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'7 दादी और तीन नानी ने मिलकर पाला', जानें सेक्स वर्कर की बेटी नसीमा खातून की सफलता की कहानी

Naseema Khatoon Daughter Of Sex Worker: रास्ता कठिन होने के बावजूद जो अपनी मंजिल तक पहुंच जाए वही असली हीरो होता है. ऐसी ही एक रियल हीरो हैं मुजफ्फरपुर की नसीमा खातून. सेक्स वर्कर की बेटी होने के बावजूद वे सफलता की बुलंदियों तक पहुंचीं और आज दूसरी बेटियों का हौसला भी बढ़ा रही हैं. कौन हैं नसीमा और क्या है उनकी कहानी जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

सेक्स वर्कर की बेटी नसीमा खातून
सेक्स वर्कर की बेटी नसीमा खातून
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 7, 2023, 6:48 AM IST

नसीमा खातून से खास बातचीत

मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर के रेड लाइट एरिया का नाम चतुर्भुज स्थान है. यहां लोग दिन में भी जाने से कतराते हैं. उसी चतुर्भुज स्थान की एक बेटी ने वो कर दिखाया जिसे कोई सपने भी नहीं सोच सकता था. एनएचआरसी की सलाहकार नसीमा खातून आज दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं.

10 वीं तक की पढ़ाई पहचान छुपाकर की: मुजफ्फरपुर की नसीमा खातून एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने अपने जीवन के कई पहलुओं को साधा किया. सेक्स वर्कर की बेटी होने के कारण उन्हें अपने बचपन में कई तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ा. नसीमा बताती हैं कि दसवीं तक की पढ़ाई उन्होंने अपनी पहचान छुपाकर की. स्कूल में घर का पता बताने तक से लेकर दोस्ती करने पर भी पाबंदी थी.

7 दादियों और तीन नानियों ने मिलकर पाला: नसीमा बताती हैं कि वे रेड लाइट एरिया मे पली बढ़ीं. उनकी सात दादियां और तीन नानियां थीं. सात अलग-अलग जगह की महिलाएं जो इस पेशे में थीं. उन्होंने खुद की एक फ़ैमिली बनाई. उन्हें एक बच्चा लावारिस मिला तो उन सातों ने मिलकर उसे गोद ले लिया. फिर बेटे की तरह पाला पोसा. हम पांच भाई-बहन हैं. मेरे अब्बा ने किसी तरह हम बहनों का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में कराया था.

17 साल की उम्र में बनी सुपरवाइजर
17 साल की उम्र में बनी सुपरवाइजर

"हमें सख़्त हिदायत थी कि कभी भी किसी से भी अपने घर का पता नहीं बताना है. मुझे बड़ा अजीब लगता कि ये क्या है? और ऐसा क्यों हैं? मेरी समझ तो नहीं थी लेकिन मुझे ऐसा लगता कि मैं हर दिन अपने एक झूठ में जी रही हूं. दोस्तो से भी दूरी बनाई ताकि, उन्हें यह पता नहीं चले की मैं कहां रहती हूं."- नसीमा खातून, सामाजिक कार्यकर्ता

'अम्मी छोड़कर चली गई तो मिलने लगे थे ताने': उन्होंने बताया कि मेरी मां हमें छोड़कर किसी और के साथ चली गई. इसकी वजह से लोगों ने ताने देना शुरू कर दिया. कहते थे कि तुम बहनें भले धंधा कर लेना लेकिन, मां जैसी नहीं बनना. मेरी दादियों ने जो घर बनवाया था, उसे दबंगों ने कब्जा कर लिया. उस वक्त में आठवीं में थी. हम बेघर हो चुके थे.

पति और बेटे साथ नसीमा खातून
पति और बेटे साथ नसीमा खातून

मुजफ्फरपुर वापस आने की वजह: नसीमा ने कहा कि मोहल्ले में ही एक पड़ोसी ने पूरे परिवार को एक साल के लिए शरण दिया. फिर हम लोग सपरिवार सीतामढ़ी नानी घर चले गए. साल 1995 में मेरी बहन की शादी की वजह से हमलोग वापस मुजफ्फरपुर लौटे.

