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मुंगेर में धान अधिप्राप्ति लक्ष्य से भटका सहकारिता विभाग, औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर किसान - ETV Bharat News

मुंगेर में धान अधिप्राप्ति की गति काफी धीमी (Very slow paddy procurement in Munger) है. इसलिए किसान इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं. कम कीमत मिलने के बावजूद वे बाजार में धान बेचने को मजबूर हैं. ऐसे में सहकारिता विभाग अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रहा है. पढ़ें पूरी खबर.

Farmers of Munger District
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Published : Jan 7, 2022, 11:45 AM IST

Updated : Jan 7, 2022, 5:30 PM IST

मुंगेर: मुंगेर जिले के किसान (Farmers of Munger District) पैक्स एवं व्यापार मंडल को अपना धान नहीं बेचते है. अधिकतर किसान कम कीमत पर बाजार में ही धान बेचकर खुश (Farmers forced to sell paddy at low prices in Munger) हो रहे हैं. ऐसे में सहकारिता विभाग अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रहा. मुंगेर में धान अधिप्राप्ति योजना (paddy procurement Plan in Munger) खटाई में पड़ रही है. जिले में 50 हजार मीट्रिक टन का लक्ष्य है लेकिन अब तक मात्र 9500 मीट्रिक टन धान अधिप्राप्ति हुई है. इस बाबत जानकारी देते हुए सहकारिता पदाधिकारी धर्मनाथ प्रसाद ने बताया कि जिले को 50 हजार एमटी का लक्ष्य है. अभी 9.500 क्विंटल ही धान की खरीदी हुई है. उन्होंने कहा कि 15 फरवरी तक लक्ष्य को पूरा कर लिया जाएगा.

ये भी पढ़ें: स्कूल के पास सड़क किनारे सिगरेट पी रहे थे 2 दर्जन बच्चे, डीएम की नजर पड़ी तो कर दी दुकान सील

पैक्स अध्यक्षों की है अलग परेशानी
सदर प्रखंड के पैक्स अध्यक्ष मोहम्मद एतराम ने कहा कि पैक्स अध्यक्षों को उनके लक्ष्य का मात्र 20 फीसदी ही भुगतान सीसी के माध्यम से किया गया है. ऐसे में किसानों को हम कहां से पैसे देंगे. प्रावधान है कि 48 घंटे में किसानों को उनके धान की कीमत खाते पर भेज दिया जाए. उन्होंने कहा कि शुरुआत में तो कुछ किसानों को हम लोग भुगतान करते हैं लेकिन बाद में आने वाले किसानों को भुगतान नहीं कर पाते.

चावल मिलने के बाद एसएफसी देता है पैसा
पैक्स अध्यक्ष ने बताया कि किसान का धान लेकर हम मिलर को देते हैं. मिलर चावल तैयार कर उसे एसएससी को देता है. एसएससी चावल लेने के बाद भुगतान करती है. तब हम किसानों को धान की कीमत दे पाते हैं. ऐसे में 48 घंटे के बजाय 30 से 60 दिनों का समय भुगतान में लग जाता है.

खरीद के लिए कम समय देना
इसके अलावा पैक्स अध्यक्ष मोहम्मद एतराम ने कहा कि किसानों से धान खरीदने के लिए समय कम दिया जाता है. किसानों को तैयार फसल की कटाई एवं छंटाई के बाद व्यापार मंडल तक आने में समय अधिक लगता है लेकिन 2 महीने का ही समय हम लोगों को दिया जाता है. इस साल 15 फरवरी तक का समय है. ऐसे में किसान 15 फरवरी तक धान हम लोगों के पास नहीं ला पाते. इस कारण भी हम लोग लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते.

नमी भी है प्रमुख कारण
पैक्स अध्यक्ष सदर ने कहा कि 17 से 18 फीसदी नमी वाले धान को ही खरीदने का निर्देश है, लेकिन मौसम खराब रहने के कारण किसी भी किसान के पास 20 से 22 फीसदी नमी वाले धान होते हैं. ऐसे नमी वाले धान की खरीद नहीं करनी है. धान में खुकड़ी भी नहीं रहना चाहिए. किसानों को इतना समय नहीं है कि वे खुकरी निकालें. इसलिए हम लोग खुकरी भी देखते हैं.

क्या कहते हैं किसान
सदर प्रखंड के बरदह पंचायत के किसान साहब मलिक ने बताया कि हम लोगों के पास इतना बड़ा गोदाम नहीं है कि धान को रख सकें. जबकि पैक्स या व्यापार मंडल के पास हम लोग जब धान बेचने जाते हैं तो पहले तो वे लोग नमी का बहाना बनाते हैं. धान खरीदने से इनकार करते हैं. हम धान कहां से सुखाएं. अभी का ही मौसम देख लीजिए. पिछले चार-पांच दिनों से धूप नहीं निकली है. धान से नमी कहां से खत्म होगी और अगर हम तैयार धान को नहीं बेचेंगे तो हमें पैसा कैसे मिलेगा? महाजनों से कर्ज लेकर खेती की है.

साहब मलिक ने कहा कि आगे हमें रबी की भी फसल बोनी है. उसके लिए पूंजी भी चाहिए. इसलिए हम लोग पैक्स एवं व्यापार मंडल में उन्हें 19 सौ रुपये प्रति क्विंटल मिलने के बाद भी खुले बाजार में 14 सौ रुपये मात्र प्रति क्विंटल में बेचकर खुश हो जाते हैं. बाजार से हमें तुरन्त नगद भुगतान हो जाता है जबकि पैक्स या व्यापार मंडल में भुगतान के लिए महीना-दो महीने का इंतजार करना पड़ता है.

