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ऐतिहासिक है बिहार का देवघर कहे जाने वाला मधेपुरा का सिंहेश्वर मंदिर, सदियों से चली आ रही है रात्रि में जल चढ़ाने की परंपरा - ऐतिहासिक है मंदिर

मंदिर स्थित शिवलिंग को कामना लिंग के रूप में पूजा जाता है. रात्रि में भोले बाबा पर जल चढ़ाने बाले श्रद्धालुओं का मनोकामना अवश्य पूरी होती है. श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि रहने में कारण पहले इसका नाम शृंगेश्वर था. जो बाद में सिंहेश्वर हो गया.

मधेपुरा का सिंहेश्वर मंदिर
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Published : Aug 13, 2019, 3:18 AM IST

मधेपुरा: बिहार के देवघर कहे जाने वाले मधेपुरा के सिंहेश्वर में सावन के अंतिम सोमवारी के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. इस मंदिर में सावन की अंतिम सोमवारी की रात्रि में जल चढ़ाने और पूजा अर्चना की परंपरा बहुत ही पुरानी है.श्रद्धालु रात में ही कतारबद्ध होने लगे थे.

कामना लिंग के रूप में होती है पूजा
मंदिर काफी पुराना एवं ऐतिहासिक है. मंदिर के पंडा का कहना है कि मंदिर स्थित शिवलिंग को कामना लिंग के रूप में पूजा जाता है. रात्रि में भोले बाबा पर जल चढ़ाने बाले श्रद्धालुओं का मनोकामना अवश्य पूरी होती है. श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि रहने में कारण पहले इसका नाम शृंगेश्वर था. जो बाद में सिंहेश्वर हो गया. राजा दशरथ के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया था, इसीलिए संतान की चाहत लिए काफी संख्या में श्रद्धालु बाबा के दर पर आते है.

सिंहेश्वर मंदिर में रात्रि में जल चढ़ाने की परंपरा
सिंहेश्वर मंदिर में रात्रि में जल चढ़ाने की परंपरा

ऐतिहासिक है मंदिर
दंतकथाओं कि माने तो सिंहेश्वेर के इस शिव मंदिर को स्वयं भगवान विष्णु ने बनाया था. स्थानीयों का कहना है कि कई सौ साल पहले यह घने जंगल से घिरा हुआ था. यहां अगल-बगल के लोग अपनी गायों को चराने आते थे. वहीं एक गाय प्रत्येक दिन एक जगह पर खड़ा होकर अपने दूध को गिरने लगती थी. एक दिन गाय के मालिक ने यह सब देख लिया जिसके बाद सबों ने मिलकर खुदाई की तो वहां एक शिवलिंग मिला.

मधेपुरा का सिंहेश्वर मंदिर

नदारद दिखी सुरक्षा व्यवस्था
सावन की अंतिम सोमवारी के कारण भक्तों का सैलाब शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए उमड़ पड़ा है. मंदिर में श्रद्धालुओं की भाड़ी भीड़ है. लेकिन भीड़ के देखते हुए सुरक्षा कर्मी को नहीं लगाया गया है. पुजा करना आये श्रद्धालु ने बताया कि वे पिछले 17 साल से बाबा का पूजा अर्चना सावन के अंतिम सोमवारी की रात्रि में करने आते हैं. लेकिन इस बार सुरक्षा व्यवस्था में कमी है.

मधेपुरा: बिहार के देवघर कहे जाने वाले मधेपुरा के सिंहेश्वर में सावन के अंतिम सोमवारी के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. इस मंदिर में सावन की अंतिम सोमवारी की रात्रि में जल चढ़ाने और पूजा अर्चना की परंपरा बहुत ही पुरानी है.श्रद्धालु रात में ही कतारबद्ध होने लगे थे.

कामना लिंग के रूप में होती है पूजा
मंदिर काफी पुराना एवं ऐतिहासिक है. मंदिर के पंडा का कहना है कि मंदिर स्थित शिवलिंग को कामना लिंग के रूप में पूजा जाता है. रात्रि में भोले बाबा पर जल चढ़ाने बाले श्रद्धालुओं का मनोकामना अवश्य पूरी होती है. श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि रहने में कारण पहले इसका नाम शृंगेश्वर था. जो बाद में सिंहेश्वर हो गया. राजा दशरथ के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया था, इसीलिए संतान की चाहत लिए काफी संख्या में श्रद्धालु बाबा के दर पर आते है.

