नई दिल्लीः जब देश की एक बड़ी आबादी वीकेंड की खुमारी से जागी भी नहीं थी, तब देश के सबसे प्रबुद्ध शहर के मतदाता दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की सरकार बनाने निकल पड़े थे. मतदान का शुरुआती रुझान कमजोर जरूर था, उम्मीद थी कि यह समय के साथ गति पकड़ेगा, मगर ऐसा हुआ नहीं. हालांकि, राजधानी दिल्ली की जनता ने इस चुनाव में दिल्ली की साफ सफाई और मूलभूत जरूरतों से अलग उच्च मूल्यों को भी सामने रखकर मतदान किया. उन्होंने इस बात के लिए भी वोट दिया कि अगले 5 सालों तक दिल्ली को कौन वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.
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राजनेताओं के दावों से अलग, मतदाताओं के रुझान और विश्लेषकों की राय पर निगाह डालें तो एक बात स्पष्ट रूप से निकल कर आती है कि निगम में प्रदर्शन से लोग भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से नाराज हैं, मगर आम आदमी पार्टी (आप) उनका भरोसा नहीं जीत पाई है. कांग्रेस क्षेत्र विशेष से कुछ सीटें आसानी से जीत जाएगी, मगर अधिकांश सीटों पर आप और भाजपा में सीधी लड़ाई है. कांग्रेस और कुछ अन्य प्रत्याशियों को इस बात का भी फायदा मिल रहा है कि लोग भाजपा और आप दोनों को सबक सिखाना चाहते हैं तो निगेटिव वोटिंग कांग्रेस के खाते में जा रही है.
भाजपा के नेता इस बात से खुश हैं कि उनसे नाराज वोटर आप के खाते में नहीं गए तो उनको बहुत खुश होने की जरूरत नहीं क्योंकि इन वोटरों ने भाजपा को भी वोट नहीं दिया. अब यह चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि किस क्षेत्र से कितने वोट पड़े. इस बार मुसलिम बहुल क्षेत्रों में भी लंबी-लंबी लाइनें नहीं दिखीं. हां, एक बात और उल्लेखनीय है कि खाटी शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण और बाहरी क्षेत्रों में वोटिंग की रफ्तार कुछ अधिक थी.
नेहरू ने संबोधित किया था पहली बैठक कोः अब इस निगम पर आते हैं, जिसके लिए चुनाव हो रहा है. यह निगम इतने लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, जितनी कई देशों की आबादी भी नहीं है. इतना ही नहीं, 15 हजार करोड़ रुपये से अधिक के बजट वाला यह एमसीडी दिल्ली क्षेत्र में डेढ़ हजार से अधिक स्कूलों का संचालन करता है, जिसमें लगभग नौ लाख बच्चे पढ़ते हैं. यह वही नगर निगम है, जिसकी स्थापना बंबई नगर निगम की तर्ज पर हुई थी और जिसकी पहली बैठक को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संबोधित किया था. इस बार इसमें 250 सीटों पर मतदान हुआ और जैसा हर बार होता है, कई मतदाताओं की शिकायत रही कि उनका नाम वोटर लिस्ट से गायब था, इस बार भी हुआ.
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हमारे संवाददाओं ने चुनाव आयोग के सक्षम अफसरों से इस पर प्रतिक्रिया जानने का प्रयास किया तो पता चला कि आयोग ने अपनी तरफ से व्यवस्था में कोई कमी नहीं छोड़ी थी. नई और पुरानी दोनों मतदाता सूचियां मतदान केंद्रों पर रखी गई थीं, मगर शिकायतों का निवारण केंद्र पर मौजूद अफसर नहीं कर सके तो इससे दो ही बातें निकल कर आती हैं. या तो उनकी ट्रेनिंग सही नहीं हुई या फिर आयोग से समन्वय बनाने में कहीं न कहीं चूक हो गई.
