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नालंदा यूनिवर्सिटी के खंडहर के पास खुदाई में मिला शिवलिंग, ग्रामीण करने लगे पूजा-अर्चना

नालंदा में डेहरा तालाब में खुदाई के दौरान शिवलिंग (Shivling Found In Nalanda) सहित कई दुर्लभ मूर्ति और प्राचीन अवशेष मिले हैं. ग्रामीण शिवलिंग को अपने साथ ले गए और मंदिर में स्थापित कर पूजा अर्चना करने लगे. पुरातत्व विभाग की टीम ने अवशेषों के साथ किए गए छेड़छाड़ पर नाराजगी जाहिर की है. पढ़ं पूरी खबर..

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Published : Jul 21, 2022, 5:09 PM IST

Shivling Found In Nalanda
Shivling Found In Nalanda

नालंदा: प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Ancient Nalanda University) के भग्नावशेष ( Ruins Of Nalanda University) का 200 मीटर दायरा प्रतिबंधित क्षेत्र होने के बावजूद तालाब की खुदाई की जा रही थी. खुदाई के दौरान यहां से शिवलिंग सहित कई दुर्लभ मूर्ति व प्राचीन अवशेष मिले हैं. नालंदा खंडहर के समीप बड़गांव मुसहरी के डेहरा तालाब की खुदाई में मिले ये पुरातात्विक अवशेष प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़ा प्रतीत हो रहा है. एक प्राचीन दीवार भी मिली है.

पढ़ें- तालाब की खुदाई के दौरान मिले शिवलिंग और मां पार्वती की प्रतिमा

नालंदा में मिला शिवलिंग: अवशेष व मूर्तियों के निकलने की सूचना मिलते ही आसपास के ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई. ग्रामीण शिवलिंग को अपने साथ ले गए और मंदिर में स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी. ये सभी अवशेष पाल कालीन बताए जा रहे हैं. सूचना मिलने पर नालंदा संग्रहालय के सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद शंकर शर्मा टीम के साथ मौके पर पहुंचे और खुदाई को रुकवाकर विभाग को सूचना दी. बुधवार को पटना से पुरातत्व विभाग की टीम पहुंची. पुरातत्व विभाग की टीम ने अवशेषों के साथ किए गए छेड़छाड़ पर नाराजगी जाहिर की है.

जल जीवन हरियाली के तहत हो रही थी खुदाई: लघु सिंचाई विभाग द्वारा जल जीवन हरियाली योजना के तहत जेसीबी मशीन से तालाब की खुदाई कराई जा रही थी. जबकि इस तालाब की खुदाई किए जाने पर पुरातत्व विभाग द्वारा विभाग के जेई को कई बार मना किया गया था. बावजूद इसके पुरातत्व विभाग के आदेश को दरकिनार कर खुदाई जारी रखा गया था.

रोक के बावजूद जारी थी खुदाई: खुदाई के दौरान ही पाल कालीन सीढ़ी घाट सहित कई अन्य अवशेष मिले. बताया जा रहा है कि कुछ अवशेषों को ग्रामीणों ने अपने कब्जे में ले लिया है. बुधवार को पटना से पहुंची अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. गौतमी भट्‌टाचार्या ने खुदाई स्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. उन्होंने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा लघु सिंचाई विभाग को तीन बार नोटिस दिया गया. इसके बाद भी कनीय अभियंता सतीश कुमार लापरवाह बने रहे और जान-बुझकर धरोहर को नुकसान पहुंचाया गया.

बफर जोन में नहीं हो सकती है खुदाई: पुरातत्वविद ने बताया कि स्मारक के सीमाओं की 100 मीटर को बफर जोन यानी प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किया गया है. 100 मीटर से 200 मीटर तक बिना एनओसी लिए खुदाई नहीं की जा सकती. उन्होंने बताया कि ऐसी जानकारी मिली है कि बहुत सारी मूर्ति व अवशेष तालाब की खुदाई में मिले हैं, जिसमें से अधिकांश को छुपा दिया गया है. इस मौके पर सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद जलज तिवारी भी मौजूद थे.

"कुछ मूर्तियों को स्थानीय ग्रामीणों द्वारा स्थापित कर दिया गया है. जानकारी हासिल करने की कोशिश की जा रही है. स्थानीय प्रशासन द्वारा उचित सहयोग नहीं मिलने के कारण विभाग मूर्ति को कब्जे में लेने में असमर्थ है."- डॉ. गौतमी भट्‌टाचार्या, अधीक्षण पुरातत्वविद

बता दें कि नालंदा विश्‍वविद्यालय प्राचीन काल में शिक्षा का बड़ा केंद्र था. उस समय यहां भारत समेत कई देशों के छात्र और शोधार्थी आते थे. बाद में इसे तुर्क आक्रांताओं ने इसे तहस-नहस कर डाला था. हजारों पुस्‍तकें, शोधपत्र जला दी गई. आज भी विश्‍वविद्यालय का खंडहर इसकी विशालता का अहसास कराता है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक यहां पहुंचते हैं.

