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कोरोना के बाद डायबिटीज ने बढ़ाई टेंशन, जानिए क्या है कारण? - पटना

जैसे-जैसे कोरोना के केस कम हो रहे हैं, वैसे ही डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. बड़ी संख्या में वैसे लोग भी सामने आ रहे हैं, जिन्हें कुछ समय पहले तक डायबिटीज की शिकायत नहीं थी. डॉक्टर इसके पीछे कई वजह बताते हैं. इनमें कोरोना काल में इस बीमारी को गंभीरता से नहीं लेना और बिना चिकित्सीय सलाह के अन्य तरह की दवाइयों का सेवन करना भी बताते हैं.

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Published : Jun 15, 2021, 7:25 PM IST

पटना: प्रदेश में कोरोना (Corona) की दूसरी लहर का पीक खत्म होने के साथ ही डायबिटीज (Diabetes) के नए मामलों की संख्या में काफी तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. जिससे आम लोगों के साथ ही डॉक्टरों की भी चिंता बढ़ गई है. कोरोना के बाद डायबिटीज के नए मरीजों की बढ़ती संख्या को लेकर डॉक्टरों का कहना है कि लोगों ने कोरोना काल में सिर्फ कोरोना बीमारी खत्म करने पर ध्यान दिया और बाकी अन्य चीजों का ख्याल नहीं रखा. ऐसे में जो लोग डायबिटीज के बॉर्डर लाइन पर थे, उन लोगों ने समय पर डायबिटीज का जांच नहीं कराया और इसका नतीजा यह हुआ कि काफी संख्या में लोग एका-एक ब्लड शुगर की बीमारी से ग्रसित हो गए.

(ग्राफिक)
ईटीवी भारत GFX.

ये भी पढ़ें- AIIMS Patna ने दी फाइटोरिलीफ दवा को मंजूरी, सेवन से 100 कोरोना मरीज हुए स्वस्थ

जांच नहीं होने से संख्या बढ़ी
पटना के इनकम टैक्स चौराहा स्थित न्यू गार्डिनर रोड हॉस्पिटल डायबिटीज की बीमारी के लिए एक स्पेशलाइज्ड केंद्र है. इस अस्पताल के अधीक्षक डॉ. मनोज कुमार सिन्हा ने बताया कि कोरोना के बाद से जिस प्रकार से ब्लड शुगर के नए मरीज तेजी से बढ़े हैं, उसके कुछ अहम कारण हैं.

  • पहला कारण यह है कि कोरोना हो या कोई भी एक्यूट इंफेक्शन की बीमारी हो, इस प्रकार की इन्फेक्शन की बीमारियों में ब्लड शुगर लेवल का बढ़ना सामान्य बात है.
  • दूसरा ये कि कोरोना काल में लोगों का ध्यान सिर्फ कोरोना से लड़ने पर केंद्रित हो गया. किसी को भी लक्षण महसूस हुए तो व्हाट्सएप पर जो कोरोना मरीजों के लिए दवा सर्कुलर हो रहा था, लोगों ने उसी पर विश्वास किया और आंख मूंदकर इन दवाइयों का सेवन किया.
    देखें रिपोर्ट

डॉ. मनोज कुमार सिन्हा के मुताबिक कोरोना के इलाज में शामिल दवाइयों में कुछ दवाएं स्ट्राइड की भी थी. स्ट्राइड के अत्यधिक सेवन के वजह से लोगों में ब्लड शुगर का मामला काफी बढ़ गया है. स्ट्राइड के अधिक यूज से जिस प्रकार से लोगों में ब्लड शुगर बढ़ा, उसका एक खामियाजा यह हुआ कि काफी संख्या में लोगों में फंगल बीमारियां देखने को मिलने लगी और ब्लैक फंगस उनमें से सबसे प्रमुख हैं.

(ग्राफिक)
ईटीवी भारत GFX.