दिल्ली के विकास में अहम है निगमः यूं तो दिल्ली में राज्य और केंद्र की सरकार के अलावा तीन स्थानीय निकाय भी एक साथ राजधानी क्षेत्र के विकास में लगे हैं. ये हैं नई दिल्ली म्यूनिसिपल कारपोरेशन (एनडीएमसी), दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी). इनमें एमसीडी सबसे प्रभावशाली संस्था है. इतनी बड़ी-बड़ी संस्थाओं के बावजूद दिल्ली में वो सभी समस्यायें मौजूद हैं, जो किसी भी बड़े शहर में होती हैं. इस चुनाव को गुजरात और हिमाचल के साथ कराने से इसका महत्व और बढ़ गया. यही कारण है कि इसने अन्य राज्य चुनावों की तरह ही सुर्खियां बटोरीं. दिल्ली राज्य में आप की सरकार है, जिसका केंद्र सरकार से प्रायः टकराव होता रहता है. वर्तमान में शराब घोटाले सहित आधा दर्जन मुद्दों को लेकर दोनों सरकारों में घमासान जारी है. 2007 से एमसीडी की सत्ता पर काबित भाजपा की कोशिश है कि इस बार भी जीतकर इतिहास रचे और अगले लोक सभा और दिल्ली राज्य के चुनावों के लिए एक मजबूत आधार तैयार करे. वहीं, आम आप की कोशिश है कि नगर निगम की सत्ता हथियाकर पूरी दिल्ली पर अपनी सत्ता स्थापित करे. इसीलिए उसने निगम और दिल्ली राज्य में डबल इंजिन की सरकार का नारा भी दिया.
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नकारात्मक प्रचार से लोग दुखीः आप मजबूती से चुनाव लड़ी है, इसमें कोई दो राय नहीं. उसके प्रचार से बीजेपी के माथे पर बल पड़ गए, इसमें भी दो राय नहीं. पर एक-एक कर उनके नेताओं की नकारात्मक छवि जिस तरह जनता में आई, उसके लिए अच्छा संदेश नहीं गया. उसकी मजबूती का प्रमाण है कि भाजपा को अपनी केंद्रीय टीम को एमसीडी चुनाव में झोंक देना पड़ा. प्रचार के दौरान कोई ऐसा दिन नहीं बीता होगा, जब किसी केंद्रीय मंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस (पीसी) नहीं की होगी. एक- एक दिन में कई कई प्रेस कांफ्रेंस हुए.
आप के मुद्दों के जवाब में भाजपा की पीसी और भाजपा के मुद्दों के जवाब में आप की पीसी. ऐसा लगता था कि जनता का मन पढ़ने के बजाय राजनेता जनता का मन बदलने की कोशिश कर रहे हैं. चुनाव प्रचार का असर तो पड़ता है. यह हमने पिछले कई चुनावों में देखा है. लेकिन इस चुनाव में जनता कुछ अधिक उदासीन तो नेता कुछ अधिक परेशान दिखे. इसलिए इसके परिणाम का सही-सही अनुमान लगाना न्यायोचित नहीं होगा. मगर इतना तय है कि जनता ने काफी सूझ-बूझ से मतदान किया है. कई क्षेत्रीय दल भी इस चुनाव में कूदे हैं. उन्हें कितना समर्थन मिलता है, यह तो समय ही बताएगा, मगर जनता ने अपना वोट सार्थक बनाने के लिए ही मतदान किया है.
AAP के कमजोर प्रत्याशी से BJP को ऐजः वोटिंग के अंतिम समय में रुझान जानने के लिए हमने दिल्ली के ही विश्लेषक जगदीश ममगई को फोन किया, जिनकी निगम चुनाव पर बारीक नजर थी. उन्होंने स्पष्ट कहा कि बीजेपी का कोर वोटर कई जगहों पर नहीं निकला. पार्टी के बड़े नेताओं ने अपने काडर को मनाने का भी प्रयास नहीं किया. हालांकि आम आदमी पार्टी के कई प्रत्याशी बहुत कमजोर निकले. वे अवसर का लाभ नहीं उठा सके. कई जगहों पर कांग्रेस को इसलिए अधिक वोट मिले, कि वहां के लोग बीजेपी प्रत्याशी से नाराज थे. एक उदाहरण के साथ उन्होंने बताया कि वे जब वोटिंग का नजारा लेने विकास नगर के कई पोलिंग केंद्रों पर गए तो वहां भी कूड़े का ढेर लगा था. एमसीडी ने इस दिन भी कूड़ा उठाना मुसासिब नहीं समझा. इसी से उसकी कार्यशैली का अंदाजा लगा सकते हैं.