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कड़कनाथ मुर्गे ने बदली मुजफ्फरपुर के मक्की भाई की किस्मत, हर महीने की कमायी जान हो जाएंगे हैरान

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 4, 2024, 4:45 PM IST

Muzaffarpur News: बिहार के मुजफ्फरपुर के मक्की भाई की कहानी बड़ी दिलचस्प और प्रेरणादायक है. प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी करने वाले मक्की भाई कभी आर्थिक तंगी से खासे परेशान रहा करते थे, लेकिन अब लाखों कमा रहे हैं. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर.

कड़कनाथ ने बदली मक्की भाई की किस्मत
कड़कनाथ ने बदली मक्की भाई की किस्मत
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मुजफ्फरपुर: बिहार के सरकारी विभाग में नौकरी करने वाले एक क्लर्क ने अपना स्टार्टअप शुरू किया. उन्होंने देसी नस्ल के मुर्गे कड़कनाथ का पालन का काम किया.आज वे पूरे बिहार में ऑनलाइन मार्केटिंग कर सप्लाई करते हैं. इससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है.

कड़कनाथ ने बदली मक्की भाई की किस्मत: दरअसल मुजफ्फरपुर के भूमि सुधार विभाग में क्लर्क के पद पर तैनात मो. सकौल्लाह उर्फ मक्की भाई आज किसी के मोहताज नहीं है. आर्थिक तंगी के वक्त 15 हजार रुपये की बचत की थी. इसी बचाए हुए पैसे से उन्होंने देसी नस्ल के मुर्गा कड़कनाथ की पालन की शुरुआत की. आज जॉब करते हुए वो इस बिजनेस से हर महीने 50 हजार से ज्यादा की कमाई करते हैं.

कम लागत में फायदा ज्यादा
कम लागत में फायदा ज्यादा

"नौकरी में मिल रहे महीने की सैलरी से गुजर-बसर बड़ी मुश्किल से चल रही थी. बच्चे जब बड़े हुए तो घर चलाने में और दिक्कत होने लगी, क्योंकि बच्चे की स्कूल फीस देनी होती थी. वह किसी व्यवसाय की तलाश कर रहे थे. तब कड़कनाथ मुर्गे के बारे में पता चला."- मक्की भाई,क्लर्क, भूमि सुधार विभाग

मध्यप्रदेश से मंगवाए थे 100 मुर्गे: मक्की भाई ने बताया कि उन्होंने मुर्गा पालन के बारे में सुना था. पता चला था कि कड़कनाथ मुर्गा काफी महंगा होता है. उसकी मीट भी काली होती है. मार्केट में अच्छे कीमत पर मिलती है. इसी पर उन्होंने इसकी शुरुआत की. इसको लेकर उन्होंने मध्यप्रदेश के झबुआ में कांटेक्ट किया. वहां से उन्होंने पहली बार 100 मुर्गे के बच्चे ऑर्डर किए. वहां से जब बच्चे आए तो वे उन्हें पालना शुरू किए. यह शुरुआत 2016 से की गई थी.

मुजफ्फरपुर के मक्की भाई की बढ़ी आय
मुजफ्फरपुर के मक्की भाई की बढ़ी आय

बिहार में फैलाया नेटवर्क: मुर्गी को पालने के बाद अच्छी तादाद में अंडा होने लगा. इसके बाद मक्की ने उसका हेचरी में हैच करवाया. इसके बाद इस बिजनेस को फैलाने की सोची. कुछ लोगो को ट्रेनिंग भी दिया. धीरे-धीरे उन्होंने अपना नेटवर्क बिहार में फैलाना शुरू किया. इलाके के कई लोग उनसे जुड़े. उनसे मुर्गा पालन सीखने लगे. इससे उनके घर वाले भी खुश होने लगे.

ऑनलाइन शुरू की मार्केटिंग: उन्होंने बताया कि जब अंडा अच्छा होने लगा तो वे इसे मार्केट में उतारने लगे. बिहार के दूसरे जिलों के ग्राहक बनाने के लिए उन्होंने ऑनलाइन मार्केटिंग शुरू की. इससे उनको काफी फायदा मिला. उनसे बेतिया, सासाराम, बेगूसराय समेत अन्य कई जिलों के लोगो ने संपर्क साधा. उनसे काम सीखने भी लगे और मार्केट में अच्छी खासी बिक्री भी होने लगी, लोगों को सप्लाई भी करने लगे.

