लखीसराय: जिले के पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित करने के साथ पहचान दिलाने के लिए प्रोफेसर अनिल कुमार लगातार प्रयासरत हैं. उनके प्रयास से ही आज शहर में वर्षों से बदहाल लाली पहाड़ी की खुदाई संभव हुई. उसे अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली. बता दें कि अभी तक लाली पहाड़ी पर दो चरणों में खुदाई का कार्य हुआ है. तीसरे चरण की खुदाई के राज्य सरकार से अनुमति मिलने के बाद पड़ाड़ी की खुदाई शुरू हो चुकी है. इसके अलावा उनके प्रयास से जिले के छह पुरातात्विक स्थलों को सरकार ने संरक्षित किया है.
सीएम के हाथो हुआ था शुभारंभ
प्रोफेसर अनिल कुमार ने जिले के ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए लाली पहाड़ी की खुदाई का शुभारंभ सीएम नीतीश के हाथ 25 नवंबर 2017 को कराया. खुदाई में मिले अवशेषों को देखने के लिए 30 अक्टूबर 2018 को सीएम को फिर से बुलाया गया. सीएम के दूसरे दौरे में जिले के बौद्ध कालीन अवशेषों को जोड़ने के लिए बौद्ध सर्किट बनाने को लेकर क्यूल नदी पर पुल और सड़क निर्माण की घोषणा हुई. संग्रहालय भवन और लाली पहाड़ी, विछ्वे पहाड़, सतसंडा और घोसीकुंडी स्थित पुरातात्विक स्थल को सरकार ने संरक्षित करने की घोषणा की. विश्व भारती विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन कोलकाता के प्रोफेसर अनिल कुमार ने बताया कि जिले के पुरातात्विक स्थलों को संरक्षित कर उसे पहचान दिलाई. ताकि जिला पर्यटन के मानचित्र पर विकसित हो.
प्रोफेसर अनिल कुमार का पुरातत्व के प्रति खासा लगाव
जिले में जहां-तहां बिखरी मूर्तियों को संरक्षित करने के लिए अस्थाई रूप से संग्रहालय का निर्माण कराया गया. जहां मूर्तियों को सहेज कर रखा गया. बालगुदार में 25.90 करोड़ से संग्रहालयओं की अनुमति मिली है. इसके लिए लोग प्रोफेसर अनिल कुमार के योगदान की सराहना कर रहे हैं. विश्व भारती विश्वविद्यालय कोलकाता में प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट के रूप में कार्यरत प्रोफेसर अनिल कुमार का पुरातत्व के प्रति खासा लगाव है. इस कारण जिले के पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षण के साथ एक नई पहचान मिल रही है. ये लखीसराय जिले के बलीपुर गांव के रहने वाले हैं. लाली पहाड़ी को बौद्ध सर्किट से जोड़ने में इन्होंने अहम भूमिका निभाई है.
पहाड़ी की घेराबंदी के लिए टेंडर स्वीकृत
लाली पहाड़ी लखीसराय जिले के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और पुरातात्विक अवशेषों का संग्रह है. आज इसकी खुदाई के बाद यह बौद्ध विहार के रूप में विकसित होने लगी है. अब यहां देश-विदेश से लोग भी घूमने आने लगे हैं. बौद्ध सर्किट से जून का महिना खत्म होने के बाद लाली पहाड़ी की अंतरराष्ट्रीय पहचान बनने जा रही है. लखीसराय निवासी प्रोफेसर अनिल कुमार शर्मा ने कहा कि पुरातात्विक स्थलों को सरकार ने संरक्षित किया है. संग्रहालय निर्माण की दिशा में कार्य शुरू हो चुके हैं. लाली पहाड़ी की खुदाई स्थल को ग्लास शेड से ढककर विकसित किया जा रहा है. पहाड़ी की घेराबंदी के लिए टेंडर स्वीकृत हो गए हैं. लाली पहाड़ी को वेबसाइट से भी जोड़ दिया गया है. देश के किसी भी कोने में रहकर लाली पहाड़ी की जानकारी ली जा सकती है.