बिना चिकित्सीय सलाह के दवाई का सेवन
डॉ. मनोज कुमार सिन्हा ने बताया कि कोरोना के समय लोगों ने अपने अन्य बीमारियों पर ध्यान नहीं दिया. कोई भी जब एक्यूट इंफेक्शन होता है, शरीर का शुगर लेवल बढ़ जाता है, किडनी और लीवर के फंक्शन में परेशानी आने लगती है. ऐसे में चिकित्सक मरीज का इलाज सभी लक्षणों के आधार पर करते हैं, जबकि कोरोना काल में लोगों ने बिना किसी चिकित्सीय परामर्श के विभिन्न दवाइयों का सेवन शुरू कर दिया. जिस वजह से शरीर में कई अन्य नई बीमारियां उभर कर सामने आने लगीं.

(ग्राफिक)
ईटीवी भारत GFX.

वे कहते हैं कि लोगों ने नियमित अंतराल पर अपना ब्लड शुगर जांच नहीं कराया. जिस वजह से जो लोग बॉर्डर लाइन पर थे, वह ब्लड शुगर से ग्रसित हो गए. डॉ. मनोज कहते हैं कि वैसे भी देखा जाए तो अपने देश में डायबिटीज के मरीज बड़ी संख्या में हैं.

  • वे कहते हैं कि भारत के शहरी क्षेत्रों में 18 से 20 फीसदी लोग डायबिटीज से ग्रसित हैं. जबकि 15 से 20 फीसदी ऐसे लोग हैं, जो डायबिटीज के बॉर्डर लाइन पर रहते हैं या फिर डायबिटीज के शिकार भी हुए रहते हैं, मगर उन्हें पता नहीं रहता.
  • वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में डायबिटीज से ग्रसित लोगों की संख्या आठ से 11 प्रतिशत है और लगभग 10 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो डायबिटीज से ग्रसित हैं . मगर उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती, क्योंकि वह अपना डायबिटीज की जांच नहीं कराते.
    (ग्राफिक)
    ईटीवी भारत GFX.

ये भी पढ़ें- कोरोना की दवा पर GST कम होने पर विपक्ष का वार- 'लोगों को दिग्भ्रमित करने में जुटी सरकार'

भारत में डायबिटीज के अधिक मरीज
आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर में डायबिटीज के सबसे ज्यादा मामले भारत में ही हैं. भारत की लगभग 5 फीसदी आबादी डायबिटीज से पीड़ित है. डायबिटीज कई तरह की होती है- टाइप-1, टाइप-2 और गेस्टेशनल डायबिटीज. टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज बेहद जानलेवा होती है. वहीं, गेस्टेशनल डायबिटीज गर्भावस्था के दौरान होती है, जो बच्चे के जन्म के बाद खुद ही खत्म हो जाती है.

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पटना: प्रदेश में कोरोना (Corona) की दूसरी लहर का पीक खत्म होने के साथ ही डायबिटीज (Diabetes) के नए मामलों की संख्या में काफी तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. जिससे आम लोगों के साथ ही डॉक्टरों की भी चिंता बढ़ गई है. कोरोना के बाद डायबिटीज के नए मरीजों की बढ़ती संख्या को लेकर डॉक्टरों का कहना है कि लोगों ने कोरोना काल में सिर्फ कोरोना बीमारी खत्म करने पर ध्यान दिया और बाकी अन्य चीजों का ख्याल नहीं रखा. ऐसे में जो लोग डायबिटीज के बॉर्डर लाइन पर थे, उन लोगों ने समय पर डायबिटीज का जांच नहीं कराया और इसका नतीजा यह हुआ कि काफी संख्या में लोग एका-एक ब्लड शुगर की बीमारी से ग्रसित हो गए.

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जांच नहीं होने से संख्या बढ़ी
पटना के इनकम टैक्स चौराहा स्थित न्यू गार्डिनर रोड हॉस्पिटल डायबिटीज की बीमारी के लिए एक स्पेशलाइज्ड केंद्र है. इस अस्पताल के अधीक्षक डॉ. मनोज कुमार सिन्हा ने बताया कि कोरोना के बाद से जिस प्रकार से ब्लड शुगर के नए मरीज तेजी से बढ़े हैं, उसके कुछ अहम कारण हैं.

