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बिहार की सियासत के केंद्र में तेजस्वी, आखिर क्यों उनके इर्द-गिर्द घूम रही राजनीति?

बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव वर्तमान समय के सियासी ध्रुव हो गए हैं, जिसके आस-पास तेजस्वी के विरोधी खेमे वाले तमाम राजनीतिक दल परिक्रमा कर रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

Tejashwi Yadav
तेजस्वी यादव
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Published : Oct 21, 2021, 11:08 PM IST

पटना: बिहार में चल रहे 2 सीटों के उपचुनाव (By Election in Bihar) में जिस तरीके की सियासी रणभेरी सियासी दल बजा रहे हैं, उसमें राजनीति का बड़ा रंग तो नहीं दिख रहा है, लेकिन बतंगड़ वाली राजनीति पूरे शबाब पर है. बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) बनाम सभी नेता हो गए हैं. तेजस्वी यादव बिहार में कुछ भी अगर कर रहे हैं तो सभी नेताओं को उसपर बयान देने में मजा भी आ रहा है. बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव वर्तमान समय के सियासी ध्रुव हो गए हैं, जिसके आस-पास तेजस्वी के विरोधी खेमे वाले तमाम राजनीतिक दल परिक्रमा कर रहे हैं.


यह भी पढ़ें- कोरोना से जंग में 100 करोड़ी वैक्सीनेशन.. बिहार ने भी लगाया 'अर्धशतक'

बिहार में चल रहे सबसे बड़े सियासी मुद्दे में तेजस्वी यादव वह सियासी मछली हैं, जिससे लड़ने के लिए सभी राजनीतिक दल उस तालाब में उतर गए हैं जिसमें सियासत की मछली मारने का दांवपेच खेला जा रहा है. बिहार का शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो तेजस्वी यादव के इस मछली सियासत में कटिया लिए उतरा न हो. सभी ने चारा भी लगा रखा है और मछली पकड़ने का हर मुद्दा भी. हालांकि तेजस्वी यादव पर विरोध और उस कालखंड की बात जरूर रखी जाती है जो लालू और उनके समय में हुई थी. मछली मारने की सियासत में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कह दिया कि मछली कैसे मारी जाती है तेजस्वी यादव को इसे अपने मामा से सीखना चाहिए. लेकिन जो चीजें तेजस्वी बिहार से सीख रहे हैं, उसे शायद समझने में सभी राजनीतिक दल एक बड़ी चूक कर रहे हैं या फिर तेजस्वी के लिए राजनीति का रेड कारपेट तैयार कर रहे हैं.


तेजस्वी से सब लड़ रहे

बिहार की राजनीति में अगर सवाल पूछा जाता है तो तेजस्वी से लड़ने के लिए नीतीश कुमार भी आ जाते हैं. नीतीश कुमार तेजस्वी से लड़ रहे हैं. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह तेजस्वी से लड़ रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा भी तेजस्वी से लड़ रहे हैं. जीतन राम मांझी के सवालों में भी तेजस्वी हैं. भाजपा का चाहे जो नेता हो उसके हर सवाल में तेजस्वी हैं. बिहार के विकास की चाहे जो बात करें उस विकास में भी तेजस्वी हैं. कांग्रेस आज तेजस्वी का नाम ले रही है. चिराग पासवान भी तेजस्वी से लड़ रहे हैं. युवा राजनीति के लिए कांग्रेस में पहुंचे कन्हैया कुमार भी तेजस्वी से लड़ रहे हैं. जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव भी तेजस्वी से लड़ रहे हैं. या यूं कहें कि बिहार में जो सियासत है उसमें सभी लोग एक तरफ और दूसरी तरफ तेजस्वी यादव खड़े हैं, जिसमें मुद्दे और बात की राजनीति तो नहीं दिखती, लेकिन बड़े बतंगड़ वाली राजनीति में सभी लोग उतर जाते हैं.


