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40 साल बाद दोबारा निकलेगा हुसैन की याद में नौबतखाना, दिया जाएगा भाईचारे का पैगाम

नालंदा में मोहर्रम के मौके पर हुसैन की याद में निकलने वाला नौबतखाना आर्थिक तंगी के कारण 40 साल तक बंद रहा. अब यहां के नौजवानों ने इसे दोबारा शुरू करने की कोशिश की है. जो आपसी सौहार्द भाईचारे का पैगाम देगा.

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Published : Sep 9, 2019, 10:47 AM IST

नौबतखाना

नालंदाः कभी नवाबों के शहर रहे बिहारशरीफ में मोहर्रम के मौके पर नौबतखाना निकालने की अपनी अलग परंपरा थी. मोहर्रम के दौरान हुसैन की याद में नौबतखाना निकाला जाता था. यह नौबतखाना शीशे में आकर्षण ढंग से सजा रहता था. नौबत खाना के निर्माण में मुस्लिम धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म के लोग भी जुड़ते थे. इस पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित कर एक बार फिर से आपसी सौहार्द और भाईचारे का पैगाम दिया जा रहा है.

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नौबतखाना

40 साल बाद दोबारा निकलेगा नौबत खाना
दरअसल, शहर के आशानगर मोहल्ले के इमलीतर इमामबाड़ा के पास करीब 40 साल बाद नौबत खाना निकालने की परंपरा को पुनर्जीवित किया जा रहा है. वर्ष 1979 के बाद इस मोहल्ले से नौबतखाना निकालने की परंपरा बंद हो गई थी. यहां नौबतखाना निकालने के लिए तैयारियां की जा रही हैं. आकर्षक ढंग से नौबतखाना को तैयार किया जा रहा. पूरे मोहल्ले के लोग इसे सजाने संवारने में जुटे हुए हैं. लोगों में इसको लेकर खासा उत्साह भी देखा जा रहा है.

नौबतखाना बनाते लोग और जानकारी देते स्थानीय

आर्थिक समस्या के कारण हुआ बंद
आशानगर मोहल्ले के बुजुर्गों का कहना है कि नौबतखाना इस मोहल्ले में लंबे समय से निकलता आ रहा था. लेकिन आर्थिक समस्या के कारण इसे रोक दिया गया. करीब 40 सालों तक इस मोहल्ले से नौबतखाना नहीं निकाला गया, लेकिन स्थानीय लोगों और मोहल्ले वासियों के सहयोग से एक बार फिर से इस परंपरा को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है.

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नौबतखाना बनाते लोग

आकर्षण का केंद्र होता है नौबत खाना
यह नौबतखाना शीशे में आकर्षण ढंग से सजा रहता है. उसके अंदर झिलमिल करती मोमबत्तियां लोगों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहती हैं. समय के साथ-साथ शहर के कई हिस्सों में नौबत खाना निकालने का क्रम टूटता रहा. फिर भी शहर में तकरीबन एक दर्जन स्थानों से नौबत खाना निकाला जाता है. जिसमें छज्जू मोहल्ला, सोहडीह, खासगंज, मोगलकुआं, खरादी मोहल्ला, बसारबीघा, सकुन्तकला और मुरारपुर शामिल है. इस बार आशा नगर मोहल्ला इसी कड़ी में नया जुड़ने वाला है.

नालंदाः कभी नवाबों के शहर रहे बिहारशरीफ में मोहर्रम के मौके पर नौबतखाना निकालने की अपनी अलग परंपरा थी. मोहर्रम के दौरान हुसैन की याद में नौबतखाना निकाला जाता था. यह नौबतखाना शीशे में आकर्षण ढंग से सजा रहता था. नौबत खाना के निर्माण में मुस्लिम धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म के लोग भी जुड़ते थे. इस पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित कर एक बार फिर से आपसी सौहार्द और भाईचारे का पैगाम दिया जा रहा है.

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नौबतखाना

40 साल बाद दोबारा निकलेगा नौबत खाना
दरअसल, शहर के आशानगर मोहल्ले के इमलीतर इमामबाड़ा के पास करीब 40 साल बाद नौबत खाना निकालने की परंपरा को पुनर्जीवित किया जा रहा है. वर्ष 1979 के बाद इस मोहल्ले से नौबतखाना निकालने की परंपरा बंद हो गई थी. यहां नौबतखाना निकालने के लिए तैयारियां की जा रही हैं. आकर्षक ढंग से नौबतखाना को तैयार किया जा रहा. पूरे मोहल्ले के लोग इसे सजाने संवारने में जुटे हुए हैं. लोगों में इसको लेकर खासा उत्साह भी देखा जा रहा है.

