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नालंदा: सरकारी आदेश के खिलाफ कर्मचारियों ने जलाया प्रति, बताया अलोकतांत्रिक प्रावधान - अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ

बिहार सरकार के नए आदेश (जिसमें 50 साल के कर्मी की रिटायरमेंट) है, उसका कर्मियों ने विरोध किया है. लोगों का कहना है कि यह आदेश बिल्कुल गलत है.

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Published : Jul 29, 2020, 9:58 PM IST

नालंदा: बिहार सरकार के 50 साल के कर्मचारी को रिटायर लेने के आदेश का सूबे में विरोध हो रहा है. बुधवार को बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ ने इस आदेश का विरोध किया. साथ ही आदेश की प्रति को जला दिया. इस दौरान बिहार शरीफ के सदर अस्पताल में अराजपत्रित कर्मचारियों ने सरकार के विरोध में नारे लगाए और इस काले आदेश को अविलंब वापस लेने की मांग की. साथ ही कहा कि सरकार इस आदेश को अगर वापस नहीं लेती है तो कर्मी आंदोलन किया जाएगा.

अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के जिला मंत्री सुभाष ठाकुर ने कहा कि सरकार ने बिहार सेवा संहिता के नियम 74 (क) और ( ख) का हवाला देते हुए राज्य कर्मियों को प्रत्येक छमाही सेवानिवृत्ति दे देने का आदेश जारी किया है. उन्होंने कहा कि बिहार के लगभग सभी संवर्ग के राज्य कर्मचारी शिक्षकों के प्रतिनिधि संगठन सरकार के इस आदेश का जोरदार विरोध कर रहे हैं. साथ ही इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं. जिला मंत्री ने कहा कि यह विरोध बिल्कुल जायज है. जिस पर सरकार को सहानुभूति पूर्वक गंभीरता से विचार करना चाहिए.

'यह बिल्कुल अलोकतांत्रिक प्रावधान है'
जिला मंत्री सुभाष ठाकुर ने कहा कि यह आदेश और इसमें किए गए प्रावधान बिल्कुल अलोकतांत्रिक, अफसरशाही को निरंकुश और राज्य कर्मियों को गुलाम बनाने वाला है. उन्होंने कहा कि इससे स्वच्छ राज्य प्रशासन के लिए अनिवार्य लोकतांत्रिक और सौहार्दपूर्ण वातावरण गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होगा और प्रशासन में चाटुकारिता का वातावरण स्थापित होगा. इसके अलावा इस संकल्प के कारण लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा और राज्य के सुशासन के न्याय की नीति पर भी गंभीर आघात होगा.

जिला मंत्री ने दी जानकारी
अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के जिला मंत्री ने कहा कि बिहार सेवा संहिता का नियम 74 एकविशेष प्रावधान है, जो एक तरफ नियुक्त पदाधिकारियों को किसी कर्मचारी विशेष के मामले में उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का अधिकार देता है. वहीं, दूसरी और सेवा त्याग करने के लिए किसी इच्छुक कर्मचारी को भी स्वेच्छा से ऐसा करने का अधिकार देता है. उन्होंने कहा कि यह कोई आम नियम नहीं है. लेकिन जारी संकल्प से इसे दैनिक क्रिया के रूप में तब्दील कर दिया गया. साथ ही हर साल 6-6 महीने में कर्मचारियों को जबरिया सेवानिवृत्ति दे देने का जरिया बना दिया गया. इसे कतई जायज और न्यायसंगत नहीं माना जा सकता है.

नालंदा: बिहार सरकार के 50 साल के कर्मचारी को रिटायर लेने के आदेश का सूबे में विरोध हो रहा है. बुधवार को बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ ने इस आदेश का विरोध किया. साथ ही आदेश की प्रति को जला दिया. इस दौरान बिहार शरीफ के सदर अस्पताल में अराजपत्रित कर्मचारियों ने सरकार के विरोध में नारे लगाए और इस काले आदेश को अविलंब वापस लेने की मांग की. साथ ही कहा कि सरकार इस आदेश को अगर वापस नहीं लेती है तो कर्मी आंदोलन किया जाएगा.

अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के जिला मंत्री सुभाष ठाकुर ने कहा कि सरकार ने बिहार सेवा संहिता के नियम 74 (क) और ( ख) का हवाला देते हुए राज्य कर्मियों को प्रत्येक छमाही सेवानिवृत्ति दे देने का आदेश जारी किया है. उन्होंने कहा कि बिहार के लगभग सभी संवर्ग के राज्य कर्मचारी शिक्षकों के प्रतिनिधि संगठन सरकार के इस आदेश का जोरदार विरोध कर रहे हैं. साथ ही इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं. जिला मंत्री ने कहा कि यह विरोध बिल्कुल जायज है. जिस पर सरकार को सहानुभूति पूर्वक गंभीरता से विचार करना चाहिए.

'यह बिल्कुल अलोकतांत्रिक प्रावधान है'
जिला मंत्री सुभाष ठाकुर ने कहा कि यह आदेश और इसमें किए गए प्रावधान बिल्कुल अलोकतांत्रिक, अफसरशाही को निरंकुश और राज्य कर्मियों को गुलाम बनाने वाला है. उन्होंने कहा कि इससे स्वच्छ राज्य प्रशासन के लिए अनिवार्य लोकतांत्रिक और सौहार्दपूर्ण वातावरण गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होगा और प्रशासन में चाटुकारिता का वातावरण स्थापित होगा. इसके अलावा इस संकल्प के कारण लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा और राज्य के सुशासन के न्याय की नीति पर भी गंभीर आघात होगा.

जिला मंत्री ने दी जानकारी
अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के जिला मंत्री ने कहा कि बिहार सेवा संहिता का नियम 74 एकविशेष प्रावधान है, जो एक तरफ नियुक्त पदाधिकारियों को किसी कर्मचारी विशेष के मामले में उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का अधिकार देता है. वहीं, दूसरी और सेवा त्याग करने के लिए किसी इच्छुक कर्मचारी को भी स्वेच्छा से ऐसा करने का अधिकार देता है. उन्होंने कहा कि यह कोई आम नियम नहीं है. लेकिन जारी संकल्प से इसे दैनिक क्रिया के रूप में तब्दील कर दिया गया. साथ ही हर साल 6-6 महीने में कर्मचारियों को जबरिया सेवानिवृत्ति दे देने का जरिया बना दिया गया. इसे कतई जायज और न्यायसंगत नहीं माना जा सकता है.

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