नालंदा: फुटवेयर निर्माण में बिहारशरीफ के मोरा तालाब की एक अलग पहचान है. यहां छोटे-छोटे झोपड़ी नुमा दुकानों में बरसों से जूता-चप्पल निर्माण का काम होता आ रहा है. सस्ता और टिकाऊ जूता चप्पल होने के कारण लोगों खरीदारी भी करते हैं. यहां निर्मित जूता-चप्पल बिहार के कई हिस्सों के साथ-साथ झारखंड के रांची में भी आपूर्ति होती है. यहां के कामगारों में हिम्मत तो है, लेकिन संसाधन यहां नहीं है, एसे में आत्मनिर्भर भारत पूरा नहीं हो पाएगा.
एक लघु उद्योग के रूप में फुटवेयर निर्माण का काम होता आ रहा है. इस उद्योग से जुड़े कर्मकारों के मदद के लिए क्लस्टर बनाया गया और मशीन भी बैठा दी गयी. लेकिन पूंजी के अभाव में कर्मकार अपने पुराने तरीके से काम करने को मजबूर है. सरकार की ओर से उन्हें आधुनिक सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई.
झोपड़ी में खोली थी दुकान
बिहारशरीफ के मोड़ा पचासा गांव के रहने वाले दशरथ रविदास कोलकाता स्थित फुटवेयर कंपनी में काम करते थे. अपने हुनर के बल पर कंपनी में जूता चप्पल का निर्माण करते थे. करीब 40 वर्ष पूर्व में कंपनी में काम करते हुए वे अपने घर लौटे. इसके बाद घर मे ही रह कर काम करने की ठानी. उन्होंने पटना रांची मुख्य मार्ग पर मोरा तालाब के समीप एक झोपड़ी में दुकान खोली पूर्व से एक नास्ता का दुकान होने के कारण वहीं रह कर अपना काम करना शुरू कर दिया.
डिमांड के अनुसार निर्माण कार्य शुरू
इस मार्ग पर बस ट्रक और अन्य वाहन का परिचालन होता था, वैसे में उन्होंने आने मेहनत के बल पर जूता चप्पल बनाने लगे और बेचना शुरू कर दिया. वाहन चालक नाश्ता के लिए गाड़ी रोकने के बहाने जूता चप्पल भी देखने लगे और बाजार से कम कीमत होने के कारण खरीदारी भी करने लगे. देखते ही देखते यहां फुटवेयर का काम मशहूर होता चला गया. समय के साथ-साथ मोरा तालाब में फुटवेयर निर्माण के काम में तेजी आई और आज 35 से 40 दुकानें खुल गई. कोलकाता सहित अन्य जगहों से जूता चप्पल बनाने के लिए रॉ-मटेरियल की खरीदारी की जाने लगी और उसके बाद यहां डिमांड के अनुसार निर्माण करना शुरू कर दिया गया.
बंद कमरे में पड़ा है मशीन
लघु उद्योग के रूप में मोरा तलाब का फुटवेयर निर्माण का काम प्रचलित हो गया. इसके बाद बिहार सरकार के द्वारा लेदर कलस्टर के माध्यम से मोरा तालाब फूटवेयर औद्योगिक स्वावलंबी सहकारी समिति लिमिटेड बनाया. इसके तहत इस काम में लगे लोगों को हुनरमंद बनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया. करीब डेढ़ करोड़ की लागत से फुटवेयर बनाने के लिए मशीन भी बैठाया गया. लेकिन यह मशीन आज एक बंद कमरे में यूं ही पड़ा है.
क्या कहते हैं कामगार
जूता चप्पल बनाने में जुटे कर्मकारों का कहना है कि सरकार के द्वारा प्रशिक्षण देने का काम किया गया. इसके माध्यम से हुनर में वृद्धि भी हुई. लेकिन पूंजी के अभाव में वे लोग मशीन पर काम नहीं कर पा रहे हैं. अगर सरकार के द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है. तो वे लोग इस काम को और आगे ले जा सकते है. इसे एक बड़े उद्योग के रूप में स्थापित कर सकते हैं.