सिंहेश्वर मंदिर में रात्रि में जल चढ़ाने की परंपरा
सिंहेश्वर मंदिर में रात्रि में जल चढ़ाने की परंपरा

ऐतिहासिक है मंदिर
दंतकथाओं कि माने तो सिंहेश्वेर के इस शिव मंदिर को स्वयं भगवान विष्णु ने बनाया था. स्थानीयों का कहना है कि कई सौ साल पहले यह घने जंगल से घिरा हुआ था. यहां अगल-बगल के लोग अपनी गायों को चराने आते थे. वहीं एक गाय प्रत्येक दिन एक जगह पर खड़ा होकर अपने दूध को गिरने लगती थी. एक दिन गाय के मालिक ने यह सब देख लिया जिसके बाद सबों ने मिलकर खुदाई की तो वहां एक शिवलिंग मिला.

मधेपुरा का सिंहेश्वर मंदिर

नदारद दिखी सुरक्षा व्यवस्था
सावन की अंतिम सोमवारी के कारण भक्तों का सैलाब शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए उमड़ पड़ा है. मंदिर में श्रद्धालुओं की भाड़ी भीड़ है. लेकिन भीड़ के देखते हुए सुरक्षा कर्मी को नहीं लगाया गया है. पुजा करना आये श्रद्धालु ने बताया कि वे पिछले 17 साल से बाबा का पूजा अर्चना सावन के अंतिम सोमवारी की रात्रि में करने आते हैं. लेकिन इस बार सुरक्षा व्यवस्था में कमी है.

Intro:मधेपुरा जिले के सिंहेश्वर स्थान में स्थित बाबा भोले पर सावन की अंतिम सोमवारी की रात्रि में जल चढ़ाने और पूजा अर्चना की परंपरा बहुत ही पुरानी है।इसलिए श्रद्धालु की भीड़ रात्रि में उमर परते हैं, जो अजूबा है।


Body:मधेपुरा के सिंघेश्वर स्थित बाबा भोले की मंदिर को मनोकामना पूर्ण स्थल के रूप में भी जाने जाते हैं।इस बात का उल्लेख धार्मिक ग्रंथ बराह पुराण में भी है।वैसे तो बारहों मास अपने देश के अलावे पड़ोसी देश नेपाल के श्रद्धालु पूजा अर्चना कर अपने अपने मनोकामना लेकर आते ही रहते हैं।लेकिन सिंघेश्वर स्थित बाबा भोले पर सावन के अंतिम सोमवारी की रात्रि को पूजा अर्चना व जलाभिषेक का बड़ा ही महत्व है।इसलिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु रात को जल चढ़ाने के लिए उमड़ पड़े हैं।सबसे बड़ी बात यह है कि सावन की अंतिम सोमवारी की रात्रि में भोले बाबा पर जल चढ़ाने बाले श्रद्धालुओं का मनोकामना अवश्य पूरी होती है।खासकर रात्रि में ऐसे ही श्रद्धालु पूजा अर्चना व जल चढ़ाने के लिए आते हैं।बता दें कि जिस तरह से मंदिर में श्रद्धालुओं की भाड़ी भीड़ है उस हिसाब से सुरक्षा कर्मी को नहीं लगाया गया है।श्रद्धालु की सुरक्षा पुलिस के जिम्मे नहीं बल्कि बाबा भोले शंकर के कृपा पर निर्भर है।मंदिर के बाहर और अंदर कही भी सुरक्षा कर्मी को नही देखा गया है।जबकि पूजा अर्चना के लिए महिला व पुरुष एक साथ मंदिर में प्रवेश करते हैं।एक श्रद्धालु ने बताया कि वे पिछले 17 साल से बाबा का पूजा अर्चना सावन के अंतिम सोमवारी की रात्रि में करने आते हैं।बाइट----1----ध्यानी यादव-------श्रद्धालु ।


Conclusion:मधेपुरा से रुद्रनारायण मधेपुरा।
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