ये भी पढ़ें: मुंगेर में नर्स समेत 14 नए कोरोना संक्रमितों की पुष्टि, जिले में एक्टिव केस की संख्या 91 हुई

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मुंगेर: मुंगेर जिले के किसान (Farmers of Munger District) पैक्स एवं व्यापार मंडल को अपना धान नहीं बेचते है. अधिकतर किसान कम कीमत पर बाजार में ही धान बेचकर खुश (Farmers forced to sell paddy at low prices in Munger) हो रहे हैं. ऐसे में सहकारिता विभाग अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रहा. मुंगेर में धान अधिप्राप्ति योजना (paddy procurement Plan in Munger) खटाई में पड़ रही है. जिले में 50 हजार मीट्रिक टन का लक्ष्य है लेकिन अब तक मात्र 9500 मीट्रिक टन धान अधिप्राप्ति हुई है. इस बाबत जानकारी देते हुए सहकारिता पदाधिकारी धर्मनाथ प्रसाद ने बताया कि जिले को 50 हजार एमटी का लक्ष्य है. अभी 9.500 क्विंटल ही धान की खरीदी हुई है. उन्होंने कहा कि 15 फरवरी तक लक्ष्य को पूरा कर लिया जाएगा.

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पैक्स अध्यक्षों की है अलग परेशानी
सदर प्रखंड के पैक्स अध्यक्ष मोहम्मद एतराम ने कहा कि पैक्स अध्यक्षों को उनके लक्ष्य का मात्र 20 फीसदी ही भुगतान सीसी के माध्यम से किया गया है. ऐसे में किसानों को हम कहां से पैसे देंगे. प्रावधान है कि 48 घंटे में किसानों को उनके धान की कीमत खाते पर भेज दिया जाए. उन्होंने कहा कि शुरुआत में तो कुछ किसानों को हम लोग भुगतान करते हैं लेकिन बाद में आने वाले किसानों को भुगतान नहीं कर पाते.

चावल मिलने के बाद एसएफसी देता है पैसा
पैक्स अध्यक्ष ने बताया कि किसान का धान लेकर हम मिलर को देते हैं. मिलर चावल तैयार कर उसे एसएससी को देता है. एसएससी चावल लेने के बाद भुगतान करती है. तब हम किसानों को धान की कीमत दे पाते हैं. ऐसे में 48 घंटे के बजाय 30 से 60 दिनों का समय भुगतान में लग जाता है.

खरीद के लिए कम समय देना
इसके अलावा पैक्स अध्यक्ष मोहम्मद एतराम ने कहा कि किसानों से धान खरीदने के लिए समय कम दिया जाता है. किसानों को तैयार फसल की कटाई एवं छंटाई के बाद व्यापार मंडल तक आने में समय अधिक लगता है लेकिन 2 महीने का ही समय हम लोगों को दिया जाता है. इस साल 15 फरवरी तक का समय है. ऐसे में किसान 15 फरवरी तक धान हम लोगों के पास नहीं ला पाते. इस कारण भी हम लोग लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते.

नमी भी है प्रमुख कारण
पैक्स अध्यक्ष सदर ने कहा कि 17 से 18 फीसदी नमी वाले धान को ही खरीदने का निर्देश है, लेकिन मौसम खराब रहने के कारण किसी भी किसान के पास 20 से 22 फीसदी नमी वाले धान होते हैं. ऐसे नमी वाले धान की खरीद नहीं करनी है. धान में खुकड़ी भी नहीं रहना चाहिए. किसानों को इतना समय नहीं है कि वे खुकरी निकालें. इसलिए हम लोग खुकरी भी देखते हैं.

क्या कहते हैं किसान
सदर प्रखंड के बरदह पंचायत के किसान साहब मलिक ने बताया कि हम लोगों के पास इतना बड़ा गोदाम नहीं है कि धान को रख सकें. जबकि पैक्स या व्यापार मंडल के पास हम लोग जब धान बेचने जाते हैं तो पहले तो वे लोग नमी का बहाना बनाते हैं. धान खरीदने से इनकार करते हैं. हम धान कहां से सुखाएं. अभी का ही मौसम देख लीजिए. पिछले चार-पांच दिनों से धूप नहीं निकली है. धान से नमी कहां से खत्म होगी और अगर हम तैयार धान को नहीं बेचेंगे तो हमें पैसा कैसे मिलेगा? महाजनों से कर्ज लेकर खेती की है.

साहब मलिक ने कहा कि आगे हमें रबी की भी फसल बोनी है. उसके लिए पूंजी भी चाहिए. इसलिए हम लोग पैक्स एवं व्यापार मंडल में उन्हें 19 सौ रुपये प्रति क्विंटल मिलने के बाद भी खुले बाजार में 14 सौ रुपये मात्र प्रति क्विंटल में बेचकर खुश हो जाते हैं. बाजार से हमें तुरन्त नगद भुगतान हो जाता है जबकि पैक्स या व्यापार मंडल में भुगतान के लिए महीना-दो महीने का इंतजार करना पड़ता है.

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Last Updated : Jan 7, 2022, 5:30 PM IST
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