नौबतखाना बनाते लोग और जानकारी देते स्थानीय

आर्थिक समस्या के कारण हुआ बंद
आशानगर मोहल्ले के बुजुर्गों का कहना है कि नौबतखाना इस मोहल्ले में लंबे समय से निकलता आ रहा था. लेकिन आर्थिक समस्या के कारण इसे रोक दिया गया. करीब 40 सालों तक इस मोहल्ले से नौबतखाना नहीं निकाला गया, लेकिन स्थानीय लोगों और मोहल्ले वासियों के सहयोग से एक बार फिर से इस परंपरा को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है.

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नौबतखाना बनाते लोग

आकर्षण का केंद्र होता है नौबत खाना
यह नौबतखाना शीशे में आकर्षण ढंग से सजा रहता है. उसके अंदर झिलमिल करती मोमबत्तियां लोगों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहती हैं. समय के साथ-साथ शहर के कई हिस्सों में नौबत खाना निकालने का क्रम टूटता रहा. फिर भी शहर में तकरीबन एक दर्जन स्थानों से नौबत खाना निकाला जाता है. जिसमें छज्जू मोहल्ला, सोहडीह, खासगंज, मोगलकुआं, खरादी मोहल्ला, बसारबीघा, सकुन्तकला और मुरारपुर शामिल है. इस बार आशा नगर मोहल्ला इसी कड़ी में नया जुड़ने वाला है.

Intro:नालंदा। कभी नवाबों का शहर रहा बिहार शरीफ में मुहर्रम के मौके पर नौबत खाना निकालने की अपनी अलग परंपरा है। मोहर्रम के दौरान हसन हुसैन की याद में बिहारशरीफ में नौबत खाना निकाला जाता है। यह नौबत खाना शीशे के आकर्षण ढंग से सजा रहता है और उसमें उसके अंदर झिलमिल करती मोमबत्तियां लोगों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा है। समय के साथ साथ शहर के कई हिस्सों में नौबत खाना निकालने का क्रम टूटता बिरहा इसी क्रम में शहर के आशानगर मोहल्ले के इमली तर इमामबाड़ा के समीप से करीब 40 वर्ष बाद नौबत खाना निकालने की परंपरा को पुनर्जीवित किया जा रहा है। वर्ष 1979 के बाद इस मोहल्ले से नौबत खाना निकालने की परंपरा बंद हो गई थी। नौबत खाना निकालने के लिए तैयारियां की जा रही है। आकर्षक ढंग से नौबत खाना को तैयार किया जा रहा । पूरे मोहल्ले के लोग इसे सजाने संवारने में जुटे हुए हैं और लोगों में इसको लेकर खासा उत्साह भी देखा जा रहा है।
बाइट। मो कमरुद्दीन
बाइट। मो इदरीश
बाइट। मो मुन्ना


Body:बुजुर्गों का कहना था कि नौबत खाना इस मोहल्ले से लंबे समय से निकलता रहा लेकिन आर्थिक समस्या के कारण इसे रोक दिया गया लेकिन करीब 40 वर्षों तक इस मोहल्ले से नौबत खाना नहीं निकाला गया, लेकिन स्थानीय लोगों और मोहल्ले वासियों के सहयोग से एक बार फिर से इस परंपरा को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है । वैसे बिहारशरीफ शहर में करीब एक दर्ज़न स्थानों से नौबत खाना निकाला जाता है जिसमें छज्जू महल्ला, सोहडीह, खासगंज, मोगलकुआं, खरादी मोहल्ला, बसारबीघा, सकुन्तकला, मुरारपुर आदि शामिल है । इस बार आशा नगर मोहल्ला इसी कड़ी में नया जोड़ने वाला है।

लोगों की मानें तो इस मोहल्ला में जब नौबत खाना निकाला जाता था उस समय सांप्रदायिक सौहार्द देखने को मिलता था। यहां के नौबत खाना का निर्माण में मुस्लिम धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म के लोग भी जुड़े रहते थे । पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित कर एक बार फिर से आपसी सौहार्द, भाईचारे का पैगाम दिया जा रहा है।


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