मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर के बिहार यूनिवर्सिटी (Bihar University in Muzaffarpur) में बड़े पैमाने पर छात्रों का जेंडर चेंज करने का चौंकाने वाला मामला सामने आया है. यहां एडमिशन लेने के लिए आवेदन करने वाले 28 हजार स्टूडेंट्स का जेंडर चेंज हो गया है. यह मामला सामने आने के बाद हर कोई हैरान है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि यूनिवर्सिटी के रिकॉर्ड में इतनी संख्या में लोगों के जेंडर चेंज हो गए.
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बिहार यूनिवर्सिटी लिंग परिवर्तन: दरअसल, बिहार यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन पार्ट-1 के आवेदन में बड़ी चूक से लगभग 28 हजार विद्यार्थियों का जेंडर बदल गया है. बिहार यूनिवर्सिटी के पोर्टल पर ये स्टूडेंट्स न तो पुरुष हैं और न ही महिला. इनके जेंडर में अदर्स (अन्य) भरा गया है, जो ट्रांसजेंडर के संवर्ग में माना जाता है. हैरत की बात यह है कि जिन छात्र-छात्राओं के जेंडर यूनिवर्सिटी रेकॉर्ड में चेंज कर दिए गए हैं, उन्हें खुद इस बात के बारे में पता नहीं है.
28 आवेदकों को ट्रांसजेंडर वर्ग में दर्ज है नाम: यूनिवर्सिटी की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक ग्रेजुएशन पार्ट-1 के लिए 1 लाख 47 हजार आवेदन आए हैं. इसमें से 67 हजार 178 लोगों को एडमिशन दिया गया है. इसमें करीब 28 आवेदकों को ट्रांसजेंडर वर्ग में दर्ज किया गया है. यूनिवर्सिटी की ओर से कहा गया है कि जिन्हें भी एडमिशन मिल रहा है, उन स्टूडेंड्स से ही पूछा जाएगा कि उनका जेंडर क्या है.
एडिट के लिए मिलेगा दो दिन का समय: बिहार यूनिवर्सिटी के यूएमआईएस को ऑर्डिनेटर प्रो. टीके डे का कहना है कि आवेदन फॉर्म भरते समय यह गलती हुई है. स्टूडेंट्स आकर शिकायत कर रहे हैं कि साइबर कैफे वालों ने हमारे फॉर्म में गलती कर दी और जेंडर के आगे अदर्स भर दिया. बिहार यूनिवर्सिटी में पहली मेरिटलिस्ट के लिए 90 हजार आवेदन थे, इनमें 36010 छात्राएं और 25873 छात्र बताये गये. बाकी लगभग 28 हजार विद्यार्थी अदर्स में हो गये. प्रो. टीके डे ने बताया कि जिन छात्र-छात्राओं के आवेदन में जेंडर की गलती हुई है, उसे सुधार का मौका दिया जाएगा. इसके लिए पोर्टल खोलकर एडिट का अवसर दिया जायेगा. दो दिन बाद एडिट के लिए पोर्टल खोल दिया जायेगा.
"बच्चों से ही लिया जाएगा कि उनका जेंडर क्या है. ये सारा काम साइबर कैफे के कारण हुआ है. यूनिवर्सिटी का जो भी पेंडिंग या जो भी समस्या है उसका 80 प्रतिशत कारण साइबर कैफे है. बच्चे खुद से अपना काम नहीं करते हैं. हमेशा साइबर कैफे जाते हैं. साइबर कैफे वाले हमेशा गलत एंट्री करते हैं. हमलोग सुधारते रहते हैं. हमलोग परेशान रहते हैं उससे. साइबर कैफे वाले को ज्यादा से ज्यादा बच्चों का एंट्री करना रहता है. डाटा ही चेंज कर देता है. केवल जेंडर ही नहीं बहुत कुछ भी बदल देता है. अब तो बहुत कुछ हमने रोका है. लेकिन एडमिशन में उसको कैसे रोका जाय. हमलोग ये आशा करते हैं कि जो बच्चे ग्रेजुएशन में आते हैं वो खुद से फॉर्म भरें. जो भी गलती है उसको सुधारा जाएगा."- प्रो. टीके डे, यूएमआईएस को ऑर्डिनेटर, बिहार यूनिवर्सिटी
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