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नालंदा के कुम्हारों को उम्मीद, चाइनीज दीपों पर भारी पड़ेगा स्वदेशी दीया - दीपावली का शुभ मुहूर्त

दिवाली में लगातार चाइनिज सामानों की बढ़ती मांग के बीच नालंदा में कुम्हारों ने उम्मीद जताया है कि इस साल लोग चाइनिज सामानों को छोड़कर मिट्टी के दीये जलाएंगें. पढ़ें पूरी खबर...

चाइनीज दिए पर भारी पड़ेगा स्वदेशी दिया
चाइनीज दिए पर भारी पड़ेगा स्वदेशी दिया
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Published : Oct 22, 2022, 2:59 PM IST

नालंदा: बाजारों में दिवाली की धूम है. ऐसे में कुम्हारों को उम्मीद है कि इस साल लोग मिट्टी के बने दीये की खूब खरीदारी करेंगे. गौरतलब है कि चाइनीज सामानों के बाजारों में पांव पसारने से कुम्हार अपनी किस्मत पर आंसू बहा रहे हैं. पिछले कई वर्षों के आंकड़ें देखें जाए तो मिट्टी के दीयों के खरीदारों की संख्या में भारी कमी आई है. वहीं चाइनीज लाइटों की संख्या में तेजी देखने को मिली है. दिवाली में दीये का रोजगार इतना मंदा हो गया है कि मुनाफा तो छोड़िए लागत तक की वापसी नहीं हो पाती है.

ये भी पढ़ें- Diwali 2022: दीपावली में डायन दीया जलाने की पुरानी परंपरा, जानिये क्या है इसके पीछे की मान्यता

कुम्हारों को अच्छी बिक्री की उम्मीद: नालंदा के कुम्हारों को उम्मीद है कि इस साल उनलोगों के मिट्टी के दीये की अच्छी बिक्री होगी. कुम्हारों ने उम्मीद जताया है कि लोग इस साल चाइनीज दीयों को छोड़कर मिट्टी के दीयों से दिवाली मनाएंगें. गौरतलब है कि दिवाली के समय मिट्टी के दीये और बर्तन की मांग बढ़ जाती है. जिससे कुम्हारों को अच्छी खासी आमदनी होती है. वहीं पिछले कुछ वर्षों से चाइनिज सामानों की बिक्री में तेजी की वजह से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है.

कई महीने पहले शुरू करते हैं काम: दिवाली और छठ में मिट्टी के दीये की काफी मांग होती है. इसलिए कुम्हार तीन-चार महीने पहले से ही इसकी तैयारियां शुरू कर देते हैं. इस काम में कारीगरों का पूरा परिवार लग जाता है. हालांकि चाइनिज सामान की कम कीमत और उसकी बढ़ती मांग के कारण दीयों की मांग कम हो रही है. इसके बाबजूद कारीगरों का कहना है कि सरकार का कुम्हारों के प्रति दोहरी रवैए के कारण उनकी इस परंपरागत व्यवसाय में अब तक सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल सकी है. जिसके कारण उन लोगों का व्यवसाय दम तोड़ता नजर आ रहा था. लेकिन इस बार उम्मीद है कि अच्छी बिक्री होगी और एक बार फिर से यह व्यवसाय भी अपनी पुरानी रौनक में आ जाएगा

"इस बार बच्चों के लिए गुड़िया. खिलौना, दीया सहित अन्य मिट्टी के बर्तनों का सामान तैयार कर रहे हैं. जिसके लिए लगातार वे लोग 16 से 18 घंटे तक काम कर रहे हैं. मिट्टी लाने से लेकर उसे खिलौना दीया का रूप देने तक लगे रहते हैं".- राजू, कारीगर

ये भी पढ़ें- दीपावली से पहले ही बदल रही है बिहार की आबोहवा, जानिये किस शहर की हवा कितनी खराब

नालंदा: बाजारों में दिवाली की धूम है. ऐसे में कुम्हारों को उम्मीद है कि इस साल लोग मिट्टी के बने दीये की खूब खरीदारी करेंगे. गौरतलब है कि चाइनीज सामानों के बाजारों में पांव पसारने से कुम्हार अपनी किस्मत पर आंसू बहा रहे हैं. पिछले कई वर्षों के आंकड़ें देखें जाए तो मिट्टी के दीयों के खरीदारों की संख्या में भारी कमी आई है. वहीं चाइनीज लाइटों की संख्या में तेजी देखने को मिली है. दिवाली में दीये का रोजगार इतना मंदा हो गया है कि मुनाफा तो छोड़िए लागत तक की वापसी नहीं हो पाती है.

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कुम्हारों को अच्छी बिक्री की उम्मीद: नालंदा के कुम्हारों को उम्मीद है कि इस साल उनलोगों के मिट्टी के दीये की अच्छी बिक्री होगी. कुम्हारों ने उम्मीद जताया है कि लोग इस साल चाइनीज दीयों को छोड़कर मिट्टी के दीयों से दिवाली मनाएंगें. गौरतलब है कि दिवाली के समय मिट्टी के दीये और बर्तन की मांग बढ़ जाती है. जिससे कुम्हारों को अच्छी खासी आमदनी होती है. वहीं पिछले कुछ वर्षों से चाइनिज सामानों की बिक्री में तेजी की वजह से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है.

कई महीने पहले शुरू करते हैं काम: दिवाली और छठ में मिट्टी के दीये की काफी मांग होती है. इसलिए कुम्हार तीन-चार महीने पहले से ही इसकी तैयारियां शुरू कर देते हैं. इस काम में कारीगरों का पूरा परिवार लग जाता है. हालांकि चाइनिज सामान की कम कीमत और उसकी बढ़ती मांग के कारण दीयों की मांग कम हो रही है. इसके बाबजूद कारीगरों का कहना है कि सरकार का कुम्हारों के प्रति दोहरी रवैए के कारण उनकी इस परंपरागत व्यवसाय में अब तक सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल सकी है. जिसके कारण उन लोगों का व्यवसाय दम तोड़ता नजर आ रहा था. लेकिन इस बार उम्मीद है कि अच्छी बिक्री होगी और एक बार फिर से यह व्यवसाय भी अपनी पुरानी रौनक में आ जाएगा

"इस बार बच्चों के लिए गुड़िया. खिलौना, दीया सहित अन्य मिट्टी के बर्तनों का सामान तैयार कर रहे हैं. जिसके लिए लगातार वे लोग 16 से 18 घंटे तक काम कर रहे हैं. मिट्टी लाने से लेकर उसे खिलौना दीया का रूप देने तक लगे रहते हैं".- राजू, कारीगर

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