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लोक आस्था का महापर्व: आज शाम डूबते सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्य

लोक आस्था का महापर्व छठ एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें लोग डूबत हुए सूर्य की उपासना करते हैं. इस दौरान व्रती काफी कठिन उपवास करती हैं. करीब 36 घंटे तक बिना अन्न जल ग्रहण किए व्रती छठ मैया की आराधना में लीन रहती हैं.

मुंगेर
छठ 2021
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Published : Apr 18, 2021, 12:00 PM IST

मुंगेर: 4 दिनों तक चलने वाला लोक आस्था का महापर्व छठ वर्ष में दो बार चैत और कार्तिक माह में मनाया जाता है. जब सूर्य को घर में बने तालाब या पवित्र गंगा के किनारे शाम और सुबह अर्घ्य देने का प्रचलन है. आज चैती छठ के तीसरे दिन संध्या में लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगे.

ये भी पढ़ें : चैती छठ 2021: कोरोना संक्रमण के कारण घाटों जाने की है मनाही, आज व्रतियों ने किया खरना, परिजनों के बीच प्रसाद वितरित

लोक आस्था का महापर्व छठ के हैं कठिन नियम
4 दिनों तक चलने वाला लोक आस्था का महापर्व नहाय खाय यानी कद्दू भात के दिन के साथ शुरू हो जाता है. कद्दू भात के अगले दिन खरना होता है. तीसरे दिन यानी आज अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य चढ़ाया जाएगा. जबकि, सोमवार को उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देने के बाद 4 दिन तक चलने वाला महापर्व संपंन्न हो जाएगा. इस दौरान व्रती काफी कठिन उपवास करती है, करीब 36 घंटे तक बिना अन्न जल ग्रहण किए व्रती छठ मैया की आराधना में लीन रहती हैं.

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गंगा घाट

गंगा घाटों की विशेष साफ-सफाई की गई
आस्था के इस महा पर्व को लेकर बिहार में लोगों में अटूट विश्वास है. छठ के इस पावन अवसर पर गांगा घाटों की विशेष तौर पर साफ-सफाई की गई है. सीढ़ियों पर जमे मिट्टी को हटाया गया. अर्घ्य देने के दौरान कोई बड़ी दुर्घटना ना हो इसके लिए गंगा के पानी में खतरे के निशान के लिए बांस बल्ला लगाकर लाल रस्सी का घेरा भी बनाया गया है.

छठी मैया को चढ़ाया जाता है ठेकुआ का विशेष प्रसाद
छठ मैया की पूजा बड़े ही नियम पूर्वक की जाती है. छठ मैया को प्रसाद के रूप में चावल, गेहूं का आटा, मैदा और गुड़ से बने ठेकुआ, पांच प्रकार के फल जैसे कि सेब, केला, नारंगी, नारियल, गन्ना आदि प्रसाद के रूप में सुप पर चढ़ाया जाता है. नदी तालाब या सरोवर में खड़े होकर अस्ताचलगामी एवं उदयीमान भगवान भास्कर को सुप पर रखे फल-फूल के साथ दूध या जल से अर्घ्य दिया जाता है. उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती जल और प्रसाद ग्रहण कर सबको प्रसाद खिला कर अपने व्रत का समापन करती हैं.

मुंगेर: 4 दिनों तक चलने वाला लोक आस्था का महापर्व छठ वर्ष में दो बार चैत और कार्तिक माह में मनाया जाता है. जब सूर्य को घर में बने तालाब या पवित्र गंगा के किनारे शाम और सुबह अर्घ्य देने का प्रचलन है. आज चैती छठ के तीसरे दिन संध्या में लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगे.

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लोक आस्था का महापर्व छठ के हैं कठिन नियम
4 दिनों तक चलने वाला लोक आस्था का महापर्व नहाय खाय यानी कद्दू भात के दिन के साथ शुरू हो जाता है. कद्दू भात के अगले दिन खरना होता है. तीसरे दिन यानी आज अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य चढ़ाया जाएगा. जबकि, सोमवार को उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देने के बाद 4 दिन तक चलने वाला महापर्व संपंन्न हो जाएगा. इस दौरान व्रती काफी कठिन उपवास करती है, करीब 36 घंटे तक बिना अन्न जल ग्रहण किए व्रती छठ मैया की आराधना में लीन रहती हैं.

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गंगा घाट

गंगा घाटों की विशेष साफ-सफाई की गई
आस्था के इस महा पर्व को लेकर बिहार में लोगों में अटूट विश्वास है. छठ के इस पावन अवसर पर गांगा घाटों की विशेष तौर पर साफ-सफाई की गई है. सीढ़ियों पर जमे मिट्टी को हटाया गया. अर्घ्य देने के दौरान कोई बड़ी दुर्घटना ना हो इसके लिए गंगा के पानी में खतरे के निशान के लिए बांस बल्ला लगाकर लाल रस्सी का घेरा भी बनाया गया है.

छठी मैया को चढ़ाया जाता है ठेकुआ का विशेष प्रसाद
छठ मैया की पूजा बड़े ही नियम पूर्वक की जाती है. छठ मैया को प्रसाद के रूप में चावल, गेहूं का आटा, मैदा और गुड़ से बने ठेकुआ, पांच प्रकार के फल जैसे कि सेब, केला, नारंगी, नारियल, गन्ना आदि प्रसाद के रूप में सुप पर चढ़ाया जाता है. नदी तालाब या सरोवर में खड़े होकर अस्ताचलगामी एवं उदयीमान भगवान भास्कर को सुप पर रखे फल-फूल के साथ दूध या जल से अर्घ्य दिया जाता है. उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती जल और प्रसाद ग्रहण कर सबको प्रसाद खिला कर अपने व्रत का समापन करती हैं.

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