लोगों का बदला नजरिया: एक दिन हमारे इलाके में 'अदिति' नाम की संस्था की महिला आई. वह घर-घर जाकर लोगों से बात कर सबकी समस्याएं सुन रही थी. उन्होंने सबके साथ महिलाओं के लिए सिलाई बुनाई का काम शुरू कराया. वहां महिला डीएम भी आई थी. उनके आने के बाद मोहल्ले के लोगों का नजरिया बदला.

15 साल की उम्र से काम होने लगा फेमस: उन्होंने बताया कि मुझे क्रोशिया का काम आता था. उस वक्त मेरी उम्र 15 साल थी. मेरा काम इतना अच्छा होता कि संस्था में वहां फेमस होने लगा. इसी बीच मेरी शादी की बात होने लगी. लेकिन, मैं अब्बा को बोली की सीतामढ़ी जाना है. वहां संस्था का सेंटर चल रहा था. किसी तरह वहा पहुंची. वहां कुछ दिन रही लेकिन, वापस मुजफ्फरपुर आ गई.

10 वीं तक की पढ़ाई पहचान छुपाकर की
10 वीं तक की पढ़ाई पहचान छुपाकर की

17 साल की उम्र में बनी सुपरवाइजर: नसीमा ने बताया कि 17 साल की उम्र में मुझे नौकरी मिली. वह उसी संस्था में बतौर सुपरवाइजर नौकरी करने लगी. वहां से उनके जीवन का सफर शुरू हो गया. उसके बाद वह लगातार काम करती रहीं जबकि, परचम से रेड लाइट एरिया की लड़कियों को हुनर मंद बनाने का मौका भी मिला.

राजस्थान के वकील से की शादी: उन्होंने बताया कि पटना में उनकी मुलाकात राजस्थान के एक युवक से हुई. वे पेशे से वकील थे. उस वक्त पटना में एक वर्कशॉप चल रहा था. दोनों वहीं मिले थे. दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे. लेकिन, नसीमा की एक शर्त थी कि उनकी पहचान को अपनाना पड़ेगा. शादी तभी होगी. वे जानते थे कि मैं कहां रहती हूं. वर्ष 2009 में उन्होंने मुझे अपने परिवार से मिलाया. वर्ष 2010 में हम दोनों की शादी हुई. अभी मेरा एक 12 साल का बेटा है.

वर्ष 2022 में बनी एनएचआरसी की सलाहकार: नसीमा ने बताया कि ‌अपने वंचित समाज के हक व अधिकार की लड़ाई अब आगे बढ़ रही है. समाज के सभी बुजुर्गों के आशीर्वाद व साथियों के प्यार व कामना से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है. देश की सर्वोच्च न्यायिक संगठन मानव अधिकार आयोग की ओर से मानवाधिकार रक्षकों और गैर सरकारी संगठनों पर सलाहकार कोर ग्रुप में सदस्य के रूप में शामिल होने का मौका दिया गया.

वंचितों की आवाज बनीं नसीमा: उन्होंने बताया की आयोग ने देश स्तर पर विभिन्न अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को लेकर एक कमेटी बनाई है, जिसमें उन्हे भी स्थान दिया गया था. नसीमा ने कहा कि अब वंचित लोगों की आवाज देश के सबसे बड़ी न्यायिक फोरम पर मजबूती के साथ उठेगी.