कम लागत में फायदा ज्यादा: मक्की बताते हैं कि वे सरकारी नौकरी करते हैं. लेकिन, कभी किसी से एक रुपए नहीं लिए हैं. परिवार का भरण पोषण करने के लिए उन्होंने स्टार्ट अप किया. पता चला कि बॉयलर से कम लागत में यह मुर्गा तैयार होता है. देसी नसेल का भी होता है. सेहत के लिए भी फायदेमंद है. तब उन्होंने इसकी शुरुआत की. उन्होंने कहा कि बॉयलर एक महीने में तैयार हो जाता है. लेकिन, देसी नस्ल को तैयार होने में करीब 4 महीने लगते हैं. इसकी देखभाल करनी पड़ती है, लेकिन कम लागत में अच्छा मुनाफा देता है.

40 रुपए में मिलता है एक बच्चा, मृत्यु दर भी कम: मक्की के अनुसार देसी मुर्गा पालन बेरोजगार लोग भी कर सकते हैं. जिनके पास जमीन है, वे और आराम से कर सकते हैं. इसमें लागत कम होता है. 40 रुपए के करीब एक बच्चा मिलता है. इन देसी नस्ल के मुर्गे की मृत्यु दर भी कम होती है, जिससे आपको नुकसान नहीं होगा. इसके अलावा, यह बॉयलर के अपेक्षा कुछ भी खा लेता है, जिससे आपको परेशानी नहीं होगी.

कैसे पहचाने डुप्लीकेट देसी अंडा : उन्होंने बताया कि मार्केट में डुप्लीकेट अंडा का रेश्यो बहुत है. डुप्लीकेट अंडे चायपत्ती से रंगा होता है. लेकिन, देसी अंडे का हल्का कलर होता है. दोनों के कलर में फर्क होता है. डुप्लीकेट गहरा रंग का होता है. इसके अलावा, देसी नस्ल के अंडे का साइज छोटा होता है. अंदर जर्दी का भी रंग हल्का होता है. डुप्लीकेट वाले का जर्दी का रंग गहरा पीला होता है. इससे आपको पता चल जायेगा कि वह असली है या नकली.

पढ़ें- संन्यास के बाद अब धोनी करेंगे कड़कनाथ पालन, दिया ऑर्डर

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मुजफ्फरपुर: बिहार के सरकारी विभाग में नौकरी करने वाले एक क्लर्क ने अपना स्टार्टअप शुरू किया. उन्होंने देसी नस्ल के मुर्गे कड़कनाथ का पालन का काम किया.आज वे पूरे बिहार में ऑनलाइन मार्केटिंग कर सप्लाई करते हैं. इससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है.

कड़कनाथ ने बदली मक्की भाई की किस्मत: दरअसल मुजफ्फरपुर के भूमि सुधार विभाग में क्लर्क के पद पर तैनात मो. सकौल्लाह उर्फ मक्की भाई आज किसी के मोहताज नहीं है. आर्थिक तंगी के वक्त 15 हजार रुपये की बचत की थी. इसी बचाए हुए पैसे से उन्होंने देसी नस्ल के मुर्गा कड़कनाथ की पालन की शुरुआत की. आज जॉब करते हुए वो इस बिजनेस से हर महीने 50 हजार से ज्यादा की कमाई करते हैं.

कम लागत में फायदा ज्यादा
कम लागत में फायदा ज्यादा

"नौकरी में मिल रहे महीने की सैलरी से गुजर-बसर बड़ी मुश्किल से चल रही थी. बच्चे जब बड़े हुए तो घर चलाने में और दिक्कत होने लगी, क्योंकि बच्चे की स्कूल फीस देनी होती थी. वह किसी व्यवसाय की तलाश कर रहे थे. तब कड़कनाथ मुर्गे के बारे में पता चला."- मक्की भाई,क्लर्क, भूमि सुधार विभाग