नरेंद्र मोदी के साथ भी हुआ था ऐसा

सियासी जंग का एक चैप्टर 2013 की राजनीति से भी जुड़ता है. जब नरेंद्र मोदी देश की राजनीति में बीजेपी के प्रधानमंत्री चेहरे के तौर पर उभर रहे थे. देश में उस समय की सरकार के मुखिया रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस का शायद ही कोई ऐसा नेता रहा हो जो नरेंद्र मोदी की राजनीति से न लड़ता हो. जाति के आधार पर बांटकर राजनीति करने वाला, नेता गुजरात में दंगा कराने वाला नेता, हिंदू राष्ट्र बनाने वाला नेता, परिवार को छोड़ देने वाला नेता, इस तरह के वैसे आरोपों के साथ नरेंद्र मोदी उन तमाम लोगों से लड़ते रहे जो लोग उस समय देश में सत्ता में थे या यूं कहें कि नरेंद्र मोदी के विपक्ष में थे. नरेंद्र मोदी दिन भर में अगर कुछ नहीं भी बोलते थे तो भी विपक्ष के लोग नरेंद्र मोदी को मीडिया की सुर्खियां बना देते थे. बिहार की राजनीति में 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में राजनीतिक मुद्दे कुछ इस कदर खड़े हुए हैं कि मुद्दों की राजनीति में बातें तो खूब हो रही हैं लेकिन उससे ज्यादा बड़ी राजनीति बतंगड़ वाली हो रही है.

तेजस्वी यादव ने कटिया लगाकर मछली पकड़ी तो सियासत में मछली पकड़ने के लिए मुद्दों की जिस चारे वाली चाशनी को अब तक कभी जाति के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर, कभी दलित के नाम पर, कभी महादलित के नाम पर, कभी कुशवाहा के नाम पर, कभी माझी के नाम पर, कभी यादों के नाम पर, कभी मुस्लिम के नाम पर और अगर कुछ बच गया तो शायद विकास के नाम पर बिहार के चलन में है. सियासत इसे बजा भी रही थी. अचानक तेजस्वी यादव ने एक तालाब में कटिया डाली तो छोटी मछली फंस गई. अब राजनेताओं को इस बात का डर सताने लगा है कि कहीं तेजस्वी यादव जो कटिया लगा रहे हैं उसमें बड़ी मछलियां फंसी तो फिर राजनीति का स्वरूप बदल जाएगा. अब यह डर बिहार में मुद्दों वाली राजनीति के बजाय बतंगड़ वाली राजनीति में जाकर अटक गई है. अब सियासत में लोग इस बात की जगह खोज रहे हैं कि अगला रास्ता निकाला क्या जाए?

खूब हो रही मछली मारने वाली राजनीति

मछली मारने वाली राजनीति पर बीजेपी ने अपने तरीके की प्रतिक्रिया दे दी. जदयू के नेताओं ने भी अपना पक्ष रख दिया. 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में जीत के दावे की बात भी खूब हो रही है. तारापुर में चुनाव प्रचार के बाद कुशेश्वरस्थान में अभी तेजस्वी यादव चुनाव प्रचार कर रहे हैं और जीत का दावा भी कर दिए. अब दूसरे दल चुनावी समर में कूदने वाले हैं. इसमें दो राय नहीं है कि मछली वाली सियासत रुकनी नहीं है. 25 तारीख से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी समर में उतर रहे हैं. संभव है कि विकास के जिस कटिया से बिहार का विकास जुड़ा हुआ है उस दाना को डालने का काम तो जरूर किया जाएगा और कोशिश भी यही होगी कि कुछ में बड़ी मछली ही फंसे.

अब सियासत में चर्चा तो शुरू हो गई है. मछली वाली राजनीति भी और राजनीति में मछली भी और सियासत में नेताओं की ओर छटपटाहट भी, जिसमें कई बार पानी उतर जाने से मछली का जीवन संकट में पड़ जाता है. हाल यही राजनेताओं का भी है कि कहीं जनता की नजर से उनकी हालत उतरी तो नेताओं का छटपटाना लाजमी है. इसके लिए मुद्दों की राजनीति ना हो बतंगड़ वाली राजनीति ने बिहार में पूरे राजनीतिक फिजा को रंग दिया है. अब देखने वाली बात यह होगी कि मुद्दों के दंगल वाले सत्ता के संग्राम की 2 सीटों के लिए विकास वाली बात होती है या फिर नेता बतंगड़ वाली राजनीति को ही सियासत का मुद्दा बना देते हैं. क्योंकि सियासी मछली तैर काफी तेजी से रही है.

