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Inspirational News : 'गुरुकुल' से लौटेगा नालंदा का गौरव, विज्ञान और वेदांत की शिक्षा से चमकेगा भविष्य

बिहार के नालंदा के रहने वाले मोनू कुमार ने नालंदा की विरासत को वापस लाने का सपना देखा है. उनकी सोच है जिस तरह से नालंदा की प्राचीन गुरुकुल परंपरा में बच्चे ज्ञान और विज्ञान का अध्ययन करते थे, ठीक उसी पैटर्न पर वो बच्चों को निशुल्क विद्या सिखाएंगे. उनका मानना है कि प्राचीन शिक्षा पद्धति से बौद्धिक स्तर में सुधार होगा.

Nalanda Gurukul Monu Sir
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Published : Jun 20, 2023, 10:22 PM IST

मोनू सर की क्लास का मकसद क्या ?

नालंदा : एक समय था जब नालंदा ज्ञान और विज्ञान के साथ साथ राजनीति का केंद्र हुआ करता था, लेकिन आज नालंदा की जगह कहां है ये सबको पता है. इस खोई हुई प्राचीन गौरवशाली परंपरा को वापस पाने के लिए इंजीनियर से शिक्षक बने मोनू कुमार के बड़े सपने हैं. उन्होंने कुछ मुट्ठी भर छात्रों को लेकर अपना गुरुकुल खोला है. जहां पर वो बच्चों को हर तरह की शिक्षा मुफ्त में देते हैं. इनकी क्लास में 'अ' से 'अब्दुल कलाम' और 'अर्जुन' दोनों पढ़ाया जा रहा है.

ये भी पढ़ें- झारखंड : सास-बहू ने बनाया 'गुरु चेला' एप, लोगों को मिल रहा रोजगार

'गुरुकुल' से लौटेगा नालंदा का गौरव : मोनू कुमार का मानना है कि हम अपने गौरवशाली अतीत को फिर से वापस पा सकते हैं, इसके लिए हमें शिक्षा की पद्धति बदलाव लाना होगा. इसलिए वो अपने इसी 'गुरुकुल' के जरिए प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की 'सीखने की परंपरा' को फिर से वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं. यहां छात्र न सिर्फ साइंस, गणित, दर्शन, मेटा फिजिक्स, इतिहास और संस्कृत सीखते हैं, बल्कि उन्हें रामानुजन, बुद्ध, विवेकानंद, आर्यभट्ट और अन्य बड़ी हस्तियों के बारे में भी पढ़ाया जाता है.

प्राचीन ग्रंथों से बढ़ेगा ज्ञान : मोनू कुमार के मुताबिक अगर छात्र प्राचीन ग्रंथों जैसे वेदांत, भगवत गीता, उपनिषद आदि के बारे में सीखेंगे, तो उनके बौद्धिक स्तर में बढ़ोतरी होगी. उन्होंने आगे बताया कि प्राचीन भारत में नालंदा यूनिवर्सिटी की उत्कृष्ट शिक्षा पद्धति से प्रेरित होकर इंजीनियर मोनू कुमार ने अपनी नौकरी छोड़ दी और वापस अपने हुसैनपुर गांव में एक ‘गुरुकुल’ शुरू किया. वह 2021 से नालंदा के रहुई प्रखंड की पेशौर पंचायत के गाँवों से आने वाले छात्रों को फ्री में पढ़ा रहे हैं.

विज्ञान भी और वेदांत का ज्ञान भी : मोनू कुमार ने गणित, इतिहास और भारतीय संस्कृति और परंपरा के साथ वेदांत को जोड़ते हुए एक अलग पाठ्यक्रम तैयार कर रहे हैं. मोनू कुमार ने गणित, इतिहास और भारतीय संस्कृति और परंपरा के साथ वेदांत को जोड़ते हुए एक अलग पाठ्यक्रम तैयार किया है. जो छात्र पढ़ना और लिखना जानते हैं वे गुरुकुल में शामिल हो सकते हैं. मौजूदा समय में 15 से 20 छात्र स्कूल में पढ़ रहे हैं, जिनमें 5 लड़कियां हैं. 2021 से गुरुकुल ने 100 से ज्यादा छात्रों को मुफ्त शिक्षा के साथ उन्हें पढ़ाई से संबंधित ज़रूरी वस्तुएं भी प्रदान की है.

