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शकील अहमद की एंट्री से मुकाबला बना त्रिकोणीय, क्या हुकुमदेव की बच पाएगी 'विरासत'? - सांसद रिपोर्ट कार्ड मधुबनी

शकील अहमद के निर्दलीय चुनाव लड़ने के फैसले के बाद मधुबनी में मुकाबला त्रिकोणीय बन गया है. वहीं, आरजेडी के बागी अली अशरफ फातमी ने भी शकील अहमद को समर्थन देकर एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी है.

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Published : May 4, 2019, 7:16 PM IST

मधुबनी: मधुबनी यानी मिथिलांचल का ऐसा लोकसभा क्षेत्र जिसमें मधुरवाणी के साथ-साथ सिसासी चाशनी भी शामिल है. मधुबनी को मिथिला संस्कृति का केंद्र माना जाता है. विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग औरो मखाना के पैदावार की वजह से इसे विश्वभर में जाना जाता है. जिले का गठन 1972 में दरभंगा के विभाजन के दौरान हुआ था. मधुबनी किसान आंदोलन का भी केंद्र रहा है.


कभी कांग्रेस और वाम का गढ़ रहा मधुबनी
मधुबनी लोकसभा सीट की बात करें तो इसे कांग्रेस और वाम मोर्चा का गढ़ माना जाता था. फिलहाल बीजेपी का वर्चस्व यहां कायम है. पार्टी के दिग्ग्ज और तेज तर्रार हुकुमदेव नारायण यादव यहां से सांसद हैं. वे ग्रामीण परिवेश से आने वाले और किसानों के पक्षधर नेता माने जाते हैं.


मधुबनी संसदीय सीट का समीकरण
मधुबनी संसदीय क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 13,97,256 है. इसमें 7,55,812 पुरुष वोटर हैं जबकि 6,41,444 महिला वोटर हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 44 लाख 87 हजार 379 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 23 लाख 29 हजार 313 और महिलाओं की संख्या 21 लाख 58 हजार 66 है.


विधानसभा सीटों का समीकरण
मधुबनी संसदीय क्षेत्र के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं- हरलाखी, बेनीपट्टी, बिस्फी, मधुबनी, केवटी और जाले. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इनमें से तीन सीटें आरजेडी, एक बीजेपी, एक कांग्रेस और एक आरएलएसपी ने जीती.


2014 चुनाव का जनादेश
2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार हुकुमदेव नारायण यादव को जीत हासिल हुई थी. हुकुमदेव नारायण यादव को 3,58,040 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे आरजेडी के अब्दुल बारी सिद्दिकी थे, जिन्हें 3,37,505 वोट मिले.

madhubani
प्रचार करते शकील अहमद


सांसद का रिपोर्ट कार्ड
मधुबनी के सांसद हुकुमदेव नारायण यादव को वर्ष 2014 के लिए उत्कृष्ट सांसद के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. 16वीं लोकसभा के दौरान हुकुमदेव नारायण यादव ने अपने सांसद निधि का 99.91 फीसदी हिस्सा खर्च किया. संसदीय कार्यवाही में भी उनकी अच्छी खासी सक्रियता रहती है. 55 बहसों में उन्होंने हिस्सा लिया. जबकि 32 सवाल पूछे. इसके अलावा 5 प्राइवेट मेंबर बिल भी अलग-अलग मुद्दों पर उन्होंने पेश किए.


2019 के सियासी समीकरण
कांग्रेस नेता शकील अहमद के निर्दलीय चुनावी मैदान में कूदने के बाद मधुबनी लोकसभा सीट पर एनडीए और महागठबंधन का समीकरण बिगड़ गया है. इस सीट पर अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. महागठबंधन में हुए सीट शेयरिंग के बाद ये सीट मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के खाते में गई. पार्टी ने यहां से राजद के पूर्व नेता बद्रीनाथ पूर्वे को टिकट दिया है. एनडीए ने इस सीट से चार बार सांसद रहे हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक कुमार यादव को टिकट दिया है.