  • पहला कारण यह है कि कोरोना हो या कोई भी एक्यूट इंफेक्शन की बीमारी हो, इस प्रकार की इन्फेक्शन की बीमारियों में ब्लड शुगर लेवल का बढ़ना सामान्य बात है.
  • दूसरा ये कि कोरोना काल में लोगों का ध्यान सिर्फ कोरोना से लड़ने पर केंद्रित हो गया. किसी को भी लक्षण महसूस हुए तो व्हाट्सएप पर जो कोरोना मरीजों के लिए दवा सर्कुलर हो रहा था, लोगों ने उसी पर विश्वास किया और आंख मूंदकर इन दवाइयों का सेवन किया.
    देखें रिपोर्ट

डॉ. मनोज कुमार सिन्हा के मुताबिक कोरोना के इलाज में शामिल दवाइयों में कुछ दवाएं स्ट्राइड की भी थी. स्ट्राइड के अत्यधिक सेवन के वजह से लोगों में ब्लड शुगर का मामला काफी बढ़ गया है. स्ट्राइड के अधिक यूज से जिस प्रकार से लोगों में ब्लड शुगर बढ़ा, उसका एक खामियाजा यह हुआ कि काफी संख्या में लोगों में फंगल बीमारियां देखने को मिलने लगी और ब्लैक फंगस उनमें से सबसे प्रमुख हैं.

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बिना चिकित्सीय सलाह के दवाई का सेवन
डॉ. मनोज कुमार सिन्हा ने बताया कि कोरोना के समय लोगों ने अपने अन्य बीमारियों पर ध्यान नहीं दिया. कोई भी जब एक्यूट इंफेक्शन होता है, शरीर का शुगर लेवल बढ़ जाता है, किडनी और लीवर के फंक्शन में परेशानी आने लगती है. ऐसे में चिकित्सक मरीज का इलाज सभी लक्षणों के आधार पर करते हैं, जबकि कोरोना काल में लोगों ने बिना किसी चिकित्सीय परामर्श के विभिन्न दवाइयों का सेवन शुरू कर दिया. जिस वजह से शरीर में कई अन्य नई बीमारियां उभर कर सामने आने लगीं.

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वे कहते हैं कि लोगों ने नियमित अंतराल पर अपना ब्लड शुगर जांच नहीं कराया. जिस वजह से जो लोग बॉर्डर लाइन पर थे, वह ब्लड शुगर से ग्रसित हो गए. डॉ. मनोज कहते हैं कि वैसे भी देखा जाए तो अपने देश में डायबिटीज के मरीज बड़ी संख्या में हैं.

  • वे कहते हैं कि भारत के शहरी क्षेत्रों में 18 से 20 फीसदी लोग डायबिटीज से ग्रसित हैं. जबकि 15 से 20 फीसदी ऐसे लोग हैं, जो डायबिटीज के बॉर्डर लाइन पर रहते हैं या फिर डायबिटीज के शिकार भी हुए रहते हैं, मगर उन्हें पता नहीं रहता.
  • वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में डायबिटीज से ग्रसित लोगों की संख्या आठ से 11 प्रतिशत है और लगभग 10 फीसदी लोग ऐसे हैं, जो डायबिटीज से ग्रसित हैं . मगर उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती, क्योंकि वह अपना डायबिटीज की जांच नहीं कराते.
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भारत में डायबिटीज के अधिक मरीज
आंकड़ों के मुताबिक, दुनियाभर में डायबिटीज के सबसे ज्यादा मामले भारत में ही हैं. भारत की लगभग 5 फीसदी आबादी डायबिटीज से पीड़ित है. डायबिटीज कई तरह की होती है- टाइप-1, टाइप-2 और गेस्टेशनल डायबिटीज. टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज बेहद जानलेवा होती है. वहीं, गेस्टेशनल डायबिटीज गर्भावस्था के दौरान होती है, जो बच्चे के जन्म के बाद खुद ही खत्म हो जाती है.

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