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आधा शरीर है बेजान फिर भी इस शिक्षक के हौसले हैं बुलंद, दशकों से चल रही है इनकी पाठशाला

नवादा में एक शिक्षक ऐसे हैं, जिनका शरीर आधा बेजान है. बावजूद इसके वो शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. उनकी जिंदगी के हादसे और उसके बाद आईं मुसीबतें भी उन्हें हरा नहीं सकीं. पढ़ें पूरी खबर...

TEACHERS DAY SPECIAL
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Published : Sep 5, 2021, 6:15 AM IST

नवादा: देशभर में आज शिक्षक दिवस (Teachers Day) मनाया जा रहा है. ऐसे में उन शिक्षकों का जिक्र करना बेहद जरूरी हो जाता है, जो जिंदगी के बुरे दौर से गुजरते हुए भी नौनिहालों को पढ़ा रहे हैं. ऐसे ही एक शिक्षक (Teachers) हैं परमानंद प्रसाद उर्फ प्रमोद कुमार, जो दिव्यांग हैं. बावजूद इसके, उनके हौसले बुलंद हैं और वो बच्चों को पढ़ाते नजर आते हैं.

यह भी पढ़ें - शिक्षक की अनोखी पहल, माइकिंग के जरिए स्कूल आने के लिए बच्चों को किया जागरुक

जिले के जिले वारिसलीगंज प्रखंड के मिल्की गांव के प्रमोद सर की क्लास चलती है. प्रमोद कुमार का शरीर कमर के निचले हिस्से से पूरी तरह बेजान है. वो चल नहीं पाते, अपनी खाट में किसी तरह बैठते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं. दरअसल, 1992 में एक हादसे के उनका आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया. इलाज के बावजूद वो पूरी तरह ठीक नहीं हो पाये. लेकिन उन्होंने अपना हौसला मजबूत रखा. अपनी जिंदगी के उस हादसे के बारे में बताते हैं.

TEACHERS DAY SPECIAL
बच्चों को पढ़ाते प्रमोद कुमार

प्रमोद बताते हैं कि उनके साथ जब एक्सीडेंट हुआ, तब वो 18 साल के थे. नवादा आईटीआई में ट्रेनिंग कर रहे थे. इस दौरान उनके शिक्षक ने नीम के पेड़ खड़का की डिमांड की. इसके बाद वो रेलवे फाटक के पास स्थित नीम के पेड़ का खड़का चुनने चले गये. तभी उनके ऊपर लोहे की एक भारी रॉड गिर पड़ी और वो बुरी तरह घायल हो गये. इलाज के बाद पता चला कि उनका आधा शरीर बेजान हो गया है.

इस हादसे के बाद से प्रमोद कुमार की पढ़ाई छूट गई और उनके सारे सपने अधूरे रह गये. अपने जवान बेटे की ऐसी हालत देख, इस सदमे को उनके माता-पिता झेल नहीं पाए. और कुछ साल बाद दोनों का निधन हो गया. हां, छोटे भाई ने उनकी पूरी देखभाल की और आज भी कर रहे हैं.

TEACHERS DAY SPECIAL
मन लगाकर पढ़ते हैं बच्चे

प्रमोद बताते हैं कि जब उनके साथ ये हादसा हुआ था. तब उनके परिवार की माली स्थिति सही नहीं थी. इन सब परिस्थितियों से लड़ते रहे. कभी हिम्मत नहीं हारी. प्रमोद ने बताया कि जब मेरा सपना अधूरा रह गया, उस दौरान मेरे मन में बच्चों को पढ़ाकर इसे पूरा करने की ख्याल आया. फिर उस दिन से लेकर आज तक मैं बच्चों को पढ़ा रहा हूं.

