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बिहार में कुपोषण, अधिक तापमान बनता है नौनिहालों का काल! - reason of chamki fever

आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं कि जिस वर्ष 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान लंबे समय तक रहा. उस साल मृतकों की संख्या में वृद्धि देखी गई है. अच्छी बारिश होने से इस बीमारी में कमी होने की उम्मीद है.

तापमान है काल
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Published : Jun 25, 2019, 6:01 PM IST

मुजफ्फरपुर: बिहार में पिछले कई वर्षों से गर्मी के मौसम में बच्चों के लिए काल बनता जा रहा है. जिले में चमकी यानी इंसेफेलाइटिस बीमारी ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है. इस बीमारी से अबतक 150 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है. हालांकि, सही कारणों का पता अबतक नहीं चल सका है. लेकिन, जानकारों का मानना है कि इसका मुख्य कारण कुपोषण और बढ़ता तापमान है.

डॉ अरुण शाह की माने तो...
आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं कि जिस वर्ष 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान लंबे समय तक रहा, उस साल मृतकों की संख्या में वृद्धि देखी गई है. मुजफ्फरपुर के वरिष्ठ शिशु रोग चिकिसक डॉ. अरुण शाह बताते हैं कि बच्चों की मौतों के इस सिलसिले के पीछे गरीबी और कुपोषण असली वजह है.

muzzaffarpur
चमकी बुखार से पीड़ित बच्चे

ये हैं बीमारी के लक्षण
इस बीमारी को लेकर काम कर चुके शाह कहते हैं कि यह बीमारी न तो किसी वायरस से हो रही है, न बैक्टीरिया से और न ही इसका किसी संक्रमण से ताल्लुकात है. इस बीमारी के लक्षणों में बुखार, बेहोशी और शरीर में झटके लग कर कंपकंपी होती है.

लीची में ये है मौजूद
डॉ शाह ने बताया कि एईएस से पीड़ित बच्चों में अधिकांश गरीब तबके से आते हैं. "कुपोषित बच्चों के शरीर में रीसर्व ग्लाइकोजिन की मात्रा भी बहुत कम होती है. इसलिए लीची खाने से उसके बीज में मौजूद मिथाइल प्रोपाइड ग्लाइसीन नामक न्यूरो टॉक्सिनस जब बच्चों के भीतर एक्टिव होते हैं, तब उनके शरीर में ग्लूकोज की कमी हो जाती है."

  • डॉ शाह हालांकि लीची को बच्चों की मौतों के लिए जिम्मेदार नहीं मानते हैं. वह इसके लिए मुख्य रूप से कुपोषण को जिम्मेदार बताते हैं.
  • "तापमान, कुपोषण और टाक्सिक पदार्थ मिल कर बच्चों को हाइपोग्लाइसिमिया का शिकार बना देते हैं. जिससे बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं"
  • चर्चा यह भी है कि पेस्टीसाइड भी इसकी एक वजह हो सकती है. लेकिन डॉ शाह इससे इंकार करते हैं. उन्होंने कहा कि अभी तक ऐसा कुछ नहीं पाया है.
    muzzaffarpur
    बच्चों की हाल-चाल लेते सीएम नीतीश कुमार

डॉ जी एस सहनी के मुताबिक
मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) के शिशु रोग विभाग के प्रमुख डॉ जी एस सहनी कहते हैं. "इस साल एईएस से पीड़ित पंजीकृत मरीजों में से 90 प्रतिशत हाइपोग्लाइसिमिया (रक्त में शुगर की कमी) के मामले हैं. पिछले वर्षों में भी ऐसे 60-70 प्रतिशत मामले आए थे."

गर्मी है अहम कारण
डॉ सहनी तापमान में वृद्धि और वातावरण में नमी को भी एईएस का कारण मानते हैं. वे कहते हैं कि "गरमी के दिनों में यहां का अधिकतम तापमान आमतौर पर 38 डिग्री सेल्सियस और आद्र्रता 60 प्रतिशत बनी रहती है. आद्र्रता का प्रतिशत रात में भी ऐसा ही बना रहता है, जो एईएस के लिए मुजफ्फरपुर को अतिसंवेदनशील बनाती है."

