नवादाः कभी वारसलीगंज के चीनी मिल के चिमनियों से निकलने वाली खुशबू हजारों किसान मजदूर की जिंदगी में मिठास भर देता था. लेकिन आज यह अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. यह मिल कभी हजारों श्रमिकों के रोजगार का जरिया हुआ करता था. सरकार का उद्योग के प्रति उदासीन रवैये ने लोगों को रोजगार के लिए पलायन होने को मजबूर कर दिया. लेकिन कोरोना संकट ने उन्हें वापिस घर बुला लिया है. अब उन्हें रोजगार की जरूरत है.
चीनी मिल बंद होने से श्रमिकों का छिन गया रोजगार
वहीं, कोरोना संकट के इस दौर में प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार भरोसा और दिलासा देने में लगे हुए हैं. साथ ही कह रहे हैं कि यहीं रहिए, रोजगार मिलेगा. लेकिन लाखों की संख्या में आये प्रवासियों को रोजगार कहां और कैसे मिलेगा, यह अहम प्रश्न बना हुआ है. ऐसी स्थिति में एक साथ हजारों श्रमिकों को रोजगार देने की जब भी बात उठती हैं, तो जिले के लोगों में एक ही सवाल उठता है कि वारसलीगंज चीनी उद्योग कब चालू होगा.
वारसलीगंज चीनी मिल के चालू होने का किसान कर रहे इंतजार
दरअसल, जिले के वारसलीगंज चीनी मिल के चालू होने का इंतजार सिर्फ किसान ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि वहां काम करनेवाले कर्मी और बेरोजगार नौजवान भी कर रहे हैं. चीनी मिल बंद हुए करीब 26 वर्ष से अधिक हो गए हैं. कुछ को अभी भी इंतजार हैं. उन्हें लगता है कि एक दिन चीनी मिल के चिमनी से धुआं जरूर निकलेगा. वहीं, कुछ लोगों की उम्मीदें टूट चुकी हैं.
टूट गई आस, किसान और कर्मी निराश
चीनी मिल में पिछले 30 वर्षों से काम कर रहे राम विलास का कहना है कि यहां जबरदस्त खेती होती थी. लेकिन जब से मिल बंद हो गया. किसान की हालत दिनों दिन खराब होती चली गईा. यहां 1200 कर्मी काम करते थे. कितने तो बिना वेतन के ही मर गए. वहीं, किसान श्रवण कुमार का कहना है कि यहां के किसान निराश हो गए हैं. हम लोगों का भरोसा खत्म होने लगा है. वहीं, उन्होंने कहा कि केंद्र में बीजेपी की सरकार राज्य में भी बीजेपी गठबंधन की सरकार, फिर भी जब चालू नहीं हो सका तो अब क्या होगा. यह लोग खुद नहीं चाहते कि चीनी मिल चालू हो. अगर चीनी मिल चालू हो जाता है तो उनका मुद्दा ही खत्म हो जाएगा.
चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है चीनी मिल
वहीं, चीनी मिल बंद होने से जहां हजारों किसान परेशान हैं. उनकी आमदनी का जरिया और बेरोजगार युवकों के लिए रोजगार खत्म हो गया है, तो वहीं दूसरी ओर नेताओं के लिए यह चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है. शायद ही कोई ऐसा चुनाव हो जिसमें यह चुनावी मुद्दा ना बना हो. जब पहली बार नीतीश मुख्यमंत्री बने, तो लोगों में आस जगी थी. लेकिन 15 साल बाद भी चीनी मिल की स्थिति जस की तस बनी हुई है.
सांसद और विधायक भी सदन में चीनी मिल शुरू करने की उठा चुके हैं मांग
1992-93 में चीनी मिल बंद होने के बाद से लगातार चुनावी मुद्दे बने हुए हैं. हालांकि इसको चालू कराने को लेकर वर्तमान एलजेपी सांसद चंदन सिंह लोकसभा में मांग कर चुके हैं. जिस पर संबंधित विभाग के मंत्री नितिन गडकरी ने उन्हें मिल बैठकर समस्या सुलझाने के लिए आमंत्रित किया था. वहीं, वारसलीगंज से बीजेपी विधायक अरुणा देवी ने भी विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया है. लेकिन उनका कहना है कि राज्य सरकार हमारी बातों को सुन नहीं रही. हम चाहते हैं कि चीनी मिल शीघ्र चालू हो.