नालंदाः कभी नवाबों के शहर रहे बिहारशरीफ में मोहर्रम के मौके पर नौबतखाना निकालने की अपनी अलग परंपरा थी. मोहर्रम के दौरान हुसैन की याद में नौबतखाना निकाला जाता था. यह नौबतखाना शीशे में आकर्षण ढंग से सजा रहता था. नौबत खाना के निर्माण में मुस्लिम धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म के लोग भी जुड़ते थे. इस पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित कर एक बार फिर से आपसी सौहार्द और भाईचारे का पैगाम दिया जा रहा है.
40 साल बाद दोबारा निकलेगा नौबत खाना
दरअसल, शहर के आशानगर मोहल्ले के इमलीतर इमामबाड़ा के पास करीब 40 साल बाद नौबत खाना निकालने की परंपरा को पुनर्जीवित किया जा रहा है. वर्ष 1979 के बाद इस मोहल्ले से नौबतखाना निकालने की परंपरा बंद हो गई थी. यहां नौबतखाना निकालने के लिए तैयारियां की जा रही हैं. आकर्षक ढंग से नौबतखाना को तैयार किया जा रहा. पूरे मोहल्ले के लोग इसे सजाने संवारने में जुटे हुए हैं. लोगों में इसको लेकर खासा उत्साह भी देखा जा रहा है.
आर्थिक समस्या के कारण हुआ बंद
आशानगर मोहल्ले के बुजुर्गों का कहना है कि नौबतखाना इस मोहल्ले में लंबे समय से निकलता आ रहा था. लेकिन आर्थिक समस्या के कारण इसे रोक दिया गया. करीब 40 सालों तक इस मोहल्ले से नौबतखाना नहीं निकाला गया, लेकिन स्थानीय लोगों और मोहल्ले वासियों के सहयोग से एक बार फिर से इस परंपरा को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है.
आकर्षण का केंद्र होता है नौबत खाना
यह नौबतखाना शीशे में आकर्षण ढंग से सजा रहता है. उसके अंदर झिलमिल करती मोमबत्तियां लोगों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहती हैं. समय के साथ-साथ शहर के कई हिस्सों में नौबत खाना निकालने का क्रम टूटता रहा. फिर भी शहर में तकरीबन एक दर्जन स्थानों से नौबत खाना निकाला जाता है. जिसमें छज्जू मोहल्ला, सोहडीह, खासगंज, मोगलकुआं, खरादी मोहल्ला, बसारबीघा, सकुन्तकला और मुरारपुर शामिल है. इस बार आशा नगर मोहल्ला इसी कड़ी में नया जुड़ने वाला है.