रेड लाइट एरिया के लोगों के हक और हुकूक की बात: नसीमा ने कहा कि बिहार के लगभग सभी जिलों में रेड लाइट एरिया है. मैं रेड लाइट एरिया की बेटी हैं. यहां जन्म ली और यही बढ़ी हूं. पिछले दो दशक से रेड लाइट एरिया के लोगों को संवैधानिक अधिकार दिलाने व बेटियों को शिक्षा से जोड़ने के लिए पहल कर रही हूं. इसी कड़ी में परचम संगठन के माध्यम से जगह-जगह पर जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को शिक्षा व अपने अधिकार के प्रति जागरूक कर रही हूं.

ये भी पढ़ें- पटना में युवतियों को ब्लैकमेल कर कराया जाता था देह व्यापार, पुलिस ने 3 लड़कियों का किया रेस्क्यू

नसीमा खातून से खास बातचीत

मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर के रेड लाइट एरिया का नाम चतुर्भुज स्थान है. यहां लोग दिन में भी जाने से कतराते हैं. उसी चतुर्भुज स्थान की एक बेटी ने वो कर दिखाया जिसे कोई सपने भी नहीं सोच सकता था. एनएचआरसी की सलाहकार नसीमा खातून आज दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं.

10 वीं तक की पढ़ाई पहचान छुपाकर की: मुजफ्फरपुर की नसीमा खातून एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने अपने जीवन के कई पहलुओं को साधा किया. सेक्स वर्कर की बेटी होने के कारण उन्हें अपने बचपन में कई तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ा. नसीमा बताती हैं कि दसवीं तक की पढ़ाई उन्होंने अपनी पहचान छुपाकर की. स्कूल में घर का पता बताने तक से लेकर दोस्ती करने पर भी पाबंदी थी.

7 दादियों और तीन नानियों ने मिलकर पाला: नसीमा बताती हैं कि वे रेड लाइट एरिया मे पली बढ़ीं. उनकी सात दादियां और तीन नानियां थीं. सात अलग-अलग जगह की महिलाएं जो इस पेशे में थीं. उन्होंने खुद की एक फ़ैमिली बनाई. उन्हें एक बच्चा लावारिस मिला तो उन सातों ने मिलकर उसे गोद ले लिया. फिर बेटे की तरह पाला पोसा. हम पांच भाई-बहन हैं. मेरे अब्बा ने किसी तरह हम बहनों का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में कराया था.

17 साल की उम्र में बनी सुपरवाइजर
17 साल की उम्र में बनी सुपरवाइजर

"हमें सख़्त हिदायत थी कि कभी भी किसी से भी अपने घर का पता नहीं बताना है. मुझे बड़ा अजीब लगता कि ये क्या है? और ऐसा क्यों हैं? मेरी समझ तो नहीं थी लेकिन मुझे ऐसा लगता कि मैं हर दिन अपने एक झूठ में जी रही हूं. दोस्तो से भी दूरी बनाई ताकि, उन्हें यह पता नहीं चले की मैं कहां रहती हूं."- नसीमा खातून, सामाजिक कार्यकर्ता

'अम्मी छोड़कर चली गई तो मिलने लगे थे ताने': उन्होंने बताया कि मेरी मां हमें छोड़कर किसी और के साथ चली गई. इसकी वजह से लोगों ने ताने देना शुरू कर दिया. कहते थे कि तुम बहनें भले धंधा कर लेना लेकिन, मां जैसी नहीं बनना. मेरी दादियों ने जो घर बनवाया था, उसे दबंगों ने कब्जा कर लिया. उस वक्त में आठवीं में थी. हम बेघर हो चुके थे.

पति और बेटे साथ नसीमा खातून
पति और बेटे साथ नसीमा खातून

मुजफ्फरपुर वापस आने की वजह: नसीमा ने कहा कि मोहल्ले में ही एक पड़ोसी ने पूरे परिवार को एक साल के लिए शरण दिया. फिर हम लोग सपरिवार सीतामढ़ी नानी घर चले गए. साल 1995 में मेरी बहन की शादी की वजह से हमलोग वापस मुजफ्फरपुर लौटे.

