पटना: राज्य में हस्तशिल्प कला के विकास के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है. हस्तशिल्प के बारे में प्रशिक्षण देने के लिए राज्य भर के सभी संस्थानों में से उपेंद्र महारथी शिल्प शोध संस्थान का अग्रणी स्थान है. इस संस्थान में सिलाई-कढ़ाई और मधुबनी पेंटिंग सहित 28 हस्त कलाओं के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है.
बिहार में रोजगार को बढ़ावा देने के साथ ही बेरोजगारों को स्वावलंबी बनाने के लिए 1956 में उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान खोली गई थी. यहां 20 से ज्यादा क्राफ्ट कला के बारे में भी प्रशिक्षण दिया जाता है. वहीं, शिल्पकारों ने सरकार से इन हस्तकलाओं के लिए बाजार की मांग की है.
अस्थाई शिक्षकों को रखकर कोर्स किए जा रहे संचालित
संस्थान में हाल के दिनों में शिक्षकों की कमी के कारण कुछ कोर्स प्रभावित रहे थे. पुराने शिक्षकों के रिटायर होने के बाद से अभी तक कोई नियुक्ति नहीं हुई है. शिक्षकों की कमी के कारण कई कोर्सों को बंद करने पड़े थे लेकिन अब अस्थाई शिक्षकों को रखकर कोर्स संचालित किये जा रहे हैं.
विदेश से छात्र आते थे हस्तकलाओं का प्रशिक्षण लेने
शुरुआती दिनों में इस संस्थान में विदेशी छात्र भी भारतीय हस्तकलाओं का प्रशिक्षण लेने आते थे. आज वही परंपरा कई मॉडर्न रूप में भी सिखाई जा रही हैं. रोजगार को बढ़ावा देने वाला यह राज्य का एकमात्र शिल्प अनुसंधान संस्थान है. यहां पर कई देसी कलाकार को तराशे गए हैं जो देश दुनिया में अपने गांव की पौराणिक परंपरा को आज भी जीवित कर रखा है.
बिहारी हस्तशिल्प के कई रूपों को संरक्षित करना संस्था का उद्देश्य
गौरतलब है कि संस्थान का उद्देश्य बिहारी हस्तशिल्प के कई रूपों को संरक्षित कर अनुसंधान करना और बढ़ावा देना है. संस्थान निरंतर कौशल के विकास के लिए उपेक्षित ज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रम और कार्यशाला का आयोजन करती रहती है.
संस्थान में चलाया जाता है कला और शिल्प प्रशिक्षण कार्यक्रम
इस संस्थान में कला और शिल्प प्रशिक्षण कार्यक्रम चलया जाता है. यहां छात्रों को कुशल कारीगरों के मार्गदर्शन में प्रशिक्षित किया जाता है. वहीं, भारत के कई हिस्सों से आए छात्रों के लिए छात्रावास की भी सुविधा उपलब्ध है. साथ ही इस संस्थान में बिहार की कला और शिल्प का अद्भुत और स्थाई संग्रह है. लोग इस संग्रहालय में पत्थर और लकड़ी की नक्काशी, मधुबनी पेंटिंग, एपीआर, मां, चेक कला, टिकुली कला, आवास का काम पीतल और घंटी धातु उत्पादों जैसे कई हस्तशिल्प का एक विशाल संग्रह है.