नालंदा: चुनाव के समय एनडीए ने राष्ट्रवाद और सेना की शहादत का अमलीजामा पहनाकर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार तो बना लिया. लेकिन उनके वादें सिर्फ भाषणों तक ही सिमट कर रह गए हैं या फिर यूं कहें कि उन भाषणों का असर पदाधिकारियों पर नहीं हुआ है. तभी तो राज्य की सुरक्षा में लगे जवानों की हालात बद से बदतर है.
सुरक्षाबलों के साथ होता है भेदभाव
बिहारशरीफ में बनाया गया परिसदन इसकी सच्चाई बयां करता है. करोड़ों रुपये की लागत से इस परिसदन का निर्माण कराया गया था. इसमें सुरक्षाकर्मियों के साथ-साथ मंत्रियों और अधिकारियों के भी रहने के इंतजाम किए गए हैं. लेकिन आज इस परिसदन में रहने वाले सुरक्षाबलों के साथ भेदभाव बरती जा रही है.
खानाबदोश जिंदगी जीने को मजबूर
इस परिसदन के अंदर ठहरने के लिए दर्जनों शानदार कमरों का निर्माण कराया गया है. लेकिन सुरक्षाकर्मियों की रहने की बात की जाय तो पूरे भवन को छोड़कर इनके रहने के लिए बरामदे में व्यवस्था की गई है. इस चिलचिलाती धूप में इन सुरक्षाकर्मियों को आपातकाल के लिए बिहारशरीफ परिसदन में रखा गया है, लेकिन इन्हें मंत्रियों, विधायकों और बड़े पदाधिकारियों की तरह रहने देने की तो बात दूर, इन्हें छोटी-छोटी सुविधाएं भी मुहैया नहीं कराई गई हैं.
पदाधिकारियों का चलता है रौब
बता दें कि इस परिसदन के आसपास कई ऐसे कमरे हैं जो पूरी तरह से खाली हैं. बावजूद इसके इन सुरक्षाकर्मियों को खानाबदोश की तरह एक बरामदे पर रहने को मजबूर कर दिया है. इस बारे में सुरक्षाकर्मी बताते हैं कि अगर इनकी जुबान खुलती है तो बड़े पदाधिकारियों के रौब का डंडा इनके ऊपर चलता है. यही कारण है कि यह सुरक्षाकर्मी अपना मुंह बंद कर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं.