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सावन में नहीं होली के दिन ही होती है इस प्राचीन शिवलिंग की पूजा, जानें वजह - nawada latest news

सावन आते ही शिवालय में भक्तों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है. लोग बड़े ही श्रद्धापूर्वक शिवलिंग पर फूल, बेलपत्र, अक्षत, भांग-धतुरा और दूध चढ़ाते हैं. लेकिन नवादा जिले के नरहट प्रखंड के बेरौटा गांव स्थित प्राचीन शिवलिंग का सावन के महीने में पूजा नहीं होती. इस शिवलिंग की पूजा साल में मात्र एकबार होली के दिन की जाती है.

नवादा का प्राचीन शिवलिंग
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Published : Aug 12, 2019, 11:35 PM IST

नवादा: सावन महीना आते ही मंदिरो में जहां भीड़ लगता है. वहीं नरहट प्रखंड के प्राचीन शिवलिंग का सावन के महीने में पूजा नहीं किया जाता. बताया गया है कि इस शिवलिंग की पूजा साल में केवल एक बार होली के दिन की जाती है. सावन के महीने में यह जगह खाली पड़ा रहता है. इस प्राचीन शिवलिंग के लिए कोई मंदिर भी नहीं बनाया गया है.

इस शिवलिंग की पूजा साल में केवल एक बार होती है पूजा

साल में एकबार की जाती है इस शिवलिंग की पूजा

सावन महीने को बाबा भोलेनाथ का महीना माना जाता है. वैसे तो शिवभक्त सालभर बाबा का पूजा-अर्चना करते हैं. लेकिन सावन का महीना उनके लिए बड़ा ही खास होता है. सावन आते ही शिवालय में भक्तों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है. लोग बड़े ही श्रद्धापूर्वक शिवलिंग पर फूल, बेलपत्र, अक्षत, भांग-धथुरा और दूध चढ़ाते हैं. लेकिन नवादा जिले के नरहट प्रखंड के बेरौटा गांव स्थित प्राचीन शिवलिंग का सावन के महीनों में पूजा नहीं होता. इस शिवलिंग की पूजा साल में मात्र एकबार होली के दिन किया जाता है. इस दिन लोग सच्चे मन से साफ़-सफाई कर बड़े ही धूमधाम से पूजा करते हैं. वहीं लोगों का कहना है कि प्रशासन के अनदेखी कारण आज तक यह शिवलिंग एक छत के नीचे भी नहीं आ सका है. बताया गया है कि ये शिवलिंग बहुत ही प्राचीन है, लेकिन इसमें न ही कोई पंडित है और न ही इसका मंदिर है.

महाभारत काल से है यह शिवलिंग

इसके बारे में स्थानीय आदमी सुरेश पांडेय बताते हैं कि यह महाभारत काल से है. उन्होंने कहा कि वैसे तो इस गांव का नाम बेरौटा है लेकिन प्राचीन नाम इसका विराटनगर था. जब पांचों भाई पांडव को एक साल का अज्ञातवास हुआ तो यहीं आकर रुके थे. वहीं, रामजतन सिंह का कहना है कि यह गांव राजा विराट का दरबार है, उन्हीं के पुत्री ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी. यहाँ मां तारा की मंदिर है जो आपरूपी है. मंदिर के उत्तर एक गंगी-जमुनी तालाब है जिसमें राजा विराट की पुत्री स्नान करती थी और मंदिर में आकर माता की पूजा कर अपने दरवाजे पर शिवलिंग की पूजा करती थी. जब बाबर का राज आया तो हिंदू देवी-देवताओं पर खूब अत्याचार हुआ. बाबर इस स्थान को बर्बाद करना चाहता था, लेकिन वो जितना गढ्ढा खोदता शिवलिंग उतना ही ऊंचा हो जाता था. उसने इसे ढ़कना चाहा तो फिर यह ऊपर निकल आया. इसके बाद यह शिवलिंग इतना बाहर रह गया. हमलोग होली के दिन इसपर रंग-अबीर चढ़ाते हैं, साल में एकबार पूजा करते हैं.

नवादा: सावन महीना आते ही मंदिरो में जहां भीड़ लगता है. वहीं नरहट प्रखंड के प्राचीन शिवलिंग का सावन के महीने में पूजा नहीं किया जाता. बताया गया है कि इस शिवलिंग की पूजा साल में केवल एक बार होली के दिन की जाती है. सावन के महीने में यह जगह खाली पड़ा रहता है. इस प्राचीन शिवलिंग के लिए कोई मंदिर भी नहीं बनाया गया है.

इस शिवलिंग की पूजा साल में केवल एक बार होती है पूजा

साल में एकबार की जाती है इस शिवलिंग की पूजा

सावन महीने को बाबा भोलेनाथ का महीना माना जाता है. वैसे तो शिवभक्त सालभर बाबा का पूजा-अर्चना करते हैं. लेकिन सावन का महीना उनके लिए बड़ा ही खास होता है. सावन आते ही शिवालय में भक्तों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है. लोग बड़े ही श्रद्धापूर्वक शिवलिंग पर फूल, बेलपत्र, अक्षत, भांग-धथुरा और दूध चढ़ाते हैं. लेकिन नवादा जिले के नरहट प्रखंड के बेरौटा गांव स्थित प्राचीन शिवलिंग का सावन के महीनों में पूजा नहीं होता. इस शिवलिंग की पूजा साल में मात्र एकबार होली के दिन किया जाता है. इस दिन लोग सच्चे मन से साफ़-सफाई कर बड़े ही धूमधाम से पूजा करते हैं. वहीं लोगों का कहना है कि प्रशासन के अनदेखी कारण आज तक यह शिवलिंग एक छत के नीचे भी नहीं आ सका है. बताया गया है कि ये शिवलिंग बहुत ही प्राचीन है, लेकिन इसमें न ही कोई पंडित है और न ही इसका मंदिर है.

महाभारत काल से है यह शिवलिंग

इसके बारे में स्थानीय आदमी सुरेश पांडेय बताते हैं कि यह महाभारत काल से है. उन्होंने कहा कि वैसे तो इस गांव का नाम बेरौटा है लेकिन प्राचीन नाम इसका विराटनगर था. जब पांचों भाई पांडव को एक साल का अज्ञातवास हुआ तो यहीं आकर रुके थे. वहीं, रामजतन सिंह का कहना है कि यह गांव राजा विराट का दरबार है, उन्हीं के पुत्री ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी. यहाँ मां तारा की मंदिर है जो आपरूपी है. मंदिर के उत्तर एक गंगी-जमुनी तालाब है जिसमें राजा विराट की पुत्री स्नान करती थी और मंदिर में आकर माता की पूजा कर अपने दरवाजे पर शिवलिंग की पूजा करती थी. जब बाबर का राज आया तो हिंदू देवी-देवताओं पर खूब अत्याचार हुआ. बाबर इस स्थान को बर्बाद करना चाहता था, लेकिन वो जितना गढ्ढा खोदता शिवलिंग उतना ही ऊंचा हो जाता था. उसने इसे ढ़कना चाहा तो फिर यह ऊपर निकल आया. इसके बाद यह शिवलिंग इतना बाहर रह गया. हमलोग होली के दिन इसपर रंग-अबीर चढ़ाते हैं, साल में एकबार पूजा करते हैं.

Intro:नवादा। वैसे तो शिवभक्तों सालोंभर बाबा का पूजा-अर्चना करते रहते हैं लेकिन सावन का महीना उनके लिए बड़ा ही खास होता है। सावन आते ही शिवालय में भक्तों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है। लोग शिवलिंग पर फूल, बेलपत्र, अक्षत,भांग-धथुरा और दूध चढ़ाते हैं और बड़े ही मन से पूजा अर्चना करते हैं लेकिन नवादा जिले नरहट प्रखंड के बेरौटा गांव स्थित प्राचीन शिवलिंग का सावन के महीनों में पूजा नहीं होता। इस शिवलिंग का पूजा साल में मात्र एकबार होली के दिन होता है। इस दिन लोग सच्चे मन से साफ़-सफाई कर बड़े ही धूमधाम से पूजा-अर्चना करते हैं। प्रशासन उपेक्षा के कारण आज तक यह शिवलिंग एक छत के नीचे भी नहीं आ सका है।





Body:न मंदिर है न पंडित, खुले आसमान के नीचे होली में होती है पूजा

इस विशालकाय शिवलिंग के लिए न कोई मंदिर बना है और न ही कोई पंडित यहां रहता है। लोग वर्षों से यहां साल में एकबार होली के दिन खुले आसमान के नीचे पूजा-अर्चना करते हैं फिर उसके बाद यह जगह वीरान हो जाती है।


क्या कहते हैं स्थानीय लोग

स्थानीय सुरेश पांडेय इसे महाभारत काल से जोड़ते हुए कहते हैं कि, वैसे तो इस गांव का नाम बेरौटा है लेकिन प्राचीन नाम इसका विराटनगर था। जब पांचों भाई पांडव को एक साल का अज्ञातवास हुआ तो यहीं आकर रुके थे। वहीं, रामजतन सिंह
का कहना है कि, यह गांव राजा विराट का दरबार है उन्हीं के पुत्री ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। यहाँ मां तारा की मंदिर है जो आपरूपी है और मंदिर के उत्तर एक गंगी-जमुनी तालाब है जिसमें राजा विराट की पुत्री स्नान करती थी और मंदिर में आकर माता की पूजा कर अपने दरवाजे पर शिवलिंग की पूजा करती थी। जब बाबर का राज आया तो हिंदुओ देवी-देवताओं पर खूब अत्याचार हुआ। इस महादेव स्थान को खोदकर फेंकने चाहते थे लेकिन वो जितना गढ्ढा खोदते शिवलिंग उतना ही ऊंचा हो जाता था फिर उसने इसे ढकना चाहा तो फिर ऊपर निकल आते थे। अंतमे इतना बाहर रह गए। हमलोग होली के दिन रंग-अबीर चढ़ाते हैं, साल में एकबार पूजा करते है।






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