पटना: देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की 3 दिसंबर को 136 वीं जयंती मनायी जाएगी. इस दिन बिहार राजेंद्र प्रसाद की जयंती को मेधा दिवस के रूप में मनाता है. बिहार वासियों की लगातार पिछले कई वर्षों से मांग रही है कि केंद्र सरकार भी 3 दिसंबर को 'राष्ट्रीय मेधा दिवस' घोषित कर दे.
देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कार्यों और उनकी मेधा का बखान विद्वान अपनी-अपनी भाषा में करते रहे है. ऐसे में इस बार उनकी 136 वीं जयंती के पूर्व बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका मनीषा श्रीवास्तव ने प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की महिमा और योग्यता का बखान करते हुए उनके बायोग्राफी पर एक बहुत ही खूबसूरत गीत गाया है.
3 दिसंबर को रिलीज होगा सॉन्ग
गाने की बोल संजय चतुर्वेदी ने लिखे हैं और यह 136 वीं जयंती के मौके पर 3 दिसंबर के दिन सोशल प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने जा रहा है. लोक गायिका मनीषा श्रीवास्तव ने बताया कि आज हम अपने देश के महापुरुषों और उनके कारनामों को भूलते जा रहे हैं. ऐसे में अपनी समृद्ध विरासत को बचाए रखने के लिए इसे याद रखना बेहद आवश्यक है. उन्होंने कहा कि वह अपने गाने के माध्यम से देशरत्न राजेंद्र प्रसाद की जीवनी को एक गाने में लयबद्ध किया है.
'ताकि जीवंत हो सकें राजेंद्र बाबू के विचार'
गायिका ने कहा कि देश में जब भी मेधा की चर्चा होती है तो सबसे ऊपर नाम डॉ. राजेंद्र प्रसाद का आता है और वह सादगी के मिसाल थे. सादा जीवन-उच्चविचार उनका व्यक्तित्व था और वह बहुत ही मधुर भाषी थे. उन्होंने कहा कि उनके गाने का उद्देश्य यह है कि गाना सुन अधिक से अधिक लोग देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के कार्यों और संविधान निर्माण में उनके योगदान के बारे में जान सके.
प्रथम राष्ट्रपति के बारे में
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार के जीरादेई में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था.
- उनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था.
- उनके पिता संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे एवं माता धर्मपरायण महिला थीं.
- बचपन में राजेन्द्र बाबू जल्दी सो जाते और सुबह जल्दी उठकर अपनी मां को भी जगा दिया करते थे.
- उनकी मां उन्हें रोजाना भजन-कीर्तन, प्रभाती सुनाती थीं.
- इतना ही नहीं, वे अपने लाड़ले पुत्र को महाभारत-रामायण की कहानियां भी सुनाती थीं और राजेन्द्र बाबू बड़ी तन्मयता से उन्हें सुनते थे.
- इसका गहरा असर उनके जीवन पर भी पड़ा.
- राजेंद्र बाबू की प्रारंभिक शिक्षा छपरा (बिहार) के जिला स्कूल से हुई थी.
- मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की.
- इसके बाद उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर लॉ के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की.
- वे हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली एवं फारसी भाषा से पूरी तरह परिचित थे.
- एक वकील के रूप में अपने करियर की शुरुआत करते हुए उनका पदार्पण भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन हो गया था.
- वे अत्यंत सौम्य और गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे. सभी वर्ग के व्यक्ति उन्हें सम्मान देते थे. वे सभी से प्रसन्नचित्त होकर निर्मल भावना से मिलते थे.
- भारत के राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक रहा.
- 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर उन्हें 'भारत रत्न' की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित किया गया.