लखीसरायः बिहार सरकार आने वाली पीढ़ियों को इतिहास से रूबरू करवाने के लिए प्राचीन अवशेषों का संरक्षण कर रही है. इसी कड़ी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2018 में लाल पहाड़ी की खुदाई का काम शुरू करवाया था. लाल पहाड़ी को मुगल साम्राज्य के समय के राजा पालवंश की महारानियों का बसेरा कहा जाता था. यहां की खुदाई में कई प्रकार की मूर्तियां मिली हैं. सीएम ने इसका जायजा लेकर इस बारे में पूरी जानकारी ली.
अधिकारियों की देखरेख में चल रहा खुदाई का काम
लाल पहाड़ी की खुदाई में मिली मूर्तियों को पटना के म्यूजियम और अन्य म्यूजियम में सहेज कर रखा गया है. इनकी कीमत लाखों रूपये से अधिक बताई जाती है. लाल पहाड़ी की खुदाई चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ी है. पिछले चार साल से लगातार लाल पहाड़ी पर बिहार सरकार के अधिकारियों की देखरेख में खुदाई का काम चल रहा है.
लाल पहाड़ी बन जाएगा पयर्टक स्थल
पुलिस को इस जगह की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया है. इस जगह से अब तक लगभग 5000 से अधिक भू-धातु से बनी मूर्ति और कई प्रकार की पूर्ण मेट माल, खाना और दवा बनाने और इस्तेमाल करने वाली सामग्री जैसे कई प्रकार की चीजें भी मिली हैं. लाल पहाड़ी पूरी खुदाई के बाद नालंदा और राजगीर जैसा पयर्टक स्थल बन जाएगा.
जायजा लेने पहुंचे डीएम
डीएम संजय कुमार और पुलिस अधीक्षक सुशील कुमार दल बल के साथ बिहार सरकार के निर्देश पर लाल पहाड़ी की खुदाई का जायजा लेने पहुंचे.
"लाल पहाड़ी की खुदाई एक ऐतिहासिक खुदाई और पयर्टक स्थल के रूप में जाना जाएगा. यहां पर कई प्रकार की सामग्री मुगल राज्य के समय की विभिन्न तरीके से बनी भगवान की मूर्ति, भवन और कई मूल्यांकन चित्रों का वर्णन सामने आया है जो अपने आप में एक विशाल धरोहर के रूप में जाना जाएगा"- डीएम, संजय कुमार
जनसंपर्क विभाग के कैलेंडर में चित्रांकन को किया जाएगा शामिल
पुलिस अधीक्षक सुशील कुमार ने खुदाई को लेकर कहा कि यहां कई प्रकार की चित्रांकन मूर्तियां और धरोहर सामने आएंगे. उन्होंने बताया कि इसकी सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. पुलिस अधीक्षक ने बताया कि आज खुदाई में मिली मूर्तियों का चित्रांकन फोटो 2021 के बिहार सरकार के जनसंपर्क विभाग के कैलेंडर में शामिल किया जाएगा.
संस्कृति और वीर गाथाओं से मिलेगी सीख
भारत का इतिहास हजारों साल पुराना है. आने वाली पीढ़ियों को अपने देश की संस्कृति और वीर गाथाओं से काफी कुछ सीखने को मिलेगा. इन संरक्षित अवशेषों से वर्तमान और आने वाली पीढ़ियां अपने देश के गौरवशाली इतिहास को बखूबी जान पाएंगी.