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सुशासन के दावे को मुंह चिढ़ाती तस्वीर: कड़ाके की ठंड में भी टैंपो में सोने को मजबूर है ये महिला

देश के सभी नागरिकों को 2022 तक पक्का घर मुहैया कराने के लिए पीएम मोदी ने 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की थी. मिशन के तौर पर चल रही इस योजना के तहत शहरी क्षेत्र में एक गरीब व्यक्ति 30 वर्ग मीटर कार्पेट एरिया में घर का निर्माण करवा सकता है. वहीं इसी योजना के तहत निम्न आय वर्ग (LIG) और मध्यम आय वर्ग (MIG) के लोग कम ब्याज दर पर लोन लेकर अपने घर का सपना पूरा कर सकते हैं.

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मोकामा प्रखंड की भयावह तस्वीर
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Published : Dec 4, 2020, 1:06 PM IST

पटना: बिहार में सुशासन का दावा करने वाले सीएम नीतीश कुमार के लिए मोकामा प्रखंड की यह तस्वीर काफी मुंह चिढ़ाने वाली हो सकती है. लेकिन सरकारी योजनाओं की शायद यही हकीकत है. इस प्रखंड की मोर पश्चिमी पंचायत की सुल्तानपुर बिंद टोली में वर्षों से सरिता देवी का परिवार एक ऑटो में जिंदगी गुजार रहा है.

मोर गांव की एक महिला टैंपो में गुजार रही है जिंदगी
इंदिरा आवास योजना और पीएम आवास योजना का लाभ आज तक इस गरीब परिवार तक नहीं पहुंचा है. सरिता देवी का मिट्टी का मकान काफी जर्जर है, जिसमें रहना जान जोखिम में डालने के समान है. लिहाजा सरिता देवी इस ठंढ में भी ऑटो में ही जिंदगी गुजार रही हैं. सरकारी आवास योजनाओं में रिश्वतखोरी के कारण आज तक यह परिवार एक छत के लिए तरस रहा है. सरिता देवी की दयनीय दशा को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अधिकारियों से एक आवास मुहैया कराने की मांग की है.

पेश है रिपोर्ट

अधिकारियों से आवास मुहैया कराने की मांग
सरिता देवी ने बताया कि उनकी हालत बद से बद्तर हो गई है. एक पुराने ऑटो में ही पुरे परिवार का रहना खाना सब हो रहा है. एक पुराने ऑटो में ही जिंदगी गुजारने को उनके परिवार के 12 लोग मजबूर हैं. किसी तरह कड़ाके की ठंढ में रात गुजारने को परिवार के लोग मजबूर हैं. उन्होंने अधिकारियों से आवास मुहैया कराने की मांग की है.

क्या है प्रधानमंत्री आवास योजना
प्रधानमंत्री आवास एक ऐसी योजना है, जिसके तहत हर पंचायतों में बड़े पैमाने पर आवास का निर्माण कराए जाना है. इस योजना में बेघरों और कच्चे मकानों में रहने वालों को मकान देना है, लेकिन आज भी कई गरीब बेघर इस योजना के लाभ से वंचित हैं. या यूं कहे तो सरकारी आवास योजनाओं में रिश्वतखोरी के कारण आज तक यह परिवार एक छत के लिए तरस रहा है. गरीब बेघर लोग टूटी झोपड़ी में जिन्दगी गुजारने को मजबूर हैं. केंद्र और राज्य सरकार गरीबों को पक्का मकान देने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से क्षेत्र के गरीब लोगों के पक्के मकान की ख्वाहिश सिर्फ सपना बनके ही रह गया है.

भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों पर कब होगी कार्रवाई
ऐसे में कई सवाल सामने आते हैं. क्या अधिकारी मिली भगत से मकानों के नाम पर आ रहे पैसों को खुद आपस में मिल बांट कर खर्च कर रहे हैं ? क्या अधिकारी और स्थानीय प्रशासन अपने मकान बनवा रहे हैं ? सवाल ये भी कि आखिर गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ क्यों नहीं पहुंच पा रहा है? अगर ये सच है तो फिर सवाल यह है कि गरीबों के हक मारने वाले भ्रष्टाचार अधिकारियों पर कब कार्रवाई होगी ?

पटना: बिहार में सुशासन का दावा करने वाले सीएम नीतीश कुमार के लिए मोकामा प्रखंड की यह तस्वीर काफी मुंह चिढ़ाने वाली हो सकती है. लेकिन सरकारी योजनाओं की शायद यही हकीकत है. इस प्रखंड की मोर पश्चिमी पंचायत की सुल्तानपुर बिंद टोली में वर्षों से सरिता देवी का परिवार एक ऑटो में जिंदगी गुजार रहा है.

मोर गांव की एक महिला टैंपो में गुजार रही है जिंदगी
इंदिरा आवास योजना और पीएम आवास योजना का लाभ आज तक इस गरीब परिवार तक नहीं पहुंचा है. सरिता देवी का मिट्टी का मकान काफी जर्जर है, जिसमें रहना जान जोखिम में डालने के समान है. लिहाजा सरिता देवी इस ठंढ में भी ऑटो में ही जिंदगी गुजार रही हैं. सरकारी आवास योजनाओं में रिश्वतखोरी के कारण आज तक यह परिवार एक छत के लिए तरस रहा है. सरिता देवी की दयनीय दशा को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अधिकारियों से एक आवास मुहैया कराने की मांग की है.

पेश है रिपोर्ट

अधिकारियों से आवास मुहैया कराने की मांग
सरिता देवी ने बताया कि उनकी हालत बद से बद्तर हो गई है. एक पुराने ऑटो में ही पुरे परिवार का रहना खाना सब हो रहा है. एक पुराने ऑटो में ही जिंदगी गुजारने को उनके परिवार के 12 लोग मजबूर हैं. किसी तरह कड़ाके की ठंढ में रात गुजारने को परिवार के लोग मजबूर हैं. उन्होंने अधिकारियों से आवास मुहैया कराने की मांग की है.

क्या है प्रधानमंत्री आवास योजना
प्रधानमंत्री आवास एक ऐसी योजना है, जिसके तहत हर पंचायतों में बड़े पैमाने पर आवास का निर्माण कराए जाना है. इस योजना में बेघरों और कच्चे मकानों में रहने वालों को मकान देना है, लेकिन आज भी कई गरीब बेघर इस योजना के लाभ से वंचित हैं. या यूं कहे तो सरकारी आवास योजनाओं में रिश्वतखोरी के कारण आज तक यह परिवार एक छत के लिए तरस रहा है. गरीब बेघर लोग टूटी झोपड़ी में जिन्दगी गुजारने को मजबूर हैं. केंद्र और राज्य सरकार गरीबों को पक्का मकान देने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से क्षेत्र के गरीब लोगों के पक्के मकान की ख्वाहिश सिर्फ सपना बनके ही रह गया है.

भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों पर कब होगी कार्रवाई
ऐसे में कई सवाल सामने आते हैं. क्या अधिकारी मिली भगत से मकानों के नाम पर आ रहे पैसों को खुद आपस में मिल बांट कर खर्च कर रहे हैं ? क्या अधिकारी और स्थानीय प्रशासन अपने मकान बनवा रहे हैं ? सवाल ये भी कि आखिर गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ क्यों नहीं पहुंच पा रहा है? अगर ये सच है तो फिर सवाल यह है कि गरीबों के हक मारने वाले भ्रष्टाचार अधिकारियों पर कब कार्रवाई होगी ?

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