स्कूल के बाद मोनू सर की क्लास : हुसैनपुर मिडिल स्कूल में नामांकित छात्र रोजाना तीन से चार घंटे गुरुकुल की कक्षाओं में भाग लेते हैं. छात्रों का कहना है कि जो पढ़ाई हमें तीन से चार घंटे मोनू सर के ज़रिए यहां मिलता है वो स्कूल में नहीं इसलिए स्कूल में सिर्फ़ नामांकन कराया है बाकी पढ़ाई यहां करते हैं. कभी शिक्षक आते नहीं तो कभी आते हैं तो पढ़ाई नहीं होता है. इसके साथ ही मोनू बिहार के गंगा घाट पर मुफ्त सिविल सेवा की तैयारी कराते हैं.

''हाई स्कूल पास करने के बाद भी गांवों के कई बच्चों का शैक्षणिक स्तर बहुत खराब है. वे गणित, विज्ञान, भारतीय संस्कृति आदि की बुनियादी बातों के बारे में कुछ नहीं जानते हैं और न ही उन्हें वेदांत, भगवत गीता, बाइबिल, आदि के बारे में कोई जानकारी है. मैं पुरानी शैक्षणिक प्रणाली और एडवांस डिजिटल तकनीक को एक साथ मिलाकर उनकी बुद्धि, ज्ञान और सोच की आदतों में सुधार करने की कोशिश कर रहा हूं.''- मोनू कुमार, टीचर, गुरुकुल

"मैं अब अपनी देश की समृद्ध और विविध संस्कृति के बारे में काफी कुछ जानती हूं. मुझे यह सब स्कूल में नहीं पढ़ाया गया था." - सातवीं कक्षा की छात्रा सीमा कुमारी

गुरुकुल का मिशन : मोनू कुमार का कहना है कि छात्रों को परीक्षा पास करने के लिए पढ़ाने की बजाय उन्हें ‘ज्ञान’ देना है. वह कहते हैं, "इतिहास को न सिर्फ छात्रों को उनके अतीत के बारे में बताने के लिए पढ़ाया जा रहा है बल्कि उन्हें हमारे जीवन में इसके महत्व के बारे में बताया जा रहा है. उन्हें इतिहास रचने के लिए प्रेरित किया जा रहा है जैसा कि पहले हुआ था.”

नालंदा जैसा उत्कृष्ट केंद्र का सपना : सपना नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला यूनिवर्सिटी जैसे प्राचीन भारत के शिक्षण केंद्रों की उत्कृष्टता को फिर से वापस लेकर आना है. उन्होंने कहा, " प्राचीन काल में भारत अकादमिक उत्कृष्टता का केंद्र था और इसी तरह की परंपराओं को फिर से वापस लाने की कोशिश की जा रही है. एक बार फिर से बुद्ध या आर्यभट्ट का लाया जाना संभव है."

कौन हैं मोनू कुमार ? : मोनू कुमार ने 2017 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से बीटेक पूरा किया. उन्हें पुरानी शिक्षा पद्धति को फिर से वापस लाने का जुनून था, इसलिए उन्होंने 2018-19 में चंडीगढ़ में पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी के स्वामी विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में एक वरिष्ठ व्याख्याता के रूप में काम किया. साल 2020 में वह बिहार में अपने गाँव वापस आ गए. यहां आकर उन्होंने ‘गुरुकुल’ शुरू किया.

