लखीसराय: बिहार के लखीसराय जिले में दीपावली को लेकर कुम्हारों के घर मिट्टी की मूर्ति, दीये और खिलौना बनाने का काम (Earthen lamp construction started on Diwali) जोर-शोर से चल रहा है. कुम्हारों को पूरे साल इस दिन का इंतजार रहता है. बाजार में इलेक्ट्रिक लाइट और झालरों की बिक्री बढ़ने के बावजूद मिट्टी के दीयों की मांग बनी रहती है. क्योंकि दीपावली में दीया जलाने की ही परंपरा रही है. इसके बावजूद दीया बनाने वाले लोगों को उस अनुरूप बिक्री से लाभ नहीं मिल पा रहा जैसा आधुनिक लाइट-बत्ती आने से पहले हुआ करता था.
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दीयों का निर्माण शुरूः दीपावली को लेकर कुम्हार के घर मिट्टी के बर्तन, खिलौना और गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों का निर्माण और सजावट शुरू हो गई है. गौरतलब हो कि 22 अक्टूबर को धनतेरस और 24 अक्टूबर को दीपावली है. दुकानों और घर की सजावट रंग पेंट से की जा रही है. लोग घरों की साफ-सफाई और रंग-रोगन में लगे हुए हैं. दीपावली की सुन्दरता को निखार सके इसी को मद्देनजर व्यापारी दुकानों में सजावटी समानों का स्टाॅक ले आए हैं. सजावटी समान व रंग-पेंट की दुकान पर लोगों की खासी भीड़ देखी जा रही है. धनतेरस और दीपावली को लेकर बाजार में काफी भीड़ है. स्टील के बर्तन, सजावट, सोने चांदी की दुकानों ग्राहक पटे पड़े हैं. इसके अलावा पटाखे की दुकानों पर भी बच्चे और युवाओं की भीड़ उमड़ रही है. दूसरी ओर दीपावली धनतेरस को लेकर जिला मुख्यालय स्थित बाजार में पुलिस की सुरक्षा बढ़ा दी गई है.
इस दिवाली अच्छी बिक्री की उम्मीदः दीपावली के मद्देनजर मिट्टी के दीये और सामान बनाने वाले कुम्हारों को कोरोना के बाद इस वर्ष भी ठीक-ठाक बिक्री की चिंता सता रही है. इनका कहना है कि दीपावली में चाइना और कई प्रकार की बिजली बत्ती और झालर आ जाने से मिट्टी के दीये कम बिकने लगे हैं. बच्चों के खिलौनों की ब्रिकी से किसी तरह गुजारा हो जाता है. मिट्टी की मूर्तियां गणेश लक्ष्मी का बनाते हैं जो ज्यादा बिकते हैं. इसका इस्तेमाल हर घर में किया जाता है. वहीं दुकानदार अपने दुकानों में जो बर्तन रखते हैं उनको धनतेरस के दिन काफी आमदनी होती है और लोग तरह तरह के बर्तन खरीदते है.
"मिट्टी के दीये और समान बनानें में काफी मेहनत करनी पड़ती है. मिट्टी को पहले गूंथना पड़ता है फिर उसे अच्छी तरह से सानकर चाक पर रख कर मूर्ति और दीये बनानी होती है. इतनी मेहनत के बाद भी मजदूरी नहीं निकल पाती है" - पिंटू कुमार पंडित, कुम्हार
इलेक्ट्राॅनिक लाइटें कम कर रही दीयों का बाजारः मिट्टी के दीये की बिक्री के संबंध में कुम्हार दयवंती देवी कहती हैं कि जब से बिजली की सामग्री की ब्रिकी होने लगी है. मिट्टी के बर्तन और दीये कम लोग खरीदते हैं. इसकी वजह से परेशानी उठानी पड़ती है. हमारी मजदूरी भी नहीं निकल पाती है. इसलिए ज्यादा दीये नहीं बना रहे हैं. इस बार कोरोना के बाद बाजार से उम्मीद है. वहीं कुम्हार पिंटू कुमार पंडित कहते हैं कि मिट्टी के दीये और समान बनानें में काफी मेहनत करनी पड़ती है. मिट्टी को पहले गूंथना पड़ता है फिर उसे अच्छी तरह से सानकर चाक पर रख कर एक दिन में एक हजार के करीबन दीये बनते हैं. इसके बाद उसे सुखा पका कर मेहनत के बाद बाजारों में बेचते हैं. फिर फी जो आमदनी होनी चाहिए वह नहीं हो पाती है. इसलिए मेहनत का फल नहीं मिल पाता है.
"बाजार में इलेक्ट्राॅनिक लाइट, चाइनिज झालर और अन्य सजावटी समान आ जाने से अब मिट्टी के दीये और खिलौनों की कम बिक्री होती है. हमलोगों को सालभर इंतजार रहता है लेकिन लागत तक नहीं निकल पाती" - दयवंती देवी, महिला कारीगर