लोगों का बदला नजरिया: एक दिन हमारे इलाके में 'अदिति' नाम की संस्था की महिला आई. वह घर-घर जाकर लोगों से बात कर सबकी समस्याएं सुन रही थी. उन्होंने सबके साथ महिलाओं के लिए सिलाई बुनाई का काम शुरू कराया. वहां महिला डीएम भी आई थी. उनके आने के बाद मोहल्ले के लोगों का नजरिया बदला.

15 साल की उम्र से काम होने लगा फेमस: उन्होंने बताया कि मुझे क्रोशिया का काम आता था. उस वक्त मेरी उम्र 15 साल थी. मेरा काम इतना अच्छा होता कि संस्था में वहां फेमस होने लगा. इसी बीच मेरी शादी की बात होने लगी. लेकिन, मैं अब्बा को बोली की सीतामढ़ी जाना है. वहां संस्था का सेंटर चल रहा था. किसी तरह वहा पहुंची. वहां कुछ दिन रही लेकिन, वापस मुजफ्फरपुर आ गई.

10 वीं तक की पढ़ाई पहचान छुपाकर की
10 वीं तक की पढ़ाई पहचान छुपाकर की

17 साल की उम्र में बनी सुपरवाइजर: नसीमा ने बताया कि 17 साल की उम्र में मुझे नौकरी मिली. वह उसी संस्था में बतौर सुपरवाइजर नौकरी करने लगी. वहां से उनके जीवन का सफर शुरू हो गया. उसके बाद वह लगातार काम करती रहीं जबकि, परचम से रेड लाइट एरिया की लड़कियों को हुनर मंद बनाने का मौका भी मिला.

राजस्थान के वकील से की शादी: उन्होंने बताया कि पटना में उनकी मुलाकात राजस्थान के एक युवक से हुई. वे पेशे से वकील थे. उस वक्त पटना में एक वर्कशॉप चल रहा था. दोनों वहीं मिले थे. दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे. लेकिन, नसीमा की एक शर्त थी कि उनकी पहचान को अपनाना पड़ेगा. शादी तभी होगी. वे जानते थे कि मैं कहां रहती हूं. वर्ष 2009 में उन्होंने मुझे अपने परिवार से मिलाया. वर्ष 2010 में हम दोनों की शादी हुई. अभी मेरा एक 12 साल का बेटा है.

वर्ष 2022 में बनी एनएचआरसी की सलाहकार: नसीमा ने बताया कि ‌अपने वंचित समाज के हक व अधिकार की लड़ाई अब आगे बढ़ रही है. समाज के सभी बुजुर्गों के आशीर्वाद व साथियों के प्यार व कामना से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है. देश की सर्वोच्च न्यायिक संगठन मानव अधिकार आयोग की ओर से मानवाधिकार रक्षकों और गैर सरकारी संगठनों पर सलाहकार कोर ग्रुप में सदस्य के रूप में शामिल होने का मौका दिया गया.

वंचितों की आवाज बनीं नसीमा: उन्होंने बताया की आयोग ने देश स्तर पर विभिन्न अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को लेकर एक कमेटी बनाई है, जिसमें उन्हे भी स्थान दिया गया था. नसीमा ने कहा कि अब वंचित लोगों की आवाज देश के सबसे बड़ी न्यायिक फोरम पर मजबूती के साथ उठेगी.

रेड लाइट एरिया के लोगों के हक और हुकूक की बात: नसीमा ने कहा कि बिहार के लगभग सभी जिलों में रेड लाइट एरिया है. मैं रेड लाइट एरिया की बेटी हैं. यहां जन्म ली और यही बढ़ी हूं. पिछले दो दशक से रेड लाइट एरिया के लोगों को संवैधानिक अधिकार दिलाने व बेटियों को शिक्षा से जोड़ने के लिए पहल कर रही हूं. इसी कड़ी में परचम संगठन के माध्यम से जगह-जगह पर जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को शिक्षा व अपने अधिकार के प्रति जागरूक कर रही हूं.

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