यह भी पढ़ें- तेजस्वी ने जो मछली पकड़ी है, सियासत में कौन सा रंग दिखाएगी वह?

पटना: बिहार में चल रहे 2 सीटों के उपचुनाव (By Election in Bihar) में जिस तरीके की सियासी रणभेरी सियासी दल बजा रहे हैं, उसमें राजनीति का बड़ा रंग तो नहीं दिख रहा है, लेकिन बतंगड़ वाली राजनीति पूरे शबाब पर है. बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) बनाम सभी नेता हो गए हैं. तेजस्वी यादव बिहार में कुछ भी अगर कर रहे हैं तो सभी नेताओं को उसपर बयान देने में मजा भी आ रहा है. बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव वर्तमान समय के सियासी ध्रुव हो गए हैं, जिसके आस-पास तेजस्वी के विरोधी खेमे वाले तमाम राजनीतिक दल परिक्रमा कर रहे हैं.


यह भी पढ़ें- कोरोना से जंग में 100 करोड़ी वैक्सीनेशन.. बिहार ने भी लगाया 'अर्धशतक'

बिहार में चल रहे सबसे बड़े सियासी मुद्दे में तेजस्वी यादव वह सियासी मछली हैं, जिससे लड़ने के लिए सभी राजनीतिक दल उस तालाब में उतर गए हैं जिसमें सियासत की मछली मारने का दांवपेच खेला जा रहा है. बिहार का शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो तेजस्वी यादव के इस मछली सियासत में कटिया लिए उतरा न हो. सभी ने चारा भी लगा रखा है और मछली पकड़ने का हर मुद्दा भी. हालांकि तेजस्वी यादव पर विरोध और उस कालखंड की बात जरूर रखी जाती है जो लालू और उनके समय में हुई थी. मछली मारने की सियासत में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कह दिया कि मछली कैसे मारी जाती है तेजस्वी यादव को इसे अपने मामा से सीखना चाहिए. लेकिन जो चीजें तेजस्वी बिहार से सीख रहे हैं, उसे शायद समझने में सभी राजनीतिक दल एक बड़ी चूक कर रहे हैं या फिर तेजस्वी के लिए राजनीति का रेड कारपेट तैयार कर रहे हैं.


तेजस्वी से सब लड़ रहे

बिहार की राजनीति में अगर सवाल पूछा जाता है तो तेजस्वी से लड़ने के लिए नीतीश कुमार भी आ जाते हैं. नीतीश कुमार तेजस्वी से लड़ रहे हैं. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह तेजस्वी से लड़ रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा भी तेजस्वी से लड़ रहे हैं. जीतन राम मांझी के सवालों में भी तेजस्वी हैं. भाजपा का चाहे जो नेता हो उसके हर सवाल में तेजस्वी हैं. बिहार के विकास की चाहे जो बात करें उस विकास में भी तेजस्वी हैं. कांग्रेस आज तेजस्वी का नाम ले रही है. चिराग पासवान भी तेजस्वी से लड़ रहे हैं. युवा राजनीति के लिए कांग्रेस में पहुंचे कन्हैया कुमार भी तेजस्वी से लड़ रहे हैं. जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव भी तेजस्वी से लड़ रहे हैं. या यूं कहें कि बिहार में जो सियासत है उसमें सभी लोग एक तरफ और दूसरी तरफ तेजस्वी यादव खड़े हैं, जिसमें मुद्दे और बात की राजनीति तो नहीं दिखती, लेकिन बड़े बतंगड़ वाली राजनीति में सभी लोग उतर जाते हैं.