शकील अहमद का समर्थन करेंगे फातमी
दरभंगा सीट से चार बार सांसद रहे पूर्व राजद नेता अली अशरफ फातमी ने मधुबनी से बसपा के सिंबल पर नामांकन दाखिल किया था. दो दिनों बाद उन्होंने नामांकन वापस ले लिया. इसके बाद फातमी ने आरजेडी पर जमकर निशाना साधा. फातमी ने आरोप लगाया कि पार्टी ने उन्हें दरभंगा की जगह मधुबनी से टिकट देने का वादा किया था, लेकिन यह सीट वीआईपी के खाते में चली गई. उन्होंने कहा कि बीजेपी को हराने के लिए उन्होंने अपना नामांकन वापस लिया है और उनके कार्यकर्ता शकील अहमद का समर्थन करेंगे.


ये मुद्दे अब भी हैं बरकरार
चुनाव के समय नेताओं के दावे तो खूब होते हैं. लेकिन आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच जनता के मुद्दे हवा-हवाई हो जाते हैं. ये सच है कि दरभंगा और मधुबनी को मिथिला संस्कृति का केंद्र माना जाता है. विश्व प्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग और मखाना की पैदावार की वजह से मधुबनी की एक अलग पहचान है. लेकिन मखाना की खेती करने वाले किसान भू-जल स्तर गिरने और मखाना की कम कीमत मिलने की समस्या से परेशान हैं. जल संकट की वजह से मखाना का उत्पादन प्रभावित हो रहा है. सड़कें, बिजली और स्वास्थ्य की समस्याएं अब भी बरकरार हैं. जिसे देखते हुए जनता धर्म-जात की राजनीति से उपर उठकर विकास के मुद्दे पर ईवीएम दबाएगी. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि त्रिकोणीय मुकाबले में बाजी कौन मारता है.

मधुबनी: मधुबनी यानी मिथिलांचल का ऐसा लोकसभा क्षेत्र जिसमें मधुरवाणी के साथ-साथ सिसासी चाशनी भी शामिल है. मधुबनी को मिथिला संस्कृति का केंद्र माना जाता है. विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग औरो मखाना के पैदावार की वजह से इसे विश्वभर में जाना जाता है. जिले का गठन 1972 में दरभंगा के विभाजन के दौरान हुआ था. मधुबनी किसान आंदोलन का भी केंद्र रहा है.


कभी कांग्रेस और वाम का गढ़ रहा मधुबनी
मधुबनी लोकसभा सीट की बात करें तो इसे कांग्रेस और वाम मोर्चा का गढ़ माना जाता था. फिलहाल बीजेपी का वर्चस्व यहां कायम है. पार्टी के दिग्ग्ज और तेज तर्रार हुकुमदेव नारायण यादव यहां से सांसद हैं. वे ग्रामीण परिवेश से आने वाले और किसानों के पक्षधर नेता माने जाते हैं.


मधुबनी संसदीय सीट का समीकरण
मधुबनी संसदीय क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 13,97,256 है. इसमें 7,55,812 पुरुष वोटर हैं जबकि 6,41,444 महिला वोटर हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 44 लाख 87 हजार 379 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 23 लाख 29 हजार 313 और महिलाओं की संख्या 21 लाख 58 हजार 66 है.


विधानसभा सीटों का समीकरण
मधुबनी संसदीय क्षेत्र के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं- हरलाखी, बेनीपट्टी, बिस्फी, मधुबनी, केवटी और जाले. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इनमें से तीन सीटें आरजेडी, एक बीजेपी, एक कांग्रेस और एक आरएलएसपी ने जीती.


2014 चुनाव का जनादेश
2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार हुकुमदेव नारायण यादव को जीत हासिल हुई थी. हुकुमदेव नारायण यादव को 3,58,040 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे आरजेडी के अब्दुल बारी सिद्दिकी थे, जिन्हें 3,37,505 वोट मिले.

madhubani
प्रचार करते शकील अहमद


सांसद का रिपोर्ट कार्ड
मधुबनी के सांसद हुकुमदेव नारायण यादव को वर्ष 2014 के लिए उत्कृष्ट सांसद के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. 16वीं लोकसभा के दौरान हुकुमदेव नारायण यादव ने अपने सांसद निधि का 99.91 फीसदी हिस्सा खर्च किया. संसदीय कार्यवाही में भी उनकी अच्छी खासी सक्रियता रहती है. 55 बहसों में उन्होंने हिस्सा लिया. जबकि 32 सवाल पूछे. इसके अलावा 5 प्राइवेट मेंबर बिल भी अलग-अलग मुद्दों पर उन्होंने पेश किए.