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प्रमोद के घर पर लगती है पाठशाला

प्रमोद 1995 से बच्चों को पढ़ा रहे हैं. उनसे पढ़ने वाले बच्चे बताते हैं कि सर मैथ, साइंस और इंग्लिश तीनों विषय बहुत अच्छे से पढ़ाते हैं. हमें बहुत बढ़िया से समझ आता है. वहीं, पास पड़ोस के लोग बताते हैं कि प्रमोद सर के पढ़ाए हुए बच्चे आज अच्छे मुकाम पर पहुंच चुके हैं. कोई सरकारी नौकरी कर रहा है, तो कई सेना में जवान हैं.

यह भी पढ़ें - बोरा बेच रहे बिहार के मास्टर साहब...जानें क्यों?

नवादा: देशभर में आज शिक्षक दिवस (Teachers Day) मनाया जा रहा है. ऐसे में उन शिक्षकों का जिक्र करना बेहद जरूरी हो जाता है, जो जिंदगी के बुरे दौर से गुजरते हुए भी नौनिहालों को पढ़ा रहे हैं. ऐसे ही एक शिक्षक (Teachers) हैं परमानंद प्रसाद उर्फ प्रमोद कुमार, जो दिव्यांग हैं. बावजूद इसके, उनके हौसले बुलंद हैं और वो बच्चों को पढ़ाते नजर आते हैं.

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जिले के जिले वारिसलीगंज प्रखंड के मिल्की गांव के प्रमोद सर की क्लास चलती है. प्रमोद कुमार का शरीर कमर के निचले हिस्से से पूरी तरह बेजान है. वो चल नहीं पाते, अपनी खाट में किसी तरह बैठते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं. दरअसल, 1992 में एक हादसे के उनका आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया. इलाज के बावजूद वो पूरी तरह ठीक नहीं हो पाये. लेकिन उन्होंने अपना हौसला मजबूत रखा. अपनी जिंदगी के उस हादसे के बारे में बताते हैं.

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बच्चों को पढ़ाते प्रमोद कुमार

प्रमोद बताते हैं कि उनके साथ जब एक्सीडेंट हुआ, तब वो 18 साल के थे. नवादा आईटीआई में ट्रेनिंग कर रहे थे. इस दौरान उनके शिक्षक ने नीम के पेड़ खड़का की डिमांड की. इसके बाद वो रेलवे फाटक के पास स्थित नीम के पेड़ का खड़का चुनने चले गये. तभी उनके ऊपर लोहे की एक भारी रॉड गिर पड़ी और वो बुरी तरह घायल हो गये. इलाज के बाद पता चला कि उनका आधा शरीर बेजान हो गया है.

इस हादसे के बाद से प्रमोद कुमार की पढ़ाई छूट गई और उनके सारे सपने अधूरे रह गये. अपने जवान बेटे की ऐसी हालत देख, इस सदमे को उनके माता-पिता झेल नहीं पाए. और कुछ साल बाद दोनों का निधन हो गया. हां, छोटे भाई ने उनकी पूरी देखभाल की और आज भी कर रहे हैं.

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मन लगाकर पढ़ते हैं बच्चे

प्रमोद बताते हैं कि जब उनके साथ ये हादसा हुआ था. तब उनके परिवार की माली स्थिति सही नहीं थी. इन सब परिस्थितियों से लड़ते रहे. कभी हिम्मत नहीं हारी. प्रमोद ने बताया कि जब मेरा सपना अधूरा रह गया, उस दौरान मेरे मन में बच्चों को पढ़ाकर इसे पूरा करने की ख्याल आया. फिर उस दिन से लेकर आज तक मैं बच्चों को पढ़ा रहा हूं.

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प्रमोद के घर पर लगती है पाठशाला

प्रमोद 1995 से बच्चों को पढ़ा रहे हैं. उनसे पढ़ने वाले बच्चे बताते हैं कि सर मैथ, साइंस और इंग्लिश तीनों विषय बहुत अच्छे से पढ़ाते हैं. हमें बहुत बढ़िया से समझ आता है. वहीं, पास पड़ोस के लोग बताते हैं कि प्रमोद सर के पढ़ाए हुए बच्चे आज अच्छे मुकाम पर पहुंच चुके हैं. कोई सरकारी नौकरी कर रहा है, तो कई सेना में जवान हैं.

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