मध्यप्रदेश से मंगवाए थे 100 मुर्गे: मक्की भाई ने बताया कि उन्होंने मुर्गा पालन के बारे में सुना था. पता चला था कि कड़कनाथ मुर्गा काफी महंगा होता है. उसकी मीट भी काली होती है. मार्केट में अच्छे कीमत पर मिलती है. इसी पर उन्होंने इसकी शुरुआत की. इसको लेकर उन्होंने मध्यप्रदेश के झबुआ में कांटेक्ट किया. वहां से उन्होंने पहली बार 100 मुर्गे के बच्चे ऑर्डर किए. वहां से जब बच्चे आए तो वे उन्हें पालना शुरू किए. यह शुरुआत 2016 से की गई थी.

मुजफ्फरपुर के मक्की भाई की बढ़ी आय
मुजफ्फरपुर के मक्की भाई की बढ़ी आय

बिहार में फैलाया नेटवर्क: मुर्गी को पालने के बाद अच्छी तादाद में अंडा होने लगा. इसके बाद मक्की ने उसका हेचरी में हैच करवाया. इसके बाद इस बिजनेस को फैलाने की सोची. कुछ लोगो को ट्रेनिंग भी दिया. धीरे-धीरे उन्होंने अपना नेटवर्क बिहार में फैलाना शुरू किया. इलाके के कई लोग उनसे जुड़े. उनसे मुर्गा पालन सीखने लगे. इससे उनके घर वाले भी खुश होने लगे.

ऑनलाइन शुरू की मार्केटिंग: उन्होंने बताया कि जब अंडा अच्छा होने लगा तो वे इसे मार्केट में उतारने लगे. बिहार के दूसरे जिलों के ग्राहक बनाने के लिए उन्होंने ऑनलाइन मार्केटिंग शुरू की. इससे उनको काफी फायदा मिला. उनसे बेतिया, सासाराम, बेगूसराय समेत अन्य कई जिलों के लोगो ने संपर्क साधा. उनसे काम सीखने भी लगे और मार्केट में अच्छी खासी बिक्री भी होने लगी, लोगों को सप्लाई भी करने लगे.

कम लागत में फायदा ज्यादा: मक्की बताते हैं कि वे सरकारी नौकरी करते हैं. लेकिन, कभी किसी से एक रुपए नहीं लिए हैं. परिवार का भरण पोषण करने के लिए उन्होंने स्टार्ट अप किया. पता चला कि बॉयलर से कम लागत में यह मुर्गा तैयार होता है. देसी नसेल का भी होता है. सेहत के लिए भी फायदेमंद है. तब उन्होंने इसकी शुरुआत की. उन्होंने कहा कि बॉयलर एक महीने में तैयार हो जाता है. लेकिन, देसी नस्ल को तैयार होने में करीब 4 महीने लगते हैं. इसकी देखभाल करनी पड़ती है, लेकिन कम लागत में अच्छा मुनाफा देता है.

40 रुपए में मिलता है एक बच्चा, मृत्यु दर भी कम: मक्की के अनुसार देसी मुर्गा पालन बेरोजगार लोग भी कर सकते हैं. जिनके पास जमीन है, वे और आराम से कर सकते हैं. इसमें लागत कम होता है. 40 रुपए के करीब एक बच्चा मिलता है. इन देसी नस्ल के मुर्गे की मृत्यु दर भी कम होती है, जिससे आपको नुकसान नहीं होगा. इसके अलावा, यह बॉयलर के अपेक्षा कुछ भी खा लेता है, जिससे आपको परेशानी नहीं होगी.

कैसे पहचाने डुप्लीकेट देसी अंडा : उन्होंने बताया कि मार्केट में डुप्लीकेट अंडा का रेश्यो बहुत है. डुप्लीकेट अंडे चायपत्ती से रंगा होता है. लेकिन, देसी अंडे का हल्का कलर होता है. दोनों के कलर में फर्क होता है. डुप्लीकेट गहरा रंग का होता है. इसके अलावा, देसी नस्ल के अंडे का साइज छोटा होता है. अंदर जर्दी का भी रंग हल्का होता है. डुप्लीकेट वाले का जर्दी का रंग गहरा पीला होता है. इससे आपको पता चल जायेगा कि वह असली है या नकली.

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