  • उन्होंने कहा कि कई जगहों पर दिन गर्म रहता है. लेकिन, रातें अपेक्षाकृत ठंडी हो जाती हैं. लेकिन मुजफ्फरपुर में रात में भी वातावरण में नमी बनी रहती है.
  • डॉ सहना ने बताया कि "मैं यहां 2005 से एईएस से पीड़ित बच्चों का इलाज कर रहा हूं. वर्षों से उपचार के दौरान इसके मुख्य कारण गर्मी, कुपोषण और आद्र्रता ही सामने आए हैं."

AES का पहला मामला
आपको बता दें कि मुजफ्फरपुर में एईएस का पहला मामला 1995 में प्रकाश में आया था. इस बीमारी को लेकर कोई निश्चित कारण अब तक सामने नहीं आया है. लेकिन जिन सालों में उच्च तापमान और वातावरण में अधिक नमी रही हो इस बीमारी का कहर ज्यादा देखने को मिला है.

अच्छी बारिश से मिलेगी मुक्ति
इस बारे में मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच के मेडिकल सुपरिटेंडेंट सुनील शाही भी समय से अच्छी बारिश होने को इस बीमारी से बचाव मानते हैं. उन्होंने कहा कि "वर्ष 1995 से यही हो रहा है. अगर बारिश समय से हुई तो यह बीमारी अपने आप खत्म हो जाती है. अगर आज अच्छी बारिश हो जाए तो यह बीमारी समाप्त हो जाएगी."

ये हैं आंकड़े
आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2012, 2013, 2014 और 2019 में एईएस से बच्चों की सबसे अधिक मौतें हुई है. इन वर्षों में मई और जून का अधिकतम तापमान 40 डिग्री या इससे ऊपर रहा है. साल 2012 में जब मई महीने का तापमान 42 डिग्री और जून का 41 डिग्री सेल्सियस था तो 275 बच्चों की मौत हुई थी. वहीं, 2014 में मई और जून माह में 41 डिग्री सेल्सियस तापमान रके वक्त सर्वाधिक 355 बच्चों की मौत हुई. बकि वर्ष 2019 में मई माह में में पिछले 10 सालों में सर्वाधिक तापमान 43 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है.

मुजफ्फरपुर: बिहार में पिछले कई वर्षों से गर्मी के मौसम में बच्चों के लिए काल बनता जा रहा है. जिले में चमकी यानी इंसेफेलाइटिस बीमारी ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है. इस बीमारी से अबतक 150 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है. हालांकि, सही कारणों का पता अबतक नहीं चल सका है. लेकिन, जानकारों का मानना है कि इसका मुख्य कारण कुपोषण और बढ़ता तापमान है.

डॉ अरुण शाह की माने तो...
आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं कि जिस वर्ष 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान लंबे समय तक रहा, उस साल मृतकों की संख्या में वृद्धि देखी गई है. मुजफ्फरपुर के वरिष्ठ शिशु रोग चिकिसक डॉ. अरुण शाह बताते हैं कि बच्चों की मौतों के इस सिलसिले के पीछे गरीबी और कुपोषण असली वजह है.

muzzaffarpur
चमकी बुखार से पीड़ित बच्चे

ये हैं बीमारी के लक्षण
इस बीमारी को लेकर काम कर चुके शाह कहते हैं कि यह बीमारी न तो किसी वायरस से हो रही है, न बैक्टीरिया से और न ही इसका किसी संक्रमण से ताल्लुकात है. इस बीमारी के लक्षणों में बुखार, बेहोशी और शरीर में झटके लग कर कंपकंपी होती है.

लीची में ये है मौजूद
डॉ शाह ने बताया कि एईएस से पीड़ित बच्चों में अधिकांश गरीब तबके से आते हैं. "कुपोषित बच्चों के शरीर में रीसर्व ग्लाइकोजिन की मात्रा भी बहुत कम होती है. इसलिए लीची खाने से उसके बीज में मौजूद मिथाइल प्रोपाइड ग्लाइसीन नामक न्यूरो टॉक्सिनस जब बच्चों के भीतर एक्टिव होते हैं, तब उनके शरीर में ग्लूकोज की कमी हो जाती है."