जेईई की कोचिंग देकर नि:शुल्क चलाते हें गुरुकुल : अपने जीवन की जरूरतों को पूरा करने और गुरुकुल को बनाए रखने के लिए उन्होंने आईआईटी के इच्छुक हाई स्कूल के बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया. ये बच्चे जेईई का एग्जाम देना चाहते थे, मगर पैसों की तंगी और सही टीचर न होने की वजह से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे. वह उन्हें पढ़ाने के बदले में उनसे नाममात्र की फीस लेते हैं. उन्होंने कहा कि "यह मेरे सफर की शुरुआत है. काफी चुनौतियां हैं, लेकिन मैं गुरुकुल का विस्तार करता रहूंगा.''

मोनू सर की क्लास का मकसद क्या ?

नालंदा : एक समय था जब नालंदा ज्ञान और विज्ञान के साथ साथ राजनीति का केंद्र हुआ करता था, लेकिन आज नालंदा की जगह कहां है ये सबको पता है. इस खोई हुई प्राचीन गौरवशाली परंपरा को वापस पाने के लिए इंजीनियर से शिक्षक बने मोनू कुमार के बड़े सपने हैं. उन्होंने कुछ मुट्ठी भर छात्रों को लेकर अपना गुरुकुल खोला है. जहां पर वो बच्चों को हर तरह की शिक्षा मुफ्त में देते हैं. इनकी क्लास में 'अ' से 'अब्दुल कलाम' और 'अर्जुन' दोनों पढ़ाया जा रहा है.

ये भी पढ़ें- झारखंड : सास-बहू ने बनाया 'गुरु चेला' एप, लोगों को मिल रहा रोजगार

'गुरुकुल' से लौटेगा नालंदा का गौरव : मोनू कुमार का मानना है कि हम अपने गौरवशाली अतीत को फिर से वापस पा सकते हैं, इसके लिए हमें शिक्षा की पद्धति बदलाव लाना होगा. इसलिए वो अपने इसी 'गुरुकुल' के जरिए प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की 'सीखने की परंपरा' को फिर से वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं. यहां छात्र न सिर्फ साइंस, गणित, दर्शन, मेटा फिजिक्स, इतिहास और संस्कृत सीखते हैं, बल्कि उन्हें रामानुजन, बुद्ध, विवेकानंद, आर्यभट्ट और अन्य बड़ी हस्तियों के बारे में भी पढ़ाया जाता है.

प्राचीन ग्रंथों से बढ़ेगा ज्ञान : मोनू कुमार के मुताबिक अगर छात्र प्राचीन ग्रंथों जैसे वेदांत, भगवत गीता, उपनिषद आदि के बारे में सीखेंगे, तो उनके बौद्धिक स्तर में बढ़ोतरी होगी. उन्होंने आगे बताया कि प्राचीन भारत में नालंदा यूनिवर्सिटी की उत्कृष्ट शिक्षा पद्धति से प्रेरित होकर इंजीनियर मोनू कुमार ने अपनी नौकरी छोड़ दी और वापस अपने हुसैनपुर गांव में एक ‘गुरुकुल’ शुरू किया. वह 2021 से नालंदा के रहुई प्रखंड की पेशौर पंचायत के गाँवों से आने वाले छात्रों को फ्री में पढ़ा रहे हैं.

विज्ञान भी और वेदांत का ज्ञान भी : मोनू कुमार ने गणित, इतिहास और भारतीय संस्कृति और परंपरा के साथ वेदांत को जोड़ते हुए एक अलग पाठ्यक्रम तैयार कर रहे हैं. मोनू कुमार ने गणित, इतिहास और भारतीय संस्कृति और परंपरा के साथ वेदांत को जोड़ते हुए एक अलग पाठ्यक्रम तैयार किया है. जो छात्र पढ़ना और लिखना जानते हैं वे गुरुकुल में शामिल हो सकते हैं. मौजूदा समय में 15 से 20 छात्र स्कूल में पढ़ रहे हैं, जिनमें 5 लड़कियां हैं. 2021 से गुरुकुल ने 100 से ज्यादा छात्रों को मुफ्त शिक्षा के साथ उन्हें पढ़ाई से संबंधित ज़रूरी वस्तुएं भी प्रदान की है.

