ेंः बिहार का अनोखा विद्यालय: 1 स्कूल-1 पद- 2 शिक्षक, दोनों उठा रहे वेतन

इस विद्यालय में न खिड़की है, न दरवाजा. बैठने कि व्यवस्था भी नहीं है. सभी बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं. वह भी घर से बोरा लेकर आते हैं. बच्चे बोतल में पानी भी लेकर आते हैं. स्कूल में शौचालय की व्यवस्था भी नहीं है. यहां सभी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है.

'किसी तरह से बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं. कई सालों से यह स्कूल बदहाली की स्थिति में है. कई बार प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को लिखित आवेदन दिया गया है. इसके बावजूद अभी तक इसकी सुध नहीं ली गई'- शिव शंकर सिंह सुमन, प्रभारी शिक्षक

मसौढ़ी प्रखंड के बसौर चकिया प्राथमिक विद्यालय की बदहाल शिक्षा व्यवस्था को लेकर जब प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी रास बिहारी दुबे से बात की गई तो उन्होंने कहा कि हमने कुछ दिन पहले ही मसौढ़ी में ज्वाइन किया है. उस स्कूल की जांच करवा कर जिला में रिपोर्ट करते हैं. जल्द कोशिश करते हैं कि खिड़की और दरवाजा स्कूल में लग जाए.

देखें वीडियो

ये भी पढ़ेंः एक कमरे में चल रही है आठवीं तक की कक्षा, 'ऐसे पढ़ेगा तो कैसे बढ़ेगा इंडिया'?

बिहार में शिक्षा व्यवस्था का ये हाल कोई नया है. तमाम जिलों कई प्राथमिक स्कूल आपको इसी हाल में मिल जाएंगे. सरकार शिक्षा पर करोड़ों रुपये का बजट बनाती है. लेकिन ये रकम कैसे खर्च होती इसका खुलासा स्कूलों का हाल देखने से हो जाता है. जहां आज भी स्कूल में बच्चे बोरे पर पढ़ने को मजबूर हैं. ठंड हो या बरसात मासूम बच्चे मजबूरी के नाम पर कई तकलीफें झेलकर अपनी शिक्षा पूरी कर रहे हैं. ये सोचकर कि 'पढ़ेगा तभी तो बढ़ेगा इंडिया'.

पटनाः राजधानी के ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था (government school education system) किसी से छुपी हुई नहीं है. सरकार हमेशा शिक्षा में सुधार के दावे करती नजर आती है. लेकिन इन दावों को आइना दिखा रहा है मसौढ़ी के बसौर चकिया प्राथमिक विद्यालय (Basaur Chakia Primary School) जो कई सालों से खंडहर में तब्दील हो चुका है. स्कूल में बच्चे आज भी घर से बोरा लेकर आते हैं और उस पर बैठकर पढ़ाई करते हैं.

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इस विद्यालय में न खिड़की है, न दरवाजा. बैठने कि व्यवस्था भी नहीं है. सभी बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं. वह भी घर से बोरा लेकर आते हैं. बच्चे बोतल में पानी भी लेकर आते हैं. स्कूल में शौचालय की व्यवस्था भी नहीं है. यहां सभी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है.

'किसी तरह से बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं. कई सालों से यह स्कूल बदहाली की स्थिति में है. कई बार प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को लिखित आवेदन दिया गया है. इसके बावजूद अभी तक इसकी सुध नहीं ली गई'- शिव शंकर सिंह सुमन, प्रभारी शिक्षक

मसौढ़ी प्रखंड के बसौर चकिया प्राथमिक विद्यालय की बदहाल शिक्षा व्यवस्था को लेकर जब प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी रास बिहारी दुबे से बात की गई तो उन्होंने कहा कि हमने कुछ दिन पहले ही मसौढ़ी में ज्वाइन किया है. उस स्कूल की जांच करवा कर जिला में रिपोर्ट करते हैं. जल्द कोशिश करते हैं कि खिड़की और दरवाजा स्कूल में लग जाए.

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बिहार में शिक्षा व्यवस्था का ये हाल कोई नया है. तमाम जिलों कई प्राथमिक स्कूल आपको इसी हाल में मिल जाएंगे. सरकार शिक्षा पर करोड़ों रुपये का बजट बनाती है. लेकिन ये रकम कैसे खर्च होती इसका खुलासा स्कूलों का हाल देखने से हो जाता है. जहां आज भी स्कूल में बच्चे बोरे पर पढ़ने को मजबूर हैं. ठंड हो या बरसात मासूम बच्चे मजबूरी के नाम पर कई तकलीफें झेलकर अपनी शिक्षा पूरी कर रहे हैं. ये सोचकर कि 'पढ़ेगा तभी तो बढ़ेगा इंडिया'.

Last Updated : Sep 14, 2021, 6:16 PM IST
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