नरेंद्र मोदी के साथ भी हुआ था ऐसा

सियासी जंग का एक चैप्टर 2013 की राजनीति से भी जुड़ता है. जब नरेंद्र मोदी देश की राजनीति में बीजेपी के प्रधानमंत्री चेहरे के तौर पर उभर रहे थे. देश में उस समय की सरकार के मुखिया रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस का शायद ही कोई ऐसा नेता रहा हो जो नरेंद्र मोदी की राजनीति से न लड़ता हो. जाति के आधार पर बांटकर राजनीति करने वाला, नेता गुजरात में दंगा कराने वाला नेता, हिंदू राष्ट्र बनाने वाला नेता, परिवार को छोड़ देने वाला नेता, इस तरह के वैसे आरोपों के साथ नरेंद्र मोदी उन तमाम लोगों से लड़ते रहे जो लोग उस समय देश में सत्ता में थे या यूं कहें कि नरेंद्र मोदी के विपक्ष में थे. नरेंद्र मोदी दिन भर में अगर कुछ नहीं भी बोलते थे तो भी विपक्ष के लोग नरेंद्र मोदी को मीडिया की सुर्खियां बना देते थे. बिहार की राजनीति में 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में राजनीतिक मुद्दे कुछ इस कदर खड़े हुए हैं कि मुद्दों की राजनीति में बातें तो खूब हो रही हैं लेकिन उससे ज्यादा बड़ी राजनीति बतंगड़ वाली हो रही है.

तेजस्वी यादव ने कटिया लगाकर मछली पकड़ी तो सियासत में मछली पकड़ने के लिए मुद्दों की जिस चारे वाली चाशनी को अब तक कभी जाति के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर, कभी दलित के नाम पर, कभी महादलित के नाम पर, कभी कुशवाहा के नाम पर, कभी माझी के नाम पर, कभी यादों के नाम पर, कभी मुस्लिम के नाम पर और अगर कुछ बच गया तो शायद विकास के नाम पर बिहार के चलन में है. सियासत इसे बजा भी रही थी. अचानक तेजस्वी यादव ने एक तालाब में कटिया डाली तो छोटी मछली फंस गई. अब राजनेताओं को इस बात का डर सताने लगा है कि कहीं तेजस्वी यादव जो कटिया लगा रहे हैं उसमें बड़ी मछलियां फंसी तो फिर राजनीति का स्वरूप बदल जाएगा. अब यह डर बिहार में मुद्दों वाली राजनीति के बजाय बतंगड़ वाली राजनीति में जाकर अटक गई है. अब सियासत में लोग इस बात की जगह खोज रहे हैं कि अगला रास्ता निकाला क्या जाए?

खूब हो रही मछली मारने वाली राजनीति

मछली मारने वाली राजनीति पर बीजेपी ने अपने तरीके की प्रतिक्रिया दे दी. जदयू के नेताओं ने भी अपना पक्ष रख दिया. 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में जीत के दावे की बात भी खूब हो रही है. तारापुर में चुनाव प्रचार के बाद कुशेश्वरस्थान में अभी तेजस्वी यादव चुनाव प्रचार कर रहे हैं और जीत का दावा भी कर दिए. अब दूसरे दल चुनावी समर में कूदने वाले हैं. इसमें दो राय नहीं है कि मछली वाली सियासत रुकनी नहीं है. 25 तारीख से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी समर में उतर रहे हैं. संभव है कि विकास के जिस कटिया से बिहार का विकास जुड़ा हुआ है उस दाना को डालने का काम तो जरूर किया जाएगा और कोशिश भी यही होगी कि कुछ में बड़ी मछली ही फंसे.

अब सियासत में चर्चा तो शुरू हो गई है. मछली वाली राजनीति भी और राजनीति में मछली भी और सियासत में नेताओं की ओर छटपटाहट भी, जिसमें कई बार पानी उतर जाने से मछली का जीवन संकट में पड़ जाता है. हाल यही राजनेताओं का भी है कि कहीं जनता की नजर से उनकी हालत उतरी तो नेताओं का छटपटाना लाजमी है. इसके लिए मुद्दों की राजनीति ना हो बतंगड़ वाली राजनीति ने बिहार में पूरे राजनीतिक फिजा को रंग दिया है. अब देखने वाली बात यह होगी कि मुद्दों के दंगल वाले सत्ता के संग्राम की 2 सीटों के लिए विकास वाली बात होती है या फिर नेता बतंगड़ वाली राजनीति को ही सियासत का मुद्दा बना देते हैं. क्योंकि सियासी मछली तैर काफी तेजी से रही है.

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