नालंदा: वैश्विक महामारी कोरोना के कारण धार्मिक आयोजनों पर रोक लगी हुई है. इस बार अंतराष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर में लगने वाला मलमास के मेले पर भी ग्रहण लगता दिख रहा है. प्रत्येक 3 वर्ष पर राजगीर के मलमास मेला का आयोजन किया जाता है. सनातन धर्म में मलमास जिसे अधिक मास भी कहते हैं और इसका काफी महत्व है. मलमास के मेला के दौरान लाखों लोग राजगीर पहुंच कर गर्म धारा और कुंड में स्नान कर डुबकी लगाते हैं, लेकिन कोरोना के कारण इस बार मलमास के मेला पर ग्रहण लग चुका है.
हर तीन वर्ष पर होता है मलमास मेला
राजगीर में प्रत्येक 3 वर्ष पर मलमास के मेला का आयोजन किया जाता है. इस मेला का धार्मिक महत्व है. कहा जाता है कि राजगीर में शीत के मौसम में एक हवन का आयोजन किया गया था, जिसमें ब्रह्मांड के सभी देवी देवताओं का निमंत्रण दे दिया गया था. जहां ब्रह्मा के पुत्र राजा बसु के द्वारा यह यज्ञ का आयोजन किया गया था.
पहाड़ों से गर्म पानी हुआ प्रस्फुटित
चुकी शीत मौसम में आयोजित यज्ञ के कारण देवी देवताओं ने यहां गर्म पानी होने की बात कही. जिसके बाद राजा वसु ने यहां देवी देवताओं के लिए गर्म पानी की व्यवस्था की और उसके बाद राजगीर के पहाड़ो से गर्म पानी प्रस्फुटित हुआ. इस आयोजन में काकभुशुण्डि को निमंत्रण देना भूल गए थे. जिसके कारण इस 1 माह के दौरान राजगीर में काकभुशुण्डि नहीं दिखते हैं.
गर्म पानी में स्नान का विशेष महत्व
कहा जाता है कि मलमास जिसे अधिक मास भी कहते है, इस दौरान 33 करोड़ देवी देवता का राजगीर में पदार्पण रहता है. इसलिए यहां गर्म पानी मे स्नान करने का विशेष महत्व है. यह मान्यता है कि यहां स्नान करने से सभी पाप धुल जाते है.
मलमास माह 18 सितंबर से शुरू
इस बार 18 सितंबर से मलमास माह शुरू होने जा रहा है जो कि 16 अक्टूबर तक रहेगा. प्रत्येक मलमास को लेकर 2 माह पूर्व से तैयारी शुरू कर दी जाती थी. प्रशासन के स्तर से इसका निविदा निकाला जाता था. लेकिन इस बार अब तक किसी प्रकार की कोई करवाई नहीं शुरू हो सकी है. जिससे इस बार के मलमास के मेला पर ग्रहण लगता दिख रहा है.
मलमास के मेला पर ग्रहण
इस आयोजन को लेकर राजगीर वासियों को भी इंतेजार रहता है. स्थानीय दुकानदार को अच्छी कमाई हो जाती थी जिससे घर परिवार चलता था लेकिन इस बार आयोजन नहीं होने से लोगों में मायूसी दिख रही है.