  • डॉ शाह हालांकि लीची को बच्चों की मौतों के लिए जिम्मेदार नहीं मानते हैं. वह इसके लिए मुख्य रूप से कुपोषण को जिम्मेदार बताते हैं.
  • "तापमान, कुपोषण और टाक्सिक पदार्थ मिल कर बच्चों को हाइपोग्लाइसिमिया का शिकार बना देते हैं. जिससे बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं"
  • चर्चा यह भी है कि पेस्टीसाइड भी इसकी एक वजह हो सकती है. लेकिन डॉ शाह इससे इंकार करते हैं. उन्होंने कहा कि अभी तक ऐसा कुछ नहीं पाया है.
    muzzaffarpur
    बच्चों की हाल-चाल लेते सीएम नीतीश कुमार

डॉ जी एस सहनी के मुताबिक
मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) के शिशु रोग विभाग के प्रमुख डॉ जी एस सहनी कहते हैं. "इस साल एईएस से पीड़ित पंजीकृत मरीजों में से 90 प्रतिशत हाइपोग्लाइसिमिया (रक्त में शुगर की कमी) के मामले हैं. पिछले वर्षों में भी ऐसे 60-70 प्रतिशत मामले आए थे."

गर्मी है अहम कारण
डॉ सहनी तापमान में वृद्धि और वातावरण में नमी को भी एईएस का कारण मानते हैं. वे कहते हैं कि "गरमी के दिनों में यहां का अधिकतम तापमान आमतौर पर 38 डिग्री सेल्सियस और आद्र्रता 60 प्रतिशत बनी रहती है. आद्र्रता का प्रतिशत रात में भी ऐसा ही बना रहता है, जो एईएस के लिए मुजफ्फरपुर को अतिसंवेदनशील बनाती है."

  • उन्होंने कहा कि कई जगहों पर दिन गर्म रहता है. लेकिन, रातें अपेक्षाकृत ठंडी हो जाती हैं. लेकिन मुजफ्फरपुर में रात में भी वातावरण में नमी बनी रहती है.
  • डॉ सहना ने बताया कि "मैं यहां 2005 से एईएस से पीड़ित बच्चों का इलाज कर रहा हूं. वर्षों से उपचार के दौरान इसके मुख्य कारण गर्मी, कुपोषण और आद्र्रता ही सामने आए हैं."

AES का पहला मामला
आपको बता दें कि मुजफ्फरपुर में एईएस का पहला मामला 1995 में प्रकाश में आया था. इस बीमारी को लेकर कोई निश्चित कारण अब तक सामने नहीं आया है. लेकिन जिन सालों में उच्च तापमान और वातावरण में अधिक नमी रही हो इस बीमारी का कहर ज्यादा देखने को मिला है.

अच्छी बारिश से मिलेगी मुक्ति
इस बारे में मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच के मेडिकल सुपरिटेंडेंट सुनील शाही भी समय से अच्छी बारिश होने को इस बीमारी से बचाव मानते हैं. उन्होंने कहा कि "वर्ष 1995 से यही हो रहा है. अगर बारिश समय से हुई तो यह बीमारी अपने आप खत्म हो जाती है. अगर आज अच्छी बारिश हो जाए तो यह बीमारी समाप्त हो जाएगी."

ये हैं आंकड़े
आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2012, 2013, 2014 और 2019 में एईएस से बच्चों की सबसे अधिक मौतें हुई है. इन वर्षों में मई और जून का अधिकतम तापमान 40 डिग्री या इससे ऊपर रहा है. साल 2012 में जब मई महीने का तापमान 42 डिग्री और जून का 41 डिग्री सेल्सियस था तो 275 बच्चों की मौत हुई थी. वहीं, 2014 में मई और जून माह में 41 डिग्री सेल्सियस तापमान रके वक्त सर्वाधिक 355 बच्चों की मौत हुई. बकि वर्ष 2019 में मई माह में में पिछले 10 सालों में सर्वाधिक तापमान 43 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है.

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