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Bihar Politics: शाह के मंच से 'सहयोगियों' की दूरी, क्या चिराग-कुशवाहा और सहनी को करना होगा लंबा इंतजार?

पूर्णिया की रैली में महागठबंधन के सातों दलों ने एकजुटता को प्रदर्शित कर साफ कर दिया के लोकसभा चुनाव में सभी साथ-साथ रहेंगे, वहीं पटना और बेतिया में बीजेपी की सभा में गठबंधन के सहयोगी नदारद रहे. न तो पशुपति पारस की मौजूदगी दिखी और न ही चिराग पासवान की एंट्री हुई. उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी को लेकर भी तस्वीर साफ नहीं हो पाई. मतलब अभी संभावित साथियों को इंतजार करना होगा.

अमित शाह की रैली
अमित शाह की रैली
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Published : Feb 26, 2023, 7:42 AM IST

पटना: बिहार में बीजेपी और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है. सत्ता पक्ष से दो-दो हाथ के लिए भारतीय जनता पार्टी ने कमर कस ली है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली (Amit Shah Rally in Bihar) से नेताओं में कार्यकर्ताओं में जोश देखने को मिल रहा है. सात दलों के गठबंधन से लोहा लेने के लिए बीजेपी भी अपने कुनबे में 7 घटक दलों को शामिल करना चाहती है. शाह के दौरे से पूर्व बिहार की सियासत में उलटफेर करते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू को बड़ा झटका दिया और नई पार्टी का गठन कर लिया. उपेंद्र कुशवाहा की बीजेपी से नजदीकियां जगजाहिर हो चुकी है. उन्होंने नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने की वकालत भी की है.

ये भी पढ़ें: Purnea Rally: 7 दलों के महागठबंधन में झोल, सीएम नीतीश किसको साथ न छोड़ने की दे रहे नसीहत?

बीजेपी को बिहार में सहयोगियों की तलाश: फिलहाल बीजेपी के साथ पशुपति पारस की पार्टी है. इसके अलावा चिराग पासवान की नजदीकियां भी जगजाहिर हैं. मुकेश सहनी की डील भी लगभग फाइनल मानी जा रही है. उधर, आरसीपी सिंह भी पार्टी बना सकते हैं. वह फिलहाल संगठन को मजबूत करने में जुटे हैं. चर्चा तो ये भी है कि जीतनराम मांझी का भी मन डोल रहा है. हालांकि नीतीश कुमार ने मांझी को आश्वासन की घुट्टी जरूर पिलाई है. गृह मंत्री के दौरे से पहले सियासी गलियारों में चर्चा थी कि इनमें से कुछ चेहरे शाह के साथ मंच साझा कर सकते हैं लेकिन ऐसा देखने को नहीं मिला.

चिराग-कुशवाहा और सहनी को करना होगा इंतजार: बदलते राजनीतिक परिदृश्य में उम्मीद की जा रही थी कि अमित शाह के मंच पर एनडीए में शामिल होने वाले कुछ दल के नेता दिख सकते हैं लेकिन बीजेपी की ओर से फिलहाल सहयोगी दलों को लेकर जल्दबाजी नहीं दिखाई जा रही है. अमित शाह के मंच पर ना तो चिराग पासवान दिखे और ना ही उपेंद्र कुशवाहा को जगह दी गई. इससे ये भी साफ है कि बीजेपी के सहयोगी दलों को अभी और इंतजार करना पड़ सकता है. छोटे दलों ने बीजेपी के साथ आने का मन तो बना लिया है लेकिन औपचारिक ऐलान होना बाकी है. फिलहाल तमाम दलों के नेताओं को बिहार की जनता के बीच जाने को कहा गया है. शायद बीजेपी इन नेताओं की ताकत और जनता में रेस्पॉन्स को समझना चाह रही है ताकि उसी हिसाब से सीटों पर मोल-भाव किया जाएगा.

पटना: बिहार में बीजेपी और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है. सत्ता पक्ष से दो-दो हाथ के लिए भारतीय जनता पार्टी ने कमर कस ली है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रैली (Amit Shah Rally in Bihar) से नेताओं में कार्यकर्ताओं में जोश देखने को मिल रहा है. सात दलों के गठबंधन से लोहा लेने के लिए बीजेपी भी अपने कुनबे में 7 घटक दलों को शामिल करना चाहती है. शाह के दौरे से पूर्व बिहार की सियासत में उलटफेर करते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू को बड़ा झटका दिया और नई पार्टी का गठन कर लिया. उपेंद्र कुशवाहा की बीजेपी से नजदीकियां जगजाहिर हो चुकी है. उन्होंने नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने की वकालत भी की है.

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बीजेपी को बिहार में सहयोगियों की तलाश: फिलहाल बीजेपी के साथ पशुपति पारस की पार्टी है. इसके अलावा चिराग पासवान की नजदीकियां भी जगजाहिर हैं. मुकेश सहनी की डील भी लगभग फाइनल मानी जा रही है. उधर, आरसीपी सिंह भी पार्टी बना सकते हैं. वह फिलहाल संगठन को मजबूत करने में जुटे हैं. चर्चा तो ये भी है कि जीतनराम मांझी का भी मन डोल रहा है. हालांकि नीतीश कुमार ने मांझी को आश्वासन की घुट्टी जरूर पिलाई है. गृह मंत्री के दौरे से पहले सियासी गलियारों में चर्चा थी कि इनमें से कुछ चेहरे शाह के साथ मंच साझा कर सकते हैं लेकिन ऐसा देखने को नहीं मिला.

चिराग-कुशवाहा और सहनी को करना होगा इंतजार: बदलते राजनीतिक परिदृश्य में उम्मीद की जा रही थी कि अमित शाह के मंच पर एनडीए में शामिल होने वाले कुछ दल के नेता दिख सकते हैं लेकिन बीजेपी की ओर से फिलहाल सहयोगी दलों को लेकर जल्दबाजी नहीं दिखाई जा रही है. अमित शाह के मंच पर ना तो चिराग पासवान दिखे और ना ही उपेंद्र कुशवाहा को जगह दी गई. इससे ये भी साफ है कि बीजेपी के सहयोगी दलों को अभी और इंतजार करना पड़ सकता है. छोटे दलों ने बीजेपी के साथ आने का मन तो बना लिया है लेकिन औपचारिक ऐलान होना बाकी है. फिलहाल तमाम दलों के नेताओं को बिहार की जनता के बीच जाने को कहा गया है. शायद बीजेपी इन नेताओं की ताकत और जनता में रेस्पॉन्स को समझना चाह रही है ताकि उसी हिसाब से सीटों पर मोल-भाव किया जाएगा.

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