2019 के सियासी समीकरण
कांग्रेस नेता शकील अहमद के निर्दलीय चुनावी मैदान में कूदने के बाद मधुबनी लोकसभा सीट पर एनडीए और महागठबंधन का समीकरण बिगड़ गया है. इस सीट पर अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. महागठबंधन में हुए सीट शेयरिंग के बाद ये सीट मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के खाते में गई. पार्टी ने यहां से राजद के पूर्व नेता बद्रीनाथ पूर्वे को टिकट दिया है. एनडीए ने इस सीट से चार बार सांसद रहे हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक कुमार यादव को टिकट दिया है.


शकील अहमद का समर्थन करेंगे फातमी
दरभंगा सीट से चार बार सांसद रहे पूर्व राजद नेता अली अशरफ फातमी ने मधुबनी से बसपा के सिंबल पर नामांकन दाखिल किया था. दो दिनों बाद उन्होंने नामांकन वापस ले लिया. इसके बाद फातमी ने आरजेडी पर जमकर निशाना साधा. फातमी ने आरोप लगाया कि पार्टी ने उन्हें दरभंगा की जगह मधुबनी से टिकट देने का वादा किया था, लेकिन यह सीट वीआईपी के खाते में चली गई. उन्होंने कहा कि बीजेपी को हराने के लिए उन्होंने अपना नामांकन वापस लिया है और उनके कार्यकर्ता शकील अहमद का समर्थन करेंगे.


ये मुद्दे अब भी हैं बरकरार
चुनाव के समय नेताओं के दावे तो खूब होते हैं. लेकिन आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच जनता के मुद्दे हवा-हवाई हो जाते हैं. ये सच है कि दरभंगा और मधुबनी को मिथिला संस्कृति का केंद्र माना जाता है. विश्व प्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग और मखाना की पैदावार की वजह से मधुबनी की एक अलग पहचान है. लेकिन मखाना की खेती करने वाले किसान भू-जल स्तर गिरने और मखाना की कम कीमत मिलने की समस्या से परेशान हैं. जल संकट की वजह से मखाना का उत्पादन प्रभावित हो रहा है. सड़कें, बिजली और स्वास्थ्य की समस्याएं अब भी बरकरार हैं. जिसे देखते हुए जनता धर्म-जात की राजनीति से उपर उठकर विकास के मुद्दे पर ईवीएम दबाएगी. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि त्रिकोणीय मुकाबले में बाजी कौन मारता है.

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शकील अहमद के निर्दलीय चुनाव लड़ने के फैसले के बाद मधुबनी में मुकाबला त्रिकोणीय बन गया है. वहीं, आरजेडी के बागी अली अशरफ फातमी ने भी शकील अहमद को समर्थन देकर एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी है.



शकील अहमद की एंट्री से मुकाबला बना त्रिकोणीय, क्या हुकुमदेव की बच पाएगी 'विरासत'?

 



मधुबनी: मधुबनी यानी मिथिलांचल का ऐसा लोकसभा क्षेत्र जिसमें मधुरवाणी के साथ-साथ सिसासी चाशनी भी शामिल है. मधुबनी को मिथिला संस्कृति का केंद्र माना जाता है. विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से इसको विश्वभर में जाना जाता है. जिले का गठन 1972 में दरभंगा के विभाजन के दौरान हुआ था. मधुबनी किसान आंदेालन का भी केंद्र रहा है.



मधुबनी लोकसभा सीट की बात करें तो इसे कांग्रेस और वाम मोर्चा का गढ़ माना जाता था. फिलहाल के समय में बीजेपी का वर्चस्व यहां कायम है. पार्टी के दिग्ग्ज और तेज तर्रार हुकुमदेव नारायण यादव यहां से सांसद हैं. वे ग्रामीण परिवेश से आने वाले और किसानों के पक्षधर नेता माने जाते हैं.