स्कूल के बाद मोनू सर की क्लास : हुसैनपुर मिडिल स्कूल में नामांकित छात्र रोजाना तीन से चार घंटे गुरुकुल की कक्षाओं में भाग लेते हैं. छात्रों का कहना है कि जो पढ़ाई हमें तीन से चार घंटे मोनू सर के ज़रिए यहां मिलता है वो स्कूल में नहीं इसलिए स्कूल में सिर्फ़ नामांकन कराया है बाकी पढ़ाई यहां करते हैं. कभी शिक्षक आते नहीं तो कभी आते हैं तो पढ़ाई नहीं होता है. इसके साथ ही मोनू बिहार के गंगा घाट पर मुफ्त सिविल सेवा की तैयारी कराते हैं.

''हाई स्कूल पास करने के बाद भी गांवों के कई बच्चों का शैक्षणिक स्तर बहुत खराब है. वे गणित, विज्ञान, भारतीय संस्कृति आदि की बुनियादी बातों के बारे में कुछ नहीं जानते हैं और न ही उन्हें वेदांत, भगवत गीता, बाइबिल, आदि के बारे में कोई जानकारी है. मैं पुरानी शैक्षणिक प्रणाली और एडवांस डिजिटल तकनीक को एक साथ मिलाकर उनकी बुद्धि, ज्ञान और सोच की आदतों में सुधार करने की कोशिश कर रहा हूं.''- मोनू कुमार, टीचर, गुरुकुल

"मैं अब अपनी देश की समृद्ध और विविध संस्कृति के बारे में काफी कुछ जानती हूं. मुझे यह सब स्कूल में नहीं पढ़ाया गया था." - सातवीं कक्षा की छात्रा सीमा कुमारी

गुरुकुल का मिशन : मोनू कुमार का कहना है कि छात्रों को परीक्षा पास करने के लिए पढ़ाने की बजाय उन्हें ‘ज्ञान’ देना है. वह कहते हैं, "इतिहास को न सिर्फ छात्रों को उनके अतीत के बारे में बताने के लिए पढ़ाया जा रहा है बल्कि उन्हें हमारे जीवन में इसके महत्व के बारे में बताया जा रहा है. उन्हें इतिहास रचने के लिए प्रेरित किया जा रहा है जैसा कि पहले हुआ था.”

नालंदा जैसा उत्कृष्ट केंद्र का सपना : सपना नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला यूनिवर्सिटी जैसे प्राचीन भारत के शिक्षण केंद्रों की उत्कृष्टता को फिर से वापस लेकर आना है. उन्होंने कहा, " प्राचीन काल में भारत अकादमिक उत्कृष्टता का केंद्र था और इसी तरह की परंपराओं को फिर से वापस लाने की कोशिश की जा रही है. एक बार फिर से बुद्ध या आर्यभट्ट का लाया जाना संभव है."

कौन हैं मोनू कुमार ? : मोनू कुमार ने 2017 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से बीटेक पूरा किया. उन्हें पुरानी शिक्षा पद्धति को फिर से वापस लाने का जुनून था, इसलिए उन्होंने 2018-19 में चंडीगढ़ में पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी के स्वामी विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में एक वरिष्ठ व्याख्याता के रूप में काम किया. साल 2020 में वह बिहार में अपने गाँव वापस आ गए. यहां आकर उन्होंने ‘गुरुकुल’ शुरू किया.

जेईई की कोचिंग देकर नि:शुल्क चलाते हें गुरुकुल : अपने जीवन की जरूरतों को पूरा करने और गुरुकुल को बनाए रखने के लिए उन्होंने आईआईटी के इच्छुक हाई स्कूल के बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया. ये बच्चे जेईई का एग्जाम देना चाहते थे, मगर पैसों की तंगी और सही टीचर न होने की वजह से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे. वह उन्हें पढ़ाने के बदले में उनसे नाममात्र की फीस लेते हैं. उन्होंने कहा कि "यह मेरे सफर की शुरुआत है. काफी चुनौतियां हैं, लेकिन मैं गुरुकुल का विस्तार करता रहूंगा.''

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