मधेपुरा: बिहार के देवघर कहे जाने वाले मधेपुरा के सिंहेश्वर में सावन के अंतिम सोमवारी के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. इस मंदिर में सावन की अंतिम सोमवारी की रात्रि में जल चढ़ाने और पूजा अर्चना की परंपरा बहुत ही पुरानी है.श्रद्धालु रात में ही कतारबद्ध होने लगे थे.
कामना लिंग के रूप में होती है पूजा
मंदिर काफी पुराना एवं ऐतिहासिक है. मंदिर के पंडा का कहना है कि मंदिर स्थित शिवलिंग को कामना लिंग के रूप में पूजा जाता है. रात्रि में भोले बाबा पर जल चढ़ाने बाले श्रद्धालुओं का मनोकामना अवश्य पूरी होती है. श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि रहने में कारण पहले इसका नाम शृंगेश्वर था. जो बाद में सिंहेश्वर हो गया. राजा दशरथ के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया था, इसीलिए संतान की चाहत लिए काफी संख्या में श्रद्धालु बाबा के दर पर आते है.
ऐतिहासिक है मंदिर
दंतकथाओं कि माने तो सिंहेश्वेर के इस शिव मंदिर को स्वयं भगवान विष्णु ने बनाया था. स्थानीयों का कहना है कि कई सौ साल पहले यह घने जंगल से घिरा हुआ था. यहां अगल-बगल के लोग अपनी गायों को चराने आते थे. वहीं एक गाय प्रत्येक दिन एक जगह पर खड़ा होकर अपने दूध को गिरने लगती थी. एक दिन गाय के मालिक ने यह सब देख लिया जिसके बाद सबों ने मिलकर खुदाई की तो वहां एक शिवलिंग मिला.
नदारद दिखी सुरक्षा व्यवस्था
सावन की अंतिम सोमवारी के कारण भक्तों का सैलाब शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए उमड़ पड़ा है. मंदिर में श्रद्धालुओं की भाड़ी भीड़ है. लेकिन भीड़ के देखते हुए सुरक्षा कर्मी को नहीं लगाया गया है. पुजा करना आये श्रद्धालु ने बताया कि वे पिछले 17 साल से बाबा का पूजा अर्चना सावन के अंतिम सोमवारी की रात्रि में करने आते हैं. लेकिन इस बार सुरक्षा व्यवस्था में कमी है.