मधुबनी संसदीय सीट का समीकरण

मधुबनी संसदीय क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 13,97,256 है. इसमें 7,55,812 पुरुष वोटर हैं जबकि 6,41,444 महिला वोटर हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 44 लाख 87 हजार 379 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 23 लाख 29 हजार 313 और महिलाओं की संख्या 21 लाख 58 हजार 66 है.



विधानसभा सीटों का समीकरण

मधुबनी संसदीय क्षेत्र के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं- हरलाखी, बेनीपट्टी, बिस्फी, मधुबनी, केवटी और जाले. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इनमें से तीन सीटें आरजेडी, एक बीजेपी, एक कांग्रेस और एक आरएलएसपी ने जीती.



2014 चुनाव का जनादेश

2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार हुकुमदेव नारायण यादव को जीत हासिल हुई थी. हुकुमदेव नारायण यादव को 3,58,040 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे आरजेडी के अब्दुल बारी सिद्दिकी जिन्हें 3,37,505 वोट मिले.



सांसद का रिपोर्ट कार्ड

मधुबनी के सांसद हुकुमदेव नारायण यादव को वर्ष 2014 के लिए उत्कृष्ट सांसद के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. 16वीं लोकसभा के दौरान हुकुमदेव नारायण यादव ने अपने सांसद निधि का 99.91 फीसदी हिस्सा खर्च किया. संसदीय कार्यवाही में भी उनकी अच्छी खासी सक्रियता रहती है. 55 बहसों में उन्होंने हिस्सा लिया. जबकि 32 सवाल पूछे. इसके अलावा 5 प्राइवेट मेंबर बिल भी विभिन्न मुद्दों पर उन्होंने पेश किया.



2019 के सियासी समीकरण

कांग्रेस नेता शकील अहमद के निर्दलीय चुनावी मैदान में कूदने के बाद मधुबनी लोकसभा सीट पर एनडीए और महागठबंधन का समीकरण बिगड़ गया है. इस सीट पर अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. महागठबंधन में हुए सीट शेयरिंग के बाद ये सीट मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के खाते में गई. पार्टी ने यहां से राजद के पूर्व नेता बद्रीनाथ पूर्वे को टिकट दिया है. एनडीए ने इस सीट से चार बार सांसद रहे हुकुमदेव नारायण यादव के बेटे अशोक कुमार यादव को टिकट दिया है.



शकील अहमद का समर्थन करेंगे फातमी

दरभंगा सीट से चार बार सांसद रहे पूर्व राजद नेता अली अशरफ फातमी ने मधुबनी से बसपा के सिंबल पर नामांकन दाखिल किया था. दो दिनों बाद उन्होंने नामांकन वापस ले लिया. इसके बाद फातमी ने आरजेडी पर जमकर निशाना साधा.  फातमी ने आरोप लगाया कि पार्टी ने उन्हें दरभंगा की जगह मधुबनी से टिकट देने का वादा किया था, लेकिन यह सीट वीआईपी के खाते में चली गई. उन्होंने कहा कि बीजेपी को हराने के लिए उन्होंने अपना नामांकन वापस लिया है और उनके कार्यकर्ता शकील अहमद का समर्थन करेंगे.



ये मुद्दे अब भी हैं बरकरार

चुनाव के समय नेताओं के दावे तो खूब होते हैं. लेकिन आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच जनता के मुद्दे हवा-हवाई हो जाते हैं. ये सच है कि दरभंगा और मधुबनी को मिथिला संस्कृति का केंद्र माना जाता है. विश्व प्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना की पैदावार की वजह से मधुबनी की एक अलग पहचान है. लेकिन मखाना की खेती करने वाले किसान भूजल स्तर गिरने और मखाना की कम कीमत मिलने की समस्या से परेशान हैं. जल संकट की वजह से मखाना का उत्पादन प्रभावित हो रहा है. सड़के, बिजली और स्वास्थ्य की समस्याएं अब भी बरकरार हैं. ऐसे में जनता धर्म-जात की राजनीति से उपर उठकर विकास के मुद्दे पर ईवीएम दबाएगी. ऐसे में त्रिकोणीय मुकाबले में कौन बाजी मारता है ये तो 23 मई को ही पता लगेगा.


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