नालंदा: प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (Ancient Nalanda University) के भग्नावशेष ( Ruins Of Nalanda University) का 200 मीटर दायरा प्रतिबंधित क्षेत्र होने के बावजूद तालाब की खुदाई की जा रही थी. खुदाई के दौरान यहां से शिवलिंग सहित कई दुर्लभ मूर्ति व प्राचीन अवशेष मिले हैं. नालंदा खंडहर के समीप बड़गांव मुसहरी के डेहरा तालाब की खुदाई में मिले ये पुरातात्विक अवशेष प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़ा प्रतीत हो रहा है. एक प्राचीन दीवार भी मिली है.

पढ़ें- तालाब की खुदाई के दौरान मिले शिवलिंग और मां पार्वती की प्रतिमा

नालंदा में मिला शिवलिंग: अवशेष व मूर्तियों के निकलने की सूचना मिलते ही आसपास के ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई. ग्रामीण शिवलिंग को अपने साथ ले गए और मंदिर में स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी. ये सभी अवशेष पाल कालीन बताए जा रहे हैं. सूचना मिलने पर नालंदा संग्रहालय के सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद शंकर शर्मा टीम के साथ मौके पर पहुंचे और खुदाई को रुकवाकर विभाग को सूचना दी. बुधवार को पटना से पुरातत्व विभाग की टीम पहुंची. पुरातत्व विभाग की टीम ने अवशेषों के साथ किए गए छेड़छाड़ पर नाराजगी जाहिर की है.

जल जीवन हरियाली के तहत हो रही थी खुदाई: लघु सिंचाई विभाग द्वारा जल जीवन हरियाली योजना के तहत जेसीबी मशीन से तालाब की खुदाई कराई जा रही थी. जबकि इस तालाब की खुदाई किए जाने पर पुरातत्व विभाग द्वारा विभाग के जेई को कई बार मना किया गया था. बावजूद इसके पुरातत्व विभाग के आदेश को दरकिनार कर खुदाई जारी रखा गया था.

रोक के बावजूद जारी थी खुदाई: खुदाई के दौरान ही पाल कालीन सीढ़ी घाट सहित कई अन्य अवशेष मिले. बताया जा रहा है कि कुछ अवशेषों को ग्रामीणों ने अपने कब्जे में ले लिया है. बुधवार को पटना से पहुंची अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. गौतमी भट्‌टाचार्या ने खुदाई स्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. उन्होंने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा लघु सिंचाई विभाग को तीन बार नोटिस दिया गया. इसके बाद भी कनीय अभियंता सतीश कुमार लापरवाह बने रहे और जान-बुझकर धरोहर को नुकसान पहुंचाया गया.

बफर जोन में नहीं हो सकती है खुदाई: पुरातत्वविद ने बताया कि स्मारक के सीमाओं की 100 मीटर को बफर जोन यानी प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किया गया है. 100 मीटर से 200 मीटर तक बिना एनओसी लिए खुदाई नहीं की जा सकती. उन्होंने बताया कि ऐसी जानकारी मिली है कि बहुत सारी मूर्ति व अवशेष तालाब की खुदाई में मिले हैं, जिसमें से अधिकांश को छुपा दिया गया है. इस मौके पर सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद जलज तिवारी भी मौजूद थे.

"कुछ मूर्तियों को स्थानीय ग्रामीणों द्वारा स्थापित कर दिया गया है. जानकारी हासिल करने की कोशिश की जा रही है. स्थानीय प्रशासन द्वारा उचित सहयोग नहीं मिलने के कारण विभाग मूर्ति को कब्जे में लेने में असमर्थ है."- डॉ. गौतमी भट्‌टाचार्या, अधीक्षण पुरातत्वविद

बता दें कि नालंदा विश्‍वविद्यालय प्राचीन काल में शिक्षा का बड़ा केंद्र था. उस समय यहां भारत समेत कई देशों के छात्र और शोधार्थी आते थे. बाद में इसे तुर्क आक्रांताओं ने इसे तहस-नहस कर डाला था. हजारों पुस्‍तकें, शोधपत्र जला दी गई. आज भी विश्‍वविद्यालय का खंडहर इसकी विशालता का अहसास कराता है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक यहां पहुंचते हैं.

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